2% NOS ९.

Coll we WE 40. Ateneo 5 46|| ५५५, anit ५५१८५. by

0.५ ye,

iL. 6 1 AG. “| 1 [वि ` h An fs #

नि a > iy fe fae ^ = + Se:

ES = x sare काक शा DRE YS १.१. ~~ ~~~ ay , „2८4 re x

|. 1111

=

LECTION oF (गभो POLAT BY CURB ५४५0 भणण BENGAL New Sung, per WOT, `

‘,

RRS onthe

WY AMP {र्ता ADHV AYA ( 9 ११०11१1 suf, FUL, VYSVCHARS-KANDA 05 21110044

to ere A Mur aes Ty

0.6.111.

वि 1 1 MUAST De 1 + 0४. फण (> 1 > श्वः भः कभ

1600.

4 = 9 9 iD SFG a | {8 OF BOD. KS sft ; we iy 9 ४९) 4 4/4, 4११, * ४। 1, ^ १। , 1 9 a, i c \ भध i fi ‘ey. 1८५५१ oes re a . KT 1c p 1 1301849 tr Ween + am + ^ + je %

11 Wf até, 87; PARK STHMET ^ ABD OfTATSARER yRow ` ie SOOLRTY'S LONDON AGENTS, MESSRS. TRUBNAR & + ` ^“ * awn 59, (एण Hr, 10500, E. ¢,

BIBLIOTHEOA INDIOA. ie Nonskrit Series. ae Advaita Branmn Siddhi. Fase. @ /6/ each 4 , ‘Re Agni वाकम, (Suns.) Fase. LI—AFV'@ /6/ wach we Anu Bhésbyam, Fasc. 1 .. १५ ss es ; 11 a Aranyaka of the Rig Voda, (Bans.) Fasc. lV @ /6/ 6469) = +, Avhorimna of Sandilys, (English) Fase, I a Aphorisms of the ४८0571५. (883. ) Fase. VIT-—XUT @ /6/ cach a Ashtasdhaarikd Piajndpivaraild, Paso, I-VI @ /6/ each = ,, ee Afvavaidyakna, 246९. I—V @ /6/ cach sy iis Pe Avadina Kalpalaté by Rebomondra (Sans. & Tibetan) Vol. I Fasc. 1~<,

i)

@ Uf i * oe aa ve ee ee Bhan:itf, (Sang. JPaso. I—VUT (> ५४६ ae ४६ ; Brahma Sttra, (English) Fasc. I... a Brihaddevaté, (६५१९.) 1१४१८, {~~ 71 @ /6/ each , , , 4 , Brlbaddharian Pordynm. Fase. 1--11 @ /6/ oach = Byihat Arany.ka tgs (Sana.) Fase, VI, VIL & IX @ /6/oach .,

Ditto .. ( wh) Vasc. {{--111 @ iol (४. ` ०, we Byjhat Samhité. (Sarts,) Faso, 11--111; V-- Vik 8 6/८ ९२५४ ,, «a Chaitenya-Chordrdaya Nataka, (Sans.) Faso, 1. @ /6/erch. a.

Chaturvarga Chintamani, (Sans.) Vols. 1, Fuso. 1—1! ; 1 1, 1-26; III

sh ert 1 Pose 1--18, Part 11, Fase, 1-6 @ /6/ each (0406 Upanishad, (English) 296८, I. ०१ : 0009, Pare. O aud 111 @ /6 १४

11119. 1101 ५6.11 @ /G/each .. . Hindy Astronomy, (Ln १५५. Vasc. {-- {71 @ /6* 6४०

{६6198 Médhava, (8५8.) ‘ae i os @ /6/ oe 8

Kétantra, (Bunk) ७६१९, VI @ /1:/ 4१८४ ae’ oo

Katha Sarit Sigare. (English) 1986, 1—X1V @ /12/ each ., $ १198111 8), 11 2. 2, पा pe th : Birma Purdys (Sans.) Paso. {-- 19 @ /6/ ehob os ‘Lalitu-Visturs (Saua.) Faso, U-—-Vt. @/6/ , xe te , Lalita. Vistura. (Minglish) Faso. 1--TIT @ /12/euch ` ` र, £“ Madana एद) (Sang.) Mage. [--VIL @ /6/ oach -* Manntiké Ranyvrahs, (Saus.) Fasc, 1--ITL @ /6/ esch 9४

Markandeya Purina, 2, Vaso. LV-—VIE @ /O/ each pos ` eo

Mévkapdeya Purfifa (nev) Fnac, £—II @ /12/ each ee © M ina 6१ Darang, (Sans.) Fano, IX! @ /8/ each oe 1 ae

N a Pagclardtrco, (Sanu.) Fase LV «| ae C ‘Névida § aati {Bans, Fuse. {~} @ /6/ , ११ ९६ at in a ४३ ‘ae Nayavdrtikam, (Sans.) Faso. Dy. tege भ, ee ay

अधमतम (8००४) Vol. 1, Bane, EVDYTs Vol. Th, (५५ VE; Vol, LT, Bas सद au VE Vol. EY,. Fase, 2444 Pt क्वि" , + 4, ०"

rh, Or ‘The Mymentsof Polity, By Kaman aud, TLV:

42 ११ ` ' ' : tin ee

' oe *

th ५६, 9 $ १. oh

é oy ( “१ rt

^ ew

मि

{ pee’

परारूरमाधवस्य शुदधिपथम्‌ |

( STITH TERE ) [1 1 nee: oh पदः wae श्हम्‌ UAT ve प्रश्चा एं Ss ‘en nef

faa... sin सचिन सूतिषे .. सति प्रधृ ... Tey OGY „१ afar CRE ae ois Ta

धाः RE arrears के ,,, fi ay

न्याय FRAT. TEMA प्रि ,., eve ति

Cary yeas" भगिर्भयास्थ OK ,.. we ` निनि कगौयन्‌ (शअनिविष्े कौप fafaqs (निरविभ्न्‌

मकार. .; ११३ Away afea ,,, ae afy¥

WITT मुकय ... नेक ,,* BU र, कात्वा ,,., RE

मगाण प्रत

WE ves ay aqwar,.. MEY ,,, कस्‌ ,.. Bat, + WT se Fane

WY ,,, UPTO

सस्नौ , ,

Afenal...

. (९, Ble

मभ ,., शरश

दवानाच ,,, a ing

aR श्वात्वा यथ

मृत्‌

aa feu:

aa

Hit.

watt eat (are भय

[क प्रारम्पय्य सज्ननौ असित

(र पाण RE,

मसं mal

दःम a =

WE

Ee (Me, पार. R He }

स्‌ ९९

ऋष्ङडम्‌

प्र. १. का १, धम्म स्प

शभ

WAT. (गस्पेन्‌ ,.. ठस) ,., APH व्य WA

atsy ..

far {लनां 7167141 pede aa

|, १. af; xtd ahimy , . धतम. wat

त्‌{ 4१६६,

®

oud

aq | He, cute, 92 we } प०,९ क.

ऋ)

भ्म =है a4 airy ay पत्वम्‌ | it cf Ai भ्र q २१५ चमु त्वाय (निध्फन्नन्‌ ute

UAT

siwtta, afar

USHA {4९ म॑। १.५६) 4 ata fa % a8 caaata धिदा नप्र, Yqyt ath HUA:

ष्की 8

१€

UNITY | a WT ,,. क्रतादार गुणोपेतो तेनेवौकम्‌ CEN... भेद ,.. चिस्म्राहप ब्राह्मणे... उशनाः... पदभ wat... fafa .. दइवरामे... दु “''

मासाञ्जनोए्कछिहट ,,, स्वसमम्मािकरितान ,,,

FAUT .., = SAAT...

परम्‌ ... वैं

aA... रायो ,.. चातुर्मास्य प्रतिद्धौ "+

Wezq | ara fir छतदासे शणेपेता वेनेयोक्षम्‌ aera भेद चिर्न्वाषाप

Heat (रवं २९० षष्टे} sya ( रखुवसन्धन्न )

शूरे शचौ चिति दवाग्मे दुषु

मांसाघ्ननगोष्छिष्ट खधर्म्मा्कितान्‌

Taal Ss

Aaa

परम

TET |

९९

१५ ११

aba ta Lay... निदसेरभात्‌ शितम्‌ समां ... ATT 33 सानां ee afta. . सद्य vee सध्या ध्यान, ich मतये .. PZWAG ta सोग्य . . काशा. कुत पर: wR नत्व Cale. ११५ wat ... yee Fafefeu नन्द्रा aaa प्रसर ...

भिक्लाटनममुदयार' न) प्रक कमापि §

पइ

KAY निकत्ेरमाषात्‌ गर्हितम्‌

मासां

SRT

Hiatal

ननित. (एषे परश) सदाःभ्यर्ा

whay uy

be Ta

तप्रये

FAT Ay aT Rj

aE Aree

तन्व

सवाम

magn

Fafat«

नान्धः गौदन्

(41 मिक्ताटमममुदु्यामात्‌

ure Rau

ns Un ery | gry |

yor १७ आहतः °. Me eet

५७१ १९९६ HH a चरन्त

yed | yc यथो... eee यथा

५८७ १४ उत्पादका ,., उत्पादकी

९१२१ ९९ TE ,, bas ue

qe १८ दश्रचरसन्निपाति यदाद्यं eT: सभ्निपतेयुराद्य १२४ १६ प््वाध्ौच ..„ ~ पूर्व्वाश्रौच

१४० ` सिस्स ... "= fee

६५९ १२ च्यान्नाति ,.„ ऋश्चाति

१४६ १७ द्रं ... , दशं (रवं परत्र) १४४ १५. करिष्यति ,,, गमिष्यति

१४४ २९ डर des we OE

dod fefwraq ... तिश्युग्मषु

१५२ २९ देवलातश् देवखातश्च

६५९ १५ त्र्माणएराणोऽपि अर्माएडपुराणेऽपि वद ¢ धनमान ,,, धममायश्न

१७१ १० चण्डिका =r चश््िका

dod 2 विषयत्वागमात्‌ ... विषयत्वाबगमात्‌ ९७६. श्वोतिया श्रो श्रिया

६९२ निवि... ,.. जिवि (णवं परर) ६९६ ¢ . सम्र्धाऽपि ००, सम्रद्धोऽपि

१३९९ १९ डा ... . दौ

oR १२४ प्रग ... ,.. RET

७१२ ९६ या ... a यः

७१७ १९६ मासं. ,,, ,, मासं

am ,, बेन (रव ew) ` ददिधामवत्‌ विधारयेत्‌ उपनोयं उपबौष सव्ब॑पाजेषु समे पाच wannte wert वि पाथिनि वार्तिक COW... cater बष्यासान्भ बष्सालान्‌ feast TACT! पराह ee TD बाऽप्याभिमान्‌ ,,* वाश्यभिमान्‌ दादश one रएकादद्याद जलाच ,, लौगाचि (एवं पर) मातामङ्ानाभिति मातानदहानिति प्रयोयम्‌ i संबन्धनोषम्‌ मातामश्ये ,.* मातामदबो बवयोः पर्यादतंनं काम्‌ |

पराशरमाधवस्याकारादिक्मेण बिषयस्षौ |

( श्रासारकाष्डष्य) 5 च|

विषयथः। of | पद्मे HANSA वानप्रस्धा्रमेऽधिकारः ... ५२७ ९९. अ्तमालाविधिः ... ५, i २८8 re walameta ... = ५, ARO te Gu ` ५,. a १५१ Le अष्ुलिमनम्‌ =" (ध ne ५८५ ATA AS TATA TAT FR HT TH ey ६०१. १७ व्जातदन्तादीरामभिमंस्कारे salt धम a १०४ १४ अतिथभ्यःगतयोन 21a i ee १५२ raf tare rar a "^" ५१८ ua efuazatateatta te ४५७ 1 द्यधययमाध्यापनप्रकम्याम्‌ .'" on Vag % कभ्यापनेक्रालः rad auaafafufaare: ve ree 4 च्मध्याप्याः ree epg: सपिरौकमगकानः O58 x Bc KKKE ner ९० कीः ~ aa a १४१५

अलुदितादिकालानां wreqanfa ..

( श...) ` tere | अहु्नौतमस्योऽतिक्षागताप्यौचामावः = ,.* erica छतचूडयेव fant: ersten: ‘eget धर्म्माः i egritag भे वेदमग्भपाटविचारः ` ,.* अशुपगोतस्या्तराग्यासः es agg: .. अनौरसएवादष्रीचम्‌

अन्वा सस खावा्यकत्वम्‌ ,.* oe

SOT IAA La

अन्येऽपि Wwarat: baa

शअपन्टद्य तानां चतुद यां Bay se way पलदारत्वविचारः ,,* sa ergo... ea १५६ शअमिवादनप्रकरणम्‌

WTI:

कभ्यङ्ादिनिषेधः ...

शअंभ्नाषटका विवाह विचारः en अयाव्धयाजकलश्तणम्‌ es अथ्यमान्राणि .. bs अर्धं लोभात्‌ सवयौश्वदहेऽप्रौच अ्ंसोभादसवगंग्रवगिष्रणाणौचम्‌ शअषणिशण्टहस्यधर्म्माः ` अविक्रेयाणि (area) ... wfamanentr ( भूदरस्य ) a कचेष्यधिकरणम्‌ ०५ eee ०१९

( }.

Frey: | met धान्येग तिलविनिमयः .., 46 कशौघनिमिकसतिपतेऽद्नौचयवसया ,, aA... श्वोऽपि द्पिखदागम्‌ अश्रौघापवादः ...

प्रो चिना वापगकालः bi अप्र चिसंसगे apemitey ,., a ata केषाशिदसङ्र्पितद्थाशामपि sxe

erate Tear faMA STAT माडम्‌

aula सन्थादिकरणविधारः ... कङकानिकू्पणम्‌ ...

असत्पतिग्रहोचितावस्या

असव ्रवनिषर याग्रौचम्‌ सवर्णा विवा हविचारः

afweqrrnie: `

अद्छिसश्चयने निषिद्धतिधिवारन कनाम खषहतवस्प्रम ल्कम्‌

विषयः |

साचरनिरूपराम्‌ ... ee one areacayqay ... ‘is ns शाचा््येलच्तगम्‌ «.. Me थातुर्नमाशौचम्‌ 0 oe eas प्रेषमवोचारणम्‌ a waqceaaye: .., oe ian च्पातुराश्वासमानन्तर छतम्‌ ..* as NAA... ‘vt sais ध्षारिव्धानां नामानि | eile शद्यश्ादकः(लविचारः sie १०५ श्चासश्राद्धविचारः ... oss ‘is शाश्नौतिनियमाः re vee श्वाश्रमचातुव्विश्यविचारः = ,,,

era चातुर्विध्यम्‌ ae ee TIARA `... ee MAA व्रमेणानुष्ानम्‌ ... ee raat saan fay: ve

SARA HI MAM ARTE चाश्माधिक(रविचारः se aes eraetlsfaaret gra: पलौत्वमावः oe छ्षासुरादिविवःमेएायाः सपिण्डौकरणविचार, - स्माह तलच्तरम्‌ .,. ia शदधिकप्रकर्णम्‌ ...

( } रं |

faye: | ईैरस्य Fey

छु | उष्छिरसत्रिधिपदाथेनिरूपगम्‌ oi SEI. Ss oC उपनयनप्रकरयाम्‌ ...

भभ उपनयनादईं Bart अ्यचर्याचर्योनापि ष्म

पर्यया खघमभिर्वाह ave ane उपसंग्रह गलक्तगम्‌ ` उपाकम्भणो WCVB a murs fatty:

“~¢ AY

. उप्राकम्म तिकन्तदयत a उप कम्मातसननप्प्रसा उप्राध्यायलक्तेणम्‌ ,.

Ri | ऊनमासिकस् कालधिक्रन्पःः ऊनवागमानिकास्नां IM, Hartt TAT:

HATCH उद्युददिधिः

eee

|

शतुकालानमिगमनदो पाद oe es

५०४.

११

१९

१५

fay: | ऋषिभेदे चूडानियमः Soe | watfere वैषिध्यम्‌ a को दिटलद्षणणम्‌ चच Vary

दचैरसपएघस्यानुपमौवस्यापि दाहादययधिक्रारः ...

क|

कर येलक्तगम्‌ ... ५१, कन्धादातारः कन्धादोषाः

कन्धाया आन्तरि लच्तणानि

कन्याया वाह्मलच्तणानि

कन्धायाः ARAFAT:

WITTY ... oe ei कन्याशब्यस्या्धैः ...

कौरयदगाप्रकारः ...

कम्म कुादम्‌

कलावाचारप्रायश्चित्तयोः ayrafaare: ,,, कलौ दर्धानि ,,' =

७& < ७६८

OR |, 3

TET I

१९

१०

& 6 AS

विषथः | कष्यलरूपं तद्धेदाख्च a कामार्थाधिवेदनम्‌ काग्यकम्मेणो मो च्ताधनत्वाभावः कम्यिश्वादक्षालाः ९, ad RTM A ane ne कालविरषेणातिकान्ता्नौविेषः कुटो चरलच्लणम्‌ ... ,, कुटौचर्स्य ठत्तिषिरेषाः ,,, रत प्रलच्चणम्‌ |... 7 aya: i 98 HAYBUTA MAG dg छ्लोदाषम्योपरगसमियमः एपरिमिन्दा aaa fants विक्रयनिषेधः aaa दे यधान्दपरिमागभ्‌ ARTA MATAR TAIN aut afaae war विनियोगः aut वज्याभलौवरडाः wut गलीव सख्या ant विहितबननराः रष्यत्तपापप्रतोकागः

targa ०.५

क्रियान््ननम्‌ ऋते ग्रलच्तकम्‌ =. seh Le KK bos ,". ee

):

निषध) | हशारादौनां भक्षनि होमः

यज्यम्‌ अण्डनविधिः मयाश्ोषंनिरूपखम्‌ मर्मस्लावगम पातयोरश्रौचम्‌ ममंखावगर्भषात यो लं्तयो गमेखावाध्नौषम्‌ ... मर्भाधागादौभां कालविशेष ; आन्धर्वादिविवाशो एायाः पिदगोचेय पिण्डोदककरणम्‌ MUTT ST ALT TA शरणाद्नुसारेणाग्ौ चसङ्गो werent walang बरशामुसारेणाौैवसङ्ोचः

ब्रवः, sas ue ५९० यडपजाप्रकरणम्‌ ie Ss श्पस्योष्किरभच्तणनिषेधः ... sai newer

wrannrati afm:

महस्थानां चातुर्बिध्यम्‌

feat wens मोजननिषेधः

भो्रनिरूपयम्‌ `

मज प्रवन्तकामुममः oat

मोधमेदेऽपि प्रवरेवधम्‌ मोज्राठामवान्रमेदोः sal ss

We |

age

६५६ RE ६५१५ qoR ९६० ९०९ BRO ५६९ YOR ४५८५. ५९८४ Rex Red ५५७ Rok ४२ BSR १६१ Bog ०७ god vor

१8

(e)

firey: | SRS प्रदः =, गौर्यारिसं्चानियंयः or ग्रन्यानुक्रमणिका ,,. af Tat . UWS गोजननिषेधः ' यष्ट भाडकाशः... . म्रामभध्थे wa fea} Trae Ty

री

कै

ql Tene ,,

11

ql

WRT मेर्ग्राश्नत्वम्‌ चतु्ेभागकनयम्‌

चतुर्था खअमनिरूपणम्‌ a ae ACA! महगयभ्नाबरेकोदिष्वम्‌ चृङाकरणम्‌ , ., s

भगनाशरौचेऽकास्ययव माद se te mre पितुः eran fret: भनमाश) वे सूतिकया TaN

भगनेऽतिक्रान्ता्रौचाभावः ,., 6

werent देवतां ma th वाभावः - 2

YOR

१९९

Re

( १० विषयः ; wich दानादावप्रोच्राभावः ,,.

जप्रयण्् भेदानां waa ,,. MAYTAG मेदाः ,..

भपसंख्यानियमः ,,, ५५५ प्रस पज्तिषेतवः .,, i ज्षिललद्णम्‌ aug ६९ ^ ९० £ sae तपरणे fatty: ५५० MARTH ,.. i शै जातश्राद्धादि हेम्ना RA ,,, MAPA पक्ा्ननिषेधः जातिभेदप्रकरगम्‌ जातिभदेन ऋतुधारगकालमेदः जारोपपद्योमेदः ,,. + जौवत्‌पिदटकम्य तपे विषः ... eH: समुश्वयः si | तपगापार्ाशि ,., bee तपंगविधिः तपेमौया; ‘i aya feat aver विनियो गविष्ठः fasauafaay: pee ere तौ यभागकनतष्यम्‌

FATA दश्रपिग्डदानप्रकारः

२१

२० Ad A, >

Fare: | रणस्य aqtiuay TUR दश्‌ श्मनि isk दन्तधावनविधिः .., + रन्तनग्रपिषयं BWR द्भ॑{दधिः oe os

STROH LUT करयनिणयः

TTR LGA

ZTAUYL A Baa = AGEN BON ... ZB AUDA

frqquaamy ..,

fa afepay ed दिवासैथुननिषेष्‌ ,,

aie a ; PERE CIC Ge दुग्ेतनामुदक २11५१ दुतां रामामदर्वानिः = qn (at args प्रमो पुर्‌ few ag रेउतानां WAH 8 QqaT AHIR va me qa UTURTMA / टे वणकलच्तणम्‌ os i देव्रलल वराम्‌ ve es

देवा्ैनप्रकर्गम्‌ ^, "१.

0

ra

१४

( ९१ )

fray: | देध्राम्तरमतस्य मरणदिगाक्ननेऽप्तौचग्रश्यपरारः may. Brace, ... ies दौहिच्मागिनेयमरणाष्तैचम्‌ a ष्यालनस्य एरषायत्वम्‌ ` ,,. 535 दिनातोनां वासोपमो गिदेशः ... om fenfrefesatsay aT ve दिजागां गर्भा धामादिसंखाराणां arr दितोयमागक्लयम्‌ Si soi दविराचमनगनिमिन्नानि re | ध। धश्मेस्य बविधतवम्‌ भम्भश्ाख्नाध्ययनविधिः aie 1 धभ्भस्य BRATS विध्यम्‌ धम्भखरूपविषये मतमेदाः ... ai धम्मां चारयोभेदः .. धर्म्मा ्रववइने सद्यः शौचम्‌ ,., . धर्म्मार्थाधिषेदमम्‌

मभ्रलच्शाम्‌ , ,, ee १५, मवमिश्रश्राद्म्‌ ,.* ave ५५५ MATA ove १११ १०५ ATAU ,,, se sae

wh

९०० ५८६५

( ६६९ )

frre | भामधारकविप्रलच्चयम्‌ om नामधेयखरूपम्‌ ,.. नि्टभातिश्रवानु गमनाश्नौचम्‌ निद्यकमभवां देविष्यम्‌ निदयकम्मननोपे प्रायश्वित्तम्‌ ... नि्काम्ययोभेदः ... नि्नेभिस्सिककाम्यानि नित्यश्नादम्‌ ^" oe निश्यानामङ््हान्याःप्यनुष्ानम्‌ ... निराकतिलष्छणम्‌ + निविच्छन्दार्थः ,.. oe निष्कूमणम्‌ ve नेमिन्तिकश्रादम्‌ ...

Ae. $ “, a नेभित्िकश्राद्धानां TRATA let TAT...

गै भितिकखानम्‌ ,.' नँ ए्टिकग्रह्यचारिधरम्माः

"GI

प्रद्धिपामनब्राह्मणाः पचम एकयाटाव्ौचान्प्म्‌ म्धमादावपि पचित साभि निरन्नः प्रत्थाः प्राव्वेणाधिकारः

प्ररमष्टसदत्तिः '*' परमष्मलद्शम्‌ .' प्रराशरमाधवर्कःरिका

toe

ve |

us.

४४१ ९१९५

VY ९५९

48 १५४ १५४ que ९९३ १९४ ४४२ oat ७९५. २५५ ४५२

qs e ४८८ ५८८ ot ५४६ yor

९४. ue

fave: पररौद्मरशब्दाथे निषेचनम्‌ ,,, पररिवे्परिविष्योलं णम्‌ se पररिवेदमविारः ... os परित्राशक्ानां wafer. पाकयश्चादयः पाङ्केयत्रास्मणाः ,,, प्रापसोगाः a परार मश्द्यस्य वैघत्वविचारः .., पन्यैणेकोदिष्टसनिपाते trae: पिष्डदागाधिक्षारिणः पिखदाने दस्यभियमः पिण्डमिर्वैपयकालः ,,, ms पिखनिवैपयेतिकत्तेथयता पितु्येखमातुखोच्छिटमोजनम्‌ .,, पितुः श्रोचिय्येन एवस्य Sey faza प्रये क्रमः

पिटमाहमरणे वधंमध्येऽन्यखादकरयविचारः पिटमाटृश्नादयोः कालेकये पोर्वापर्यनि्यः |.

furry:

पिच्ादिश्यवनिष्रगे अरह्यचारिगोदोषामाषः ...

पिभादौ विद्ये wz faite: ... पिश्ोमेरणे विवाहितस्तनौगमशौचम्‌ पिन्यदक्षिणादाने प्रा्चौनावीतित्वम्‌ utara: पिदगोच्रल्वम्‌

, एनभे निरूपणम्‌ ,.,, i

ve | fo ९९० ९९० ५४७द्‌ १४द्‌ ९८२ ८६ ५१ ७९६४. ६४२ ९४२ ७५२ ७५ ४१५७ ९७८ RRR ७९२ हं २४३ ९९३ Bes ९०९ Oyo 9७१ 8९४

{विषय |

yearn: e a पेल्वपरोच्चोपायः .., a +: एराणश्राद्वम्‌ .. ing be प्व स्{तयतदसयेऽ्नौघामावः „^ पत्नसङ्जखितपकचदञे fate: .. i पोश्यवगेः ss si TRATATHTH: ,,* a sai प्रतियहप्रशरयम्‌ .., ce Olt EIR (CCC Mae 4 प्रसाण्दिकश्रादे पा्व्ययेकोदिरविधिक्षावपिघारः प्दोषनियायः ,,., Gi प्रमादतोभस्रयाटिम्रतामामभ्नौचादि प्रयोजनमतो पदांस्थःमनुष्ानम्‌ ci प्रलयमेदनिरूपगभ्‌ [ि at प्रवरनिरूपणम्‌ ... re प्राहतप्रलयनिष््पणम्‌ of ves प्राजाप्यव्रह्चारितच्तणम्‌ os se प्राणायामलक्षणम्‌

प्राणाङ्तिकल्यः + ue os प्रातःसन्ध्याकलिः °. ५५ DORIC EIR ५५१ परेवमि्टेरणे ्रद्यचाश्णि व्रतलोषः ११, प्रेतपिर्धसख्या = ''"

geet TAT? पिखदमम्‌ प्रेतानुगमनवपिधिः + “a

` ,.भविषषेः।

मेक्ेदगमगाप्रौच्म्‌ is

पेगपवागप्रद्यलक्लयम्‌ si

-बहृदकस्य efefae:

want vata उपगमक्षमनिथमः .

wre feaerey aay ‘ag बालमरणा परौचम्‌ = इद युत्रह्मचारिलन्तणम्‌ अ्रद्मचारिणां चातुविध्यम्‌ ब्रह्मचारिणां देविध्यम्‌ os werentcai वर्व्यानि a बद्चार्यादौमामग्रोचाभावः ,.. werafaty: ,,, ब्र द्व्रहमचारिलंक्षगम्‌ * ,,, AUK...

arya भेषजटेत्तिनिषेधः ब्राह्मणस्यापि शषिकम्मे आद्यस्यासाधारणोधम्भः ,,., कऋरदयशादोनामपि पेश्राचविवाहः ब्राह्मणा ae मोभनविचार; ,,,

४५

. wel

९१५

५७३

विषथः। ब्राश्चणादि दिवषः ‘ss aranfefraretgrat wentaa पिष्डोदकदामम्‌

nates. था

| भ। भक्षिमा्मस्य षडदग्रमानि ,,, भाग्रपदापर्पचंश्राम्‌ - भाग्रपदापस्पसश्रादस्य TORT:

भाग्पदापग्पद्छश्राजस्य पद्वम्यादिकल्याः =. WIRTZ CY कन्धार्का श्वित वेग प्रशस्तत्यम्‌ ARITA मह्ालयगभष्छायामन्ं ... माद्रपदापरपर्ते एकदिनेषपि श्राद्धम्‌ ,' मा्पदापर्पन्ते पम्धादिकम्पे चतुद शवम्‌ भादपदापस्पच्त HAART. waa षोड्ग्रनिथयिष्‌ साद्‌ भादपदापरपर्े स्तत्‌ BIRR AHA

franforamtt se भिचकाः os ss निक्जापौयानां ary me Bare: . ५१५ ve १९० भरग्वन्मिमरणपिधिः vs

Faw Tafa भो जनपराधस्य Tae arate aay se

मोजनपाश्राणि

भजनप्रकरदम्‌ .*

acy

प्रो es.

( ६८ )

निषथः। ret | भोभगविधेदरौचयाङ्कामि „^ ihe २७७ १८ wert माससंख्ा ae a B9o ¢ भोभनेतिकर्तद्यता 7 a ३९४ १९ att मौगविषारः sas = ६७५ १९

म) मधाथयोदद्योश्ाद्विषारः ,,, ५१, 4९८ २९१ मधाच्चयोदग्रौ्ादध पिद्निषेधः te doc मष्लवोत्तगादि ,., tee a २५७ १८ मल्छेष भव्याः ... ५९, bai १७ १९८ मधरादिरसानां मोभनक्रमः ,.. १, ade १७ मध्यमपिरहपतिपन्ति a ७५८ १७ ATS SAH Te: ३, २९४ aay: i, or Red ५९८ मन््ाणगव्यादिक्लानम्‌ is १६२ ` मन्वादयः , ११५ १०५ see ep ५। ६५८ ॐ.

मलापकषेगस्तानम्‌ Si a २६२ मष्ट ब्यतोपातलच्छगम्‌ ve dud १२ manawa = ,., i dog Ro मातामहादिखाडाधिक्षारनिर्गयः ae ७€.० Re मातुलकन्याविवाश्विचारः ,,, ^ „+ ade १७ माटसपिण्डोकरणविच्चारः ,,, Sis ७७९ मातुः सपिण्डोकरये गोचनियमः oF Oo

anaGerarra ave १९, २४५० 2

( १९ ) "

fave: | arrTeqrygahe Ha rr isi

मासिकश्राडानां fate सुस्यकञालेऽकषरणे मासा. मोरे afer} करणम्‌ ,..

माहि पिकलच्तणम्‌ sts i मांसभस्सग विचारः $ oe मांसेषु वरव्धानि .““ ss 2 सुख्यकल्यसम्भवेऽनुकन्पस्याननुनम्‌ ia मूच्रपरौषोत्छगेः aes i waning Tafaaeray संन्यासः om ae array: lw. ee

uafatianitatate .., i

een we

q |

THAR vs ves tee यक्नोपवोतप्रकषरणम्‌ vee 7 retralaw कायादुद्स्गानिषेधः

यन्ोपरौतादीनां श्रोटनादौ afaafa: vse

यतिधम्भः te ५५१

यतौनां समिगहमनिषधः on यमतेणम्‌ „' a यवागपांकन्धायः .. , [जनप्रकस्गम्‌ ... ste यायावग्पख्यकक्णम्‌ a यावस्नौगधिकस्णम्‌ ५९१ ie

( Qe.

fawn: |

यायव्नौवा्नौ घमोधकावाक्यस्य निन्दार्थं वाटतवम्‌

युगादयः sl ni बद्वकालारि ,.' ee TATA MAR AT Us यद्धप्रकारः ne TwAAITA ... ०. योजनखद्धणम्‌ ... oi भ्‌ | eufafana विशेषः ve रसाद्रीन रस(न्तसादिभिविंनिमयः xratferanit. ,,, ~", राच वैश्वदेवः ,.. aaa नामानि ... diz

सोगादी मिद्धकर्म्माकरणे दोषाभावः

सिक्गापेच्तया aa: प्राबस्यविचारः

वदरिकाश्रमनादात्यम्‌ ve वयो ऽवस्ाविरेषेणाण्रौचपिग्रेमः

वर्दोषाः ai WUT स(धारणोधन्मः ..

२७६

९२ fog gee BRA

वर्णानुपन्व॑यय विवेष". वल्विकम्मणि प्रतिनिधयः 4, वरना नमानि ,,. se awfaaa faitu:...

NAT MHA TET Ty

वामप्रस्यनां wafpmy 4 वताकरिद्एद्रम्दनल्लणम्‌ ५] दकतनहोतम sing BEC ok $i

dh परिम्‌ ... ve

Fault eget. faefetafenata urescugt aye

faa guna... (ववद. 7

~ * t re निनाय Bie fey (ततनन , ae 1) तिरे कन्द) तदानिम्‌ ti जेष्म दाः {विदान Ql aR ui a ५११

aN 5 4 4 a चाम २3 कन्धयोत- Thaute

निवार qb (UAE. i fy qe ALATA RY मम्‌ - Bia’

sfangiaaa yeas as gan ( घोड््र एणः) ude oh

afgaurafafyn fa en

Qa” 1B

विषवः। 4 खर्बिशाडदप्रकरयम्‌ ine Boe कषलौलसगम्‌ ,,. ses 9 वेदाभ्यासः sis i oe Ferrara त, re वीधम्दग्ब्गदिमर गेऽण्रौ चदिधिषः Fe Santina Pg TUT ne a कैशपदण्रंमामुसारौ WOAH: is wala a ereTAay १९१ a afanfian चपि wy... sat श्यसनानि ii si ei श्ुतृक्रमन्टताना सपिणोकरगविचारः ae in ४४४ ag

श्र। प्रष्दाग्तसधिकररणम्‌ 9४६ re WUTHIC! ,.* ०९ सष तश्ाडविचारः eo ae

weiner = ‹', शिह्िप्रम्डतौनामणौचाभावः ,,, परिक्षयम्‌

“मलम्‌ ( अयोदश्रविधम्‌ ) ,* PS = ve FRU TALA «+ ase

vee og R BER < Rod १६ १०द्‌ yes य्‌ RRS २४० BRO १९८ dug १४ ५०६ १५ are ९९ 999 Rg ४०१ Ra ९९१ ६९ ace ७६ YOR १६ ९९४ १४ ९३२४ 1 ९८२ ७८९ ४९७ ९६

विष्यः | श्रू्स सपिण्डोकरणक्षालः ... अृ्स्यामन्त्रतो विवादः a

गृद्स्याश्चम विवारः is म्रूढापिबाह विचार (6 प्तौषप्रकरगम्‌ a ss maid निर्सपणम्‌ im भाहकतगां Trey ETN श्रादकास,

खाद्धदिनदयम्‌ ..~ , „१, argfedt कैदेतकालविचःरः ,,., खा ्रटेप्रानिरूपणम्‌ wh iment प्रकस्यानि दद्याणि ... wy 28 ui far as pis BTRURTM ,..

राद्धाः am si mene ति्वदैवभेदः (6

satay व्यानस्यादिना Hear! srrefaa ख(मश्र(दविष्वारः ,.. श्राद्धविशेषे पिणदानक(कविभष- WISH ...

श्रादपधाभावेऽ्नान्तमम्यापि मोज्मम्‌

्ाद्धारपरेकहस्तनोदरकदानम्‌ ...

श्वाद्धीयपुष्पाशि .. ee sreiaareawfreay ..

आङमान्नपरितेने प्रा्ौनावौतित्वामा्ः

WWI eg ५१७ ५९७ ४८६४ २९९ Ovy «ई ८५५. ७०२ ode ५१५४६ ७२० OQ १४८ ९५९ ७९१, ६99 ६०५५. OY ७६९ ०९४ ९१० SRR One

७8२.

विषथः।

mrErareurartar

ae नुलेपन्रव्यायि are कदलोपधनिषेक्ः

( २४

ees

ATA कष्णमाषाणां WTI...

ME गोधूमस्यावध्यर्कतम्‌ देतिकन्तव्यता .. are दौपादरव्यानि शादे धषद्रायि ^.

ara निमन्वितत्राद्णेभ्यो देयवस्तूमि

WTS ब्रहद्यरेयापुवादिप्रशंसा

Bre मोजनौयवबादगपरीोन्ता ... WS MANTA SMA: ,..

Rie भोजनोयनाद्धणानामनुकल्पानुकल्यः दे यतिप्रप्रंसा a.

आदे सोकिकाम्रावप्यम्नौकरण्डोमः |

Bre बजनयप्ष्यागि MS वनेनौयन्राद्धगाः

ma विश्वेदेवाः

श्राद्धोत्तरं दाटमोक्तोनियमाः श्रुतम्‌ ( षड[वधम्‌ )

श्रनुसारेय जगदुत्यत्तिनिरूपणम्‌ प्रौतस्मातानुखाना्तस्य सदाचारयाणनभ्‌ ...

भरोडग्रखाड्वानि

ore

¢

( २५ )

क्ष विषशः। i

सद्ृन्पश्राद्निर्थायः = = 4 9 qe स्ट्रच्छश्राद्धलत्तणम्‌ ody, सदाचाग्ल्तणम्‌ ... ,. 7 ११४ 7 सन्धयाद्रगपम्धिः .. re ९९० RAN FAUT ... a eck १९ waren द्यारी भस्वासिङैपः `. ara 8 wanifafa: .. a i २१७ ९४ GATING 2 ms ९१९ १९६ सन्थयोपमनपक्राग. | ४९० ¥ सप्रीमावूदगान्तम्भर्ये f47y: 2 ५९५ सपिगडोकम्णकालः ०९२ R सपिषटाकर गक्ानानां Ula. ez e सपिग्गेकम्गशादम्‌ ९७% " afqugians aay atta: 9६ é

a Frag tees way एन्य ससान wife: atatatafaata: -५४ १७५ 2 equa nea तिक चेयता vod ६.१. sara tafuaiea (ad tana विधिश्च १०० | सम्नानोदक्परेतमि्हरये श्रौ वम्‌ ... ९०३ ade é

समावरनम्‌

( २६ )

विषयः। समिधिथमः we समिह्लच्चयम्‌ समपर्णावुखामश्लौ स्यामेव काम्यस्यानुषानम्‌ सर्प॑षटतानां नाग्रवलिः ९४४ as संलेपतपंणम्‌ संप्रातमरे BHAA! सन्यासाधिक्रारि विचारः सन्धासाच्रमय्मद्णे श्रद्धम्‌ .. संन्यासिनां चातुषिश्यम्‌ संमार्मन्यायः संस्काराणां ब्राद्धरेवभेदेन देव्यम्‌ साधारणधमाः ,,. सापिण्डयविचारः ... सापिगहयस्य साप्षपौरुषत्वम्‌ सायं होमस्य कालभेदाः ee sag सोमन्तोन्चयनकालः श्षोमन्तोधरयनस्ये THAT घुवासिमौपम्दतौनां खभौजनाय्रत एव भो जनम्‌ सीणामुपनयनस्य कल्त्पान्तरपिषयत्वम्‌ wat एगरद्राह विधिः re a eiat एुमशदाष्टस्य युगान्तरविषयत्वम्‌ सौरं त्रद्यवादिनौ-सदयोदधूभेदेन देविष्यम्‌ ...

( eo )

पिषधः। BIA tay 7 लातक्रानां ahaa

सातक्रान। धर्माः स्तेकाना नद्धत्वम्‌

स(तवयादतासमो {व्द्वकर्गपरायस्ततम्‌ ,.

सागप्रकरगम्‌ ,., ae arate tae ninay cb aaa सक्षकानि a

errata mana र,

SATAN सानानन्त्रमन BIT,

wie fafagrear

earaatta wy

म्नइाटिः प्रत्‌ [ग। ay, Pat

सर्व॑म्‌ पादादि कस) पदन ३२१८५

eatifariomt ata Area re

Sealer (LTT

wala ५२२०२३१ Farr a

ates aaa क; अनयान्‌ dent भन्दमलिन्पादनभावाठम्‌ 5

सचन्तः fate el

gat

mua. tee

मधनः ra [प्शद्ररश्ायःः

२४

१४

wtafafe: ,,, eangqaq =... eae afafatar

१९४९

ABR

Rcd ¥OR

५४४.

९९ XR

९७ aR १७

( २९ )

पराशरमाधवोकिखितप्रवक्ुणामकारादि- करमेण प्रन्नापनपषम्‌ |

( श्राचार काणडषट )

“~क Ps Helper =

zz | ayat ctid A

ह्य्‌ | BRIT दा सामग ७१५।२॥।९२९।४।१५०।५॥९९९।१९।१४०२। ११ ५२५ ।२. २०

entdimmanend

Ft

MTA VRB १५ ४५५ ।१.॥

[2 1! |

a | faa €१९।२।

य) यजुषदौ ५२५।२॥

ql

वाजसनेय ९१ ९० !

( १०}

'पराश्ररमाधवोखिखितसन्लामकारादि- RAY प्रच्नापनपकषम्‌ |

(ज्राचारकाष्डस्य )

W |

अङ्िाः ६०८। ART १०५।.२॥ २०८। ६२, ६७॥ ९०६ EL ८९८ RAR SHRM LAR REL ।९२॥ RES LOT BRAT ९१ BYR ४॥ Us lL Op ५८४ gn wesley १०9 २०॥ ६९२ १८ ११७ १२ ६२२ qari rg i 4९८ | RON ७१९ 1 १२॥ ७२९।१० ७९८।१४॥

अनि २६२ ।११॥ २द८।१६॥ २९६८ २७९ ay २७६ sy ROY ९९ ३७४ २९५ 8 | RSE १९ ३८५. Ve Ii ५७७ ९२९ ५५२। ५५८ १७ ५९६ 8 ५९९ २॥ ६२०।८॥ ७६ ।९॥ ९८६ ६६ ७००। ey ORL ५। ORL १८ Oss | १९ ७४६ By Out ERE ७७२।२।

ST | SATA ९२२७ | Lo १४७ H WL ।७॥ ९१२ २२॥ Re | QR २२८ ८॥ २२६ ९८४ RES! 8, ६० REO! RB २६६ १०१. ६९५ १४, ६७ RT ७, ६० ६१४। १५॥ ३९९ ६४ ९४० ११ २४२ १॥ ROOT RH BRR | qi ७६८ १६ eed | URN 8४9 ¦ ey ९५७ ४६५ RP ४७७ TEE ५९० RR ५८१ RAE ५८८। { ५९१

(a) १९॥ ९०७।१०॥ ६५७ (९९।१९७। ९६०२।९६।१८ ९८६ ६८४ RT ०१२।१४॥ ०१६ SHORT ९॥ ७१५€ ९५ ७८९ 8 ्ाश्चलायनं २७८९ ।९॥ BRR | BBE १० ऽ३५। 8 ०५२ | २९ OUR LE, १५ ॥। ७५५ १२ GOEL RR

भजय at

| उशना REI LA ६१० १५॥ ६७२ SH ६८८ ६९८ 8,६। ८॥ ४०५ १९॥ ४९९ १२ ५६४ १५॥ ६२९ १६॥ ९५१५ 1 ९४ ६९२ १७ | ७०८ ७८१ १२ ` | ष्यप्र ९४८ १९ ६४३ ६७३ (७४ १६ ०६६ | ७€१ ५, UR, CEU |

ene 7 1

|

meq ५५९ | १९

कपिल ५४२ १६

कश्यप ६२१५ i ke

कात्यायन १५७। 8 ॥२०८। 9 पदेदे। १९ २९९ < २१५०।८॥ २४९१ 1%, 8 २७६ २८०।१९३. १७ ERT] ERE | १६ RRL 1 ARLE \०॥ ११८६ O, LOL ६५१ ५) १४६। २०] ३४६ १९ ३७६ ३८३ ६८९ | ६६ ४४८ | २॥ 8४० WE ४५२ ।२॥ ४८१६।१॥ Ber १६ ceri gs 8६२ २०॥ ६६३ ¦ ऽ, १२ ५१६० | ¢, tae ४१६१. oa

{ ३९ )

४२२ | SH ५६६ | १८॥ ५९२ ६६ ५७२ CH ५८९।२॥। ९२८ २९॥ ६४०।१६९॥ {४ ।१९॥ ६९२ ०। ९९६ RED CORI 8 ६७५ ।९७ ९१ Sy ७०० २९॥ ७२० RY ५२५ | ९२ ORAL १५॥ ORO] ORE LRP ७8४० | ४९ १९ CBT] Ea ७५० 1 RY HOUR =, ९८ ७५४ | Odd ९॥ ७९८ <€ | ७७६ | ७, १६ ७८३ ७८७ | २॥ ७&९ ७९१५

का्णांजिनि २४२९ | ८॥ ११९७] ९, REN REST BE MRR ९। ६०६ ईद २, १२॥ ६९९ En ६७९ ।१९। ७४२।१४। SOR १० ७७५ | १२ ७८५ ७९३ ।२२॥

काष्यप ५६8 9} 8<८।६॥ ६०९ | VON

कौशिक २२०।९।२२६।३।

रतु ९२द्‌। ६२० १९. ७२२ ।११

7 | गद्यविष्ण yes | teh गद्यद्यास ३७८ MH २९२ १७ RAI BT २९२।६, १५॥ २०७ १७ | dee | १४॥ गाग्ये ३५९ ।१५ REO LH URE २२ LT] UA GOR! VR, ९६ ७७१ dt

गालव ३८७ १६ aR | ९६ ७७० ९७ ७७ ।३॥

गएष्कार ७६९ १२

उआद्यपरि शिकार ७४१ zy

गोभिल ३० १९१ RAL १७ २४४ २॥ २४६ | YP २७८ ९५ २८९ BE ३१७ REC १९ ६६७ २॥ Bog |

( ar)

RUE ६७९ | ५९१६ ८॥ ५८० = ७०६ 8 § OORT १० ७७५ ।३॥, |

गौवम १४७ ५॥ १५६।१६० १७३।८॥ २२०।१०।॥ २२० ।९६। २९९ ९४ २५७ १५ २८२ १९ २८९ | RST RTL ARG RE LEE WE LUSH Boe 1S, Sy Ave ।९। २५६ ।२१॥ १०६ १० ३०८ AULT ४६६ ४९९ २१ ४९8 ।८॥ sou La ९४८ ¶, ६० 8५8 RR, Rod OE I Ree ९६८ | { ४७५. 9 ४९९ १९ १९० १५ ५९४ TAC ५५८ १९ 1 ५८९ १७॥ ५८८ १२ ५९० | ५८६ ६९ ५९८।१६५॥ ९०्द an ९१२ ५॥ el Ci ६२९।८॥ १३२ ७। ६४० Rog ४२ १६ ६९५. ।६०। {९९ ।९। ESE १२ ६९८ १६ ७०२।९ ७९२ १६

omnes

& |

# छागलेय ५२९ 1 UV UFO २२ EL १०

|

mR ५८१ १, १२ ६७३ १९८ SE ४६ १४.॥ ५६५।

१६ ७१०७ १० OS? i= जाबालं ५४८२ ५१ जादालि २४९ | OH RAB

५९ नेनिनि ४१९९ २९ ४९६ |

१० OYE | we १६५ RE OEY | 9,

[व SO

( ge.)

ZI

TM RSV ।११॥ २९९ ।१९ २९७ १॥ २६८ ६१९२ २९९ | २९२ | Lo, १७॥ २९० | ९४ | AVE ।१२॥ २४०।४॥ २५९१ PH २६९ १६ | २६६ १९ २७५ १३ २७८।१२॥ २५८६ १७ | २९४ २७ Rog | VV ROHL, ON ६११ I २॥ १२७ २॥ ६८४ RV ३८४ ६० ३८६ IR GT ५२६ | ५४९ १२९ H ५५२ ५५५ १९ ५५८ ५७० ८॥ ५७१ १७ ५७९ VE ५७८ ५७६ १० ५८५. ` ४८६ ce | ५६९. | द, Qe

THAT ५५२।९।

देवल १५६।१५॥ २९६ २॥ १६९६ | १९ १८१ १४ | २०२। EH २१९०।१५,१५। २१९ ।८॥ २१४ LOH २११५।९।२१७।१२॥ २९९ LOH २२८ ५॥ VWI ZN १९९ 1A, 8॥ ३७७ | १९ ३७८ SH ४९९ ४९ 1 ORE २॥ SVS | ९९ २०॥ Bad ST ४१० ९०, १५॥ ४५९ ४७३। ४०६।८, १३ ४९८। १॥ ५०४ | ५,१९०॥ ५९१. ।२०॥ ५१३ ।७, USP ५९४ ३.१६ a १७९ ५॥ ५७७ | ११ BES] VE ५१९८।२, VOU VEE | ` ७२ ६९५० ६२२ ९७ ६२५ | ६२९ CARLA, €, १२॥ ९९६ १४ Cod wan ६५द। २॥ १५७।२०॥ ६९४ | ९७३ १३ ६८६ १८९ १८ ६६३ B, 9, UR, Ro ६९४ 8 CET ।९१७ ७०२।१९ ७९० १९ ७१२। १८] ७६३ ५॥ ७१४ WH ७१८ ४, UC ७२० ।११। ७५८। २॥ ONE ९० ७६३।९ HERB, १६ ७९१।८॥

( ४५ )

ध। धम्म ७२७ ७६६ १७। भोग्य ९६९ say

ree

4 |

शारद UBS LV, ULM UAL ILS १८८ | १४ RELI S| REET ४७ RET १४ REL IAAL ४२७ १। BRE TROT BARI ४६8 १२॥ ४८० | Ry ९<द।२, ११॥ ४८्द।१६॥ wee | EU ४९२ 1 १७, १९ 8८२ ४८९१।१६।४९ ।१०।॥ ४१६। RUC By

व्यया २७५ ६1 WE LEH RIT] YP Oe | Sg osyely cy ७५६ 1X2 I

|

प]

पराग्रर ०८८ 9

WISE ४२५८। yon ४१५।२॥ 9९४ १५ {९० ¦ RE Car! ५॥ ६४२ २२ द१२।६।९६५० २॥ ४१५९।३१।५६ ५॥ ७५९६ १८ | OHO १२

पितामह २९७।१५॥ Bess zo ५४३।१४॥ ५8७५ ।९. ५॥४६। | ५५२ २.॥ ५५९ ।२४ CR SLES

Tae २४१। CHAE १०० ६९५ ४८१ ११ ६०८।८<॥ ६७० २॥ ९९ ° itd

Safa €< ५॥ LOE ९२१.। ९, LEER ARE

२७५ १० secs ११ ४९० AC rede १८८।१९॥

( इद्‌ )

७६४ ।१९ ४९९1 १८॥ ५८० १९७ १८९ ।१५।५९०।७॥ WET RE ६९७ ६९८ १६ | ६४० ९८ ५६९) १०॥ | ४८ ।१६ UTR १७ MES LS Hope ।१७ | ७६९ ।१५॥ ` ५4९ 8 ०६२ ९॥ ७६७ RY ७५५ | ७८० | QR.) MAT २९१।६९। ८५९ ।२॥ २९९ ।८॥ Rea ARH ३५९।१५। RIT 8 4१० ९० १९५ २२ ६४० २२॥ ६५० ies, doo ६९ ९९० | १४ | ७०० ९४ ७०२ ।८, १८ ७२० | १६ ७द२। १२ TOWLE ७४४ ११५ ७४१५ १९१ ७४८ ६९१ ७8€.। ९७ ७५० | = १८ ६० | guy odo] gy O=R ॐ, ९२ OTE १७ OCR 1 Ve प्रनापति १४७ ११५ १५९.। ९१६ ९५६ १२ २४४ १९ | २७३। ६० २८५।५। ५७४ द्‌ ६९१ LRT १७२ १५।

मी

q |

डष्त्‌प्रचेताः ५६७ 8h

खहन्भनु २७० ।२॥ ५९६। RAUL २९ ६१५४ ।८॥

ख्स्यति ऽ५।५॥ OCI Ren OOF VA Reig ९९२ ९९ १६५ Ce १४९ ५॥ YORI ON ९७६ ९९ २२४ By २७० १० २९९ १० २९१६ ।९० Vwi roy ३७२।५॥ ROT AR, US ६९८। UR REEL ४२७।५॥ 8७४।१५॥ BEET ५०६ USOT USE १७ ५७९६ | १७ ५८१ ५८८ ।९५॥ ५९५ ERR METI RCE eel २१॥ ६१४ ९९९ AN ६२० ५९ २॥ {७८ २०॥ CES ७१४ १९. ७१० १४ ७५५।८॥ ७५६ ।१२॥ १६ १६ ७८५ ।९० OEE १६

( ee )

बेभवाप Bas €, १७ ४५२ LH ४४९ ।१९ ४५९।१८॥ ORR ९} 9१९ १॥ ७६७ eT

बोधायन वा बोधायन १०८।१४॥ ११४ १५७। ९६६ ।१९॥ २१५ ९९ २९९ LOT २२५ ४,१२॥ २२६ OER! १५ २७५ २६१ TH VOR! LON २८० ९६ VR I ७॥ ९८६ | SH ९९१ ९॥ WELLE Rel Ls ११६ १७ ११९ (LTH ABO RY TRA Led RL LAGE Reel ६५९ ?५॥ AIL LRG ३६८ 1१४ ०६४ | Leg BSR I ९९ ४७९ १२ HOC १०१९५ ४७७ | SSI NS, १८ ४८३ US ४८८ | ४८८६ १८ | ४९८ Ture | २} ५१९६ ।९ ५२१।९॥ ५द८। १४) URE १५ HVAT SE ५९२ <, Poh ५४९४ Las Bel es ४8७। ४५० I २२} HUT LAN ५५७।५॥५५६३ १९ ४९५४ ।९७। VEE १. १५ ५६५ ४,१.६६ ५८द।१०११९०।१८॥ २५ ¦ १,८॥ CEH ! ९८२ ६८७ १० ०६२ CRT AIL &४८ ¦ wp ७७२ ¦ ¦; ५९८ ~

ge ५९४।२०॥

ब्रह्मा २९२ ! ४, ६।

भ।

भगवान्‌ ५४। १५.॥ ५५।९४॥ WZ ET ९५९ ।द EERE ॥२०१।१० ६६१ १९1 ५५५।८॥

१८० Qt १८९ ६९ A २१९ १० RAR

९६} २८८६ 9 ॥७००।९॥

TEETH वा ATE 8 aezi ye २४६ ९५२८ ere ।९॥

( as)

WE २२८।२० ROL LS REMI LRU RR LOH BV RR, ,. १७ ७९४ 1 ARE

q |

मदाखसा १५७ i) Ce a SY WP RU WIR Sop ७॥ yee eo du ९९९ eee १९७ १९५।१६५ ९३६ १९ LASTS १४० २, ।। ९४४ ८॥ १७८ IRE ९४९ ६५१७ VRE १५८ | SU १९५ १७४ ।॥ १७६.। १० १७७ | SH ९७९६ QP ९८२ १५ ९६५८२ ९, ९५ १८५ ८, ९७ १९०। ८, VB lb २५६ २, २०९ LE || २९० | ८, VS ९१९. ८, ९९ २१९ || २९५ WR २९७ ६॥ २२१ VS २२३ ॐ, १८ || RCL १२॥ २२८ ।२८॥ २५७।९ २१५ ।९५ २७०। ९९ ।। २८५० WU २८९ AOU २८६ Cue FS 1 UA REY १२ VET १९१, ९४ REO ९१; ९९ २९८ ९३ ॥. २९९ २।। BOL VE, ९९ UN ६०९ १, ३०२ YS ३०३। 8, VOU द०९ १८ || ६०५ २, ५, २०॥ RTL २, Bll Re! 8, १४ ९०८ >, २.४, ९६ २०९ द, VOW ३९०! TH १६२ २॥ ६९४ ५। RAT ९५ २४६ SG ३९७ < OBE ९६ ६५० दई ९५२ ९; २५३ २, १६७ २४७ २० ६५६ ९, १६ ६५९८ RY RCS IRs Ve cles ६७७ Cy ३८१ ¦ १५ ३९९ ६; Le, ९७ १९६ AH ८९ इ, ९९ १९८ ¦ REE! Vy Bee [AHH Ved | १०॥ ४०४ | Rod Bu ९६ ४०६ 1 UR He Sool ays ७०८ 9 } BIA, ९७ GLO LLY ४९९ २०॥ ५१६ |

( we )

Yoh ४१४ ६६ ६१९ ११॥ ORS \५। ४९८ ६,१५॥ ४९० | €, ५० BW] ४१ BRR] ८६, १९॥ ९२१ | १९। BRE ४६९१ ३, Lo, १७) RE BAC < BROT RES ४९० TREN ४४९ १९१ ६४२ ।९< ४४१ ।२, ९७ sao) ९१ ९९) ६७ BET द, ALT CURIS, Re, १५॥ ४५६। ५, १२ ६५8 |€) २९ १५५।१४ BUTTE BLOT, १५, AVE ४५८ Cd aye १९॥ ४६०।६४।५९२। re, १८ ४१७ VI ४६८ | १७ 6७० ५॥ ९७8 र, (Vs ४७५ ५॥ BOO; ey ४७८।८) CE Paces se ara as 8५८५ ।१५ 8८७ ।९॥ BTS LURE ४९८० | HER ILS | ४९२1३, VG -BERIY, UEP ४८९ OP ४६५ 1 RU SEC | AE BEST RG ४६८। ९४ ४९६. ५०६ Re HV | CEH HC RE ५०८।२, EH ५०९ 1 9, ९९ ५९६) VE ५९२ १, १५. ५९१९ ९५ HAAS २० ५२६ TY, UG २९॥ ५२२ LOR ५२४ | ८॥ ५२५१ | ६, १९९ ४१८ ५, १२ ४२८६. ५९११ ।१२॥ VERLAG HE ५९४।१८ ARE TRL, COL ५३८ LET ५५७ ९९ ५५द्‌ 9 ५५० | ROD ५६२।१०॥ ude ९९ ५६५।८॥ ५६९ 9 MONT ९१ ५5९ | LR, ९५ ५५६ use i २०॥ ५८९ २२ ५८६ YOY?! १७ | ५८०।२॥ ५९१. ५९५ OHMS LRN GOI RI ९०५ ys, २० दण्द १८॥ ०८। १२ ६९० | 8, €) 22h ११९ ।५॥ ६५६ २५ peer २० ९६२५ Rt ६६९ ९० ६१९ ९४ 1 (३४ < १८॥ ६५९। 9 ६९९१९।५॥ Cedi Re 1 ९७८ ९०९ ।१२॥ ६८३ (८४ २, OEE १२ ६८७ 8 dee १९ ६८७ Ra ९८८ १६ {८८ ०॥००९।२॥७ब्द्‌ २१००५ ।१८१ ONL! RG ORT

( ४* )

LC २९ | ७१८ LUSH ORE ९; १४ ७२९ ९५ ORT २९} CRS ९५ ORE | ७४२ १७ 9४४ | ७४६ | ७४८ | १४ | ७५० ५, LS, १२६ POUR ।६३॥ ७४२ ७५8 ७५७ PONE ७९० gy wee २९६४ १॥ २९७ EH २५८।२॥ २६५। RH २७९ १४, UG, १९ २५८९ ९९ ९५ २९६४ Sy ALS ।४, ७, LRU 8९७ १९ ४८२ ९६ ६०२ २९ ६०६ LU १०७। ९८ ६०८ ९६ | ६१९ १९ १९१२ Sy ६२१ ।८॥ ६४२ | ६४७ ९४ | ६७० | १* ६७8 = | dog) ७०७ Re ७२६ १०, १७ ७२७ | १६ ७५० | Ro ७१ es माकंणेय RR ५॥ २२० ।८॥ २१८ २, ११ २९१९ १०॥ २९४। १६ २४२ ६७४ CN ३५२। ९६ Vea 8 ३८८।२। 8०४ [ROH ४९१४ ४२७ १४९ ।५, १० ४४५ ¦ ३। १६५ ९९ ५२8६ | १॥ WE ९९ ५८४ ९१४५ | oy ६५२ १०॥ ६५९ RD ERT RE ७०६३।९॥ ७०४।१७॥ ॐ२० ORS] २० ७५७ | BH ७९१ pete | yy मेधातिथि २५६ ।५॥ ५५४२ ।९। १९० gt

य।

यश्चपाे ०१६।८॥

यम १२१ ।५॥ १६६ ।९६। १७१ ! CEN १९२ १७। १८१ ।१०॥ २०९ १६ १२ ६, ६६॥ २९४ LL, USM RW LH २२७ ९२८ | ५॥ २२९ < २१४ ९० HART १५॥ २४२।५। २९० MRI UR २६८६ RR, ९९॥ २७८ १। २५८४ ।५। REL VE RET] CH ३२४ ९॥ १६८ १७ ६५२ BY

( )

RUC IRCA ३४५ 8। ११८ ¦ ६९.१ १०० १। १९९ ९३ ७९९ ६९. OORT RL, २०॥ ११४१।१६।४४ ९॥१७य | ९५४ Cb 8५५ S, ६९ ०५९ | Ren Nel १८ { OWE | २॥ vos, १४ G92) २४ oer ten ४०२ १९६ १५०५।८॥ ४८० RET ४८९२ IRR १२५।६। ५२९ २॥ ५६द। ५॥ ५८५.। १1 ५९७ ।१६६। CO MEE ६२९ २२। १३४ vey ९१९ ६५२ ६५० °| ६९७ RU ६०६ १० ।॥ COOL १५। ६०९ १८० ९९ EVI ६॥ Ces) OF ५०० ¦ १९।॥ ७०१२।६। ००२।१६॥। ७९१ २२ ५१४ Veg OUT VE OR | CL FORO] Ry ७८८ 1g, HB 1 SE ७6० | SES yg O90. Ue Eads | 94६ ५१७७८ ay ५९ ।१॥६ अमदममिवाअमरभि CAC UH ५१०।२। VOI LOE *{५।१०। या्चवरव्र- ६१ ।५.॥ ११९ १९१ Ci? Oe ee LUE १५०। ९८ | १५८ २! १६४ ।१९०।९०१।१९६। १५६ | RW 1 १७९ १९. १८३ ५॥ १०५.। VIELE LQ ELSE १२१९० द, UHV CHR ३। २१६ ।५। २९० 9, ९४ } २२९ EH २२४।८॥ २१९५ ९२॥ २५८ ९५ २६९। १४ २६६ RHF | <) १९६५ २५९ ।५॥ २८९ SHR | १८ ६०२ | LOT २०७।११॥ १०.८। २२ ९१० १, ६५८॥ ३९४ LT ३९५ ।२॥ २२५! HE AHCI LOG BUY IRQs ६५८ ¦ Ley ९७९ ¦ २॥ ३८६ H १९० ¡ BLOT RELI 8, | १९५ १५ BUN, TRH BE] Sy 8०७ १६ ४१० ५१६ ८1 ४९८ ९८1 ५९१९ ६६॥ ४२ | LULU GALL LH COROT ०, UL ०५९ १५ A OES १४५॥ 8५६ TH 8५० ११ ०५८ १४४ #॥ ode | 6

( ४२९ )

११ edz १६ ४६५ add | २० ४७० ९९ get | ६९ | ४७९. | REN ४य्द्‌ ४९० | ३, ६२ SEB | ४९६ २॥ ४९७ ४६ २९ WR! ¢ vedi ९६ ५०६ २, ९६ ५१९ ९९ ५९२ SH WRI Vl ५९8 ५९५। ९॥ ५९८ ९२॥ ५९९ ५, ९९ ५२६।९॥ ५२८ २, ९० ५२९. ९८ ५४९. < ५६२ २॥ ५६६ १७ ५३८ ५५८ १२ ५७७ | ५९० १८६ UES | & ६०२ es ६९० | १४ ६९६ २० ६२२९ BN ६३२ ९६ Ay ५॥ ९२८ २०॥ ९४९ १२ ६४४ ६, Ue, VET १४५ ९१५ ६५९. ९९ ६५५ ९२ dys ९५॥ eas yeu ade; १७ ६७० १६ ६७८ = ६८३ ।१॥ oO ६९६. १५ ७१२ A ७९५ ।५॥ ७१९ | Re ७९१८९ ७२७ | १९ ७२९ १५ ORR ¦ URRY, १७ ०२४ >? | ७४88 १६ ७४५ ९५ ७५९ Fp ७५७ ७४८ | ७¶०। ot दद ७६८ Bi ७० १२ 9७६ | ९२ ७८९

atfarareraent २8९ ९४ २४६ | र्‌ | Of ९५९. <i २५२ २५६ tei २५९ १२. RCSL २७० LE ९७१ २८० ६द २८२ ९९! श८द १८ RR! VO ३१८ ९६ ६२० SH RW! AU ३२२ ३॥ WRI | aad ५६३७ Ri

|

शधुयम ७४४

wtanitay वा Shafer ४६९८ १५ 8४२। ९४ BERT R Rel ४७४ RE 8७५ ९४ ६५५ १८ OT < ०५२।१६॥

( ४३ )

SCL १३ ७११५ | ६० coe] | ७८० | ९, १५ ऽ८१ ६९ ७९२; OF ५६२: १९८४ | ay

q |

ATMS वा वसि eZ RL ॥१४२। UH, LOM VERT YN VARI WE १६२ ।२०॥१९५० ¦ 9१९८० ।१० | ९१५ ९८ ERAT ११ २५२।१२॥२५१।१० ९५५ TLL ॥२५६।८॥ Ase I १६ ३११५ SH ३५८९ Cg ४३१ ।८, ९१५ vast esa ४४६ ¦ REP १५४८१५१} Bee | ABU ४५५. < ५५१ ।२.॥ BSE ! १९ ¦| ४८२ ! LOH ५८४ | ९१४ | ४५८८ | २९, ALE १३, १५॥ ५९८ | १८ { भरद्‌ rd ५२५।२०॥५५६।८॥ ५८२! Ve YS] TIN ६०३९ ९.४ Cod, UH UTI १८ MAB २५ ECM | ५५॥ ६५८४ | ०॥ ९२ १९५ Cee | VR, २० ५५२ ९० goa es yer, VIG SSK LUCA

विश्वान So, TP २१२३ २६ ८१ ¦ ४, ५॥ ४५६ ।४॥५५०। ad ६४८ ¦ १६

विणा &६ ११ VAG १०८ १८०1 PH १०९ CVE Ves १९ aad १९ २२२ १८ ०३४ ¦! ०१ RUT IAT | २५६ | 4 २५९ | < २६० | १४ २६८ ¦ UWS WSS) | २८१. I ५॥ २६० yl Ber [ek Fer PY ९१.८। ८, Qe | १४९ ica ३५५ ।१० ३८८ pop ६८८ Ue age ४, ५० Bye ye 8८४ ४६४ rs ; ५१०५ ५१० pre ¢ ५२६ |

द्‌ ॥५३०।१२॥ ५९९१।५५।९२ ५५६ ०० ५८८।१२॥

> {०२।१०१६०५ ¶१६००।४१६०८।

¡ ६११ १५१ ६१२।१५॥ (१५ Rea Gael

५६८। ५१५८६ £ ६९१० २, ९.५

( ४8 )

® CARI de ।९२ ९९ ।६९ (५६ ina ces Rp quer en ९९० ६, ९६॥ ५०८ iat ७२९ 1%, &R ft ७६५ १६ 088) OU | 9 ७५४ is, COA CLL! १० 9७४ < ose | 9

दयाम ३८१ १३ ९१९८।१४।०५ ।द्‌॥.

इद्धमौवम ६८२ २० ३८३ २०

SHITAL GRO} १९ २९९६ १३ २२० RH ५8४ ५६५ 8 | ५७७ Rn ५८६ ¢ ६१९ ६६९ IRI

डर स्पति २६० १५ ६९९ lel

CHAZ १०५। RTS LR TRAE ९१९॥ २७० ERR NRRL UR २०५ ८॥ ५९५ ION ६०९ ६०, LAUER €, ९२॥ ROSS 5 1 १५६ ९६ ६६२ २९. ७०९ TO MOTE ६४

ठृद्धया वषकप ८९५ ५८९ ¢ ६३८ १८॥

दडधवश्ि वा खडधवसिद १७९६ ase ९७ ९८२। १० ERR ६०६ | ९५ ९५० १० ९५७ RM EER TL १६९। ORG ९९ 4

धग RAVI URI

ृङ्धशतातप ७४९ ।१२ ७४६ १९

श्चात्र VET ५, VOU ६२२ ६९ ७५५ २॥ ७७४

व्याघ्रपाद वा व्याघ्रपात्‌ २९८ AC HAAG १६० २४६ ६२॥ ars | Pewee १द ६०५ २०

शास Vegi १०६ १४४९ 1 ९६ १६६ igh १५९ < ९७७ ५॥ १८२ ५॥ १८४ LRA १८५ ।५॥ ६९ < २९९ ९४ २२७ ९५॥ ९१९ ।९॥ २७० ९॥ १०६ ।१द्‌ २९० | २५० | २५१।५ २६५ ६४ २६७ Le २६९ | ४, १९ २१९ १२ २७१ ६० २७९ १९ २०५ ।९५॥

Ty

( ww) .

२८० | ११६. | २८९ २, २८१ | १०१ २८८। LU PRER I १। ९०९ ।९४ ६०४ ।९२ | १०७ ।८॥ AE १९१ ।१२। RIO १७ RARE | २० | WHS १४ | १५४१ | 2} ३६९ | श२। ३६६।१४॥ ३९६५ ४। ९६१।२,१९१॥ १२०८।१४। ३८२ ।५। ४४०।५॥ ५२।१९॥ ४५५ ।२०॥ ४०० ।२। ५०५ TEES ४०५।१५ 1 ५१९ ।१५।५५०।१०॥५५९।१०॥ une eas ५८३ १२४ ५८६ ¦ १६० ५८९ LIE CAST २०} CuRl OF १७६ 1 २९॥ ७०६ [ROP ७४५ ९८ 9५० १२ OUR! UE 5६० | १० || ७६8 1 १४ || ७६६ ७९ ° १२

4 9

श्र |

२२१९ ¦ RAL LUN RAT ERR ९९०।१६१॥ ROTI Le, १६ २५५ ¦ १॥ २६४ ।९॥ PLT ६८ २५५ ९८० | Sp २८६ UU ३०९ ¦ UV ६६४ ROH ३९४ ११९ ४९८ ९६ ४४० | १५ ४४६ £ | ४५९१।१, १८ ०४९ gop ad १८ ५९६ VE ५८६।९१॥ Venice ६९९) aru ९०० (०६ AQT ९८ ६५ ९१९५ ।१९१९९३। qi ६२५ 9 १४५।२; ८१८। ANCA LETRA ९९ ९४५ 1 ESE २९ ६९९ १८४ ०१११८ ५९० ।६। OLS LEH ०१४ ६६ ०९९ १८ HORE | RE ०७५।६०॥ ७६६ १३ ०६६ १६ 1 9०७ ५० ०<( ९॥

्रद्धनिखित १८५ द! २२६।१॥ २१९६।१९ ४४२ (+ ONE |

qn sed ९७ ४६७ | १८॥ ५१७ ५५ ५८१ १॥ ६५४

ye 58७ ६०

TR ७2२५ ७२६ ६;

( ४६ )

प्राद्यायमि ६९४ (RU Mga Re Seg ४॥ श्रातातप १६६ १६ ९७४ ३, RSH ९७८ ९७ २१९५ SI ` २१० BH २२७। २॥ २३८ ५॥ २५९ LRSM RWI RR : २७१ ९६ २७५ २१. २६२ २९९ LOM BRI Vol ९३८ १४॥ ५९ ७॥ BVO) ३७४ ५, LRN RW! १४ NRE ९७ ४६९ १८ ४७७ ४६० | २९. ५७६ | २२ ५८६ ५९४ ९२४ १६ 4४२ 8 qed ९० ९८ | ६६१ ७२५ ९५ ईद ९३ sos] १९ 9७€& ७८४ ५.॥ ७८८ AUG ९७२ RR Il glam १४९ २४९ १७ २५२ ¦ €, ९६ २८१ ९९॥ VEO PR, WH ६१२। २९ ३९२ Lo ९२० | २० Bsr | ९७ ३६७ LR १९ ५४४ LAU ५२० १५ ५५६ ४८॥ ६५५ २२ ६९२ URN ६९८।९२, LAN OB ।२०॥ ७३६ | VRP ७४०।९॥ ७४२ १० ७४४ A alata eR Kel ६९५ १७ ६७६ ९६ ७७२ ।१॥

a |

BaAAA २४८ | ३२० ३२२ AA BRE CALL AA

SAT LER ¶। ४५५.। १५७ ०६९ | २९।। TE ९६ UEKI SI ६७० २९ ६७१ ९९ ७१९ ९॥ ७१९ १५ ORC UT ७४८ 8 ७५३ १२ ७६७ ९४ 99Q १६ ll ७८०।२॥ ७८९ | ऽ८€ | ९९१ ७८६० tel

सश्चत॒ ७१९ ९०

संवर ९७३ २॥ ९८७ | २५८ 8 २८२ ५६ HRT UU

{ so )

४८९ २, १९ .॥ ४८७। LR ५८९ १९ ११८ २९ १४६ १८ || | सांख्यायन Ree UH

>|

|

हारीत URAL १४४ ।९१॥ १४५।२॥ १५९१९ TRU १५६ Les २१२।९ २२४ Ret २२० | १७ VWs | ११०।१९, १० || २५२ ¡ PRI २८४ ९२ | RET Le १०३ ६, १३२ ६९० | २९ १९० ।९१ ६२२. १८ A ४०५४.। $ ३४१ OU र्दद ।<॥ RTO YU ४२९० | १४ ll १२८०८ ।१९० BBQ LUT BAC १५ ४२८ २८ SRE | UCU BUR | १२ ९५४१८ ५५८ LTA ४९१ 9) ABU ९५८ CH ory | Bi ५०४ ।१४॥ ५९३ ५४० ।२॥ ५५९२, १२ ५०७ | | ५९६ PUMA ६११९ ८॥ MLS Vu (२९ as Jy ६९४ | २९ 1 ६३८। १६ ९०५ < ९८२ 9 Kee | १३ ।| SWI ell ७६८ १२ i ५५० ।9॥

( ७९८ )

पराशरमाभवोशिखितानां enlferatat- मकारादिक्रमेख प्रन्नापमपचम्‌ |

( भषारकाण्डस्य ) Sr Rt

ST | gras २०७।९६ ४२७ | १८ ५९४ FROM ४२५। ९६, ९६॥

Sfafr ४।२॥

Pa

al: ताकिंक ७६ २॥ ८९, ।१९॥

TI yagfs ६७।१९ ४० ६५।५॥ प्रमाकर ६७ ४॥ प्रामाकर OL UU ८९. ९९,

a | agme ६०४ 9 मङ्ाचाय्यै ९९ १४ म्र ५€।९।८६।१द॥ a | मौमसिकः 982 ५॥ ql

कादरायय ४८ ९९. ७८ ८९ वात्तिंककार्‌ ५५।०॥

सिवरखकार ३४ ६७० १४ foment ५९ ६५

( ee }

पराशरमाधवोक्िखितनिषन्धकसामका- रादिक्षमेश प्रन्नापनपणम्‌। ` (श्रादारकाण्डस्य ) दे I

देवखामौ १७१ ११ {३ १९ {८० oder yi

छे aerated

स्‌ |

संद्रहकार VY ।७ ९४६ ४८९ १० ५८५ { ६०६ | १० ६८९ 9 ५३० ¦ १९१

भिक om Ne ark

( )

पराशरमाधवोकिखितानां प्रव्नानामका- रादिक्रसेण प्र्नापनपषम्‌ ।.

( आचारक्राष्डद्य )

0 8 9 i 34

ST i

CIF UNA वा AAT १५५ ।४,९२॥ १५५ ६॥ शायव्वंणो

शाथरव्वेणो श्रतिः seo | १६

श्मादणिश्चुतिः ५४८ | ९२

| |

grea €% | 1

MSR OE | VV jj ७१५।३॥ कोवस्योपनिषत्‌ ६९ ।९॥ कोणितकिमरा्चण २९११ ५४९ ।१९ शसक ६६ १९ iI

| | ear ९६२ ९॥ SAAW ६७८।.७

(Cw)

हन्दोगशतिः ede | १९॥ wrt ५९।१६॥

6 semen

I भावलश्चतिः Gas te ५१५ १६ ५४७। Ret a |

तापनौयश्रति ४९१।४॥ तेत्तिमौध्क १२९१।९४॥ Prachi t ९९२९ ।५॥ २१९ 1 ५.॥ १११९. ।१॥

~~ जा

प) परमसो प्रनिषन्‌ १५५ 1 91 {प्रप्रलादभाखा wee i ai yeaa ५५४. 49 श्रज्चचोपलिपः। <“! ५४ [) ब्राह्मण ५२५ ।१४ I म्न |

मग्वौपनिषत्‌ aq | १४ il

( शे }

मेशावव्शुतिः ५8९ | 8 HAW €७ ६।९१६१।८॥

ened

य।

UAT WRB I

opm

q |

वानसनेयकं ४७२ २४ ५०३ ५२९ Vall ५५७ १५ ६२६ १२॥ ६२७ €.

वाजसनेमब्राद्यण १६३ ।२॥ १९९ | १९७ ५५४ २५.॥

वाजसनेयित्रह्मण १०० ।९.

वाभसनेयिप्रखा tole १५४ él

aware ९० ।९ |

Harqacaray १८।५॥९९६।१॥ श्ेताश्रतरोपनिषत्‌ SEI t, ¢ lt

( ५९ )

पशाश्रमाधवोक्िखितानामनिदिष्टप्रवचमामां श्रुतौनां प्र्नापनप्म्‌।

( श्रासारकाण्डष्य) “od > (AS -€4- म्र |

मन्त वा AAA UT ९,१९२; 8७१ | EU ५०१ १५ ५१५।९॥

श्र | mt (।१॥ १५।५,१०॥ १५ ।४॥ ५॥ AVES HORT Ui ४३ ४.९ sary ! ५५ ९। ४७।१२॥४८।६॥ MRP, AOU ५९ १३॥ ६१। ६९।५.। GSTs Ul स्र} ६॥ SHIVA ९.२ ८,१९.९ WER ९, te eu! ९, ०) १५ | ६९ ७, १२।। ८७ | ९; १०५।६॥१०८।०। ६०६ | UEP KT THE HY, TT | १३०: ४॥ VAT १४१ २।। १५९ १५॥ १५२ | 4॥ १,५५। ६५४, th UALS, VAM ९६५९४ 9, ८।( १६८२ CRN VERILY TEV ११ Leal CA १९८ 9 | UH UCT + ।' १६८ ¦ ४, ७, TOU २०१. दव। Teal ©, UF २७४ , १५ eid 7g) २८५४।८॥ १९११ ५५ ११९२ ५। २९१ २१९। १०.१८.१९ || BRET BU RRS I १२ २४२ १६ १४३ १८ || ९५५ ६४८ 9 QV! ae pagd | १५८॥ 8७२ ।२ {४०६ ।१०॥ SES ।१९॥५०.। १९, ५०९ ९९ ५०२। ह: ५०्२। ८॥ weal ई, *॥ ५२८; १० ५६९१।५४ \ ५३५ 1५, RQU BBS! BRM ४.४८ | १, १० ५५९ | १९१, १२ ५१५५ 1 २; ५५८।८५।। WSO) ६९. yoy ५॥ ५९२ ९६ ६६० ।१५॥ १५. , २२, GOR) KH

~ +~

( ५५ )

पराशरमाधवोलिखितानां सतौनामका- | रादिकरमेण प्रत्तापनपचम्‌।

( श्राचाशकाण्डख्य ) 3 1. SIT |

व्यापश्तम्बदधू्न १६९ २॥ च्पाश्वक्षायनग्रद्यपरि ण्ट ४२८ ।९११।।

की |

WHIT ७५8 ।१६॥ Me ५६ RR

ne मज न्म

ग्‌ |

गष्ापरिश्िष् २९९१ ५.॥ ९४० 9 ३४६ 6४१. ६. ४८६ ad १४२ 1 Ol

[0

qi | चतुविंश्रतिमत १० ९॥ १८४ १९ २९४० 9 २४१ ६० २७२ ९३ २५६ २९१९ ।९५ १४० RU ६०९ ९॥ ६९२ १५ ७०७ | VR ORR 1 | ।। SRE] © {| ७८४ I

ong wird

( ५४ )

परिशिष्ट gee) tei

q | पैलानसद्धन ५२५ ERE ५२०।१। ६०८। E Ii प)

wef ५९५ ; ५; २२७।५.। २६६ | TN LR ५९१। 8 ।। ६०५ 4९२ ।१२॥ धरवि्रमत {७४ | \ ७१० १५

08

a |

BATT ६२८।२१८॥

or a Cae or oe

( )

परारमापवोक्िखितानामनिर्दिषटसर्तकानां स्मृतीनां प्रहापनपवम्‌।

( श्राचारकाण्डश्य ) ai

स्ति वा सन्तर ४९ ५९ BR BRT १५॥ ५५। ९१९ CT ९२ १४१ ।२॥ १७८१ १७ २०९ १० pee} २३९ २६८ १८ २७२ १४ २५८४।२॥ २६१।१३.॥ ३९५८ ।९०॥ ३२६ २२७ १९ ।। २६५ १९ १५०।२॥ BUR १६ ४०६ २० | ४४8 ९५ ४९८ ४८७ | | BEC ८॥ ५०८ RON ५९७।१२ ५२० ५, ८॥ १६९६ ।८॥। ५६७ १८ VRS! ५४७। ८॥ ५४९ २, ५५१५ ।१४॥ WHET ५९९ ५७४ 1 ५७८ RR ५६२ ।१७ ५९५) १४ ५८९ LRA ५९७ ९९ ६०७ १॥ ६१९ ७॥ ६९० २९ ६२१ 9 ६४९६ १८ ६५६ | १७॥ ६६९ €| ६७२ ६७६ ९१ deol] ६६२ ५, ८॥ ७०७।१९॥ ७०८।८॥ ७१० HOV RY ७१५।१५ ७२० | eR I ७९१। ११ ७२४ ४, १२॥ ७२८ १॥ OBE | ९५ || O89 | OMR IRS ७६२ 1 ORI १० | MGs ११ ody | ७६८ Qi ७८६ SLO | Qi] ७६२। १२ Veg | cy

meee RED pea

( ve )

पराशरमाधवोकिखितानां पुराखानाभवा- रादिकमेण प्रत्नापनपवम्‌ |

( श्राचारकाण्ड्ष्य)

wifeaqaa sd UH LETT RR NEETU Nee aN १९२।१०॥ २७२ १९ !। ९७३ tei) ७8० ८, ९. wed ७०४ ।१४ |

mifeqim ete Uu ve Li UH ¶०६९।०॥ 4१५ ।५॥ Ke SH ६५२ १७ १५५ 99 ई६५.। CT CEL Peg Fe fl

७०१.। १२ yess 4 i HRI; Sil

HI

कालिक्षापुरातं ५५६1१

ge ५२।६॥ ई; ^ SRL घ्रं १० fe; au ११८! SU WAI TH VAR ।५ २४२ १० १४६ ¦ ९४ ABE १११९५. १५२ | ८०१. १५ 11 २०९ | १,५ २०७ | TU २२२। Ve २२५ १५ Heed PHO EAE १५४६ | १० | २७० {| ०५४ tet ; ०4५4 | >| ०८१ १९ LSE |

1 ०९४ ।१२॥ Qed, LOU ६०८। Ree |

१९. 9 S79] Fi BRR 147, ९८

Beri rte ११४; ey

UB २८. | ३२९ URN ६९५ ६४ fi १९८ 1 |; १४९ ^

६४५ ।५.॥ २४७०।१९।२८. ।४॥ ३१५४ ' २, २१. १६६ ७।

( at )

age ९१॥ ९०९।९१॥ ९०० ९१ RIEL BREET ET ४२९६ | २० ४६० ५.॥ ४६४ ।९५ ४५७ २. ५९६१ (UG ९७ ५०९ ९९।। ५९८ ५९२ ५६० | १६ ।। WR! we ५६८।९० ५२९ ५६८ ९७ ५९९ १५. ME | || ५८२ ५८६ ९६ ५८७ | RR | ५८८ १० | ६९३। २९॥ far! ९९ ll ६९५ ot! ६६६ ६२ ६९० ९४ १९९ ९९

ग्‌ | ragga ९८९ ५॥

ence = me

न्‌ afeaac ३९४ षसिंद्एुराण २४२९ ९० २८० ९७ ३२९ ९६ ६३७ ९५० ६२ li ९४८ ५३४ ५३९ sil ५६८ ¦ २॥

[= eT CR

प। Rec Oe 1 ५४७ ।९६॥ ७५५ ९९. परमासखगद ६७६ [re पराणसर ९८ ।०॥ ७६ LEN ९२५ मद्र २०५ ९९ BRB ६८ ९२० ९५ RAR ।९९॥ ५१४ ९१५

[ an

q | ayes ९९० ।२॥ ९२९ ५॥ add Qn २६५ ३६० | १९९ ३९९ ९.७ ३७१. ५०८।५॥ ५६२ ९॥५<३। १०॥ दण्द ९॥ ९०७। २० ९०९ ONL E १९। ९२१ a regs ९०, ९८ KBE ७६९।६६॥ ORE

( ५९ )

्रद्य्एराय UTS २९५ ।५) २२६ १९६ २५२ IVER! ९२ REE २२ CUR ULE १६९ ८॥ ई७€ १७ {८०} ९} ९६९।€॥ १९७ ।१९॥ CEE) RHE ७०९ ।९१४ | ORY 8 ७२९ ७४२ ७६७ LE POUR २, १० 9०६ |

[> हि `

भ्‌ | भविष्यपुराण वा भविष्यन्युराण २८८ २॥ १९८ GH BER I LE ४५६।२॥ ado] ३॥ dag og ६८8 roe ०१९ ।१॥ ९१ दे Spots 9 | ७६९ | ८॥ HOR] 9, २६ OSB ten भदिष्योत्तस्पएुराय १०५४ २५ १९०९ १९ १७८ I YU WES | UA

a |

Haye वा aT ९०२।९॥ La 1 Us १५८ ९८९ ।१॥ २७३ | द} ८६१९।६॥ WHILE ALRITE ३९१।८॥ ९८३ ७५५ " ५५८ ९१. ४६० | १९ ard ९६ ६१७ | ११॥ ६५८1 9॥ ६८८।९१ corel al ७०४.। ६४ ७२२ i UAH ७२४ ९०॥ sod | ध, ARO CAR LE ५९१। १७॥ ७५५ ।५,९४॥ ५४६ ०५६ | 2 अई{०।६८ OfR 1 Xe

माक देयएराग ९५९ ¦ ५९ २२४ UB ! २४९ ।१५.॥ ६४०७ ARE: ६६४ ३९५ Ol ४६९. १० ७०५।१८ ॥०१२।७॥

oro i qf | लिकूपुराण म! १०॥ =५। Ce ९६१५।८॥ aed Hae ENE TSE

( ६० )

q |

करापएुराण २७४ ४९१ १४ ६९७ t

बद्धिएराय वा श्याभ्ेयपुराण वा STAT mul Sy २४८ ९३ PRUE | BP ३२७ १२८ ९९ A

वामनपुराण १०७ १९ २६२ EH २९५ UGH ROL qi ५९७ ।८॥

वायु एराण २५८९ २० BUR ७०३ 9 ७६८ १९ ७४० |

११॥ ७४३ ।१॥ ७४७ ISH ७१४ २॥ ७५८।९७॥

विषाएराण OF ।२॥ १९१५ ९९ १३२} १४२ LA ९१६ ।९॥ २०७ £ २११ २९७ २४६। २॥ २६९४।१९॥ २७८ १८ | ROE ११ २६५ ३९१५ १३ AV ६४॥ ३२९ १९४ द२द्‌। १८ ARLE | ९४२ ९६ ३४७ Rel ३५२ ९९ ९५७ ।९०॥ ६६४ ! aes १९ १८० ।२॥ ३८५ PREY ATC ३८७ ३८८ १५ | ४१८।२०॥ ४९९ ९५ RAVI RD ४४४ ।९१९. ४६७ ६७४ ।८॥ ४९९ १० MARI १५ ६५७ २०॥ ६८९ ९२ ७०८।९॥ ७१६ १८ ७४३ ९७ ७८५ १३ ७८८ ।७॥

श्र | रिविएराण वा WITT Red 9 ४६३४ ।२॥

^ a |

BATT वा खन्द सद्‌ €७ ६० १०६ ९४ ५९० I १२९।९॥ ९९६ ९७२ URW ६७५ ६॥ १७८ १८१ ९८९ ९८५ ९९. ८७ ४॥ ९२६ qi ३८९ BRI H ५8४ UL WAIL, WOU ५8६ | १४ ०७० LE ७९१ IRA

( ६९ )

पराशरमाधवोकिखिताममिर्ि्टपुरालमानां पुराणसन्दभानां प्रत्तापनपवम्‌

( श्रासारकाण्डष्य)

भ" 0 {५८.१६.५४

YI

उमामदेश्वरसंभादर ०२।१९८॥ ४८४ ।२१॥

—~ a eee

TI

fuzarat २२५ १९ psoas i Ra

ETN ATRIA ९२९ ।१२्‌ } ९०२ २८१५ ।९४ TRENT १५७ २८० ।२१ Wasi es ote ९३ BMT EEE | ayy BERL RN २६९ 1 1२ ¦ ९०५.। ARES TLR A BBR | १४ ४७८ ४०२ | १॥५.०द्‌।०२॥ ५४६ ।१८{ ६.५। ay ete २९॥ CAPITAN Fl Rod cy 9, tue ६६.० १८॥ ७०८ १५ POW NAS HORE | esp ४०८. RR, १७ ०३० ।५॥ 9२५ | २९१ ५१८ २५ ५६१ ।२०॥

q |

बायतौयसंदिता ५९।२.॥

a | gate <q | 9

( @ ) genarrafafeaat इतिदासग्रन्धानां WATT

(श्रासारकाण्डस्य)

Wl

व्यनु्ासनपव्वे १२।८॥ ७६।१८॥ १३३। °} VUE (LURE | ९६ १९७ १७ ४०८ १४ ४१९ ९७ | ४९९ | १॥ ४२०। 8८९8 ९६ eed aa

श्षश्रमेधपष्ये ९६.।२॥ १०६ WOH १२०।४।१५०। १९ 1 १५९२ I

` ५०१ ३९९ ।९७॥ २९७ ९८ | २५४० ।१९४ ¦ ३५१ २, aan audi an ३९२३ २॥ ६६५ ey ९८७ २६॥ Bo] gy २७४ ९५४ ९९१ BOG २॥ BIT 8॥ ४२८।१२॥ sey ९४ ५१५९ | te

| QT |

SEW ११८।९११ १२९ ALAN १२२। १८।१६३४।९ | TI

MAT ५४।१५॥ ५६ VASO! WR a

t |)

( ६१९ )

| महाभारत , ७€ ९२ ८१।२॥ ८२ ६, १० १७६ १० | २०३।१३॥ २०४ ।२॥ २९६० १२ २७५ ।९५८॥ RE! ५॥ २८१ 1१० ५०२। ९६ ४१४ १२ ५१२ १॥ {९९ |

RR I Cl Traut १६९ |S रामायण १२१५ ey We

ग्रत्यप्च ६५८४ ।९९

प्न्तिपव्यं BEC | BN R ९६ १०८ २९ ४१६ ५२४ ९७ ४१५ IRR HOLE!

८।२॥ १८९ ।१९८॥ ४०8 ।२॥४०९।

२१ ४९८ 1 OT are २० ४२० ५४

eed

{ ६४ )

पराशरमाधवोक्िखितानां मरुति्मृतिपुराणेति- हासातिरिक्षयन्धानां प्रत्वापनपचम्‌ |

( ्राचारकाण्डस्य ) PK ee: wt | च्योतिःप्ास्न ९८० १३ २६२ १९ A

CR ED

न्‌) - निगम ९०५ ७०६ ११५ NORE] ६०॥ ७४७। ९२ ७४८ | OF

CEI,

7 | प्रपश्चसार ६५।९॥

q | ब्रह्म निरक्तं २६ ।९१०॥

q |

पि्युधम्मौत्तर U*EL ११ ६७१ ९० WRI < १७५ १९ १७८ १४ ९७९. ARH ९८० AR, ९८ ९०९ ।६२ aca | ५॥ ३८३ yd ४४०।२॥ ६५९ १४ ९९० १९. ७०१ | , ७२९ 9६० 9 | ७८२।९० Z| furan ६७७ २॥ mama ९२९ ६।

( ९४ )

दराशरमाधवोखिखितानां दाश्चनिकप्रश्ानां प्रन्नापनपएषम्‌ |

(्रशारकादडद) नी @ Cae

x a

उत्तरमोमांसा ५२६ ४1 ४२९ ।६५॥

[04

A | afufaga ४६।९१० ४४।६९॥ q

पोमद्धश्च ३७ | १२।

वै) बाप्तिक ५९ ९५ क्ैयासिकभाग्य ३६७ ६९॥ आसद ७९१५।५४।५९ ।१६॥

क्कि

ee ‘Sa 1S ^ Sa he, we te A श्व 1, 9, चछर. ^+ “at? woo ११२४

eyes ५५९ १०

अनिका ६७६ ६०

REED

a | तिसं य॒ ecg ५॥ ५<६। Ri

[

ATTN! é

व्यवहार ray विशब्दो aaaataay वक्ते - भरवगरब्दश्च सन्देहे WA) तानेतानेवंविधानेकमन्देरहा रिणोख्वशारानर्था- दिगतरागरेषव्रात्‌ प्राप्ान्‌ राजा सभ्यमिचारयत्‌^५ ate चारश्च राज्ञो HUET WT | FATT WTAE व्यवहाराणामन्तर्भावमभिप्रत्य पराशरः एथग्यवदहारकाण्डमन्नलाः "क्विति धर्मण पालयेत्‌" इति भूचनमाच व्यवहाराणां हतवान्‌ | aaa afar area वयं सखत्यन्राणि तर्गिबन्धनानि

waaay यथयाश्रक्तिं निरू पयामः | तच udrerwaret खढियोगस्पतिण्यां VATA निश-

पितम्‌ |

70.71 oe eed

अथ ager: निरूप्यन्ते

aq aqnarqqanal दे विध्यमाह नारयः, "मोतो ऽनुन्तरञ्चति विश्गथो विण | मोनसोऽस्य धिके aa विनेग्ापूवेकः qa: sta | ay यद्धि THA, तदा ्राम्तप्रापितादण्डद्रयात्‌ श्रधिक- मेव za TS दास्यामोति पष fafaat यद्‌ fara, तेन वते इति भीततरः azfeatsanc: | पुभरपि

तदुत्तरम्‌ |

(१) RU धनम्‌ | र्यादि विघ्यगगद्रषवश्रात्‌ प्राक्तन BARE राजा विचास्येदिधः। manny विगनसमगङ्भवद्नात्‌

प्राप्नानि्यादिषाठे, पाप्मन AMET गजा विगतसमदेववशात्‌

विश्वार्येदिति सम्बन्धः |

+

Re YRTHTATAT: |

सह्ष्याललादिभिस्लवोदश्भिः ware: व्यदहारष्य श्रवार्तरभेदाम्‌ ava भिर्दिष्छ विद्रणोति,-

“"सतुष्पाच VLBA चतुःमाचनप्वंच | wafea: waatat चलुःकारो कौनिंतः जियोगिष्रभियोगश्च डिदारो दिगतिस्तथा | अष्टाङ्गोऽष्टादगरपदः श्रतश्राखम्येव्रष

धर्मद यवदारश्च रिषं राजशासनम्‌ चतुष्या्ञवहा रोऽयभुत्तरः TST: |

aa wa स्थिता wat यतहारस्त्‌ arfay afca तू Sara राजान्ञायां तु aaa | सामायुपायमाध्यलाद्चतुःसाधन सच्यते दतणामपि णणीनां रण satin | कर्तार तत्माखिणश्च सभ्यानाजानमेवच्‌ | व्याप्ति Went यसराचतु्थापौ ततः रतः | HANNA IN BHAA वरर

AN करण(देष चतुष्कारी प्रकौ्तितः | कामात्कोधाच्च लोभाच विभ्ये यसमात्‌ waa ` चियोनिः कौत्यते aa जयभेतदधिवद्त्‌ डभियोगस्छ विज्ञेयः शङ्कातच्चा भियोगनः | शङ्का ऽतान्त संयोगात्‌ तच्च रोढादि दशनात्‌ पच्चदयामिसम्बन्धात्‌ दिदारः उदाइतः | पूर्ववादस्तयोः Ta: प्रतिवादसखदुन्तरः

शयवद्ार काखम्‌ te

भ्तख्छलानुमारिलान्‌ fafa: a caren | तं त्वा दिमयुकर भमारा भिरित कलशम्‌ राजा मपुर्षः War: WT गणकलेखकौ रिरण््रमगरिरदकमषटा इः Jere: | छणाटानं श्युपनिधिः मशुधोत्थानमेषच | SAN VAT SAAT NUTTY वेतनष्यामपाकेमं त्थनास्वामि परिक्रयः | विष्ोयामक््टानश्च atarsqira एवष ममयम्यानपाकरम (Tae, सतनम्लया | may सम्बन्धो दायः लापय माहम्‌ वाक्पारुष्यं AAD "४१ ERAT | सुत परनणकस्चब्यष्ठादप्रपदः सनः॥ क्रियामेटान्दनयाणां narra निगद्य". दति | मनु Aiea पादलमयकर. प्रतिभ्रालरपमाएनिपयाणां यव- QU aia | दतो यान्नवन्श्यः तिशादौनि प्रत्याह, - ""सतृष्यादरव्रह। रे {ऽय आप) aye fia: oot (ha त्रश्स्पतिरपि.- - “पूपः सतः पाठ. उनी यश्च) सरः was fararare Raton चनद निषथः ar” CfA oe ate: ) धमनौोनां प्रकार) म्ण पादत्रोपपशेः। ase जिणयास्यदतुर्यपादेमिहितः, धरमादिमिखनुभिः निष्यद्यते |

तदाच avai: ioe

१्‌ परसाद्ररमाधवः।

‘qin वारेण चरिचेष नृपाश्या चतुःप्रकारोऽमि हितः सन्दिग्धेऽ्यं विनिणेयः"--ईति। तस्मान्निणंयद्ेतुतया धर्मादोनां areca भविव्यति। तेषां निणयद्ेतलं कात्यायनेन प्रपञ्चितम्‌, -- “दोषकारौ तु करलं घनखामो खर्कन्धनम्‌ | विवादे mye धर्मेव नियः" दति | Sead वाक्पारुग्धादि कारौ यस्मिन्‌ विधादे यवहारे चरित्र राजथ्रासमनेरपेच्छण धमाभिभुगवः wagranigaia:! wate ate qed खयमेव श्रङ्गोकरोति : aa ware! यवहार दिप्राचासम- नरेण धर्माभिमुखाद्भनापहारिष्णः wala धनं प्राप्रोति, तच दोषका- रिणो ध्माधिसुल्यमेव निगेयरेतुः। वयवदारस्य निणयदेतुल स्वाद, “सतिशराश्वन्तु यत्किञ्चित्‌ प्रथितः) घ्मैसाधकः | कार्य्याणां जिणेयाद्धेतोवयेवहारः wat हि सः।*- दति, यज waarmee विंदद्धिर चिप्रव्यधिनोरभे निणयाय घश्चभास्तं * चच चकासोऽधिक्रः प्रतिभाति दोषकारौ cae विवर्णसूप- लात्‌ वाकपारव्यादिकारोनयम्य | परन्तु, सन्न्नादशपतकेषु स्थितः arafara: | EMA पाठः TAMIA मम तु, सम्‌ अध्वा GUTS भीतः+-- एति पाठः प्रतिभाति। | यत्तङनखामौ,- ति ate | ममतु, यच धन्वामी,-इति पाठः प्रतिभाति 6 प्रापितम्‌,--दति are |

t ¢ | कार्याणां faa तु व्यवदार्तौ fe सः द्रति का० | ममतु, yaya स्मतौ fe स, दति पाठः प्रतिभाति |

च्वद्ार काण्डम्‌ | ९४

प्रलया पितं भवति, facet व्यवहारभन्यः। शरिभ्रजन्यं निषंव- माह सएव.- "यद्यदाचरते यन wai वाऽधर्म्मेव वा | दे शस्या सरणं मित्थं चरितं तद्धि कौन्तितम्‌”--ष्ति)। प्रास्त क्रधम्प्ादनपेतं * ध्ये, तव्रिपरौतें ww, तदुभयं दे ्राश- रानुसारेण aq सौकियते.तच चरितं faces: राजग्रामनश्य निणेयरेतुतामार्‌ मणएव,- “न्यायग्रा््नाविरोधेन ! ?गदृ टेष्तयेवरच्‌ | UZ MMVI RSI तद्राजगराममम्‌"--इति। moma यवदहारपतिपाटकं wanted, ae Snrece a तरिरोधेन राज्ञा aaaniita, निणयो गजगराममजअन्यः। चथो- कान घश्मादौनां चतुणां मणे पवस्य पवस्य बाध्यवं उभरो- ATH भोधकलश्च हस्तिना wiiqdy.-- onraaa समाश्रित्य क्रिये यतर निण्यः] धवार: विष्धथो धकान्वनापि wher | दे्रसभ्थित्या;नमानेन नेगमानमतेन च) कियते निणयप्तन ae HI

mre ia, नि ए!" मण

स्प्वाददपुततकवम। पाठ. नम नु. ज्यायगरा्तनिरो धेन, दति पाठः प्रलिभाति; चतर) उततर Uae क्वापि COTTE स्षाधकत्वमुत HEB | au area fae ren, x fa mz aTaye KAA ais, 'देगराचाण्म््य वा विरइ, ह्राद सादिन, --एति VFI '

११ प्ररा्रमाक्षवः)

विहाय चरितारारं यव gata Gea: | fade, मा a रालाश्ना afta बाध्यते त्था--दति। Oey वरतेषु यः कञचिद्राजद्रोरं wet राजो भौतः मन्‌ श्रति- Pera सापराधमङ्गोकार तच समोपव्तिमः साकचिणो वपि- बधं निवार यितुमिष्छम्तः सत्धसुशङ्क, ay साच्छनतं वदेदिल्य- TEM शास्वमेवाभित्य तदौयमपराधं पय्ये्ापुः सच व्यवहारेण wai बाध्यते। केरलदेगादौ वेश्यागमने साकिभिरापादितेऽपि देणा- चारवश्राक्नायं राज्ञा sega) ततन awa व्यवहारस्य वाधः, सत्यपि तादृ देशाचारे ‘aad व्यवरनेव्यम्‌?-इति राजा यदा- saurfea, तदा राजान्नया चरिचश्य बाधः | OG एते star: धर्मा दयञ्चलारः पादास्ते मत्यारिषु चतुषु प्रतिष्ठिताः दाषकारौ खथ- मनताद्भीतौऽयमपि* ्रपराधोऽस्तीति सत्यं श्रते रतो were मद्ये श्रवस्थानम्‌ प्रतिन्नोत्तरयीः कृतयोः माचिणा यस्य पचोऽभ्युपगन्यते, तस्य जयः, तेन AUT साजिष्ठत्रस्थानम्‌ काणटकदे ग्र बला- भातुलसुताकिवाशो Beara, केरलदैभे कन्यायाः 'श्दुमतौलं न॑ दषायेत्येवमादिकष्तन्तटे रसमयः तच तत्र प्रादि शाषनश्च तिष्ठति | fred दूति शासनं, राजाश्ालुषारेण प्रजानां वरतमम्‌ राजा-- srat प्रतिषठितम्‌। सामदागभेदृदण्डेखतुभिं दाषकारिणो रदेष-

11 ~ = - ->~ ~ ~~ ~

+ म्ताद्रौतेाऽपिः- इति are |

Rete 9 ककि ee a ~ = a as

(९) उत्तरः qeaarae इति नारददचनांशं चाचष्ट wqaGzarteat

(२) aw सत्ये ख्ितोधम्भं द्रत्ादिषचमानि वाख्ातुमुपकमते, ये रते दद्यादिना।

VARTA |

रणाय" चतुःसाधनलम्‌ ¦ चतुहितलवं विस्पष्टम्‌ कर्षादिश्तुषटव- व्यापिवं मनुना स्पष्टौरतम्‌,- "पादेाऽधमेष्य कन्ति पादा गच्छति मारिषः | पादः सभाषदः मवान्‌ पादा राजागन्ष्छति'"-इति। जेतुन स्य पा ध्म्मथयगका जोकानुराग ।मम्पाद्‌ मा्वतुष्का रिषम्‌। नियो नितं सपम्‌ ¦ saat कितवम्ननारौमां dat a: करोति, तक्ि- नपि चौ्यारिग्रद्ध जायते। रोद ऽपडतद्रथादिद ग्मम्‌, afer ary तेखादमियोग भवति। अयिपर्र्थिने।ः थौ viravadt तौ यव- gre: gyal) तान्‌ द्विदरारलम्‌ zag fea are नन्यथा वा राजादषणां wT वदा भ्रूते, तरा तम्धाभयश्य फपरि Mae, प्रवचने नतो afar WOTY पपुष्षी राजन्य तरेकमङ्गम्‌ ¦ SAT नाम्नि सवत्मद्धाप्रभर्जिः णाद्‌ नादौमां शरष्टादर्रपदाना स्रूपमुपरिष्टात्‌ ततर वरिपार चिष्यत; | एतेषां रषा गपलान। WH एकेनस्य पदस्य शरवान्तरक्रियाभदादननतभद- {मिन्नत प्रतिादलम्‌ | एताम शष्पा नत्राण्सगानन्तभद भिन्नान्‌ AMET परकागान्तरेष द्धा स्गह्ाति कात्यायनः, ~ “3 qa भाष्यभदान्‌ पदाहत qa | aprenfaanarigar weal ThA मम दुर ttn कादिति पतः प्रलिभाति।

* दधक्रास्माध, दि Hi ' of धम्माथयश्रो्ाश्चा-

+ धरम्मायासयालोकातका-- षति ate | ५५ 4 नुराग+--ति पाठः प्रतिमा ,

j विवदिषति ale He!

प्रराशरमाघबः |

fares विश्रदयति टदस्तिः,- “fqar यवहारः स्थाद्ूनदहिखासमुद्धवः | बिसक्तकोऽर्मृलस दिंषामूलः चतुविधः"- दूति तदेतदुभयविधं भएव. विदणोतिः- “ुषौद निध्यदेयाद्ं* सम्भृयोत्थानमेवच | wee) श्वादेाऽसखामिकिक्रयः करयदिक्रयानु्रयः समयातिक्रमस्तया | स्तो पुंयोगः Say SATA ATTA | एवभर्थममुत्थानं पदानि तु चतुदश पनरे प्रभिन्नानि क्रियाभेदे रनेकधा Ua दवे VK परस्लोसग्र्स्तथा | fadigaiiad varate एस्पतिः"--इति अगति मम्भावितानगेषान्‌ विवादानुकव्बष्टादग्रसु षएवे भ्रन्त- भावयति, ^“पदान्यष्टादगेतानि धम्मंणस्वोदितानि | मूलं सवैविवादानां ये विदुम्ते परौक्षकाः”-दति | sfa व्यवद्धारपरिष्छंदः। कसोदनिष्यायेयादं,--इति प्रा | | गद्यदारमश्ुशुधाः--पएति का० |

t रवमध॑समुत्धानपदानि,- रति पाठो मम प्रतिभाति)

[० UE TS Oe metres aaah

(९) feanaxta चलुदं दव्य (२) गतिः कम्ममू ख्य, तस्याभ्टतेर दानं VATA |

--~ ~~ ~= i = [अ 1 1

वअवहारकाखम्‌ Qe

अथ सभा निरूप्यते | तच ayaa: “दुगेम्ये रहं कुर्याव्जलटचा न्वितं एक्‌ | पाग्दिगि प्राद्मुदौन्तस्य weet कन्प्येत्‌ समाम्‌ | माच्यधूपासनोपेतां यौ जरन्नसमन्विताम्‌ | प्रतिमाऽलेस्यदेषेख aaa तचा”--षति ग्रह रजग्टहम्‌ | तद्य भाग्दिगि धम्माधिकरणण्ता war) भाश वाम्तश्ास्तरलचणो पेता कव्या न्याः सभायाः धर््ायिकरण कात्यायन दग्रेयति,- “ध्रप्रास्तविचारेण मतल्मार विषेचनम्‌ | यवाधिक्रियत स्याने warfeata इद तन्‌" -ति। मलस्टषेदिता्यस्य मारामारविविदमं' aa निष्कैः तथ प्रतेश्कालं मण्वार,-- “प्रातम्त्धाय नृपः हेला निन्य ममाशितिः। गुरु ज्योतिरा वैद्यान्‌ दवान्‌ Faure पुरोहितान्‌ यथाद्मेतान्‌ HAY सुपुष्पाभर way: afte natal लान्‌ ufanagure'— ete |

~~ ~न = = ~ ~.“ “~ --

+ द्यमेव पाठः wad | ममनु, सार्दिविचम-- एति पनः प्रति- भाति।

+ तत्तमिन्कधः- ति aie | सम 4, तत्वरिष्यषः)- एति पठः प्रतिभाति।

5 १०।

ts पराध्ररमार्चकः।

प्रविश्य as विदद्धिमेम्निमिख्च सह का््याष्यनुसन्दध्यात्‌ | Age मसुःः- merce दि दृशु ब्राह्मणे: TE UATE | मन्तमग्निमिसेव fata: प्रविगे्षभाम्‌ तजासौनः शितो बाऽपि पाणिमुद्यम्य दङ्िणम्‌। विनौतबेषाभरणः wa कार्याणि काय्थिरम्‌ wee देणदुरेख wagey हेतुभिः | शअरष्टादश्ख aig व्यवदशाराम्‌* एयक्‌ yaa इति | विष्वारकाणमाह ATTA: 'दिवसस्याष्टमम्भागं Fat कालच्यश्चा चत्‌ | कालो ग्यवदहारार्णं शासदृष्टः परः रतः" दति दिवखमष्टधा शला प्रथमम्भागमप्रि्ो माद्यथं मुक्ता अरनन्तरभाग- ee अवद्ारकालः श्र बज्यासियोराह सन्ततः “चतदन warren daar} तधाऽ्टमौ | fafearg पण्ये यवदहारांस्ठ नित्धश्रः”--दति | Gagan सभा, wer: चातुविध्यमाइ हत्यतिः,-- नप्रतिदहिकाप्रतिषिता afzat भ्राखिता तया चदुरविधा शभा प्रोक्ता wanda तथामिधाः

cdoneaetny dita he pO aA ad CIEL Sp COL OY Oe OEE कनन ७५ न्‌

# निबन्धानि,--द्ति atte | भागवयन्तु--ईतयन्यन्र पाठः| { तिचिष्बेता्ठ भा प्ठेत्‌ः--इति are |

pa as १९

प्रतिष्टिता yt wae wer भामाप्रतिहिता। Cigmsawayer cee प्रादित "दति TSR: वभाखानाकूख्धादन्यान्बसुस्यानि श्ञा- MAT गः, दश सामानि वादानां पञ्च चेवाब्रवौर्भ्रगः। निणयं येन गच्छन्ति विवादं प्राय बादिनः श्ारण्धास्त Ga: Ba: सारिकाः" afereren चेगिकाः सेनिरकेरेव यामेऽणभववािभिः उभयानुमतसेव गद्यते waatfuaat कुलिकाः साथमुख्थाद्च पुरयामनिषामिमः यामपो रगणम्रे्धद्चाहविद॒श्च वर्मिणः | कुलानि efearda fran: नृपतिखया"”-दृति | BRITA: | यामेऽपोत्यादि शब्दात्‌ ये ary श्ररष्यादौ पर निवसन्ति, तेऽणुभयवासिभिः प्रामवासिभिररण्छवासिभिच भिषयं कुः, उभयश्यवरहाराभिन्ञवात्तषाम्‌ कुशिकाः कुणम्रेहिभः | साथः यामयावादौ fafeat अनमः मुख्याः यामण्ादथः। पुरं मुख्यं मगर, तस्मादवापोनो ग्रामः (पुरपामनिवाषिनां भेदः, कुल्लिकाटोनि ve श्थानानि। तानि दारण्कारिजनविगरषाणामेव | यामाकारेणावस्वितजनवपिवादे ममोप्ामनिवाभिभिः fae: |

ar -क ~~ = = ~~

ay ख्याने ‘arg’ xfs Wis! भार TH वन्न | + श्यानमौद्ितम्‌,--प्रति wre | { ये तु--द्रदेतावनमात्र श्रा gay | § wea, तिति afag यम्‌

ten:

5 पराशर माधवः

श्र्धिप्रद्यर्थिनोरननुग्रयानुमतं et कुणिकसाथेमुख्यपुरयामनिवा- सिनो wea) यामादीनि दग्र स्थानानि साधारणानि। यामो- यामाकारेणावस्थितो जनः पौरः पुरवासिनां समूहः | गणः कुलानां समूहः AG रजकाद्यष्टाद ग्ररौनजातयः | चातुवि्ः weal चिक्धा- दिविद्याचतुष्टयोपेतः(५ | वमिषणो गणम्र्टतयः। तथाच काल्यायनः,- “गणः पाषण्डपूगश्य^ ब्राह्मणएभ्रेणयस्तया समृदस्थाञ्च ये चान्ये arena टस्पतिः“- द्रति | श्रायुधधराणां समूहो भतम्‌। कलानि श्र्थिप्रद्य्थिनोः सगो- जाणि। कुलिकास्तच oer: ¦ मियक्ताः प्राङ्धिवाकंसर्दितास्वयः स्याः | मृपतिः ब्राह्मणादिसहितः। सन्यानाहइ याज्ञवरक्यः, - “श्रुताध्ययमसन्यन्नाः ध्मेन्नाः सत्यवादिनः | राज्ञा मभामदः कार्य्याः रिपौ fase ये ममाः"-इति। तेषां agrare seafa:,— "लो कध््माङ्गतच्चजाः८९) सप्र पञ्च चयोऽपि वा।

+ ep नमि = भजन mute Oe ee 8 eee मन ~ = aa =

+ waaguag,—sfa ae ate | + इत्यमेव पाटः सनव्वेच |

ree 1 ~~~ => ~~~ = =+ ~~ -~ ~~~ ~~ ~~

(२) “eitfaat चयी वार्ता दणडनोति शती "--ष्रयान्वोचति वधादि विद्याचवुद्य केयम्‌ |

(२) क्तेकेक्ताक्राचारः देग्राचार इति यावत्‌ | ara ATTRA HEA ufeara: | wayifa, “fae कस्योव्याकरणं निक्तं ज्योतिषां fafa: छन्दसां विचितिश्ेव षड्कोवेद्‌ दृष्यत --दव्यक्तलद्दोणानि वेदाङ्ाजि।

SIU TUR aA | Rr

यचोपविष्टाः विपराग्थाः षा aye सभा"-षति तच TEN षएवार,-

५टू ग्राचारानमिन्ना ये नास्तिकाः ग्राखवश्निताः।

उनत्तकुशका war a wean: विनिषये"-एति राज्ञः प्रतिनिधिमार याज्ञवल्क्यः,

“UAT ATAU व्यवहारान्‌ मृपेण तु

सभ्यैः ay नियोक्रव्यो ब्राह्मणः मग्वेधक्नेवित्‌"-एति मोऽपि राजवत्‌ arate विचारयेत्‌ यदाद मनुः.

“यद्‌ सख्यं gaia नृपतिः area

सद्‌ा नियच्छादिद्मं ब्राह्मणं काय्यदग्रे

सोऽस्य कार्य्याणि सम्पश्येत्‌ मन्येरेव निभिः |

मभामेव प्रतिश्रेमामाभौनः स्थितएववा'-दति सच विचारको ब्राह्मणः प्राद्धिवाक एति उच्यते तदाद

ठेदस्पतिः*-

"राजना क्रार्याणि सम्प्येत्‌ mfgaratsta वा fem:

न्यायाङ्गयन्ययतः Bat wana ferach

वलेन चलुरङ्गन यतो THA WAT: |

Awa: खवपुषा तन राज्ाऽभिधोयते

विवादे प्रच्छति va प्रतिप्रपनं aaa |

प्रियपूरै प्राग्वदति प्राद्धिवाकरोऽभिधौयत"-- दति मारदोऽफि-

(जन ~ ae ~+ ~ ee नज =

+ उन्मत्तब्र दलुमाख्च,ः-- द्रति Ae |

~ ~~ ~ + = ~ जन = ~ ~ भम ~ ee te ५०५

RR WETTER

"अष्टादश्पदाभिश्चः षडभेदाष्टसहल्लपित्‌ |

आन्धो चिक्यादिकग्रलः श्रु तिरूतिपरायफः

विवादसंज्चितं wa च्छति प्रतं मतम्‌।

विबेखयति away प्राधिवाकस्च सतः

यथा wel भिषक्‌ कायादुद्धरे्न्वयङ्रितः

` प्राङ्धिवाकंस्तया शद्यमुद्धरेद्रावहारतः“-इ्ति

प्राड्धिवाकस्य गणाः wat दशिताः-

“श्क्रूरो मधुरः fava: क्रमायालो विश्वेणः |

उन्छाइवानलभश्च वादे योञ्यो HIT तु-इति | प्राङ्धिवाकस्य श्रनुकव्यमाह कात्थायनःः-

“भ्राद्धष्णौ यत्र स्यात्तु fad तत्र चोजयेत्‌ |

वश्यं वा धर्मशास््ननं शूद्रं यत्नेन वशयेत्‌

‘aq विप्रौ विदाम्‌ स्यात्‌ चच्ियं तत्र थोजयत्‌

aq वा धर्मशास्वन्नं Ue यनेन व्नेयेत्‌*"-दति तदवजेने बाधमाह मनुः,

“जञातिमाजोपजोवौ वा कामं खाद्‌ त्राह्मणन्रुवः(“

का wanes ^ "नन = = ~ ~~ 7 1 RD EE reetane Wen Brame fen ERT

+ माख्ययं स्लोकः Be शा ° TARA: |

~ न~~ ar ek nme ens ~ ~+ "~= ~~ ~~” ~ SAS eR ELE ST जी

(९) ब्राह्म णमाल्मानं ब्रवीति खयं प्रह्मणढत्तो यः, सोऽथ ब्राद्चणब्रुवः | च,-

Carer विहन ब्राद्ोलिं दे विं ater: |

waa ब्राद्मणोऽस्तीति THAT ANA KAM: |

WITHA | Re

WANT मपतेने तु द्रः ATTA

धस्य UAT कुरते राशो धमविवेचनम्‌ |

तख सोदति तद्रा पर गौरिव पश्यतः

fama विहा सम्पश्येत्‌ कार्याणि एषलेः सह

तस्य ROW TE वलं ate नश््ति"-इति। गएक-लेखकावपि कार्य्या षिव्याह ewufa:,—

“ष्टा भिधागतचन्नौ गणनाङुग्रलौ प्रचो |

नानाक्षिपिक्नौ कर्ष्यौ रान्ना गणकलेखकौ "दति | व्यासोऽपि,- `

“चिस्कन्धेञ्यो तिषाभिश् eye प्र्ययकारणम्‌ |

VALAIS गणकं योजयेन्नपः

स्फुरलेसं trate weds लाचफिकं wher

i ~~ ~ = ~~ -- ~= = =-= ~ न= = [क ce ee 1 8 7 eee

1 HCAS भियन्नोत शष्द्‌,- दति wre |

(१) satfawre fy गणितखन्ध-जातकस्छन्ध-सिङ्ान्तख्वन्धरूपस्कन्ध- चयेपेतमिति गणिततक्वधिन्ताभखिप्रभतिषुक्षम्‌ | गणितस्कन्धे eqns {दविधं गणितं निर्णीतम्‌} mane तु nae गरुभाग्ुभविन्ता | सिडान्तस्त्‌, “शद्यादि प्रलयान्तकाजकषनामान- gaa: ऋमाद्वारश्च श्यसटां दधा“ गणितं ware सेन्तसाः। भूधिन्णरदसंस्ितेश्च कथम wate यायते सिान्तः उद तोऽ गथितख्न्धपरगन्धे a ॥"-दति सिडान्तथिरेमण्णक्घ- waa: | हिधा गणितमिति प्रतिकलेमानुजे(मभेदादिति मशिततत्व- जिन्तामणै Bray |

Rg प्रराश्नरमाधवः।

warat जितक्रोधमलेभं सल्थवादिमम्‌“--इति | साध्यपालोऽपि aaa दूति तेनेवोक्रम्‌,-

"“साध्यपालस कन्े्योराश्चा साध्यस्य साधकः |

क्रमायातो दृढः शद्रः Mary मते स्थितः"-इति छृहस्यतिर पि, -

“श्राकारणे रक्षणे साच्ययिप्रतिवादिनाम्‌ |

सभ्याधौनः सत्यवादी कन्तवयश्च पूर्षः"-इति | try कतिपयेवणिभ्पिरधिष्ठितं षदः कर्तव्यम्‌ तदाच

कात्यायनः, -

“कुलग्रलवयो द्धे विन्तवद्धिरमत्षरेः .

afufiy: स्यात्कतिपयेः कुलश्धतेर धिष्ठितम्‌" इति | कुल्छतेरन्दभ्डने रित्यर्थः | तेषामुपयो गमा सएव,-

“श्रोतारो वणिजस्तच ana म्यायद्‌ शंने”--दति | यथोक्रराजादियुक्तायाः सभायाः द्गराङ्गानि सप्रयोजनान्धार

दस्य तिः,-

“नृपोऽधिषृतसभ्याञ्च खतिगंएकलेखकौ |

सद्ेमाम्यशबपुरुषाः* साधनाक्गानि वै दग्र

एतद राङ्करणएं यस्यामध्यास्य पाथिवः |

न्यायान्‌ Ga शतमतिः सा सभाऽध्वर सम्मिता

दशानामपि Saat कम प्रोक्तं एक्‌ प्रथक्‌

[8 7 1 श] ee re ` eee [81 OT S Ne OT 1

* हेमाग्न्यम्ब्वन्रएरष।(ः+--दइति Re |

WTC ATV | RY

सभाध्यलो नेपः शासा सन्वाः का््पपरीशकाः सरति्विं मियं रते जथदागधमन्पथा | शपथा ferent अलं टषितल्न्धथोः गणको गणवेहष्ट* शिखेद्यायश्च लेखकः | ्रत्य्थिस्यानयनं साषिणाञ्च TEM: वाग्दण्डसचेव धिग्दण्डो विपराधौगौ हु व्राबुभौ श्रथेदण्डबधाबुक्तौ राजाथन्तावुभावपि um ये विदिताः सम्यक्‌ genta: | साहसन्यायवच्योनि gal: का्यांफि ते गृणाम्‌"-इति यथाविधि fant we: फलमाह काव्याथनः- “सप्राद्धिवाकः। सामात्यः बप्राष्एपुरोहिनः ame: प्रचको राजा खरे तिष्ठति धर्मतः"-द्ति। वैपरीत्ये दोषमार मनुः. “REN दण्डयन्‌ राजा दण्डां चेवायदष्डधन्‌ | wait महदाप्नोति नरकश्चैव गच्छति" इति | सभ्यानां फलमाह टरदस्पतिः,- “श्रश्ञानतिमिरोपेतान्‌ सन्देहपटलाश्विताम्‌ | निरामयान्‌ यः कुरते भ्रा्ताश्चमशन्ाकथा दह athe राजपूजां लभते खगेतिश्च षः लोभद्रेषादिकं व्यक्ता थः ङुर््यत्का य्निणंयम्‌

owe wre ee eae

रकी [षि =-= nn ~^ te aware ~~ ~~~ १११ [ (गणी

गगयेदिद्,--दति शा०।

प्रादिवाकख,न द्रति ar | 4

९१ परा्नरमाश्रवः |.

शरास दितेन विधिना तस्य cya भवेत्‌-द्ति। विपे दोषमाह काल्थायनः “न्यायशास्वम तिक्रम्य PITT विनिसितम्‌ तच WaT WIA. इतो हन्ति संश्रयः च्रपन्यायप्रटे कन्तु नोपेश्छं तत्‌ सभासदः! उपेचमाणाः SAN: ATH याग्यधोमुखाः श्रन्यायेनापि a ard a a यान्ति बभासदः। तेऽपि तंद्वागिनणस्माद्ोधनोयः aera: न्यायमा्गाद्पेवन्त्‌ ज्ञात्वा चित्तं मरो पतेः | ama तमियं aa मन सभ्यः किखिषो. भवेत्‌ इति कायामिन्पन्तावपि amram नास्ति प्रत्यवायःः-द्ति सणएवाडः- “सम्येनावश्यकन्तेवयं धर््ाथंसदितं वशः ब्टणोति यदि at राजा स्याल सभ्यसलतोऽनघः“- इति | wat तु राजा wee धमं श्वा दोषकारिि wea करोति, तदा निष्यापो भवति तदाह मतुः "राजा भवल्यनेनास्ह FWA सभासदः | vatl गच्छति कर्तार मिन्दादा aa भिन््यते-दति |

| 1111 ee ee

* wateifa,—xfa ate मोपेच्न्ते समासदः दति कार |

t येऽबुगान्ति,- इति म्रश्चन्तरौयः पाठः alata |

“afart वक्तव्ये तदचने किल्विषो भवेत्‌”-- एति प्राठन्सरं का०।

| aat,—xfa ate | faat,—xfa wre |

अवहार काखम्‌ | Re

श्रन्यवावादिनः NIE दण्डमाह नारदः, ` रामादश्चानलो वाऽपि यो शोभादन्यवा उरत्‌ | सन्थोऽसभ्यः विन्नेयसतं पापं विगवेरश्वग्रम्‌”- एति | कात्यायनोऽपि, “दाद्‌ जागतो वाऽपि मोहादश्ानतोऽपि ar तच सभ्योऽन्यथावादौ दण्ड्।ऽसण्वः Wat हि ष." टति। याश्नवस्क्योऽपि,- “रागाद्‌ sure भवादाऽपि खल्यपेतादिकारिणः | सभ्याः TAR एयक दण्ड्याः विवादात्‌ दिगण quay” seer zee तिरपि,-- ““श्रन्यायवादिनः mar, तथेवोत्को चो विनः | विश्रसलवश्चकादयेव निर्वास्याः मदणएव ते"--एमि। कात्यायनः, - ““श्रनिणौते त्‌ यदर्य मम्भायत रहोऽथिना। प्ाङ्वाकोऽपि दण्डः म्यान्‌ mata’ शिगरदतः"- इति राजादनः सभायामुपवेगश्नप्रकारमार्‌ टरस्पतिः,- “पूवीमुखस्द्रपविद्राजा सभ्याः उदश्मृताः | nwa: पञिमाग्यसतु लेखका दकिणामुषः'*- इति | समोपविष्टाः नृपादयो यस्यङ्गानिः तमरङ्गिम व्यवहारं पुष

eau परिकन्पयति मणए्व,-

(व 21 ee कक eet =-=

+ सभ्यादेव,--द्ति Ae Mee |

ge ULIACATUT |

“एषां agi नेपोऽ्गागां मुखश्वाचिहतः खतः | बाह सभ्याः Gate हे गणकलेकको ` हेमा्धम्ष्वशपुरुवाः पादौ चं पुरुषस्य च-दएति | था दृद्धरादित्थादिदेषरहिता, सा मुख्या SAT तदुक्त महाभारते “a ar सभा यवम uf ser: भते ger बे भ॑ वदग्मि धमम्‌ | नासौ धर्मौ यच सत्यमसि तस्यं बच्छरेनातुषिद्धम्‌"-इति | दति सभाभिरूपणम्‌ |

श्र व्यवहारदश्नविधिनिरूष्यते |

तच प्रजापतिः

“राजाऽभिषेकसयुक्तो ब्राह्मणो वा ASA

WTI: TA व्यवहारानमुखणान्‌-दति नारदः,

“तस्माद्धर्मासिन प्राय राजा विगतमश्षरः |

समः खात्‌ hay बिश्वदेवखतं जतम्‌”--दइति Seer धमः,

"पियदेग्यौ समौ stat arate नियच्छति |

तथा wren निचम्तव्याः प्रनालद्धि चमत्रतम्‌--द्ति।

= 1 1 णमी

(x) बनेयथा प्राफकाकते परियदेव्यावभावपि नियच्छति, तथा cre eat: प्रजा नियम्तख्यादति सम्बन्धः |

तरह षएव,- धमश्रास्लायग्राख्ाभ्यामवि रोषः ह; समोलमाणो निपुणा वहारगतिं मक्के धमशाखाणि पितामहेन दर्शितानि, “वदाः apres चारा whaler शतथसया | एतानि धमेशाखारि पुराणं न्वायदश्रनम्‌* "इति नन्‌ धद्मास्वाकगतमरथग्राखं, किणवम्बरेव नौत्याककम्‌ | aa! भविष्यपुराण दगरितम्‌,- “षाडगष्छस्य प्रयोगस्य प्रयोगः कायगौरबात्‌ | सामादौनामुपायामां योगो यामममाष्रतः | श्रध्यचाणाश्च frau: कण्टकानां जिशूपणम्‌ it दृष्टां सतिः प्रोक्ता ष्टषिभिर्ग्‌डारज-एति। वादृम्‌ श्रग्धिन्नययंग्राखे wameerfaqgt योऽरः इपा- देयः, Tate परिग्याञ्यः | तदाह ATS, - “oq विप्रतिपत्तिः स्याद्धर्म्स्वा्वगाख्योः | SUT yy MAMTA करमाचरेत्‌"- एति धरम्॑राखार्थशराख्योर्विरोपे" न्यायेन नित्यम्‌ लदा

ee ene ~

एराणन्यायदशि नाम्‌+- दति का*। + इत्यमेव पाठः सर्वत्र मम तु, ततुः--दति पादः प्रतिमाति।

ape rene = ~~ ~

(x) धरम्॑ाल्लयोरयं शाह्नणोख विरोध Kae: |

Re WERT साधवः |

ध्न्यः, "ह्यो विरोधे म्यावैदठु दशेव व्वरारतः"- इलि) व्यवहारतो इद्धयकशरररिद्धो* न्यायोबलवान्‌ न्यायानाशञ्रयणे बाधमाड eae “Saal शस्छमाभिद्य कर्तव्यो हि farce: | यक्षिरोने विचारे तु ध्मेहानिः प्रजायते चोरोऽचोरोऽसाधः साधुर्जाधते। व्थवदारतः। क्ति विका विचारेण माण्डव्यञ्चोरताङ्गतः "असत्याः AIIM: TTA BA: | दृश्न्ते भ्रान्तिजनकाः तस्मायुष्षा विचारयेत्‌^--दति। न्यायख निशेायकलसुपपादथति मनुः, “यथा HUTA: ANG aL पदम्‌ मयेनयाऽनुमानेन WHS FIA: पदम्‌ I धाकधेर्विभावयेलिङ्गेभावमन्तगेतं नणाम्‌ | खरवणेङ्गिताकारशुषोचेष्टितेन वा”- इति | धाश्चवत्क्योऽपि,- ` “श्रसयदिके इते चिक युकरिभिघागमेन | Keyl व्यवशारस्त कूट चिक्रक्ताद्धात्‌”--दति | ay wage, भतश्डलानुसारितात्‌ दिगतिरिति; तश्र इलं हेयम्‌ ATH याशवस्कधः,

कनन 9 ~“ Ee mene ae

^ इद्धद्यवहाराव्‌ प्रसिडो,- दति we ae | चौराऽचोरः साभ्नसाधर्जायते,-- दति are | ¡ बाद्ये,- इन्यत aster: पाठः

पिपर पणय वि 17 7१1

, Bares | Re

“ea मिर्रीलिववत्ारामबेशुपः गतमणनुषन्क्े Wea MAT CE निण्यं WATE साच्यादिकम्‌ by margin. “fanfront साक्षिनिमित्ता सत्यया" दति 1. मुद Fay देणद््टख wragey रतिः न. ष्टादग्रसु मारु मिवन्धानि एथक्त्‌ एयक" Surat: ar कटिव्यादिभिखाष्टाद प्रपदमनन्धोनि - ययाणि निण्येत्‌ | तम Sarasin: | तदाह कात्यायनः, ‘AI प्राम्तानुमारण राभा कार्य्याणि साधयेत्‌ |

वाक्याभावे तू सवेषां द्दृष्टेन तन्नयत्‌ः'-ष्ति। देदृष्टस्य लदणमार wa “erg Sym यो धमः wen: मवंकाशिकः | मुतिम्मत्यरिरो धम engu: उच्यते" --इति। तत्तहग्रोयानां मिखोदिवादे 2 प्रयुषटन fang: | तदार aa, - “दे गपत्तनगोष्टष्‌ पुरयरामेषु वादिनाम्‌ | तेषां खममयदुमेगाम््लो {न्य A: ay" यच तन्तद्ौयानां दनरः सह विवादः, तष गातो निणथो- नतु देग्रदृष्टतः ¦ लेष्यादिभमाणाभाष राजा च्छा निषयत्‌। तदाह सणव,-- “Se यत्र विद्यत भुशिनं माक्िणः। दिव्यादतारोऽमित प्रमाणं तज पावः -दति।

ree ~

+ Weg मत गयेत्‌,-- ईति कार |

( पराच्चरमाधदेः।

बठिगादिषमयेव्‌ समयिभिरेव fatwa) तदार यावः,

“वणिकशिखिप्रशतिपु- हषिरङ्गोषजो विषु

amet निणयोन्येसन्तेरेव तु* कारयेन्‌

गुडः -ल्ञामौ geay पिता ete: पितामहः ~“ विवादानयं पठेयुः खाधौने विषये गृणाम्‌”-दरति निशेयकारिणणं उक्माधमभावमाह नारदः+

“कुलानि Swede गण्णद्चाधितो नृपः |

प्रतिष्ठा warrant सवेषासुन्तरोन्तरम्‌"-दति पितामरोऽपि,-

“यामे दृष्टः पुरं यायात्‌ पुरे दृष्टस्त्‌ राजनि

राज्ञा दृष्टः कुदृष्टो वा मास्ति तस्य पुनभवः-दति। राजो नियममाईइ पितामशः+-

“म्‌ रागेण लोभेन कोपेन मयेश्ेपः

पररमार्चितानर्थान्‌ चापि खमनोषया"-दति। अस्यापवादमाह षएव,-

छलानि चापरार्धांख पदानि मृपतिरूया |

खयमेव निग्होयात्‌ मृप्लौवेदकं विना" दति | तजर SATAY सएव,-

“पचिभक्रो aed} प्राकारोपरिशष्कः |

पा en ना जोन जा चि 0-0०-०० 9७.०9 ००

* शभद्ेरेव तु-इति का | t पथिगङ्गकराकेपःः- दति wie we | `

शवहारक्राद्यम्‌

जिपानख्य विनाभौ तवा qrere परिखापूरकसेव राअष्छिद्रप्रकाप्रकः | अन्तःपुरं TEE भाण्डागारं मशागमम्‌ nfamerframt यो भोजगश्च निरौश्छते | वि्डुन्षेभ्रवातानां शेुकामो AUTH: पय्यंडासनवन्धो " चाणग्रखामनिरोधकः | रा्ोऽतिरिक्षेषचच विष्टतख। fasta खः यश्चापदारेण विेदषेलायां तथैवच | शय्यामने पादुके शधनासनरोणे राअन्यासन्तग्रयने यस्तिष्ठति समोपतः | राजो विदिष्टसेवौ वा ऽयदन्तविहिताममः वस््ाभरणयो शैव सुवण्यरिधायकः | खयं UST aa UAT NATH च. अनियुकतप्रभाषौ नृपाक्रोग्रकएवच | एकवाषास्तयाऽभ्यक्री grant sn faa: fafafaary: म्बौ परिधानविधृगकः | इलान्येतानि TAIT] भवन्ति नृपमज्निधौ'-एति | श्रपराधानाह नारदः+ नशाज्नाणद्वनकन्तारः WTA वपमङरः | पर स्ौगमनश्ौयै mga पतिं विना oe काये कामयालुभन्द,--षति we we |

+ राच्चोऽतिसिहिवमेख दिविध, प्ति भाग ae | 5

te WEMRCAT ET

ATTAIN TST CATTE

MIE पातमश्चैकेत्यपराष्षः,. THAW’ THA: I विबादमग्तरेणणपि. cea saree | श्रतएव oat |

“arta पथिभक्गश्च we wh: पतिः विना |: खयमनेषयेद्राजाः विना. चेव. विवारिना, कन्याप्रह्मरकं पापं faery: पतितं तया | परापवादमंयुक्रं खयं राजा विधारयेत्‌ षड्भागकालं एरकां मामे च्छेद कमेव | खराद्रचौय्येभोतिश्च परदाराभिमेनम्‌ TATU सस्वानाश्चेव चातकम्‌ः ।, दशेतानपराधांख खषं राजाः षिकारखेल्‌”--ररतिः। तदष्याह प्तिामहः,-- “Sarat, await चः श्रध्धिदशथ तवेषच | परदहाकीषणाण्वछाटौ(९) द्रयमसाभिकंश्चं यत्‌ ॥: TIMAM sea चत्‌ यचवेवाङ्गविनाश्नम्‌ दाविंग्रतिध्पदान्याहः नपश्षेयानि पण्डिताः --१ति।

pe 1 1 NG ATED I OME 1 णी ee

* मवाच्या,--दइति काण

t दकडन,--दइति ate |

{ उत्त्ति+-दइति wet $ इाश्रिष्रतिः-दइति ate |

[य EOS Ge ROE RET errr eR:

(१) Weta यदाघरब्यते, तस्धाष्छदनगकन्ताः cere: |

व्षराश्काराम्‌ | ३4

यच कलादौनि राभा ee द्ष्टमपक्ः, AY लोमकान्‌ शूक काञ्च alga) तथोः खर्पमाह का्यायनः,- “rau निन्दितं वर्थमुस्योराश्चा प्रोदितः | श्रावेदयति यः पूर्वै स्तोभक्रः उदातः मृपेणेव from: स्याम्‌ परदोषमरेशिषरुम्‌ | भपस्य समयं HAT BAA: उदादइतः'-इति शरास्त्मिन्दितं इला दिकम्‌ रथमुख्यो धनलाभप्रधामः। राजना ास््ादिपर्थानलोचनपुरःभरमेव काय्यं BAMA तदाह हारोतः,- “शास्त्राणि षणधमेांस प्रश्तोनाश्च श्पतिः | व्वष्ारखखूपश्च WAT काय्यं समाचरेत्‌ "--ए्ति | yaaa: पितामहेन दप्रिता.- ""रजकशमेकार्य नटो वष्ट एवष | दौवन्तेकश्च frat मेन्डमि्ौ पथेव मेधिकम्विरववयालरम्तौ नचद्िधषटिक्ी। | कोसेरिकाः{ भारूपदामानगोण्डापगोपमाः एताः प्रतयः प्रोक्ता ere मनौषिमिः। वणानामाश्रमाणन्त्‌ सवेदेव विः fora: षति

वरन ce ~ = = ee निन TER नम Wm +, ~> aa es a. =

pe Teel

PO et eeenentl

+ ay FRAG, —Els क! t बुरूड़,- ति are!

t aegg afgat:, —tfe Ta | § कोसेदिक्षः.-- els का०।

३१ पराद्मर माधवः

age आत्थादि षमोचणौयमित्धाद,- “जातिजानपदान्‌ धर्मान्‌ अेणोधमाख् श्राश्वतान्‌ | समोच्य sawing खे वणं प्रतिपादयेत्‌" --इति | छनक्मागेवत्तिनः कुलादोन्‌ खमागीं स्यापयेदित्याइ चाश्वस्कधयःः- “कुलानि प्रहतौञैव अरोजेनपदानपि | खधर्म्ाच्चशिताम्‌ राजा विनोय खापथेत्ययि"-दति | काययेद शेनप्रकारमाह भारदः+- ^“धर्मगशास्तं acer प्राद्धिवाकमते धितः | समाहितमतिः पटेत्‌ व्यवहार मनुक्रमात्‌ WITH: प्रथमः ATA व्यवद्ारपद AAA: | विचारो fawaafa दशनं ereqfaua’—sfa | श्रागमोऽयिवचनश्रवणं, तदादौ AUS | AAT खणादामा- चन्यतममस्पिन्‌ Te wea | ततः प्रतिभ्चोन्तरप्रमाणनां विचारः, ततः प्रमारतोजयावधारणएम्‌

दति यवदारदशभेमविधिः |

ES कि जि या जः ज-जात नक

© कार्थ, दरति कार |

CAYITWITF | ge

शअरथासेधादिविभिः। तज नारदः, - “वक्तयेऽयं तिष्म्पसुत्कामनश्च ace: | श्रासेधयेन्‌ विवादाथं यावदाङ्ामदेनम्‌"-दति | प्रथमन्तावदयों प्रत्ययिनं प्रति adam हेयमिल्धादिकं काय्यं FIT त्र यदि AGN मनभ्यपगम्योत््ानतुमिच्छेत्‌, तदा सखकाय्येपय्यन्तं राजाश्नया तं भिरग्ध्यात्‌ weary षणएव,- “स्थानासेधः TATA प्रवाषात्‌ कर्मणस्तथा | waa श्यादासेधस्तमासेधं लहयेत्‌'"-दटति | seq स्थानान्‌ aa 4 चजितव्यमिति ware: | मरौ यद्र्प्रदाने feataateraiafata काशामेधः sea ग्रामान्तरं waafafa प्रवामामेधः। श्रृत्वा waa कर्तव्यमिति waa) मन्ध्यावन्दनाद्विवदिख्िथमिसोधो a AAS ACTH कात्यायनः. ""यस्तिसियनिरोधन याहरेन्‌ guenfefar: | श्रासेधद्यरनासधैः दण्डो वतिक्रमात्‌'--षति। दूद्धियनिरोधवत्‌ विषमदे परोऽपि नासेधारः द्याह मारदः- aA TAT ATA SEM TRATES mifagy परासेधमुक्रामन्नापरप्रयात्‌--इति | श्रासेष्यासेधकयोः तत्कालोक्षहने दण्डमाई सएव, तदुत्तर-दति कान दुगंमो पद्ववादिनुः--द्ति ate |

ge a ee

“अआतेधकाशणाशिद्ध are ATR विनेयोऽन्यथा ह्म्‌ शरदे Fem Ah अन्यथा gay weld Feathers तंभाकेधथन्‌। अनासे- WTATY कात्यायनः a | “यपर्वतमाङ्ढ़ा Wace: विषम्ठाश्च ते श्वं enter: काष्पसोधकेः वयाध्यानत्यसनस्याञ्च VATA TAY " MAMTA मासेष्याः FTAA कर्को बौणकारे सेभाकालेऽथ कनिका 4 ofan Ret हेतकाशख भौम्तरोा 1 COM: कषकः खो तोयष्छागभने चद्‌] MUR YT थावत्‌ तत्करं विषादयेत्‌^-इति 1 ठषदयतिरपि,- “qetereteat रोगो शोकार्तौ wrarern: | we डद्धोऽभियुक्खच शृपकाखीच्चतो अतौ आसन्ने सैनिकः सद्र क्कसाथरकहे | विषमश्ाख nee: -आओसमाथासथेवष"--ईति | नारदोऽपि. “fadgaret Corti fregelet सिवतः |

किमेति 6०५,

भविनः

* सारम्मा, BEE ala ae |

[गीर पि पि पि विपि) पि

(९) ष्ये जाले लति Strat we,

शप्राप्तव्यवदारसच विषमाश्च नास्या नँ कदा afe द्यं दापनौोयमित्याकाङ्गी हाच -- “वणिन्िकौतपश्छस्तु सखे जाते = | aatquras क्था रापनौधाः wef यद्यासिद्धो मागच्छेत्‌, तदा राजा तभानयत्‌ | तीक “areata कुरुते SAARI तथा | ARUAAZTN FUT FCAT वा-इति # नारदोऽपि- ‘Sa कालश्च विज्ञाय कार्य्याणाश्चः कलावलम्‌ श्रकम्यादौनपि९ तथा शनेराक्ानभेनरुपः*"-दति श्रकानानरहानाह हारोतः.-

RATATAT ATT eT SSH

~~ rere eee पक ` वा te

+ अकख्पादोनपि नैर्यानिसाङ्कामयेवरृपः,-- शति का" |

= 11 Ute are nh waar, oN

ad 99 ad 11 ~

Ne anneal

(x) अन्धेन greeter TATE माधवः (x) कषयो कमन्य |

४० बदरश्ररमाधघवः।

कार्या तिपा तिय निनृषका स्वीत्पवाङुशंन्‌\)

abate) n seer tpn

Wega जडाना्ग्छ्थानाङ्कानयेन्नपः"-षति

. काल्यायनोऽपि,

“धमौद्युकानभ्युदथे रौगिणोऽय शडानपि

SAITAMA नाड्ानयेनयपः

रौभपचां युवतों कुले जातां प्रसूतिकाम्‌ |

सजातिपरसुकाच्चैव तथा माह्ानयेनुपः”-टति सजातिप्रभुका तु मरोचिना निदक्रा,-

“सवेवशीन्तमा कन्या सजातिप्रञुका WAT |

तदपौगदुट्‌म्बिन्यः खेरिण्णो गणिकाख्च याः

निष्कुला ary पतिताः तासामाङानमिते "दति दृप्षस्य दण्डमाह टदष्पतिःः-

“राहतो यस्त॒ नागच्छेत्‌ दपांदन्सेवखान्ितः

श्रभियोगानुरूपेण तस्य दण्डं प्रकखयेत्‌""- दूति |

[1

wen me गी ee ee nT Ney emcees ae ener meee (1

(x) व्यसनं विपद्‌; कामजक्रोधजदोषविदेषोवा | चाश्ादशप्रक्षारः agate: | यया, +अरगया्तो दिवाखभ्नः प्ररिवादः स्ियोमदः | तोग्यलिकं खथाऽटाश्या कामजो दश्कोगणः पैभूल्यं सासं ग्रो दष्याऽयाऽधंदूबम्‌ | बाग्दग्डजच्च पादष्यं क्रोधजोऽपि गणोऽटकः”- इति | (x) म्तोमखादिना, उन्त्तोबातादिना, प्रमत्तोऽनवडितः।

अवहार कार्म | का्धावनोऽपि,- “OETA शः TAT राजशासनम्‌ qe quit दण्डं विधिदृष्टेम फमेणा होने कमणि पश्चाश्कध्यमे तु waa | ARRAY दण्डः Vr निल्यं Tawar" eh | श्रापन्ञस्यानागमनेऽपि दण्डो नेत्या याषः,- “परानौकहते am दुभिषे वयाधिपौडिते। gala पुनराहारं दण्डं परिकम्पयेत्‌-इति | दव्यासेधादिविधिः।

TY CLA: |

श्रच मतुः,

"धर्मासनमधिष्ठाय स्वोमाद्गः समाहितः |

प्रणम्य SATA: काय्यदग्रनमारमेत्‌"-श्ति | SCY कत्तयमाइ कात्यायनः,

"काले कार्य्यार्थिनं ved प्रणतं पुरतः ्वितम्‌।

किंकाथ्का चते पौडामा भेपौद्रूजि मानव।

aa किन्‌ कथं कस्मात्‌ TRI सभागतम्‌“ दति इृषस्यतिरपिः-

Cprrarat विवदताममशदादिनां 77: |

वादाम्‌ पशयेननात्महतान्‌ चाध्यवमिमेदिवान्‌

6

gr पसश्रमाघवः।

पौडितः खयमायातः WAU, यदा भवेत्‌ - प्राद्धिवाकस्त तं एच्छत्‌ पुरुषो वा शनेः शनेः”-दति ष्ट काय्यं यथावदावेदयदित्यार याज्ञवष्क्यः,-- "सत्या चार व्यपेतेन मार्गेणधर्पितः परेः श्रवेदयति चेद्राज्ञे यवदहारपदं हि तत्‌”-इति। यदि fafafafraa मवेदयेत्‌, तदा व्यवहारो वसात्‌ कारयितव्य दरत्यभिपरत्य चेदिव्युक्म्‌ | श्रवेदनकाले सखादयो- व्नोया CITE उग्रना,- ““स॒मखोऽनुत्तयोयो वा PHAR: TATA: | वामरस्तेन वा wal वदन्‌ दण्डमवाभ्रुयात्‌”-दइति शर्थिनः प्रतिनिधिमभ्यपगच्छति कात्यायनः “श्र्थिना सन्नियुक्तो वा प्रत्ययिप्रहितोऽपि वा। यो यस्यार्थं भिवदते तयोजयपराजयौ "दति श्रन्तरेणापि नियोगं पिवादयो विवादं qafcare पितामष्ः- “पिता माता सुददाऽपि बन्धुः सम्बन्धिनोऽपि वा* | यदि geared वाद्‌ तच प्रवन्तयेत्‌। यः कञ्चित्‌ कारयेत्किञ्चित्‌ नियोगाद्‌ येन केनचित्‌ | aaaa इतं ज्ञेयमनिवत्यै fe तत्‌ waa’—<fa | grit afifowa विवादश्च निषेधति नारद्‌ःः-

[1 पिं [षका 11

* सम्बन्धिकेऽपि व-दति ate | प्रदत्तते+-- Ele का०।

द्यवहारकाखम्‌।

“at a erat 4a पिता पुरो faites | aaa) दण्डः स्यार्‌ यवहारेपु विब्रुवम्‌"- इति कात्यायनोऽपि, “दासाः RMA: fat: faa: बान्धवास्तथा | वादिनो नच दण्डाः म्थयम्ततोःन्यः दण्डभाक्‌ "षति श्रावेदितायी लेखनोय care नारदः, “रागादिना यदेकेन करौ पितिः! करण वदेन्‌ तदोभिति faded वादिनः फलक्रादिषु-द्रति। करणे धर्फ्ाधिकरण। fafa श्रयम्य aarfana षति WYWA HAHA इत्याह कात्यायनः, ~ “एवं ष्टः UTA] तक्छवत्र्ठणेः मह faa कायें न्याय्यश्चेदङकानायमतः परम्‌॥ मुरं वा निचपित्तमिन्‌ पुर्वं ai waren via | आहतं प्रत्य्थिने सुरवितम्यान स्ठापर्मादित्याह पितामनः,- “सभायाः पुरतः म्यायोऽभियोगौ ताडना तथा | ्सितेऽन्यच वा स्याने प्रमाणं मोऽ्यथा नतु" इति॥ स्थापितस्य ढलवादि्वादि वाद्य समिययम्‌ | WATT AA, Coraefergaal चष्टया भापितन च।

ee _ (~ ~ ~ TS

© न्नयालजितः--द्ति BRR थः पानः t रागादिमा यकन कापि वा, We सर |

t तद्द्याने-- ति vel

| पराभरमीचधैः |

भेभवक्चविकारेख wets मनः(२५--दइति fegracta याद्वह श्रा, ‘seat याति ख्कणे परिलेढि च। ललाटं खिद्यते चास्य qe aaa परिश्ययत्‌रूषलद्ाक्यो विरद्धम्बङ भाषते | वाक्‌ चचुः पूजयति ने तयोष्ठौ निर्युनत्यपि(९॥ खभांवादिष्टतिं गच्छेम्मनोवाक्षायकमेभिः | श्रभियोगेऽथ arg वा दुष्टः परिकौत्तितः"--दति Sw सणएवाह ` “erat: प्रतिशचर्यद्यः समथः कायेनिणेथे"--दति | तच व्यान कात्याचयनःः- “म खामौ वे wa खामिनाऽधिशतस्तथा | विरद्धोदर्डितखेव संश्यस्थो कचित्‌ भेव fort रिक्थश्च चेवात्यन्तवाधितः | राजकीयं नियुक्राश्च ये प्रब्रजिता नराः॥ नाशक्रा धभिने दातु दण्डं we तत्समम्‌ | नाविश्चातो योनयः प्रतिश्स्तक्विथाग्मति?- इति |

ne cane मणा जिनािनत ति णाम ताणि यो कभ ae or => = gm

* क्ता,--दति wre |

8 1 tne

(x) आकार पिटः | दइ कितं खेदतेपधयरोमाश्वादि |

(२) परकीयां बाच प्रतिवचगदानेन quafa, चत्त watadity- शेन |. निशुजति कुटिलीकरेोति।

MATCH TAP |

धरि वादौ विवादप्रतिमुवं came, तदाऽपि तेनेत, “श्रथ शत्‌ प्रतिभनांमि setae च, वादिभः | रचितो दिनन्यान्ते zene were वेतनम्‌ दिजाविः प्रतिशरोनो र्यः खात्‌ बाद्मरारिभिः | शएद्रादौन्‌ प्रतिहोनान्‌ बन्धयेश्चिगडेन तु श्रतिक्रमेऽपयाते चः दण्डयत्‌ तं दिनाष्टकम्‌ | नित्यकमौपरोधसु कायः म्ववणिनाम्‌”-नि | प्रभियोक्ाटोनां उक्निकरमोऽपि तेनवोक्रः- सत्राभियोक्रा प्राग्‌ त्रूयादभियुक्गस्वनन्तरम्‌ तयोरन्ते मदस्याम्‌ प्राद्धिाक्रभ्नतः परम्‌" -षति। प्राग्‌ त्रयात्‌ afant Pate: | तथाच नारदः, “marae पटक mead ar met परे fame at क्ये at ws कुर्य्यात्‌ yaaraza यः aw Ha पूरववारो विभिष: tia | विदादै पूर्वाभियोक्रुरेव प्रतिभावादिलमिग्यथः अवरापवाद- माद साव न्यस्य qnafaar पौडा कायं दाऽभ्यधिकं भवेत्‌। तद्ार्चवादो दात्यो वः a कििदवन्‌"--दति |

~~ a 17 सि

[कि जा = किनका

© दादयेग्यस्य,-- द्वति We | Te ATM, षति प्र्यान्तरे |

+ अतिक्रमे जमात चः- पति are | बद्धा्षिभावो,-इवि ययान्तसयः पाठः|

QUACATaT |

कात्यायनः, “qe स्याद्धिका Ter काये वाऽभ्यधिकं भवेत्‌ | पूरेपचो भवेत्तस्य यः पूतं भिवेदयेत्‌"-दति | यत्रोभयोरपि परस्परमधितवं प्रत्यथिलश्च साध्यभेदाद्युगपद्ध- वति, तक्राकछष्टजातेवेङपोडस्य वाऽथिनो वादः पू AVM तथाच टस्य तिः+- “च्रहपूविकयाऽऽयातावर्थिप्रत्ययिनौ यदा | वादो वर्णनुप्र्येण ग्राह्यः पौडामषेच्य च-इति | समानवणवे पौडापेचया ग्राह्यः श्रनेकवादि युग्मानां युगपद्‌- TNR ग्रेमक्रममाह मतुः,- “श्र्थानधोबुभौ बुध्या धर्माध्ौः केवलौ | वणेक्रमेण स्वाणि पेत्कार्याणि काथ्थिणम्‌*-द्रति |

दति दशेनोपक्रमो निरूपितः |

अथ चतुष्याद्यवहारः प्रस्तूयते

्रतिश्नोन्तर प्रमाणं निण॑य्ेति चलारः पादाः तच प्रतिज्ञां सट्ाति याञ्जवषक्यः,- “परत्यिनोऽगतो लेख्यं यथाऽभेदितमयथिना | समामासतद द्धा रनामजाव्यादिचिङ्कितम्‌“-दति | एतच ठदस्यतिना खष्टोरतम्‌,- “fat anatay वादो पं भकष्ययेत्‌ |

WITCH | ge

fade सम्रतिन्ञ्च* प्रमाणागमसंयतम्‌ देशस्थानसमामासपकार्नामिजाति | द्रयसद्योदयं पौडां चमालिद्गश्च लेखयेत्‌ प्रतिज्ञादोषनिमुक्रं माध्यं सत्कारणान्वितम्‌ | fafaa लोकमिद्धश्च va परविदो fax: श्रन्पाच्तरस्वसन्दिग्धो वहृयेश्चाणनाकुमः। युक्तो विरोधकरणे विरो धिप्रतिधङ्रः""-इति। ततः प्र्य्थ्याङ्ानानम्तरम्‌। तस्िल्लप्थिते प्रत्यथिन्यागते aft भिरवद्यं पवदोषरहितम्‌। पक्दोषाद्च काल्यायनेन दभ्िताःः- ‘aramfanay carga: | माध्यप्रमाणदरोनश्च प्लोऽनारैय दयते'--एति | खलत्यन्रेऽपि,-- “प्रसिद्धं निरायारधं निरयं निषुप्रयोजनम्‌ gare at fawg at gard विजयन्‌" ofa aufag, मदोयं गरविपाणं गनौला नप्रथच्छतौन्धाटि। सिराषाध, श्रसादगदप्ररोपप्रकागनायं स्वदे AMT ATTA TALES निरचंक- fatten कचटतप Tass निष्यृद्ोजमे, यया, Ta दवदक्तो- {खाटखरमन्निधौ areata, द्या (द भ्रमाय यथा, अश देवदकेन सभङ्ग प्रहमित इत्यादि विदं यथा, श्रं मेन ग्रप्््यादि | पुरराष्रादि विद्ध भागश्च faa पनिहितम्‌ निरवद्य,

„~ ~~ we

aa ee ककम कन्‌

* द्त्यमेव पाठः सन) ममतु facaqutawe,—efa षाठः प्रतिभाति। निर्यं परदायर दितमिति यस्यनद्प्रनाद्‌ |

ss RETREAT

मदौयं द्रथमनेन welt तग्रत्यपेशोयनिति प्रतिक, तया युक्तं सप्रतिश्चम्‌ | प्रमाणं fafengenfe | श्रागमो द्यप्राक्धिपरकषारः कात्यायनोऽपि VEYA, “निर्दिश कालं arg मासं va fafearer ` बला प्रवेशं विषयं खानं eared वयः साध्यं प्रमाणं द्यश्च सद्धा नाम तथाऽऽत्मनः | Targ क्रमशो नाम निवासं साध्यनाम क्रमात्‌ पिदण्णं नामानि पोडामाइदरेदायकौ | शमालिङ्गानि वाक्यानि पकं सङ्ोल्यं कर्पयेत्‌ देशं कालं तथोग्मानं सज्धिवेशं तथेव जातिः संन्चाऽधिवासश्च प्रमाणं रेचमाम पिद्रपेतामदश्चेव पूर्वराजानुको नम्‌ स्थावरेषु विवादेषु staf भिवेशयेत्‌"-दति amaiat स्थावर विवादेषु पुनरभिधानं, wa यावद्‌ पयुश्यते त्र तावदेवोपादेयं तु सवरं सवेवेति प्रद शनाथम्‌ | संगरहकारोऽपि- “श्रथेवद्धमेसंयक्तं परि पूणेमनाङ्गलम्‌ साध्यवद्वाचकपदं प्रहृतार्थानुवस्षि प्रिद्धमविरद्धश्च निथितं साघनल्मम्‌। fed निखिलायेश्चं देशकाशाविरोषि वषतुमासपचाश्ोवेलारे प्रदे श्रवत्‌ | खानावसथसाध्यास्यं* ATA TAMIA

ee ae eee Reem 9 ५७ ow a en ee

* सम्मावसतिसाध्याख्या,--४ति Ae |

STUER 8९

माध्यप्रमाएसद्यावदाताप्र्यिमाम वत्‌ OLA TAMAR TIAA PHT PRAT शमालिङ्गात्मपोडशयत्‌ afiareecrang | werazad रान्न तद्वाप्छभिधोौयते"--इति | परात्मपर्वजानेकराजनामनिः; परः afaarat, ear ara. तयोः पूर्वजाः पिजादवः, श्रनेके राजानो yfmareter:. तेषां नामभिः माषारोषान्तु arte रिताः. MATAR भमाणागममभजितम्‌ | नेष्यम्धाना(दिभिभष्टं wreiziar उदाइताः'--इति | aty खयमेतर या चष्टे. - “दृष्टे साधारणश्यकः यद्‌ यथेव नियुक्तः | नेष्यदयस्तु भाषायामन्पायद्च विदुषृधाः गणिते तुनिते भय तयथा sw fes | यच म्या निरि भा care faafaar विशया wINATald कौतं क्रमागतम्‌ a वेवं लिख्य यत सा भाषा स्याढनागमा ममा arma पलम्तििबा भ्यं बच | यठेतानि fora नेग्यशोनान्नु तां विदुः | केखयल। a यो भाषां [नादष्टन तथो हिरेन्‌ arfam: पूम्‌ अधिकान्नां fafafesa | यच स्याद्भयं वं मिदि धरना | अन्दिग्धमिव fears at भाषां तां विद्ः"-दति | 1

we पराश्नरमाधनः।

श्रयं साधारणे ब्टनां सम्बन्धिनि कार्थ। पुमरपि सएव Par सद्य विट्रणोति,- “भिननक्रमोययुत्कमायेः प्रकोर्णाधानिरथेकः | श्रतौतकालेदिष्टश्च WATS TAA I यथास्थाननिवेग्रेन नेव पचाथेकन्यना | mea पस्तु भिन्नक्रम दातः मूलमयं परि्यच्य ager ay लिख्यते | निरथैकः 3 पच्ोग्धतस(धनवजिंतः गतकालमतिक्रान्तं द्रं यत्र हि frat श्रतौतकाणः पचाऽसौ प्रमाणे सत्यपि सतः यिन्‌ cd दिधा साधं भिन्नकालविमगरेएम्‌ | frame करियाभेद्‌ात्‌ परादिष्ट उच्थते”- हति | एकेन श्रथिना बह्साध्यनिरदेगो युगपन्न कन्तयः, कालभेदेन तु कर्वः | तद्भयं कात्यायन श्रा. “पुरराष्रविरुद्धश्च यथ रान्ना षिवजितः | HARARE: GaGa मिध्यति बञ्जप्रतिन्न यत्काय व्यवहारेषु निशितम्‌ | ` कामन्नदपि etary राजा त्ववुभुत्छथाः-दति | पू्वैवादिने भियममाह srufa:,— “श्टषायक कियाशोममसारान्याथमाकुलम्‌ | पूवप लेखयते वाद हानिः प्रजायते उपदिश्याभियोगं यत्‌ समतोत्यापरं a7 |

QATAR |

करियाुक्ा<न्यया wary वादो हानिमाप्ुषात्‌ न्यूनाधिकं" पूवप तावदादौ विभरोधधेत्‌ | दद्यादुन्तरं यावन्‌ परययौ सन्यबभिधौ “इति का्यायनेाऽपि,- “श्रधिकाम्‌ केदयेदर्थाम्‌ होमांख प्रतिपूरयेत्‌ | शमौ निवेशयेन्तावद्‌ थावदर्थऽभिबणितः"--दति नारराऽपि,- “भाषायामुक्लरं यावत्‌ प्रथं नाभिलेखयेत्‌ | यस्यान्तु लेखय्तावरर्‌ WAY विवशितिम्‌”--षति | sure वादिनं प्रति ठदस्यतिराद्‌,- ५शरभियाक्राऽप्गल्भलात्‌ वकं नासते चदा तस्य कालः प्रदातव्यः ATAMMARIMT:” —CHA | काशेयत्तामाद्‌ कात्यायनः, “लेखनं वा लभते शह ATCA मतिरत्य्चते याव वादे वक्ुमिष्छतः'"--इति ूवेपचद्य चातुविधं प्रतिपादयति eerie: “शतुरविधः पूव॑पचः प्रतिपदसाथेव्च | चतुधा facta: itm: के चिदषटविधः हतः रदा ऽभियेगस्तथश्च लभ्य spare तथा | SA वादे पुमर्थः परा जेयखतुविधः भानि ग्रा सरिद तथं TET

nee जि ०० matey a ५८२

eaten --रति

४६

1

५९ qeritcarraa: |

` @dtonnt ate: तथा FH aa: किया # एतत्‌ पाण्डुशेष्येनं लि्खिंथाऽऽवापोद्धारिण^ शोधितं पत निवेशये दित्थाह कालयानः, ^पूर्वपचस्य भावोक्तं प्राद्धिवाकाऽभिलेखयेत्‌ | पाष्डलेष्थेनं फलके ततः पचे शोधितम्‌"""-दति Me SAT ATTHG, नातः परम्‌ | WATT नारदः - “शरोधयेतयववादन्त यावन्नोत्तरद शनम्‌ | श्रवेष्ट्स्योन्रेण निषत्त शोधनं भवेत्‌'-दति | हेथोधादेयौ vars विविमकनि ठटरस्पतिःः- “org विवर्जितो यश्च ag पौर विरोध्त्‌ | Tee वा समसस्य प्रतौ तथेवच aa वा ये पुरग्राममहाजनविरोधकाः | शअरनादेयास्तु ते सवं व्यवहाराः प्रकौ्तिताः न्यायं वा मेश्छते कठं मान्याय वा करोति a | लयति wea तस्य पशो मिद्यति विरुद्धं arsfreg वा इवष्ययौं निवेशितौ | एकस्मिम्‌ यच gat तं we दूरतस्यञेत्‌

~~ -~ ee ee ee कक 9. == ~ ~~ -~ ----- ---+* ~~~ =+ ~~ ~--

* fantfuaa—rfa ate | ` कु्बद्न्धायं at,— aft ate |

[वीं

09 मा जा tenet

(९) छावापः पूर्व्मलिखितस् नि ange | उदारः पु गिैपितस्या- uaa: | |

BICTERNA | ` (८,

उकात्तमत्ताभिष्ते भहापार्तकदषितीः

-भञतिदद्धेगाशाख विज्ञेयाः धभिरसराः

पचः प्रोक्षसवनादेयो वादो शा्गु्रेष्तथा |

यादृम्बारीः चः षणो पाद्मलंस्कथथाभ्धदम्‌

पौ तिश्रयमोंभित्य senate विवकितिम्‌ |

खा॑सिद्धिपरे वादौ पूवेपचः उच्यते"--इति दति प्रतिश्ायादी निरूपितः

“कण्डे

अथ TATA निरूष्यते।

we यान्नवस्कयः azeria, - “श्रुतायच्यात्तर लेख्यं पूवषिदकषभिधौ"- दूति | तदेतद्‌ ठरस्पतिविटृणोति,- “यद्‌ चैवंविधः प्तः ऊन्पितः पूवेवादिना | दद्यात्‌ तत्पचमम्बन्य प्रतिवादौ तदोत्तरम्‌ विनिदिते yaad ग्राद्मागादव््रिषिते ` परतिज्ञां fae लेषयद्‌ त्तरं ततः" इति | eat खतः arent नदापनोयमिष्धाह" स्एव,- “पूवप यथां हु दथादुन्तरं चः। Waray द्‌एपनोयः. स्थात्‌, स\मतदणिर्पक्स. \\

1 [वक का eee ~

वाव ana

९९} रथाच प्रधी यदि शय मृ शातुं प्रवतत, तथा CIWS gue दापनौय cae |

us पराश्रमाचवः।

fragd श्रयेव्धाम* भेरद्धभधदभिनः | थथापक्रषणं दण्डः ताडनं बन्धनं तथा?-दति उकरशचणमाइ प्रजापतिः, “qee व्यापकं साध्यमसन्दिग्धमनाकुलम्‌ | श्रयास्यागम्यमिव्येतदुकशरमदिदो विदुः"इति हारोतोऽपि.- “Gage सम्बन्धमनेकायंममाज्ञुलम्‌ | श्रनण्पमव्यस्षपदं व्यापकं नातिश्रि सारण्तमसन्दिग्धं खपरेकां सम्भवम्‌ | श्रधिंज्रवसमूढाथं देयञुत्तरमो दशम्‌" इति सखपरेका शग्रम्वं अनवगरषितखपचेवदे र, सम्यणखपमिति था- वत्‌ षडसोक्रन्दातुमसक्र प्रति काल्धायम ्राह,- “शला लेख्थमसत्यां प्रत्ययो कारणाद्यदि are विवादे थाचेत तस्य zat धंश्यः"-दति HANS कारणथं WHYTE नारदः | “श्रालोनलार्‌ Hara प्रत्यौ सखतिविभ्रमात्‌ | are प्राथेयते यच तच तक्षभुमरेति एकारं ्यरपञ्चाह सप्ताहं पचमेववा | , मासं माखजयं वपे शभते ग्रह्मपेशया"-इति तज ्वस्यामादइ सएव,

वावव्यककककयनाायकााका CAO tS PA SP PACS PASSA SSS SA SST SN EERE I

° भिबः सामः+--इति कार

यकि विक oF

अवहारकाखम्‌ | we

“ae: wa agare:* मासेऽतौते दिनं चिपेत्‌ |

षडष्डिके चिराचन्ते mary दादशाब्दिके

वियद gure मासाद्धं वा लभेत सः

मासं चिंश्छमातौते जिपचं परतो भवेत्‌

NAMA AAAS age Aare |

कालः संवद्सराद्वाक्‌ खयमेव यथेखितम्‌"- दति काव्यायमोऽपि,-

“qaqt जरोन्यत्तेऽमनस्के। याधिपोडिते |

दिगन्तरप्पञ्चेन matt व्रस्तमि

मूलं वा माक्धिणो वाऽय परदेशे feat यदा |

तच कासो भवेत्‌ UR खदे शसमागमान्‌

दत्तेऽपि साले देयं स्यात्पुनः कायस्य गौरवात्‌"इति कालदानस्य विषयमा नारदः

“गहनता दित्रादामा ममामर््यान्‌ सतेरपि |

चछा दिषु रत्‌ कानन कामनत्व्वुभरक्छया--दति ama दप्रयति पितामहः -

“षछेापनिधिनिद्पे; दान wane |

शमये द्‌(यभागे कालः काव्यः प्रथन्नतः"--एति

इशस्पतिरपि,-- “म्ारसस्तेयपारव्यगोऽभि7ापे TATA | * तदा वाद्‌ः,-- ति का० |

{ अलसे,--दति शा ae

] mata निभिक्तेपेः- दति कार |

ud UCTHRBISF: |

sat निवारयेत्‌ तिभमक्रासेऽपि watt: che कात्यायनोऽत्रि-

“धेनावमड्शि शेम ety प्रजनने तयां |

न्यासे यावित दन्ते तथेव क्रथविक्रये +

कन्याया दूषणे Ga कखे सारसे विधौ |

उपधौ कूटसच्छे agua उिवादयेत्‌”-दति उपधि्भयादिवगान्‌ प्रापनं काव्यम्‌ | उत्तरस्य भेदाभादे मारदः +~

"मिथ्या सम्प्रतिपनिख प्रत्यवस्कन्दमं तया |

MSG AT: प्क्राश्चलारः शासवेदिभिः-इति॥ मिश्यादरोनां खद्टयमाह ररस्पतिः,-

“श्रभियक्तो ऽभियो गस्य यदि कुय्धा त्तु निषवम्‌ |

firat aq विजानौयादु त्तरं BTCA:

्रत्वाऽभियो गं प्रत्ययौ यदि तत्‌ प्रतिपञ्चते |

भा a सन्मसिपल्तिख् wreafafgeerear

शर्थिनाऽभिदहितो थोऽ्ः प्रत्ययो यदि aera

प्रपद्य कारणं ब्रूयात्‌ प्रत्यवस्कन्दनं रि तत्‌

श्रा चारे णावसन्लोऽपि पुनलंखयते यदि |

म॒ विनेयो जितः ga प्राङन्यायस्त॒ डचते--दूति प्रजापतिरपि,-

भयावदाषेदितं किचित्‌ मग्छमरन्धमिरायिना |

तावत्सवंमसम्भृत^मिति मिश्योश्तर सतम्‌

= at meee eee ~~ ~ ~ - NE षि ND EN ay 1

+ द्त्यमेव पाठः सम्बेन्र। मम तु, तावत्‌ सब्बमसद्खतः--ह्ति पाठ प्रतिभावति |

वयहारकाङम्‌ | ge”

“Safe वो aed मूरवाश्ाधिसंयुतः* वेदादौ होयेत नाभियोगकु सोऽरंति mary! साचिणसेव क्रिया ver मनोविणएाम्‌ at feet देशि योमोहात्‌ किादेषौ उच्यते अह्कामादनुपर्थानात्सद्यएव प्रहोयते ्ररोलयुक्तोऽपि HET म्यो बन्भनमरेति दितीयेऽहमि दुवेद्धेविधाशस्य पराजयम्‌” दति टशस्पतिरपि,- ““श्राहृतोऽयपलापौ मौनो शाकिपराजितः | स्ववाक्यप्रतिपन्नश्च Kraay चतुर्विधः,,--द्ति। रौभवकाणावधिमाह घण्व,- “mart तु परेण मौनरत्‌ मप्तभिर्दिंनेः सादिभिः aqataa प्रतिपन्नश्च रोयते'"-एति | देविकादिविन्निन यथोक्रकाणातिक्रमेऽपि नापरा द्याह षएव,- "देवराजक्ृतो दोषः तत्काले तु यदा भवेत्‌ अवधिल्यागमाजेण भवेत्‌ पराजितः" शति हौनवादिमो दण्डेन पुमर्वादाधिकारमा काल्थायनः,-- “श्रन्यवादौ पाम्‌ पश्च क्रियादषौ पणान्‌ ew | नोपथाता दग ata षोडुगेव मिरत्तरः आहतः प्रपलायौ पणान्‌ पादु विभ्रतिम्‌

जिराहतममायातमाहतययपह्ायिनम्‌ ¦

[क 1, 21 11

* ` # मूलवाक्याधिसंय॒त,--षति कार | { सभ्यानां,--द्ति ate | { इत्थमेव पाठः gare | प्रप्रलायिनम्‌,--दएति पाटल fag fet: |

ge

‘ys! पराश्रमाधयः।

पञ्चराजमतिक्राशतं farted मरोपभिः--दति | यकु तेनेव पुनर्वादनिषेधः कथितः, 'दाषानुषपं संराद्यः* पुनर्वादो विद्यते-इति | तरैतखन्यङृत विवाद विषयम्‌ | दतर तु प्रहतहा मिर्गासोत्धाइ ATCS:, “सर्वेष्वथ विवादे वाढले नवसौदति | पश्एस्तश्म्यणादाने wretsaaty होयते”-एति नावसौदतोति प्रतिज्ञाता्थेखख eta दृल्युपपादनम्‌ | श्रनापवादमार कात्यायनः, , “इभयो लिखिते वाक्ये प्रारभे काय्येनिणेये | अयुक्तं तच यो ब्रूयात्‌ तसमादर्थात्ष होयते"-दति याज्जवरक्योऽपि,- “सन्दिग्धा weet t यः साधयेद्‌ यञ्च निष्यतेत्‌ | चादतो वदेत्‌ किञ्चिद्धौनो दण्ड्यञ्च रतः“--ईति॥ श्रज दण्डग्ररणेनव ₹ौभत्वसिद्धः पुनरोमग्रहणं waa हौयते दति Weary वादमुपक्रमतोर्निटृत्योदेयोर पि SATS बहस्पतिः, “gaan सन्निविष्टे faut सम्प्रवर्तिते | wma ये faet यान्ति दाणाले. दिगुणन्दमम्‌-दूति तदेतन्नेपवश्चनविषयमित्यादे कात्धायनः,- “आवेश्य प्रटष्टोताये प्रमं याजि ये faa: |

णि 9 पी णी कि मि गी कष्कककायक

# इत्थमेव पाठः GAY | ममतु, म्राह्य+-- ति पाठः प्रतिभाति | होगवादौ दोषानुरू्पं दख arg इति तदथः |

+ खतम्न,-दति का |

t बाद प्रक्रमतेारप्रड्सयो,--दति wre |

VIVA SH | a

ay दिगुण्दण्यास्डुदिमखमा gre a’ —cfa एवञ्चावश्चनया प्रगरुल्ालां दण्डः अतएष aya तिः,- “पूरबोशषरेऽभिशिखिते प्रक्रान्ते काय्येनिएंथे | इयोः wnat ससि: स्य. ट्यःखण्डयोरिव साकिषभ्वविकष्यस्तर भवेन्तचोभयोरपि | दोशायमागयोः afai पङु््यातां freee: * प्रमाणशघमता यभ भेदः शास््रचरिष्रथोः | तज राजाश्चया सस्षिहभयोरपि श्ष्यते"-दति अचिप्रत्यथिनोरभियोगे कञ्चिजिवममाह याशवबक्धः,- “श्रभियोगमनिस्लोय्यं भेनग्मह्यमियोजयेत्‌ | अभियुक्तं चान्येन नोक्तं विप्रङृतिखयेत्‌ "इति mafafa afaa वादिना मन्पादितमभिधोगमपरिइ्य यतेन पत्यभियोगं कुर्यत्‌ wet! «wearin भ्रमिथुकर प्रह्यधिनि तदभिबोगपरिहारात्‌ पुरा खय नाभि्थुष्यात्‌ | उभाग्वा- मपि प्रतिज्नारूपमु त्तरषटपं वा वलोयत्‌ यथाऽभिदहितं, न्तयेवं षमा- faq निर्वाह्यम्‌ प्र्यभियोगनिषधसख्य श्रपतवादमाद षणव “कुर्य्यात्‌ waft Fat माहसेषु ""--दति। RAY वाग्दण्डपारव्यात्मके, सादषु दिषशण्छादिनिमिशप्राण- व्यापादनादिषु, ्रद्यभियोगबन्मवेनामियोगमनिन्तोर्खापि काभिः योक्रारं प्रत्यमिथोजयेत्‌ | मखच्रापि पूवपच्वानुपमईमरूपव चानुत्त- दोलावमागौ यौ सनिं gata तौ तिचच

मवेदुयत्रोभयोर्पि | कौ,-- रति Rae: Wid: BAMA: |

+ qfufa,—afa wie ae |

get HENCE | TAIT yee fareatare nfararace अगपदरराराश्वः समा- नः सतम्‌ नाज यगपद्मवहाराव . - अ्यभियोगोपदेश्रः, अपि तु न्यनदष्डपराप्रये श्रधिकदष्डनिष्टलथे तथाहि श्रने- are ताडितः unt वेत्यभियोकृः पूवेमहमनेन ताडितः wat षेति पर्भिचोगे दण्डार्पतम्‌ | यथाह काल्याचनः,

“पूवेमाचारयेदषद्छ faut छात्‌ रष्डभाक्‌।

पश्चाद्‌ थः सोऽ्यसत्कारो पूं तु विनयो गुरः"-इति॥

पञ्चाद्यः WTA, सोऽ्यसत्कारौ दण्डभाक्‌ तथो मेध्य पूर्वर

दण्डाधिष्धम्‌। TAA: |

चथ क्रियापाद्‌ः।

त्र याश्चवशक्यः,--

''बतोऽयौं लेखयेत्‌ सथः प्रतिन्ञातायेखाधमम्‌"-दति | awufag a विद्रणेति-

“ydare विशिखितं यदकषरमग्ेषतः।

aay दतौोयपादे तु क्रियया प्रतिपादयेत्‌"”- efi क्रियाया उपयोगमाड काल्धायनः+-

“कारणात्‌ पूरवेपश्ोऽपि उन्तरलं प्रपद्यते 1

श्रत: क्रिया षदा star पूवेपचस्य साधनो"-दति॥ क्िथाभेदरानाह टरस्यतिः,

“fuer frat मोक्ता मानुषै रैविको तया

एकेकाऽनेकधा भिन्ना विभिसस्वगेरिभिः।

1

[क 1 1 imam aetna RN nae

कपत्वेनानु्तरत्वा त्‌,- इति we |

WAV a | ११५ सादिलेख्यामुमानगद्च * मानुषौ विविधा कवा `

धारो दरादग्रभेदस्त शिखितं टधा सतम्‌

श्रलुमानं जिधाप्रोक ` मामुषो Sheet finer’ इति। देवमानुषकरिययोः मानुथाः weer काद्याचनः,-

वेको मानुषो ब्रुयादन्यो were रै विकौम्‌

मानुषो तच होया aa eat किथां गपः- दति मानुषयोः षाकिलेस्थयोः सभिपाते sere प्रा्यमाश षएव,-

“क्रिया तु देविक प्राप्ताः विद्यमागेषु erfeq |

लेख्ये प्रतिवारेषु दिशं नस सारिः" ए्ति। लेण्यप्राबष्यष्य विषयमाह षएव,-

“पूगञ्रेणिगणदौनां er शितिः परिकोल्िना

तस्यास्य माधमं लेख्यं fee ae afew: —cha y afanqera विपवमार सणव,-

“दन्तादन्तेष्‌ शत्यानां खामिनां निणये शति

विक्रियादानमम्नन्धं क्रौला घनमनिष्छति।

ga माय चेव विवादे समुपस्थिते |

arfau: साधम ata fea शख्यकम्‌"-इति॥ क्चिदनुमानं प्रबलम्‌ श्रनुमामं नाम afm: | याज्नवश्कयेना-

नुमान्छामे शुक्तिग्दपरथोगात्‌, -

“mara लिखितं मुक्तिः षाङिएसेति कौ सितम्‌ "दति a

yfamaae विषयमाइ यासः,

[विक "7 1 1 11

* aaa: Go श्चार एुक्षकयोः | + fara दैविकी siter,—xfa यग्यारौयः पाठस्‌ wate | t जियादानस् सम्बन्धे mer धनमवच्छति,--इति ae We |

१२४

पररभिरमाथवः।

Coewad प्रकाशश्च दिविधं arg |

प्रकाशं afefriia देविकेन रहःहतम्‌"'-दइति ward साङिभिर्भाव्यमित्यस्यापवादमाहइ zrafa:,—

“महापापाभिश्रापेषु fred इरणे तथा |

fea: काय्य परौखेत राजा aaa ated

दुटव्तुमानेषु fea: काय्यं वि्नोधयत्‌”-दति काट्यायनेाऽपि,-

“ona afeut aa fara शोधयेत्‌ |

प्राणम्तिकविवादेषु विद्यमानेषु सादषु

दिग्यमालम्बते वादौ ने ye तत्र साकिएः |

छन्तमेषु सवेषु साहसेषु विचारयेत्‌ |

wig feagen weg साचिषु वे शटगुः"-दति व्यासोऽपि

“न मयेतक्छतं पजं कूटमेतेन कारितम्‌ |

श्रधरौरुत्य तत्पज qa दिव्येन निणेयः

GHATS AWS AS लेष्यं कचित्‌ भवेत्‌ |

श्रद्दोते धमे aw का्थौ देवेन निणंयः- दति | कात्यायनः,

“oq खात्‌ सोपधं Bel सप्रननेश्चालितं यदि |

दिव्येन wha राजा धर्ममासनखितः'“- दति दियसाङिविकच्यविषयमाहइ षएव,-

“परक्वान्ते सासे वादे WEA दण्डवाचिके |

बलोद्भतेषु arity -वाधिणो fewer

2 NA ee a Otte me SS

es 1)

* fadayca,—ala कार |

अवहारकासरम्‌ | ae

खणे Fei सादो वा युक्तिलेर्था थोऽपि | देविकौ वा क्रिया पोका प्रजानां हितकाभ्यवा"-रति युक्तिलेगेव दिता. “arfeut fafa afm: प्रमाणं fafa far: | शिङ्रोटेस्ठ क्तिः erfcerare विषादयः" एति चोटनादोनान्‌ सुख्थामुकरपभावमाह एव,- “सोदना प्रतिकालन्तु युक्रिनेग्रसथेवच" | atte: wae: परोक्तः तत्दणं 1 साधयेत्‌ कमात्‌ "इति श्रष्याधेसेनेव विरतः. “mahal चोद्यमानोऽपि प्रतिहन्यान्न are: | जिधतुःपञ्चरटवो वा परतोऽथं warety चोटनाप्रतिषाते तु य॒क्रिणेशेष्तमन्विधात्‌ | देशकाणायसम्बन्धपरिणामक्रियादिमिः युकिष्वणसमर्थासु शपथेरेनमरयेत्‌ | श्रयकाले बलापेखमन्य्बमुटतादिभिः {एति प्रपथमयक्निप्रमाणव्यवम्बयाऽवण्ये परिपाणनोयम्‌ {। तदाह नारदः "प्रमाणानि प्रमाणक्ञेः पाणनोयानि ear: | सौदक्ि fe प्रमाणानि पुरुषस्यापराधतः""- दति प्रमाणज्ञः प्रमाणं प्रत्याकमनयितव्यमिल्यर्थः। यभ प्रमारेगिकषं कतं ग्रक्धते, तदा रालेच्छया निणयः Ha ATTY पितामहः, ` » युतिर्रलयैव चरति We | 1 भरश,--दति ate | ¡ बलापे्लमन्वियः स्तादिति, -एतिः कार | quer tea

sarge fefa:, -दचन्धत्र TS" | § -श्रपरथमयद्िप्रमाणथवद्या, सा अबधयं ufcarestar,—ufa we |

q* पराशरमाचवः |

Jel चच fran afi सारिः |

a दिग्यादतारोऽसि प्रमाणं तज पार्चिंवः॥

frag ये wer: श्यवांदासयन्दिग्धकूपिषठः |

तेषा नृपः प्रमाणं खात्‌ सवं तद प्रभावतः" इति दति करियाभेदा निरूपिताः |

भथ साधिनिरूपणम्‌ | तज afamari निर्वक्रि मसुः,- “समलदशेनात्‌ सा्ौ अवणाशवैव^ सिष्यति"-दति | विष्णुरपि “समशदगरमात्‌ साच्ो अवणादा”-दति। VERT ay मनोव्यापारो ae, सारो “ara द्रष्टरि सज्ञायाम्‌ इति पाणिनिस्मरणात्‌ | साचिएः प्रयोजनं मनुराह, “खन्दि्धेषु तु araiq इयोरविवदमानयोः। दष्टञ्ुतानुग्धतलात्‌ afew यक्तद रनम्‌” दति साचिलश्णं सएवाहइ,-- “arm श्र्चिमिः काय्यं व्यवहारेषु afew: | ताद शास्‌ स्मवच्छामि यथा arerang तेः ग्दिणएः पुजिणो मौलाः चभविटृशद्रयोगयः way साश्यमदन्ति ये केचिदनापदि | sat: सवेषु वेषु कायाः कार्ंषु afew: सवैधरममविदोऽशा विपरौतास्ठ वजेयेत्‌”- इति |

[11 विकथा 1००००2०1 वा 1

` * सच्च लयेव,-इति ate | 1 wfafin,—zfa ate |: { avew,—xfa wre |

4

¢ tak sible

Re

४१

a j

00

tae pt!

" ५. > 4

1 सदि +

०२.५५ ष, we FE Ad adie

he an $ us fh Ww

fe ५: ५६९५ ber

ae नधः +~ Vs,

yr?

#6

vag Boe Gh

तदिरोशरम्‌ an { 4 गित + cg oy an oy ५/९. ५1

4? ¢ i Neopets ad gh ats fe ,

>. ia van षुः .{

* 44 Aah ; \ heed + ig deat ie

५८ प्रराश्षरमाधवः। `

पुरा. मेधा प्रभितमङ्गकारोग्तरं सतम्‌" सङोतमिति Ward कान्तेन कतं मथा | पुरा weld व्यमिति चेत्‌ वच्श्चरि तन्‌ za मयेति वक्ष्ये मया शेयमितोष्श्म | सन्दिगधभु तरं शेयं यवहारे बुधेसदा बल्‌।वलेन चेतेन साहसं खापितं पुरा RMA तदन्यायेभितोरितम्‌ |

Ha दन्तं मया साद्धं सरखमिति viral रदित मटर! यत्तदि हाग्यापकं खतम्‌ qaare fart यावत्‌ ameda निषेश्रेत्‌ | समः werd पूवं a तद्मुस्तपदसुश्यते तक्किंनामरसं fafae श्रौतं प्रदाखति। निमृढाधन्तु ARTIFACT व्यवहारतः किमेनेव सदा देयं मया देयं भवेदिति:

[काक 1 tm a may tana mn om ne mma oe semana कि षा ete TES yn 718,

+ जितः पसा स्या जन्तुर्येऽ्सिन्निति माषिरम्‌ | पुरा मया प्रघर्मिति प्रतं चोत्तरं सतम्‌, ति काण | उभवमप्यसक्तनिव प्रतिभाति क्रमप्राप्तस्या्ल्पो स्रखेवातच् शा- ख्योतुमु्वितल्वात्‌ |

{ देय मसेति aaqet,—xfa का० |

भावितम्‌+--हति ate |

इत्यमेव पाठः सर्व॑ ¦ ममतु, तदद्ध,-- दति पररः प्रतिभाति |

| faeces प्रदाख्यति;ः- दति कार |

MTVU | ५4

एतद कुललमिच्युक्युसरं तिदो विषुः काकष्य कति वा दन्ता" सण्नौल्यादि areca श्रसारमिति तन्न wae मोत्तरमिते“--द्रति | aa चिङ्केग्यारेरयसथः | रिवाट विषयस्य aitferenrfegare वणमिगेषादिकं fog, रीरधणटङ्गलादिगाफारः, swerfe war रमयः काल्विगशरषः एकेतविप्रेषो वा. AMAA ATT चक्क, जानता at सभ्यातामपरिचितया भाषया षद, वेदभयममसिद्धम्‌ | are एव मया म्ब दयं प्रतिदसलमित्यक्का, पुनरपि frame भ्रा प्रति- afzatguenefaaarat a रन्तमिति agora, afe- सद्धस्‌ ; oa merce fra दति comer मि fees परिकश्य तदुभयम्‌ सहोतमिल्यनावेचयेत awe भति प्रथमतः ASAT तेनं कर्यं तत्वाय भया Bafacaarg प्रहनानुपसोगि कि्चिदुक्ता पक्चापुरौतभिति यद्भयात्‌. दुन्तरमतिभरि। म्य मन्यु सति मन्देहमनमःरे तप्यनिश्यो मवति. तनक मय) देयमिति यदि व्रथात्‌, ATTA! यरः Read प्रद कचु प्रका SAT पन्दिग्धम्‌ | ule परःईशत्रष nfaaret म्प चेण zafata ब्रूयात्‌. TERUG, VATTUAAT( मया दानति दक्ष सति, श्दराकाफमामकानि युश्रत्मनियोमिशन्दवाच्यवन्‌ विभाधितामीन्धेव- मपरिद्धः पंटरमिरितमुत्तरसुकम्‌ ! seme निजाय प्रशिति- यु्तरमलुद्धः went fragt: एतेन दा्दिन मिग

<^ me = wnat «et कमण we cee 0 merits ere foe SED eirmmet srmamanetine =

+ काकल्य दन्तानोखन्ति-४ति ae | + eanfegtaustefequat दा, क"

ETUC

` दौ्बष्येन वा कििन्धाषमं एतमिष्यारि a परतश्च शअनुकलात्‌ शक्तरमन्धाथं भवति एतं Safafa परतिक्लातद्य were एतदय- भिलयु्तरं दोषन्‌ | सद्धं ATS ae देयमिति प्रतिज्ञातस्य सददध परभिंतभिनि ana सति fed वदति, भरन्तु लोके यः कः ऽपि किमश्टहौतनामरमे दाष्टतोल्धेवमप्रसिद्ध शष्ठेन व्यतिरेकमुखेन ` काकखरेकाभिरितसुत्तरं निगृढ़म्‌ | fata सदा ea मथा देखभित्यनोभयोर्ग्योरारेधभिति वा पदन्छुटसम्मनादथस्य अनि- श्यत्‌ किमिति काक्षा यञ्छमानस्यायनिखयादिदशुक्तमः गा क्मसम्‌ afara सुवणेश्रतं सतोतसिल्यमिधोगे are tease जानालोति पक्थे रति व्यत्यस्ताखयेम card वसो ब्रूते zeta शतं वद्वमात्‌ सुवर्णनां पितूने जानामौति। तदिदमुन्तर aren: मन्यम्‌ ¦ काकदन्तादिष्षिथं निषुप्रयोजने श्रसारमिति भकः: स्थमुभराभासमार कात्धायनः,-

“THAT BNA कारणम्‌

मिथ्या Sane यत्‌ dat तद्तु्लरम्‌"--दइति॥

we aya विग्रदयति.-

“a चेकश्िन्‌ fare तु करिया खाद्यादिमोद्रयोः)

व्ा्ंसिद्धिरभयोगे चेक सिंदादयम्‌ दानि ! भिथाकारणणेन्तरयोः at श्रधिप्रह्ययिगोदयोरीि fra wate

* निथा Baeza, —afa कार |

RATLSUGA | at

“fener किया yaare कारणे प्रतिवादिभि"-र्ति खर wit) तद्भयमंकस्मिन्‌ व्यवहारे free थया धुं Sa yaaa 'टोतमिष्छमिधोगे gare zee eon गदते अरतिदत्तमिति कारणप्राङन्यायमङर प्रद्यर्थिनएव भिथा- CU )

“प्ारुन्यायकारणोक्तौ तु प्ययं मिमत सियाम्‌ --xfa arog चथा सदतं स्तं wae BUR न्ववशरमार्गेण anita sf श्वन्‌ AEM जपचेक चा न्याये गरसिर्भा yaaa ररनकप तु भा तिलेष्धारभिः wrafaralyay- fore. (कमस्य सङकर पपि gua. यथाऽनेन qi coy. प्रत verte गसनानौद्यभिशोग ; मद्ये सुपण area प्रति- pata यमान्‌ a गधन, सस्तदिधयं एव न्यायम्‌ पाज दन; एतं चुल. ; wot पन्तं यौगपद्य, ae नन्व पम he रय कदभमिद्धः cateatbaceaa फमष्धःयिमः चरमः 2 योम) च्छेदय) भविः | पमदभयोः सङ्गरः, पथ यम्य Hess aay नरः Rear नम ART: प्र प्र्तकिसिव्यः ¦

पादन्यासो सपादन ; २३ मगति पम्‌ CAT FATA

ey ale पाटः 2.4 सम प्रा५न्यारे, ~ द्रत पादः पाति ; इन्यत a fat सत्‌ मम्‌ A, WAPI ae fed OTe: TREE

खयमेव Wis! Bae | स्मद्‌, VTMTAA, ef UES: afearaarfar |

प्नकमयोरस्कम,-- दति eae i पर्वादल्यविषाग्टगोपादानम,- इवि Ho ¦

etary यथा हारोतेनोकरम्‌;- ` “faired कारणच्च खाताभेकण Bea

खल्यापि aurea तत्र ore fag” Tea,

“eq प्रयतार्थविषयं aw धा श्यात्‌ क्रियाफलम्‌ |

eat ay विक्चेयमश्षकौ एंमतोऽन्यथा-- दरति | कौप भवतीति गरेषः। रैच्छिवकरमं भदतीत्यथः। तच प्रथतां विषयं यथा, श्रनेन gai ean वस्त्नाणि ॒ग्टहौतानौ प्ह्यमि्ोगे, सुवं शपकशतं varie प्ठदौतानि प्रतिदसानि Sati wa भिथ्योत्तरं प्रसविषयल्यादथिनः क्रियामादाय प्रथमं wwe. wea, पश्चादष्लविषये व्यवहारः | एवं भिथ्याप्राड- न्यायशद्करे कारणप्राडन्यायसङ्करे योजनौयम्‌ यथा तस्िन्ेवा- भियोगे, सत्यं सुवणं शूपकंश्रतं weld दास्यामि, वख्ाणि तु रौताजि प्रतिदन्तानि वा दस्बविषये wi पराजित दति ` चोरे, स्मतिपकेभरि विषयेऽपि तज करियाऽभावात्‌ मिषथो्तर- कियानादाय व्यवहारः प्वन्तेदितयः।

अत्धमेन पाटः सव्व ममतु, तधोत्तराकरोपादानेन,-- इति पाटः प्रतिभाति |

+. कत्यमेषु पाटः aware | Hag धवो रूपकशतं दग zeta, वद्ाथिं zeta प्रतिदक्तामि वैति," ईति प्राठः प्रतिमाति।

द्रस्यमेव प्राठः aay) ममु, सि योत्तरस्छ,- इति पाठः प्रति नालि |

अवार ज्ाक्षेम्‌ | १६

aa तु भिथयाकारणोन्नरयोः ह्लपशब्या पित : यया ya हिकया afgecfa, इवं Mater श्रमुकक्तिन्‌ कारे मष्टा we दृष्टेति, wag faa प्रदभितकालात्‌ पूवमेव wae जता सेति वदति ददं तावन्‌ पमिराकररणसमथलात्‌ नानु- रम्‌ नापि भियेव, कारणोपन्यामात्‌ नापि कारणम्‌, एकदे श्राश्युपगमाभावात्‌ FHT सकारण मि्योकलरमिदम्‌ | ora प्रतिवादिनः करिया कारणे प्रतिवादिनि" रति वदमान |

मनु <भिष्याक्िया gaara” cia एववाहिनिः कस्मात्‌ शिम भवति ? ` तय परद्धमिश्या विषयतयात्‌ करप प्रति दि नीव्येतदपि नसा च्छक रफविषयं। भवत! सतत्‌ म्रष््रापि कारणो ara लियामशवरेतष्टपलान्‌ ्द्धकारणेत्तरस्याभावान्‌ भमि ङ्कारो तर aha UR गदे RA NTA क्सय farenteaay 1 aut aa RIANA BRA a धाग्यामिः एत्वादिति। aaatt- टाकते a nfamraraR meron atta ane | एनश्च wary MEqna,—

“Feremrarcmetalsta यां arena” eA

ary सिष्याप्रदन्यादयोः wee PO : यथा रूपशतं ATTA हमि Ferra nal geet रभते ति. vara वादिभिः एव क्रिया | [ता oa श्यत्‌, न्ति मदितुमुिनम्‌ | | दृव्यमेव पाटः न्न , भवतु

पाठः प्रतिभा | 1 दद्ानिः--एनि +"

AHS BHT afaei.—Fta

१७. प्रयाहरभाहवः |

'प्राख्यायकारणोक्तौ ठु. प्य .निर्दिेत्‌ -जि्षम्‌-'दति ` ALATA | शद्धप्राडन्याचस्याभावादनुन्तरवम्रसङ्गात्‌। सम्मतिपन्ते- रपि साध्यवेनोपदिषटश्य wwe सिद्धलोपन्यासेन साध्यलवनिराक- TOGA ATH | यत्र तु कारणपरारन्यायसद्धरः ; धया senate गरौतमित्यभियुक्तः प्रतिवदति सतयं wei प्रतिदन्तं Fate वां प्राङ़न्यायेनायं पराजित दूति aa प्रतिवादिनो वया- ददति कचिद्रादिप्रतिवादिनोरोकस्िन्‌ व्यवहारे क्रिया्रसङ्ग दति निषेयः। निरुत्तर प्रत्ययिनं प्रति कात्यायन are, “उपायश्ोद्यमामस्ह THAT यः | query सत्नराचे जितोऽघौ दातुमदति--दति eared दशयति नारदः “पूर्वाद्‌ परिग्यव्य योऽन्यमालम्बते wa: ! ae rast वै गरः समथाभिहितं" काय्येमभियुक्ं परं वरन्‌ विग्रुवंञ्च भवेदेवं रौनन्तमपि नि्दिेत्‌ satel ज्रिवादेषौ नोपस्धायो गिर्क्तरः ` श्राहतोऽणयपलापौ at रोगः पञ्चविधः सवः"--दति am वादिनो विटशोति सएव.

+ CTR TT TO

{| rete कन toe पि पि 7 LY AE TREE =) 4 1

+a wasfuted,—afa ate | इत्थमेव पाठः eer | आहतः NTE च,--इति पाठक मवितु. सुितः। वक्त॑माणकाश्यायमवनने वधा Vy | वं प्रर

UAW BAA |

Brat sfu, - “yarat: qfaut aban gala मत्यतरारिम्‌ शरौतस्प्रात्तङियायंकाः विगतदर पमन; atfaur wander प्रूरयञ्चापवा fea: | aaa: साफ spar णादि त्िजामता'"- दति धाञ्जउन्व्यऽपि,--- qfaat दानप्रपेताः दुनतोना; waa : METAL समवः gave धनणन्नाः | amet. सिष्य seas, प्रचय Gua माणः: alae awe फटा wrerfaleean | = १५५ » = wf [हि 4 ; निनि age सत्‌ भवपु वदतः 7 प्र{्षपुरूपा, wy ay ghar,

सतप aaa [स्वयः eng सचि - दति

क्ष्छासाद TEU `

“age YY पद्ध ठा Bq aia aL |

Sut {तटा pdr a ५41 पत -- दति धत्पुनलेन ना

“Saag, सवटिकराग्रादौ कान्यस्य |

9 भ्म, 11

030 प्रखः{ए wd <f 11५५] 1442 +g

gratsfa,— Gory Fgh धमज KA Tiber `

~ +!

qu

११ प्रराश्र्माधवः।

प्रमाणमेकोऽपि भवेत्‌ साषसेषु* विगेषतः"-इति कात्यायनोऽपि),

““श्रभ्यन्तरस्तु विज्ञेयो साचिष्येकोऽपि वा भवेत्‌"-दति तदेतत्‌ सवैमुभयानुमतसा चिविषयम्‌ | तथाच नारदः,

“उभयानुमता यस्तु दयो विवद मानयोः |

a साच्येकाऽपि! साचिले sea: ara संसदि" एति

साविषु वर्ज्यानार भनुः,-

“नाथंसम्बम्धिनो नाप्रा werent वैरिणः।.

दृष्टदोषाः कत्तेया व्याध्यार्ता दूषिताः

सातौ नृपतिः कायौ कारुकङुगौ सवौ |

atfaat विलिंगस्यो agent विनिगेनः

नान्याधौनो वक्तव्यो न्‌ zea विकश्मषटत्‌

दद्धो भिभ्रुभको नान्धो विकलेदधिथः॥

मान्ता मत्तो नोन्मत्तो aya fea: |

WATT कामान्तौ A Rt नापि तस्करः दरति # मारद्‌)ऽपि.-

Reamer 1 1 1 OE ee SS NT OF OE NET tee bl eee Bere ee.

* aedu,—afe कार शा०।

1 यदपि का्यायमः-इति ate |

{ साच्छमेकोऽपि areta,—afa are | $ साच्छपिच,-- दति are |

TUTE RRA qs

“दासनेहतिक agegatareerfinet: | मन्ोक्प्रमन्तात्तकिंतवणरमथाजकाः मरहापथिकमासुद्रवरिकप्त्रजितामुगाः। THAR चियाचार होनकौवकु भो लवाः नास्तिकत्रात्यदाराग्मित्यामिनोऽयाश्ययाभकाः। एकेम्धालो afcat: श्रिभ्ातिसमाभयः वाग्दुष्टदेा षिगेलूषविषभौव्यरितुण्डिकाः | मरदश्चाप्िदश्षव शरद्रापत्योपपातकाः कान्तसारमिखानानिधतामधो यायिनः | furan समाना जटूपलिकपौशिकाः। ता विष्नुप ्टवरषानधवद् दकाः च्रघगरंस्थाकःतिष्फमगिदिनाप्रनदर्तयः | HAA] ग्यावधन्तश्च श्ितिसितरमृक शौण्डिकाः | aon frame गरभ्रणौगणाविराधिनः बधकंसितनयुपवः पतिनः कटकार कः कुहकः प्रत्यवमिनः तस्करो राभपरषपः

we ee

+ Rafan-end, afin, tha पाठः qerh णवं ५२१। [न a

भित्रत्रताः ee Clint tilt eet ¶1" fauna tt

शा मेःटन्ताः--द्रव्यादि ale | b gaat श्ठावदन्‌ Past FATE परवशो शिका, we

§ बन्धकख्िधक्चत्‌ Past पतितः ककार दरति pte |

tr YCTATATIR |

मनुग्यविषमांसाश्िमधुकौ रान्बखपिंषाम्‌ |

विक्रता ब्रह्मणैव द्विजो वाधुषिकथ यः

च्युतः खधम्मात्वु लिकः erat waaay:

faa विवदमानश्च भेदश्चत्यसाचिणः”दति

नेछतिकः पररग्भ्रन्वेषणश्रौणः। चाक्रिको वैतालिकः समुद्र

वणिक्‌ afore युग्मो दित्वविष्ष्टः। एकख्थालोत्यभ देधा- विग्रहः ; एका पाकमाधनयखथालौो यस्य सः, यदा पाकखालो भोज- erat वा एकं भोजनपाचं erat थस्य श्ररिषु सरतोत्यरि चरः, शचुषम्बन्धौ ति यावत्‌ सनाभय कात्यायनेन दभिताः,-

“"माटष्वष्टसुतास्ैव सोदय्यैसुतमातुखाः |

एते र्नाभययस्रकराः सच्छन्तेषु योजयेत्‌ दति

wernt azi) fare सङ्गहणएर चणादिव्यापारे नियुक्तः विष-

wat) श्रडितुण्डिकः सपेग्रारो। गरदो विषदः | च्रग्निदो गददा- दादिकल्तां श्रान्तः aA | निधूतो वदिष्वुतः श्रग्यात्रसायो प्रतिलोमजः | भिन्ञद्रो दुराचारः | समाटत्तोजेशिकनरद्मषारौ | जड़ो मन्दनद्धिः तैलिकः तिलघातौ arava: दष्टि्धचकः | नच वस्मचको ष्यौ तिषः। श्रघशसो परदोषप्रकाशकः | प्रौ ण्डिको मय~ विक्रयौ | tamara दयोपजोविका श्रात्मतिष्कम्मः ! कुहको- दाभ्िकः प्रत्यवसितः प्ररज्यातो fram wan: पर दोषद्चनाथं राज्ञाऽभियुक्रः। मेदरुत्विष्रनः | we प्रसिद्धाः कात्यायनोऽपि

ewes भि ee my धो त-क काण नोभ मा-क, = ~ = it

* व्वुाशराजिकपाते,--दइति ate | भोजनसख्थानं,- द्रति are |

VIL HATA |

"पिता aay: foray att गुरवम्तथा नगरगरामदेगरेषु नियुक्ता ये परेषु च" THUY एच्छेयुः भकारे राजप्ररुषाः” दति a एष्कयभवदीयो विवादः कोद्र दति तैम yal, सा faut भवन्तौति ara एतेषामशाख्वि हेतुमाह नारदः, “शमाचिणो ये fategr दाषनेनिकादयः। तेषामपि वालः eral wat न्‌ फट्‌ | बन्धवो चखारातिः ब्रयस्त मच्यमन्यया बालौ ऽज्ञानादमत्यात्‌ म्तौ पापान्यायाच्च। कृरटशत्‌ ेत्रयुवन्धवाः सहादेरनिर्यातनादरिः ऽनः! मातत स्न्‌ avg: प्रश्थोऽपि स्विः mages देशान ठेताःः.-द्ति॥ दरदस्पतिर्गाप,-; ““स्तनासादसि याः षण्डाः सदेवा कद्मुकाम्नया प्रविस्य दुष्त तेषु मन्ध वियत ofa याज्पस्क्यौ ऽपि, रो सिश्राम्दापमा gy प्रव्रितिता मरा"

gaia वचनान्त रनम्दापनःः- Tha

# प्रेष gala TY,

इत्यमेव प्राठः arg | वाप स्याता, एत ग्न्य वागन पट्‌ समीचौन, प्रतिभाति

[ रकोऽनुमनतू--एनि

६९.

Ho पराण्र्माचवः।

gmat सारिणामसमवे arate प्रतिप्रसवमाह नारदः,

“afaut ये निददिं्टाः+ दासमेक्षतिकादयः।

काय्येगौरवमासाद्य भवेयुसतेऽपि साचिणः"-इति मनुरपि-

"“स्तियाऽ्यसम्भवे काये बालेन wate वा

शिष्येण वाऽपि दासेन बन्धुना तकम वा^-दटति नारदोऽपि.

“aa चां सारसे चेव wea aga स्तियाः |

छणादौनां प्रयोगे दौषः सारचिषु सतः"“-द्ति॥ व्यात्रोऽपि-

“सादसेष॒ सवषु स्तेये TET

वाग्दण्डयोश्च पार्ये परोखेत साचचिएः"-दति॥ UGA arat दादग्रमेदस्िति, तान्‌ भेदानाह aeata:,— “लिखितो fait az: सरितः gagaat यदृष्छोन्तरमाचौ काय्येमध्यगतोऽपरः नृपोऽध्यकस्तया ग्रामः arat दादश्धा सतः॥ परभेदमेषां वच्छामि यथावदमुपूवंरः | जातिनामाभिलिखितं येन खं पिदनाम a नारं सलु याको लिखितः स्तः

9५ कोणा ७, ee

~ (ति 1 ee

+ इयमेव पाठः was) Gefen ये fafceu—afa तु प्रश्चन्त- रीयः प्राठः समीचौनः।

+ स््नौवधे--द्रति me |

t सदोषः+-दरति we |

वषार काणम्‌ |

घिधक्रियादिमेदोर्यन्रला च' woe | Wad लेख्यते यस्य लेखितः उदातः कर दव्यवहितो ay भ्रायते सण्भापितम्‌ | विजिक्कूुते यथागतं azar कौिंतः॥ WEY यः: रतः are} खणन्याभक्रियारिक्ने | maa yyw समा{रितः मोऽनिधतयते Fart द्‌ानमाधाने ज्ञा[तियनापदिश्ते | दयोः ममानधष्षजः वन्यम ९[रनभे [ननः श्रसिपरत्याय्वचने रणया परेतु यः। उभयोः मातः साः दृतेः उदप्पुनः॥ fara तु नन्तरे a: ईहन स्वयमागतः i श्रव Wig) RARER SEAT सतः यत्र मासौ fewer सुनपुञा aura | अन्य ear शिदयादु.परमािणम्‌ उभाभ्या यम्य fan काश्चि निवेदितम्‌ | मटमाचो विजयः aera अथिप्रत्यनिनोाऽपि यदत्त शता स्वयम्‌ | सएव aa माद्री स्यात्‌ विमा saan tt fats यवहारे तु पुनन्यायो यदा भवन्‌ | saa: मभ्यसदितः माच्च व्यात्‌ तत्रं नान्यया उषितं दारितं यत्र Waray षमत: |

= ee ee ene [1 शि १8 ome

+ सन्धिक्गियान्रियामदे स्तस्य वरदा, fle

TUHTAT YF}

aatsta* भवेत्‌ arel यमस्तत्र ane —zfa तेस्वेव arena पिगेषान्रमाद सएव “fafa दौ तथा net चिचतुःपश्च लेखिता TSA cal: द्याः तथा चोत्तरमाल्िणः दूतकः एच्छकाग्राहो का्य॑मध्यगतस्तथा | एकएव प्रमाणं शात्‌ नृपोऽध्यदस्येव्"-दइति लिखिताद वपर प्िग्रेषमाद नारदः, “खदोधंणापि कालेन लिखितः मिद्धिभाप्रुयात्‌ | रात्मनेव fades लेखयेत्‌” दूति | धत्युनस्तनेवोकम्‌- “श्रष्टमादत्छरात्‌ सिद्धिः arftaae साचिणः। श्रा पञ्चमात्तथा सिद्धिः यदृच्छोपगतस्य तु शरा दतोयान्तया वषात्‌ सिद्धिरस्य साविणः श्रा dag! मिद्धिवंदन्धत्तरषाङिफः"- दति तदेतत्‌ परमताभिप्रायेणोक्रम्‌ यतः सखमतशुपरिष्टाराद धएव,- “a कालनियमो इष्टो निणंये arfan प्रति, waved fe साच्चिवमाड्ः शाखविदौ जनाः

~ "न => "~~ -- = ~~ = +> = + ~~ ~ > न~ -~ = =-= +~ ~ -- ~

* अश्टतोपि,--दति यन्धान्तरीयः पठः समीचीनः | t खटिकाग्राहोः-- द्रति ate | $ शषा पर्ठवत्सरान्‌+-- ति शा० शण |

ववार ST | oe

यश्य ATA arg: स्तिः रोषे faery: | सुदौर्घ॑णापि कालेन ara} माच्यमरति'"- एमि साचिरोषोद्धावन विदधाति वरशस्पतिः, - “सा किणोरथमसुदिष्टाम्‌ wa दोषण दूषयेत्‌ wee दूषयेदादोौ तत्रमं दण्कमरति साक्विणो दूषणं era ५१ माक्िपरो्णात | sey wifaq ततः Taq काये व्रिगोधयत्‌"^- नि काद्यायनोऽपि,- squraet प्रभिद्धं यक्ोकमिद्धं तदापि वा! | मा {दण दूषणं गाद्मममाभ्यं नान्यदि णने'"- vin मरि प्रलिदादिना भाचिदृो रते arfam: Weal: THT: कममिदितो दोषः aaa तेति ने चर्या दुषणमग्यपगच्छन्ति. तदा a पाक्तिणः। भ्र नात्‌ fa. नदा gamarfem कृष क्रिया भाया) श्रय मन्भाव्रयित्‌ para. नट THATS तदनु:

सारेण दण्डः, यरि विभावयति. vat a a माणाः, W404

दुष्टाभवन्ति। नदाऽधिनः पराश्रयं fagaay निद्धितसान्‌ | भय

सादिणां दोषैः पन्यानां माध्याव न्य्‌

* दूत्यमेव पाठः aa) 8) ेत.-- tte TATA ae We समः; ५।*

+ eee पाठः Vas aura Was 44 नोनि मथापि वा,

डति ग्रन्थाम्तरोग्रः MSR समोर | { व्यमेव पाठः Ha! मम any ते मानिक ef पढ प्रति-

भाति

10

सः, तदा वादे विषः माधना

[1

सलि (ua fear Bay atau Zu:

ey पररान्नरमाधवः।

न्तरं प्रवन्तयितव्यः*। यदि साधनाग्नर 99 fated, तदा वादस- माभिः | पूर्व॑मामेदितं केदिति वचनात्‌ चेतत्‌ प्रश्धतव्यव- Wyant, aaa व्यवहारे प्रमाणमाधनदूषणव्यवहारा- दिति। तत्‌ मवं कात्यायन श्रार,- “arfeetar: प्रयोक्रव्याः safe प्रतिबादिना | श्रभावयन्‌ धमं दाणः प्रत्ययो सािणं स्फुटम्‌ भाविताः साकिणः सवं माचिधभमिराक्ताः ; ्र्यथिनोऽथिनो वाऽपि माचिदुणसाधने प्रुतायौपयोगेन व्यवषारान्तर चे। जितः विनयं प्राप्रः शास्त्रदृष्टेन Aa | यदि aay facia: मानौ मधे यवस्थितः'- दति दोषोद्धावरमकालमाह मएव,- “mating यं केचित्‌ मा्चिणां देव यै war: वादकालेषु THAT: पञ्चादक्ताश्न दूषयेत्‌”-ईति उक्रान्‌ पश्चार्‌दूषयतो दण्डमाह वपव, "“उक्ेऽथं साकिणो aq दूषयन्‌ प्रागदूषिताम्‌ | तत्कारणं ब्रूयात्‌! प्रा्रुयात्‌ FART HAH

(क शि mene: A RI! mene me 7 1 EON He

Kea पाठः Hay) Had, वेाद्‌विषगं साधनान्तरं पवर्चधि- तव्यम्‌, --इति पाडः प्रतिभाति,

इत्यमेव पाठः GAA ममतु, तत्कारणं बयात्‌,--द्रति पाद प्रतिभाति पु्बपाठे तु, geet दषयेव्‌, सरव तदानौ दूषय करणं Fata यदि तत्कास्ण ब्रवीति, तदा qaarye प्राप्नयादिति कथयित तन्स्ेतिः कत्तश्चा

SAV खम्‌ | ०५

array प्रमाणं तु stata तु दूषयेत्‌ | मिश्याऽभियोगे दण्डः स्यात्‌ माधार्थाच्चापि Pras’ -१ति। धाचिपरोखामार्‌ काग्यायनः.- ` “राजा क्रियां wate यत्नात्‌ न्यायं Prva aerate लिखितं सद्याचारण माखणः" -एनि। ददेस्यतिरपि,-- “sofa athe: &: सर वरणिङ्गितादिभिः-एति। sfemnate fanzafa नाररः.-- ""अस्गत्रारोषदृषटनादम्त्रन्य TI नच्यते) aT ग्थानान्तरं UM THQ ANITA कामत्थक्रस्मः भगम) त्ता निश्वमत्यपि | पिश्निखन्यवनो vat वार ary धमत | भिद्यते gaat लष्तार स्विश्वते तथा | णोऽयमागच्छते तष्टं पव funty Tat a लर्‌माण SATAUUGET TR HIT | KeuTet faweed पाप विनयनम्‌" दति \ WUT AAT! मनुः, “Sear Sart: ify: natal aa tern faa aifgare: Satta Pafeyat sa BIRT EA यद्योरनयोवित्य #1 faa atpa मिधः। तद्रूत मपे सत्येन UAT भाज arf aay

LAAT पाठ; Ga |

UCTRTATUS! |

तं सत्यं aq सातो लोकान्‌ प्राप्रोति पुष्कलान्‌

दह सानुक्षमां कौर वागेषा ब्रह्मपूजिता

ब्राह्मणो वा मतुखथाणामादित्यसेजसामिव

शिरो वा सवेगाजाणां धर्माणां aap

waa पथ्यते सशो Ua: Var वधते |

तस्मात्‌ सत्य डि amar सवेवर्णेषु साचिभिः॥

सत्यमेव पर दानं सत्यमेव पर तपः |

भव्यमेव परो ध्री लोकोलरमिति सतिः

मत्ये देवाः मञुदिष्टा ATA तम्‌ |

vei तस्य देवलं ae सत्ये स्थिता मतिः

नास्ति सत्यात्‌ परो WHT नानृतात्‌ पातकं परम्‌

afaut, विग्रिषेण सत्यमेव वदेसतः"“--टति यथामोऽपि.--

“alfa धर्मस्ेन मलत्यमेव awa: |

atfaurt नियुक्तानां देवता fanfa: fear: i

पितरश्चावसलब्न्तेऽवितधास्यानतो तु

मत्यवाक्याद्‌ AHS AST यान्ति तयाऽनृतात्‌

तस्मात्‌ स्थं हि amel भवद्भिः सभ्यषक्निधौ-इति | नाररोऽपि,-

^ कुवेरादित्यवरणथक्रवैवखताद यः |

पश्यन्ति लोकपालाश्च नित्यं दिन चच्षा”--दति मनुरपि, -

BIT TH azz | a

Carla era: erat गतिरात्मा तथाऽह्ममः

AAA: War aut arfeugway

मन्यन्त पापतो कित्‌ प्यमोति a:

ate देवाः प्रपश्यन्ति यदेवाम्सरप्ररषः'

शौभरुमिरापो हदय Vern द्रयमानिनाः |

राचिः न्ध्या धर्मश्च ननुगाः मवदङिमाम्‌" -एति॥ वसिष्ठोऽपि, ~~

^ श्रय चेद्नुत HUTA Haat serena! |

wat मरकमायाति faaa यात्धभम्रम्‌"-इति॥ aratsfa,--

Saga वारणः ori, माशिणोऽनुततादटिनः |

qfsaaawarin तिष्रम नरके way

तेषां वधरते पफ पाण एकः प्रभुश्यत

करालऽतौत मूकषपा श: निय्यमयानिषु जःयतः'--इति॥ वभिष्ठो पि,

“गकरो anavife प्रातवर्पाकि गहभेः ,

शा जेव दषवर्थाणि erat arin fantag

किमिकयेरपलङ्गप्‌ qafead Way i

गस्तु THAT जायत मामवन्त

+ तसेगान्तरप सथः-- एति mie ¦ RH तु. Bat eit yxui—tfa ¢ पाठः प्रतिमाति। + सवैतः साधामशरम्‌,- ति कार

YRTHLATST: |

Cogfazewafanrat यथोक्तौ तु भवेदधः*

तज वक्तवयमनतं तदिभिव्या दिश्यते! ”-ईति स्यु कशचित्‌ विशेषमाह वसिष्ठः

""समवेत्े्त्‌ are वक्यं तु तथेव तत्‌ |

विभिनरेनेव यत्काय वक्ष्ये तत्‌ TIA एक्‌

भिन्नकासे तु aera शाते वा ae खाचिभिः।

एकैकं वादयेत्तच विधिरेष प्रकौत्तितः'--टति माच्छमुपादेयं हेवश्च विभ्भते मनुः

“खमावेनेव AAT याह्य व्यावहारिकम्‌ |

wat यदन्यत्‌ qa wai तदपा्थकम्‌"--ईति॥ zeafarta.—

STATA ATTA ALATA:

wart चेन्निगदितं fag साध्यं fafafeda

निरिषटेव्वथेजातेष areal चेत्‌ साच्ड श्रागतः।

नूयादक्षरसम तभ्निगरदितभ्भवेत्‌

यस्य we: प्रतिन्ञाऽ्यः साकिभिः प्रतिवणितः |

सोऽजयो स्यादन्यनोतं साध्यायं समाश्रयात्‌}

+ द्र्थमेव पाठः wa यथत्ताक्तौ मवेद्रधः,--इति प्र्यान्तसोय- पाठक समोचौनः |

+ इत्यमेव पाठः was तडि सथादिगशिव्यते,--दइति प्र्ान्तरोयस्त पाठः Baral: |

t द्रव्यमेव पाठः wae | earned प्रविन्नातं सक्षिभिः प्रतिपादि- तम्‌ | अयौ VAAN तु SNAG समाघ्रेयात्‌,--इति ग्रन्धा- म्तरौयः पाठक THAT |

MUUCH | च्‌

कनमभ्यधिकश्चायं वित्रयर्यष्र arfgu: |

तरर्यानुक्त* विश्ञेयसेष माकिविधिः खतः" इति | काल्याथमोऽपि,-

“aurfey विवादेषु श्थिरप्रायषुं निदितम्‌ |

ऊने साभ्यधिके राधं ws माध्यं मिष्यति॥

देशं कालं घनं सख्यां माभ weedy वयः |

विभंवदेर्‌ यथ wreg agin विद्बुधाः''--इति॥ क्ररमाक्एमाह नारदः.-

“घ्रात्रयिला ननोऽन्येन्वः माङि यो विमिङ्कुते।

fatal wnat केटभासौ भवेः भः -दनि॥ याभ्वम्पयिः.-

“a Zarate बः ana] जानन्नपि ata: |

a कूटमाज्निणां पापेदच्धोदणडो चेव fel” --दति॥ कूटसाकिणो दण्डमादच् WA: -—

MAT MTT UTA, कामान्ोधारथेवच

arqrareraarie aed तरितथमुच्यते

€MAT Us सव्य | acaay, ofa Aya Tae प्राठः Beata: t wu,—fa ato! ] दल्यमेब प्राठः ee | देम चेव हि. एति ग्रज्ातारोवः पाठक VAT: | 11

sz प्ररा्ररमाधदः।

एषामन्यवमलेम यः साच्छमभृतं वदेत्‌

तख दणष्डविगरेषम्तु प्रवश्छयाम्यमुपूवंश्रः

लोभात्‌ aes दण्ड्यस्तु मोहात्‌ पूवं ठु AKA |

wae मध्यमं दण्डयो मेश्यात्पूव चतुगुणम्‌

कामादृप्रगणं ya क्रोधान्त्‌ ददिगृणं परम्‌ |

श्रज्ञामाद्‌ दे wa पं वालि्ाच्छतमेव त्‌

एताना़्ः करटमाच्ये प्रोक्तान्‌ दष्डान्‌ मनौ षिभिः

धश्मस्याव्यमिचारायंमधमेमियमाय |

कूटसाच्छन्त्‌ कुवांणान्‌ चम्‌ वणान्‌ धामिंको नृपः,

परवामयेद्‌ दष्डयिला argu विवासयेत्‌

यस्य पण्ये सक्नादाद वाक्यस्य सा्चिएः |

रोगारनतिज्ञातिमरण्ण' दाप्यं दमश्च सः“ इति॥ काल्यायनः,-

“सातौ ary Aza ममन्दण्ड वरेकृणाम्‌। |

श्रतोऽन्येषु विवादेषु चिग्रतं दष्डमदेति-दति दस्ति

““श्राहतो यमह नागच्छेत्‌ सातौ सोगविवजितः |

au gag ere: स्यात्‌ जिपक्चात्‌ परतस्तु मः

शप्ष्टमत्यवष्वने पृष्टस्याकथने तया |

साचिणश्च facigar गद्यं दण्डयाञ्च धमतः" दति

~ ~ ~ गभि ke ak >

* सगो ऽस्िरलाविमरम्डणं--दति शा ae | 1† garda पाठः way | मम तु, बहेटयम्‌+- द्रति पाठः प्रविभाति।

VIVA } ८९

सा्चिणुमनेकविधवक्याह्यान्‌ विभजते इहस्यतिः,- ^साचिदेधे पताम ग्राहाः साम्ये गणन्विताः | गुणिरेधे क्रिधायुकताः ama 4 ahead’: faa मनुरपि,- “a fe तं प्रतिररसोयान्‌ म।चिरेभरे नराधिपः। हेष गणोकछष्टान्‌ भरणिदध testa -इति सन्त्‌ कात्यायनेनोक्रभ्‌,- -arfant लिखितामान्च निरदिष्टानाश्च वादिनाम्‌ | तेषःसेकोऽन्यथातादो भरात्‌ म्र साखिकः-एति॥

aa सवग्रब्देनान्ययावादिमङितामासव TRAN faagM,

न्‌ पुमः केरनामामिति मन्तम्‌ ; wT. तध pea भिति व्ल

विरोधात्‌ i afar विधाषःन्तरमाच नारदः.

"दथोर्तितदतोरथ्च चयो. mg पादिषु |

पूपद्यो भवेद्‌ शस्य भानयन aw माक्िणः

arya, पपचस्य यक्िक्नधप)द्षेत्‌ |

विवादे arian प्रष्टव्याः yfaarfea:’--tfa श्रत्रोदाररणम्‌ | यतक. NFAT प्राण भुक्ता AAT मकु म्नो देशान्तर प्रात्नः। VATA लय YT | atsfa anfagal- दिना arnt wget गतः ! पुनस्त द्रात्रपि चिरन्तनकाजा- and न्तिलोमेग waaay तचम्‌ रन्धि प्रतिलानीने

# रतादश्माश्चमव पर्त way [Rha | मम ARIAT शुच Sa: प्रतिजानीते नयदभ्ाखन AY उत मदीयरमवतत्‌ BAA, इति पाठः प्रविभाति,

1. परराश्रमाचधवः।

धकषंपाेन राज्ञा मद्यं दतं मदौयमेवेतत्‌ Ga! श्रय Tae प्रतिज्ञा, षत्यं aaa दन्तम्‌, TAR दसताद्भ्ेपाकेनेतत्‌ चेच क्रयेण ae महां दन्तम्‌,-दति सन्ति दइयोरपि वादिनोः साकिणः। गत्रेदमुक्रम्‌,--दयोर्विंवदतोरर्थ--दति श्रयमयः। सस्थ विवदमानख yaudt भवेत्‌ ; प्रवेकालिकस् दानय खलद्ेतुत- योपन्यासेन यः पचो भवेत्‌, तस्य साचिएः ae प्रष्टव्या भवेयुः | श्रन्यतरस्य साचिरएश्च' | तेषामुन्तरकालदानकसाल्िणमश्षाचिप्राय- लात्‌ यदा qafcatafasn, तद्‌ाऽथवशरेन एतस्य इस्तान्‌ Alay ag द्तभिल्यादि तु प्रवंदानोपन्यामपचस्याधयमकि्ित्करलं भवेत्‌, तदा पञ्चाक्मतिजानानस्य साकिणः। पूर्ववादिनः पूर्वंपचेऽधरौश्वते भवनधृत्तरवा दिनः. इति | साच्छमन्तरेणए ज्ानोपायानाड्‌ मारदः,--

“श्रा चिप्र्धयासख्छन्ये पड़ वादाः परिकौततिताः |

उसका दस्तोऽग्रिरो जेयः शस्त्रपाणिश्च घातकः

केशाकेशि खरोतश्च युगपत्पारदारिकः।

कुहालपा रिविज्ञेयः सेतुभेन्ता ममोपगः

तथा कटार पाणिषु वनष्छत्ता प्रकोल्तितः।

्रत्यग्रविद्धैविज्ञेयो दण्डपरार्श्यशन्नरः |

श्रघाश्चिप्रत्यया ea wea तु परोषणम्‌'"--द नि |

शङ्ुःलिखितावपि। “केश्राकेशिग्रहणात्‌ पारदारिकं उसका

हष्णोऽभ्रिदग्धा शरपाणिर्वातकः लोप्तदसलशोरः'"--टति। साचि निरूपणो पसंदार पुरःसर शिखितनिक्पण करोति रश्स्पतिः,

=. re eerie

# es, प्रख्या दति afaqataag |

QTY RBA =

“भाकिणामेव- fate: षक्चालदएनिश्चयः : शिखितस्याधना वस्मि विध्ानमनुपवश्रः कएणदिक्षेऽपि। भमय भः न्तः मन्नावते यतः | धाक्ाऽतराणि walla पच्रारूढरान्यतः प्ररा॥ देग्ाचारयतं उपमामपचादष्धिमन्‌ | छणिसाचिलेखकामां द्म्ताङ्क Teas | CHM ग्यानेन सवस्ति तेया | wag विविधं via framed दघ gah —sfa wana दितिधेन मन्ति वसिष्ठः, Be. “alfan रामय न्यं famfgenmay” cia | तथोरवान्नरभदानाच्‌ दस्पनि -"मागद्‌सक्रयाधानम्‌१द।जखणा दिभिः म्रा what लेष्यं विभि राजेफामम्‌म्‌ | भ्रातरः मंविभक्षा स्वस्च्या तुः परस्परम्‌ | jaf भागप्चाण भा गभस AZO] A शरूमिं दला तु यत्पत्रं कुतस्‌ सन्ाककालिकम ) श्रनाच्छे्मना शाय -द्‌।ननम्धन्‌ afar: M + peda पाठः wart मम त्‌. नागवि Ms! + बाण्ासिकरेऽपि,- द्रति सत्यान्तरः Uist t fad तद्धा ga हति क" § खरूपान्तः-इति ate सर

|| waa पाठः aes) ममतु, कुत्‌, ~ इति पाठः प्रविभाति |

<4 URTWLATHS: |

ग्रहशेजादिकं कौला wenrerecrfaaz | पचद्धारयते यच” HTM तद्श्यते

age wat बद्धं यतर wey करोति a | गोप्या मोग्यक्रियायुक्रमाधिलेष्यन्त्‌ त्तम्‌ ग्रामादिसमयात्‌ Sai मतं Sel परस्परम्‌ | राजाविरोधिधर्म्माथं संवित्पचे वदन्ति तम्‌ वस्नान्नरोनः कान्नारे लिखितं कुरते तु यत्‌ | कर्माणि ने करोमोति areas तदुच्यते धने Wl ररोला a खयं कुर्याच्च कारयेत्‌ | उद्धारपनं ani णणलेख्यं मनो धिभिः दला भ्रम्यादिकं राजा ताख्चपत्रे Gesu aT | शरासनं कारथेत्‌ धमं खानवश््ादिसंदतम्‌। TSA सवेभाविवजिंतम्‌ | चम्द्राकंसमकालोनं पुजरपौबाखयानुगम्‌

दातुः Weta? खगं इतुभर कमेव | षषटिवषंषहस्ताणि दानच्छद फलं लिखेत्‌ समुद्रं वषमासादिधनाध्यचाखरान्वितम्‌ | दानमेवेति शिखितं सन्धि वियदलेखकेः

[1 = ee = 8 11 1 ता , ' 77 ए. चि = शण wr .

# ay—xfa TAROT: पाठः TATE ata,—xfa ate |

{ श्रानपनश्वादिक यवम्‌ इति शा० ae |

पाशयतः--दति ate |

TTYL H BH |

एवं विधं राजतं शरामनं NATE देभादिकं ae राजा fafa प्रयच्छति सेवा ्ौष्यादिना तुष्टः प्रमाट लिखितन्तु तत्‌ | पूवी ्तरक्रिधापाद नियानं यदा नृपः weary afar लेख्यं wage तद्‌ च्धते"-एति, an waged. “fufad amar सतस्‌" -इति। तस्तु fanz ama", शोकिकष्य wafer राज्रपचस्य जिबिधतान्‌ | mada, saad दितोयं. we: गामन्पययोरेकमैकरणो। waited द्रष्टव्यम्‌ | afaeg aatieatay चातुरिष्यमाह--- “प्रासनं प्रचमं HA HIATT तया ऽपरम्‌ | श्राज्ञापतं प्रमादोत्य TART wa uae fa ग्रामनजयपये WageTyd aw niet विंपमाद are Awa: "दला भमिं निरन्धं ar इला Heme aT aA | श्रागाभिभदरनृपतिपरिक्नानाय पार्थिवः - दति ava निवन्यो वागन्याधिकारि भिः प्रतितं प्रतिमामश्च किर्थि- gare भाद्यणावान्य aan दा wafaenfe प्रभुममय- + समन्वित दति क्रा wer ममतु, veqd—sia पाठः

प्रतिभाति | | + द्त्यमेव पाठः सव्वध भम तु, श्राकाप्रसःदपश्रयोरेकीकग्‌नेग,-

इति पाठः प्रतिभाति।

cc QUINCaTHT: |

"राज्ञा तु खथमादिष्टः afafam ति araus पटे वाऽपि प्रसिखद्राजग i याकार कसमन्धं समाया fate क्रियाकारकयोः सम्बन्धो afer एः ae 1 arafwerstid; afar, क्रियया weyers aa fern faere: तत लेखनौयायेमाद AHH "सिशिलेदात्मनो Taras WATER: | प्रतियहपरौमाणं दानमे) ana - इति व्यासोऽपि, ` af BCC IER ्मुगिनामोपलचितम्‌ |

मिप

दिसगोचनद्मवारि कम्‌

स्यानं वंगा देशं याममुपागतम्‌ | arguing तथेवान्यन्म्ान्यानधिहृताम्‌ लिखेत्‌ कुटुम्बिनायका यस्य दृतवे्यमहत्तराः |

ते ्वण्डालपय्यन्ताः सर्वान्‌ सम्बोधयति ! मातापिचौरात्ममश्च प्रष्धायामु कद्नवे |

a en = ~ ~ ~ Sg eames Teme ea Ee" LS pete mreeerR Seen ee te ey

+ तदुङेरेगेव तदुदिश्य प्रशृत्त--प्ति शार AA 4, azitea तश्रषटकतेः,--हति wis: प्रतिभाति | [| ९१

t वंप्याजुपुन्ब च+--्रति Te

व्यषङ्ार कायम्‌ | ce

दन्तं मयाऽमुकौयाय दानं anyrerfew’—chA अपरमपि fay wuary,— “सन्निवेशं प्रमाणञ्च avey लिखेत्‌ खयम्‌ मतं मेऽमुकपुचस्याप्यसुकखय ANT: सामान्योऽयं धमेसेतुनेपाणां काले काशं पालनोयो भवद्भिः" | सवनितान्‌ भाविनः पायिवेन्रान्‌ भूयोश्वयो याते रामर््रः"-दति। जयपत्रे विपेषमाश यामः-- -'्यवशारान्‌ खयं दृटा BAC प्रा्धिवाकतः। sara ततौ coq परिज्ञानाय पायिवः॥ SE MAL यन परोच्याणात्ममाक्छतम्‌ नानाऽभिापसन्दिग्ध यः AA विजयौ भेत्‌ तस्य राज्ञा प्रदातेग्ये ATT सनेखितम्‌ | पूर्णान्तरकियापादं! प्रभाषं नत्परोकणम्‌ निगदं खतिवाक्यश्च यथा सभ्यरिनिर्धितम्‌ |

कक oneal

* ~ षु [| * एतदगन्तर) तस्ते सश्च; प्रदातयं जवपच yafaay ¦ Tay fear Wala araafefu:,— ha ate: का Tle एुम्तक-

MEA | + इर्यमेष aaa st मम वुः प्वीत्तसफ्रियपादेः--प्वि Ws

प्रविभाति | 12

& 9

पराशरस्नाचवः।

एतत्‌ सै समासेन Haase विलेखयेत्‌"'- इति वसिष्ठोऽपि.-

“oftarnfzeeng'gfza राजसुद्रया |

fast वादिने दधाव्लयिने waren’ —cfa HATTA ATTA,

“जरनेन विधिना लेख्यं पात्य विदुबुंधाः

तिरस्कार करिया wa प्रमाणेनेव वादिना ii

पञ्चात्कारो भवेत्तत्र सर्वासु विधौयते |

श्रन्यवाद्यादिदहोनेभ्य इतरेषां विधौयते

टत्तानुभावासन्दिग्धां तच स्याद्राजपचकम्‌"- इति च्रान्नाप्रज्ञापनापत्रयोलेचणमाह वसिष्ठः,

'"श्रज्ाप्रभापनापने दे वसिष्टेन ट्‌ गिते)

सामन्तेव्यय way राष्पालादिकेषु च॥

काय्यैमादिश्छते येन तदाओ्ापचसु च्यते |

न्तिक्पुरो हिताचाग्ैमामान्येनतर्हितेषु at

ara भिगद्यते येन पं प्रशापनं यतः{'--ट्‌ति। जानपदमपि पच पुमर्व्यासेन निरूपितम्‌,

"लेख्यं जआमपदं लोके प्रभिद्धस्थानलेखकम्‌ |

ee eee = ete eee ee rt

* इत्यमेव पाठः सन्य ममतु, WHY, —xfa प्राठः प्रतिभाति। ठसानुव्रादससिद्धं, —xfa ate | द्व्थमेव पाठः wae) मम्‌ तु, मतम्‌,- दति पाठः प्रतिभाति

QIVICH WA | ९१

राभवंग्रकमयुतं वषेमासार्थेवासरेः, faaud मामातिन्नातिकफिंकयो लिखेत्‌ | दरयभेदप्रमाएच्च ठद्धिधोभवसम्मताम्‌"-षति afaststy,-- “काणं निवेश्य राजानं art fare तथा दायक area चेव ferret संयुतम्‌ ofa गोश्च शाखाश्च zaafe मभद्चकम्‌ t इद्धया इकरस्तश्च विदिताथा arfaut—efa UIVAKA AVANTE याष्नवर्क्यः.- "समापय खणो नाम aver frayed | मतं मेऽमुकपुचस्ये सत्यचोपरि लेखितः '--इति शछणिवत्‌ जा विभिरपि खषस्तनिमेनं क्ेयमिल्याह षएव,- Caray स्वहस्तेन पिटनाम्कपूव कम्‌ | श्रमाद्ममुकः मातो लिखेयुरिति ते ममाः॥ उभयाभ्यधितेने मया शछ्यमुकद्नुना | लिखितं छसुनेनेति werent fara’ '--दति॥ gi लौकिकशिस्ितन्तु? टेचस्तिना मप विधन cfu, airy प्रकारान्तरेष्णष्टविधचमा्--

~ [ = és As we ee क: < ~ =^ ~~ we

» वर्षमासाडवासरैः,-- पति ate | t इत्यमेव पाठः सन्येव | ममतु, पिटभुमे' माम गतिं निक किं खेत्‌.-दति पाठः प्रतिभाति | { इत्यमेव प्राठः was | मम वुः faim, इव्यमेव पाठः aay! मम तु, flare,

दति पाठः प्रतिभाति। षति पाठः प्रतिमाति।

éz प्रदाग्ररमाधवः।

“सौोकरद्च* avn तथो पगतसंन्चितम्‌ | श्राधिपचं षतु तु पञ्चमं क्रयपधरकम्‌ weet frase सप्तमं सस्धिपचरकम्‌ | fanfgraa चेव श्रष्टधा लौ किकं सतम्‌ः--दति तेषां शरणमुच्धते | तज संग्रदकारः,-- “at नाम लिखितं पराकैः पौरलेखफेः। afinafafafes ययासम्भवसंस्तैः wala: प्रतिनामाधेरयिप्रत्ययिंसाकिणाम्‌ | प्रतिनामभिराकरान्त पच्च प्रोकं WHAT UTA यथाररल्युक्रलवणम्‌"--दूति ara: | “arta queda! लिखितं यारकेनग्धिपगतं लेष्यसुपगतास्यं विज्ञेयम्‌” नारदः» “आधिङला तु द्रं प्यकं तत्‌ सूतं वृषैः | ana क्रियते लेस्थमाधिपजं तदुच्यते"--दति च्रन्याधिलेख्ये विगरेषमार प्रजापतिः “धनौ waa तेनेव परमाधिं नयेद्‌ afe war तदन्याधिलेख्यं wi वाऽस्य समपेयेत्‌”--इति पितामशः,--. aa क्रयप्रकाग्रायै द्रष्ये यत्‌ क्रियते कचित्‌ |

न~ ~------------------------------------ - ----- -~~---~---- - --- -----~ ` - ------- +~

# (चकर, खाने, ace —afa प्यते का पुस्तके | रवं परच। + दइव्यमेव पाटः Gay) भमतु, पास्केन खहस्तेन्‌ वा-इति wes: प्रविभाति |

व्यवहारकाकम्‌ | ९३

विक्रषनुमतं करेतुर्ञेयं तत्‌ फ्यपचकम्‌

पुरःखरभ्रेणिगणण यज पोरादिक्श्ितिः

तस्िद्ययेनत्‌ यषे्यं agiq खितिपवकरम्‌ |

उत्तमेषु पमस्तेषु WMT समागते |

टृत्तानुवादलेष्य qq asad सन्धिपचकम्‌ |

श्रभिग्रापे we प्रात ते we | विग्ररद्धिपचकं भ॑यं तेग्धः" भाणिममन्वितम्‌' दूति) अन्यदपि Sway कात्यायनः,- -

‘atm विवादे निर्णोते रौमापतर विघोयते'-दति। याज्त्रस्वधोऽपि.-

eam पाटयेत्‌ TI TA शन्यत्तु कारयन्‌" - दति Se प्रयोजनमार atthe.

“स्थावरे fanaa विभागे एानपत्च |

nfaa® रोते = aren मिद्यति fara’ xia | क्ियनभिन्नम्लन्येन लेषयेदित्याच नारदः

““श्लिपिज्न ery चः श्यात्‌ AAT BATH a}

erat वा arfamtsd वा सर्वेमारिममौपतः'" tie

पव्ना्रादौ went नेस्यमिन्याद याजवन्क्यः, -

11

# तेभ्यो ऽसाक्ि्मन्वितम्‌, - ति mie | at दत्यमेव प्राठः स्यच | सान्ती व्रा सःिणादन्येनः--दति यन्यान्तर।-

य॒त पाठः TAMA |

€8 UCIULATU®: |

AMAT FAS ME A इते AIT! faa दग्पेऽयवा fee लेख्यमन्यत्त्‌ कारयेत्‌”-दृति | ay नारदेनोक्षम्‌, ^लेष्ये Tat न्यस्ते MT शिखिते इते सतस्लत्कालकरएमसतो दुष्ट भनम्‌ *""--दति तद्धनदानोधयतष्छणिकविषयम्‌ ! लेख्यपरोचामाह रशदद- स्पतिः,- | “fafarerta Tere भ्रान्तिः सञ्जायते यदा पिसाङिसेखकाना war संशाघयेन्ततः”--इति | काल्यायनः,- “cera समाह्वय धयान्यायं विचारयेत्‌ | लेख्यासारेण लिखितं साश्छाचारेण साचिषः वणेवाच्यक्रियायुक्रमधन्दिग्धस्णुटाचरम्‌ अरोगक्रमचिकश्च tet तस्सिद्धिमाभ्रुयात्‌^-दति | ware marae सिद्धिमाह सएव ‘oa तु दिविध प्रोक्तं सद्स्तान्य्शतं तथा | sufanafare सिद्धिर्सख्ितेष्तयोः"- दति | दे्रश्थितिरंग्राचारः खदहस्तहते विगेषमाद याश्रवस््यः,- "विनाऽपि ufafrael खहस्तशिखितं a यत्‌ | ana खतं सवे बलोपाधिषृतादते-दति |

ent भन et यम SD काक

~ ane 1 POE TOD [वक NS Oe ARNO NS teal

+ इष्दण्रगम्‌, - इति We! SAGA DARA RERUN, दति मन्यान्तरोयः Wiss समो चौमः।

ATW GT |

पर हस्तषटते विगशेषमा सएव,-

“वादिनामभ्यनुज्ञातं लेखकेन समाधिकम्‌ |

लिखितं सवेकारयषु amare रतं बधः" - षति ्रआधिपते नारद्‌ ATE,

“दे श्राचाराविशद्धं यत्‌ वक्ता न्िविधिलचणम्‌ |

THAT We लेस्यमविलुप्कमाचरम्‌"--षति | लेग्यदोषमाह कात्यायनः,

“स्थानभ्रष्टा: सकान्तिख्या मन्दिगालकण्युताः |

तो यमस्ापिता वर्णा कुटनस्थं तद्‌ भषेत्‌

दिश्रारारविरद्धं यत्‌ सन्दिग्धं कसवजितम्‌ |

शेतमखामिना vq सध्यिरोनश्र दुष्यति" -षति। हारोतोऽपि,-

“यत्तं RAIA THEY कृटरतामियात्‌ |

विन्दूमाकाविरोन यत्‌ uted afeay aq’ —vfa | awata:,—

“दूषितो गदिन. घाचो यत्रैकोऽपि faafsra: |

TAT amigaeat वाऽपि afew n

qaqurqarnd anal: |

तत्‌ मो पाधिबल्षात्कारफ़तं aa सिद्यति

sara चिरतं मलिमश्ाग्पका लिकम्‌ |

भद्रोतृष््टावरयतं ea कृटलमाभ्रुयात्‌” इति नारदोऽपि

3,

पसश्रवमाचवः |

“मन्ता भियुक्रस्तरो बारबलात्कारशतं तु यत्‌ |

तदप्रमाणं लिखितम्मयोपाचिषशतं तथा?-दति | काल्यायमोऽपि,-

“afar wien पतरं वे लेखकस्य वा |

धनिकस्यापि बे दोषात्‌ तथा वा णिकस्य च-इति | दोषोद्धावयिदन्‌ सएवाद,-

“प्रमाणस्य हि ते टदोषाः। amare विवादिनः |

गूढाः BART. सभ्यैः कायं शाख्तप्रदभेनात्‌"“--इति I उद्भावमप्रकाराख सएवाह,-

“साधितेखनकन्तारः कूटतां यान्ति वादिनः |

तथा दोषाः प्रयोक्रगथा दुष्टे eel प्रदुब्यति

लेखकेन लिखितं दृष्टं साकविभिस्तथा |

एवं प्रत्य्थिनोक्रेन कूटणेडं प्रकौर्भ्ितम्‌

तथ्येन fe प्रमाणं तु दूषणेन तु दूषणम्‌ |

मिण्याऽभियोगे दण्डयः स्यात्‌ शाध्या्थाद पि ₹ौवते”-दति। शनन्तरभाविराजक्गत्यमाद टषस्यतिःः-

“तथ्येन fe प्रमाणं तु दूषणेन तु दूषणम्‌ |

एवं दृष्टं नृपखाने यस्मिन्‌ तद्धि विषाय्येते

विष्डश् ब्राह्मणे: arg वक्दोषाख निसितम्‌"-इति |

ज) जण = कद ein: जक अक

णोन = मा = णि ता जा A es vere meee

* cede पाठः wala | मम तु, भवेद्दु-४ति पाठः प्रतिमाति | दव्यमेव पाठः ears | ममतु, ये देषाद्रति प्राठः प्रतिभाति।

BACH BA |

thf avq,--- es a ~ a3 ~ 4 रादलस्ये ARTA नहणिको यदि भिक्त

waa Paha y eae मतन Beh

é9

ae ध; a Bo rT CH (1 या वश्य {निद BAT दति क्रः ¦ Away PUR YT HR UTTAR

“afeHMenyyiy स्यात्‌ waarrahaarfe fan |

यङ्छिपरा(शिकिुा दनिप्सन्यागमरेतुमिः द्रति | HTS TY,

पन्‌ Aifau na wy wdiamad aly

. 2. tz ~ 7 ` Ve ETL AT SST ATR ATR eT Ela |

PRL, fave. ea. aasye agi Read वद्धा ego CATT ACNE ey sft कमेः सनः,

“Cap पद्यालगोप्स्‌ WUE Ry Aa Us

Pa i १९

नृत्‌ QR se (ARM ATO मनयः

नन्‌ BRAMALL, वनिन i

ages यद्‌; जाय सना पष far लगित eA पाप ee BE [पित] - -द्‌ fn विन्एनपिः--

Saamt धामो fa Eat तर mera पता नियते aa Awe wat: waa इति 14

ge UTITCATHA! |

निराकरणे यवश्ितानि साधनान्याह काल्यायनः,- “लिखिते लिखितं नेव a* सासो साक्षिभिरेरेत्‌ | कूटो क्रो arfaut वाक्यात्‌ लेखकस्य पजकम्‌ श्रादयस्यां निकरस्यस्य weary याचितम्‌ | पद्धणेगरङ्या तत्त॒ लेखं दुवेलतामियात्‌ wel विं्रतसमाऽनौतमदृटाश्रावितश्च यत्‌ | तल्िद्धिमवाप्नोति तिष्ठत्छपि fe साकिषु yaa शान्तलाभे तु लिखितं यो दरयेत | वाच्यते खणिकं तद्िद्धिमवाम्रचात्‌”--दति | मारदोऽपरि- “योऽमुता्थमदृषटाथै यवराराथमागतम्‌ | लेखं सिद्धिमाप्नोति जोवत्छपि fe arfey wat स्युः साचिणो यत्र धनिकिंकलेखकाः | aqua लिखितं णलाचेश्वराअयात्‌? i श्रदृष्टाभ्रावितं लेख्य प्रमोतधनिकणिकम्‌ |

नन ~ ~ =-= ~> "~ --- = -~---- me ---- ~~~ ~ ~~ ~^ Mm FA Sv es

* इत्यमेव पाठः aay! ममतु, न,- दरति पाठः प्रतिभाति |

इत्यमेव पाठः waa | ममतु, अद्यास्य, दति पाठः प्रतिभाति |

इल्यमेव पाठः सव्ये | मम तु, शुष्कं शङ्कया, दति पाठः प्रति- भाति।

$ ata पाठः सन्य छते तवाधेः ्थिसश्नयात्‌,+-एति म्न्धा- न्तरोयन्त॒ Vs समौचौनः।

DIVA | ९९

अतयालप्मकस्चेव aE कालं सिद्यति"-दति। लेख्यहानेरपवाद मार टरम्पतिः,-

“उन््त्तजडम्‌ कानां राजभोतिप्रबामिनाम्‌ |

MMT लेष्यं हानिमाप्ुयात्‌ --दृति | लेख्यप्द्धिप्रकारमा नारदः,

“द्भितं प्रतिकान्तं यत्‌ तथा तु श्रारितं चत्‌

लेस्थमिद्धिः ay छरिष्वपि {इ सातिषु" काल्यायनोऽपि,--

“निदीषं प्रथितं यत्त wey तसिद्धि माप्रेयान्‌ |

यथादृष्टं we दपं नोक्त शणिको यदि

ततो विंप्रतिवर्पाणि कोने va भ्वितम्भवन्‌ |

mam afar Te नस्येन भुज्यते

वर्षाणि fanfa यादत्‌ तत्पर दौधवज्जितम्‌ |

रय fanfaaatafua ata. सनिता

सेस्येन a afag सस्यदोषवितरजितम्‌ |

मौमाविवारे faata सौमाप्रचं विधौयते

तस्य दोषाः wana araanife fafa: |

श्राघधानपरितं यच! Be ary निति एतम्‌

[का irae RAE eR eee OREN pam ah त,

+ इत्येव wa: eae | Beet सिभ्य^ सव्वेत्र म्दतेखपि सातिषु) दति ग्र्न्तसयन्त॒ पाठः समौचोनः | पथं,~-द्ति ao ae |

१००

प्रसश्ररमाधवः।

खतः सातौ TATU खर्पभोगेषु तद्विदुः |

urd वाऽनेन खेत्‌ किञ्चिदायश्चाच निरूपितम्‌

विनाऽपि मुद्रया लेख्यं प्रमाणं गटतसाचिकम्‌ |

vafe लबधं चत्‌ किञ्चित्‌ unfaat छता भवेत्‌ |

प्रमाणमेव fated शता यद्यपि साक्धिएः^”--दति | लेख्यामां मिथो त्रिरोधे बाध्यवाधकमाड व्यासः “खहस्तका-

grad समकालं पिमं वा aa राजतं प्रमभम्‌”--दति) साचाद्यसम्बे रारोतःः-

“a मयेतत्छतं पच करूटमेतेन कारितम्‌ |

अ्रधरोहत्य तत्परमं दिव्येन निणेयः--दरति प्रजापतिः -

“सखनामगोतरेसन्तन्यं रूपं लेख्यं कचिद्‌ भवेत्‌ |

MANA तच ara fear निणेयः”--ईइति | शत्स्दानासमयं प्रति यान्नवरक्यः,--

“Gera ve विलिखेत्‌ दला तदृणिको धनम्‌

धमिकोपगतं दधात्‌ खदस्तपरि चिद्ितम्‌*--दति लेख्यदौषमनुद्धरतो दण्डमाह काल्यायनःः -

‘gaint साचिणां वाक्यं लेखकस्य पचकम्‌

चेत्‌ एदं नयेत्‌ कूट दाप्यो दण्डमुत्तमम्‌”--दति |

= ~ ~ ~ a EEE Cn ce ORR जा tA नत RE OS भा-क

* as MR सर wre THAI | `

QIVCM BT | १५१

साचिर्णां वाक्यं लेखकस्य प्रति gate उक्रषिधां यो वादौ gay नयेत्‌, उन्तममाङमं दण्ड इत्यथैः ब्यावरादौ तु विषमाद्‌ सएवः-- Sarge विक्रयाधाने wey as करोति a | चमम्यगरागितः कारौ जिङ्कापाण्डभ्रिवजितः" श्रन्यजेस्यावारके याते" लेष्यागमनकारणएसुद्धा वनो यर्मित्या व्यासः, “पञ्चाद्‌यस्य छतं MTOR प्रदृश्यते | aan तेन वक्रय पतस्यागमन ततः --दृति। नारदोऽपि-- लेख्यं यवान्यनामाद्गं वाद्यन्तरकरतं भवेन्‌ विम्य amt! तत्स्परेवागमरतभिः"- इति | दृति लेश्यप्रकरणम्‌ |

[कक Ami Ne Ae

लिखितो पमेहारपुरःभरमम ्रिशुपक्रमते टदस्पतिः,-- "एतदिज्ञानमास्यातं। मनि जिशिनस्य

# pana पाठः सन्न ata: परतिभाति | + इद्यमेव पाठः सवयत्र ममतु. Fates ater, FFs प्राठः

fa 4, {म तं सम wayne ava,——xfa

प्रतिभाति। t weed प्राठः aaa | ममतुः प्रतिभावि।

रतदिधानमाव्यातम्‌*- दति भादः

१०९ पराश्ररमाधवः।

खाग््रतं स्थावर प्रभेभुकेशच विधिरुच्यते" -दति | तच शावरप्रािमिमिन्तानि सएवाइ,--

“विद्यया क्रयवन्पेन* शौ य्येभार्याऽन्वयागतम्‌ |

सपिष्डस्याप्रजस्यां wat सप्रधोच्यते- इति | नारदोऽपि

“way दानक्रियाप्राप्तं शौय्यं वेवादिकं तथा

नान्धवार्‌ प्रजाव्नातं षडधिधिस्त्‌ घनागमः दति) श्रागमपूवेकमेव YR: प्रामा्य्मित्धाह UTA,

“a gaa विना शाखा श्रन्तरौक प्ररोदति। `

श्रागमस्ु॒ WIA शुक्तिः भाखा प्रको स्तिताः दति नारदीऽपि-

““श्रागसेन fauga भोगोयाति प्रमाणताम्‌ | श्रविष्द्धागमोभोगः प्रामाण्धं नेव गच्डति”-रति | श्रागमवदोधैकाललादिकमपि भुक्तः प्रामाण्छकारणभित्याद

नारदः,- “श्रागमोदोधेकालश्च विच्छेटोपरनो धितः | प्रत्य्िसन्निधानख पश्चाङोभोग इस्यते"--द्ति | SMAPS Awe भोगस्य प्रामाण्यं नास्तोति are

0 eo were sae ee थी मी

* इटयमेव प्राठः सव्व | मम तु, क्रयसन्भनः--इति पाटः प्रतिमाति | + द्द्यमेष पाठः wert | निभ्डिश्रोऽन्यस्वो न्मितः,--द्रति ora रोयपाठस्त सभ्यक | |

अवहार कारम्‌ | Loy

“सम्भोगं कवल यस्तु कोन्तय्नागमं कित्‌ | भोगच्छलापदेगेन fara: तु रश्करः" -दइति कात्यायमोऽपि,- 'प्रणषठागमलेस्येम भो गार्डन वादिना | कालः प्रमाणं दानश्चाकोन्तमोयाधिमषदि” इति। पञ्चाङ्कषु विप्रतिपत्तौ माधमौय मिन्धाङ संगरकारः,- "भुक्रिप्रसाधने मुख्याः प्रथमन्त्‌ उषौवलाः | ग्रामण्यः वेत्रमामन्तास्तसौमापतयः क्रमात्‌ fafad मासिणोभुक्रिः क्रियाः चेषग्रहादिषु | any क्यदानारौ प्रत्याख्याते चिरममे"-हति क्रयद्‌ानादापागमे धतितारिना प्रन्यास्याते सति fafanat- Fayre: fae. एमाणम्‌ सुकर माश्च कात्याग्रसः,- ‘orfarg दिदिधा परोक्ता माममाऽनाममा तथा | जिपुरपौ mara तु भप्रदन्पो तु शागमा'-इति। पुरुषचयानुगता भुक्रिरागमानुपन्यासऽपि प्रमाणम्‌ | स्वन्प्रा तु भुक्रिरागमसद्धिनैव प्रमाणम्‌ | एतदा" दत्तिः, “ुक्रिषतेपुरषौ यज चतुर सम्मरय तिता | agra, श्ितरां याति 4 धरज्छढागम केरित्‌ afafaga यजु पुरपेन्तिभिरेव A | तज नेवागमः कार्यी भुक्रिच्िपुरुषौ यतः" cara Barren: कायौ BAHIA मरौयमो"- दति वा पाठः| wazaly,—ela प्राठः प्रतिनानि |

er = 9 acs

# दल्यमेव पाठः BAA! ममतु,

१०४ पराश्नरमाधवः।

चिपुरुषभोगेनं षष्टिसंवल्छरादयः उपलच्यन्ते। WATT ATE, ‘gaifefinti भुक्ता साभिनाऽव्याइता सतौ | भुक्तिः सा ated} नेया द्विगुणा दिपौरुपौ जिषुरषौ चिगुणिता तच are श्रागमः-दति | ठस्य तिनेवतिसंवस्छरानुपलचयति,- “पितामहो यस्य जोवेश्जोवेच प्रपितामहः | fina wat ara भुक्तिः सा भक्रिव्यांहता परः शुक्तिः सा deat ज्ञेया fener दिपौरुषौ | चिपौरुषौ favor परतः सा चिरन्तनो{”-दति | want पञ्चनिंग्रदर्पाणि पौरषोभोग दत्यक्तम्‌,-- “वर्षाणि पश्चजिग्ततु पौरुषोभोग उब्यते-दति यदि विंशरतिवषैः पौरषोभोगः, यदि वा fared: पञ्चचिंगश- ur वा, सवैयाऽपि चिपुरुषभोगेन तत्करण्योग्यः कालउपलच्छते | अतएव कात्मायनःः- | “ara काले क्रिया मेः सागमा भुक्रिरिथते | श्रसमा्तऽनुगमाभावात्‌ क्रमात्‌ चिपुरूषागता"-ईति श्ननुगमाभावादिति योग्धानुपलब््यभावेन श्रागमाभावनिश्या- सम्भवात्‌ एतदुक्रं भवति ATTA पश्चाश्रदधिकश्रतवषेपय्ेन्तातौ- तकालमप्ये प्रारभ सुकरिस्सेतत्छार प्रमाणावगममूलेव खले प्रमाणम्‌ |

+ इत्यमेव पाठः स्वै | वर्षा शि,--दति ग्रग्थान्तरौयपाटस्तु सम्यक्‌ + विशरत्मायान्तु सक्तौ,-दति ate | { स्याजिरन्तनो,-हति ate |

Sica: [कका 1, 1 sre

ष्यवहास्कारम्‌ | १५६

लकूलघागमाभावाद्‌"योग्धानुपलब्या बाध्यमानलात्‌ सरणधोग्ये पुनः पञ्चाशदधिक्रे्तवर्षातोतकालात्‌ प्राचौनकाले ITA ख- कालदाद्धावसितागमम्‌लिका विनाऽपि मानामरागत्चागममलतां खनि प्रमाणमिति wars काले श्रनागमहतिपरन्पराथां शत्यः भोगः प्रमालम KAVA नारदः,-- “श्रनागमन्तु यो भु दक्र ae ्रतान्थपि सोर दण्डेन तं पापं दण्डयेत्‌ एथिवोपतिः'"- एति | निश्धितानागमः खभोगम्तेनेव दभितः,- “अन्या हितं इतन्यम्तं बलावषटसया चितम्‌ | ्रप्र्यदं age षडतेऽयागमं पिना" -द्ति। sated WAR दाहम नम्‌ शतमा इतम्‌ | न्यत्त fa fade | वलावषट् राजप्रमादाट्िवनावष्टेन मकम्‌) याचितं पकषौय- मलङ्काराद्यधंमानोतम्‌ समत्ताऽपि,- Cay राजक्राघलोभन SATU बा BAT | प्रदत्ता{न्यम्य ATA नमा भिद्धिमवान्रुयात्‌"'--द्ति | यत्त हारौ तेनोक्रम्‌, 'ख्न्यायेनापि यद YR पिचा yaad fata: | तत अकं परार men विपुुषागतम्‌ "दति एतच्च अन्यायेनापि मुक्माभलुमणकयभ्‌, भि एुननन्यायन सुक्षमित्येतत्परम्‌ | व्रासनविरोघ मुक्ररप्रामाण्यमाश एषम्पतिः,- "यस्य चिपुरुषो भुक्तिः पारब्पय्यकमागता |

pen er ee thn ERNE RRA

[क a aati

* वन्मशमनागमाभवा,- FLA gre | 14

Log UTHER TA |

सा चालयितुं wen पूरविंकाश्छासनादुते,- दति | यत्त॒ पितामष्टेनोक्रम्‌,--

“खरस्तादागमपदं TRA नृपशासनम्‌

HAART भोगः प्रमाणन्तरमिथते *”- इति | तप्मवाहपरन्यरया तप्मसिद्या निखितागमभोगविषयम्‌ | सत्य-

विच्छेदे सागमा भुक्रिः प्रमाएमिल्याह ठस्य तिः,-

"भु क्रिमेलवतौ शास्ते afafear चिरम्तनो |

विष्छिन्नाऽपिरिमा न्तेयायातुपूवेप्रसाधिता--इति। चिरक्मायाः aoa कचिदपवादमाड यान्नवष्क्धः,-

“योऽभियुक्रः परेतः स्यान्‌ तस्य क्यो तसुद्धरेत्‌ |

तश्र कारणं भुक्िरागमेन विना शता--दति। नारदोऽपि,-~

“श्रयारूढ विवादस्य प्रेतस्य व्यवहारिणः |

एुलेण ater शोध्यः स्यान्न तद्धोगाज्निवन्तयेत्‌ {--दति। Rage लभियुक्र्येव दण्डो तत्युच्चादैः तदुक्तं MAA,

“श्रागमस्तु हतौ यन द्‌ण्डस्लमनुद्धरन्‌ |

~~ = ~ ~ ~~~ "~~~ -----~ = ~ ye ee I ee ~ ee => awe oe tee a ~ ee ee eee

* इत्यमेव पाठः aaa) मम तु, प्रमायतरभिव्यते,--दइति प्राठः प्रतिभाति |

1 इत्यमेव पाठः aan) मम तु, स्यपि विष्छेदेः-इति प्राठः प्रतिभाति)

{ वद्धोगमाषादेतौव्धेवहारं निवर्तयेदि्यधंः। तं भोगोमिष-

येत्‌, दति प्रन्थान्तरौवः प्राठः। |

QATAR | १०३

म्‌ तह्ुतखतसुतो वा भोग्यदानिसतयोर पि"--इति एतरैवाभिप्रत्य कात्यायन ्रादइ,-- “arent युक्रुक्ताऽपि ' रेख्यदोषान्‌ विशोधयेत्‌ | तत्सुतो भुकरिदोरषाम्ह॒ नेस्यदीर्षासु नाङ्रुयात्‌"--इति चिपुरषेषु wafga माधकं क्रमेण दरयति नारदः, Sarat तु कारणं afar भुकिम्तु मागमा | कारणं भुकरिरेषैका सन्तता या चिरकभो''--दति। sary स्रडकारेण टशितः,- "ऊतागमस्योक्रकाने YRY WTA: | त्धेवाय दतोयस्य wae किमु मागमा। भुक्रिया मा चतुश्र प्राणं सन्तता मन्‌ परिद्यक्रागमा मुक्तिः Baa प्रभूमेता"- ति) fen qata प्रायन्यमितरभ्यामिल्यान कात्यायनः, ""दश्यानिमेमनदारे जलवा ठा दि भश्रय | afata तू way aq पमाएशिति मिखयः ` -ईति | नारदोऽपि "विद्यमानेऽपि fafaa जोवक्ूपि fe arfay | faiiga, स्यावरेपु धमन ya a ad म्धिरम्‌"--दति।

सम्न्तीऽपि,--

wm ee

# युक्षसक्तेऽपि,-- षति शा | + प्रच्युतिः सटागमा) हति AT? `

१०८ परराश्ररमाधवः|

“व्यज्यमाने हचेचे fart तु राजनि | शु क्रियेख्य भवेन्तस्य लेष्थं तच कारणएम्‌”--द्नि | we रेस्थवेयथ्यकयनायमुकर, पुनभ: खामिलप्रतिपाद- मायम्‌ तस्य भोगमाजेण खामिवाभिद्धेः श्रपडहारेणपि मोगस- भवात्‌ | श्रतएव कात्यायनः,-- | “नोपभोगे वलं araarest तत्सुतेन वा पश्रस्वोयुरषादौनाभिति धमा वयवस्थितः"--दति | यत्‌, याश्चवस्व्येनोक्रम्‌,- “पद्छतोऽबरुवतो श्छमेहांनिविंग्रतिवाषिकौ | UCU भुख्यध्रानाया धनस्य ग्वाषिकौ"-दइति। यद्‌ पि प्रजापतिनोक्रम्‌,-- “दानकालारयद्‌ाऽऽरभ्य भुक्रियेस्य विधातिनौ समा निंश्त्यवधिका तान्तं तिचारयेत्‌""--दति | तदेतदासेधमक्वतां फलददानिविषयम्‌ a तु werfa- विषयम्‌ | यस्मात्‌ तत्कालोपलितथुकरेरव तच प्रामाण्णान्‌ waa ava तिः,-- “Fayed भुज्यते येन समच शरवारिता। ve भेवापरननव्या wafers Sey The आध्या दिपचकस्य फलदा मिरित्याश याज्ञबरुक्यः,--

eaten cutee मान OUR =. 9 ceo RD A re णि TPES AS A विक =>

+ च्मालिक्रेन चेद्यदा,--इति का० मम वु, मालिकः बेदध,- दरति प्राठः प्रतिभांति।

RAYTER UA | ११६

“श्राधिसोमोपनिरेपजडबालधमे विना | तथोपनिधिराअम्तौ श्रोजियाणां घेर पि'--दति | मनुरपि,

“sft: सोमा atau निचेपोपमिधिश्लियः | Time श्रो तरियद्रयं मोपभोगेन arta’ sha | ओतिवग्रहणमन्यासक्रो पलकणा्थम्‌ | WAVA काव्यायमः, "द्वारो चरेत्‌ afaq प्रतं षर्‌जिश्रदाब्दिकम्‌ |

प्र्थार्यौ चान्यपिषय सौचत्ालं चरेन्नरः' garam तरतो Real खभनान्वषण तन; पश्चाएदान्दिको भोगः तद्धनम्यापडारकः प्रतिवेदं arena: कालो विधानां ea: frat fuera TEU: yaaa: , सुरद्धिवुभिेषा aad मुक्रमपन्धताम्‌ मृपापराधिनां चेव भतन कालन गौयते"--ईनि॥ धनस्य दश्रदा्धिको इानिरिति यदुक्त, तष्य fagufaay wat- qary मरौचिः,- ""घनवाद्यालंकरणं याचित्‌ प्र नकश | चतःपश्चान्दिक ठेयमन्धया रामिमाप्रयात्‌"- षति) श्रचापवादमाद मनः - ‘cana भुज्यमानानि ante भदासन।

कछ 1 [क AA CER OOS SS ET ~~ eee

* aQqe,—Efa Ale

९१९० ) WEALATHS! |

` भेनुर्ठोवहदद्धो यख ae: परभुष्यते”-दटति

याचितेष्वप्यपवादमाह याषःः- |

qrearaay यदुक्तं ओोजिये TAIRA |

gqufyataaarta agiia रौयते"-- इति | aveafacty,—

“mara तु यदुक्त गटददकेचापणदिकम्‌ |

सुहद्बन्धुषङ््येश्च तद्भागेन रौयते"-दूति हानौ कारणमाह सएव,

“uaa: MPs स्यादभयं THR |

ae सुददान्धवेषु भुक्रान्येतानि हौयते"-दति वाचिदेकदे शभोगेऽनुपञुके प्रत्येकदेश्रान्तरेषु* प्रमाणम्‌ | तदाद

avafa:,— ‘qqamraa uraarcrary सेखिताः। एकरेग्ोपभोगेऽपि wf भुक्रा भवन्ति ते"-इति। दति भुक्गिप्रकरणम्‌)

मुक्पसंहार पुरःसर दिव्यसुपस्ापयति ठस्य तिः, -

erate तदाख्यातं | लाभभोगप्रसाघनम्‌ |

~ल ~~ in et eet ~~ -- ~ RE EE 9 ~ + न~ oer

* इत्यमेव पाठः स्मैव मम तु, क्चिदेकदे्भोगोऽनुपसक्तपन्येक देष्याम्तरेषुः--्ति प्राठः प्रतिभाति + द्रव्यमेव पाठः Hat) मम तु, श्यावस्खेवदास्थातं,-दति पाठः प्रतिभाति |

TET RTT | १११

PT दोषो शैषिकौ किया"--इति। femgfanfa छदि; os

घटोऽप्निरुदकं चेय iat Shy ER षष्ट तण्डलः प्रोक्तः सपमश्छौ

अष्टमं फालमिल्यक्तं नवमं 1 दवियान्येतानि adrian निरिष्रानि स्वयमक याद्वः भयुक्रानि दृष्करार्थं मात्मनः" --इक्ि 1,

mg.) “aa fea ara दुलापभारणं विपागनंः कोरक

वेगोलोहधारमिणाप्रत्तभदानमन्धास्‌ पपयान्‌ क्रारयन्‌ ofa

wary awufaar दगितः,-

“way aryantalfa मोगोजकनक्रानि च|

देवब्राह्मणपादख qaziincife 4 |

एते ग्पयाः प्रोक्ता weary सुका; wet" -दृनि। गरखत्निखितार्वाप। "दृष्टापदाना अपयान ATT fal afearat {दिखानां म्ये नन मराभियाग प्रया

marta) तथाच UMA

Caen searitfad कोणो feasts faygga | महामियोगेष्येतानि शापकम्यःभियाक्र fcr -ईइति॥ एषाममनिग्रब्देन = तक्षायःपिषदतप्रमावतप्तत१ रना zw “9 qa को श्मन्पेऽपि दापयत्‌'- दि म्बन्पाभियोम BINA t

कां nt en

# faurnta--sfa wre घर '

UR पणशग्माधवः।

कोशस्य लूलादिषु पाटः यावषटमामियोग 2 “greet: | महा-

भियोगेषेवेति नियमाः श्रन्यथा ATT श्रंकाभियोगएव प्रातिः सखान्‌, , नदरवष्टभाभियतीनिं ध्टादौनि विनिदिं भेत्‌ | तष्डुलत्दिव कोच शंकास्तेव वंगरयः”- दति खरण्ात्‌। Maa विवादपराजयनिबन्धनो दण्डः | तज भरमि तिष्टतौति Maa: ग्यदा गौषेकस्योऽजियोक्ता खात्तदा दिव्यानि देयानि तथाच नारद्‌, ~ «aggre यदा स्यात्‌ तदा {यं त्‌ दौयते^"--दति। दिव्यदाने नियममाह पितामहः “न्रभियोक्ता भिरःस्थाने दिगेषु परि कौत्येते। श्रभियुक्राय दात fea श्रूतिनिदश्ेनात्‌” -ईति | काप्यायनोऽपिः- “a कञचिदभियोक्रारं दिययेषु विनियोजयेत्‌ | श्रमियुक्ताय दातव्य fea feafamed:’—sfa | श्रभियुक्राय दातव्य नान्यस्टेति नियमस्य श्रपवादमाद चान्न TVs, | See वाऽन्यतरः कुख्धदितरो वत्तयेत्‌ शिरः"दति।

[11

इत्यमेव पाठः Gay | AA तु, यदा प्रतषकस्थो ऽभियोक्षा खात्‌, वदा दिव्यानि म्‌ देयानि | तथाच गार्द्‌ HARA AT 7 A सदा fea दौयते। ति पढ प्रतिमाति | ware 'शोषकस्ये- ऽभियोक्षरिः-- षति या्नवस्वधादिवचनविरोधापत्तेरिति ध्येयम्‌ |

च्दद्ारकादम्‌। ११९९

नारदोऽपि, `

“परियोक्ा facet सरवजेकः* wafer: |

दतरानितरः gatfeadt वर्तयेत्‌ far: t—efa कचित्‌ विषयविगषेऽग्रिरो दियं देयमित्याह काग्यायनः,-

“पाथिवैः शंकितानाश्च faféerary cafe

ग्रकाग्ररद्धिपराणश्च दियं za fact विना॥

लोकापवाददष्टानां शंक्रितानान्त्‌ cafe: |

तुलारौनि नियोध्याभि नो fees वे wat:

न्‌ शंकासु fat: Ws कम्ाष कदाचन)

afmifa दिव्यानि coma दापयेत्‌"--इति | तिषयविगेषषु दिथविेषान्‌ व्धवस्बापयति मयहकारः,-

न्धटादौनि विषान्तानि मुरखवर्धषु दापयेत्‌"-हूति | पितामहः, -

“mapanfaaatal धटादौनि त्िनिदिभत्‌ |

AAG को शसु गरकाखेतौ नियोजयत्‌"'-दति क्रात्यायनः, -

नप्रंकाविशापसन्धाने विभागे छक्िनां तथा ¡

क्रियाभमूदकदेले कोसेतर प्रापयत्‌” --इति। पितासहोऽपि,-

ne # सव्वचेव,--द्रति Se | 5 मियोक्ञा facet saris प्रकोितिः। सथा. ASAT कुब्पादितसो वत्तयेङ्िर- प्रति ग्रन्यन्तरोयः Wis: SATA { aai—xfa ae Ae | 15

ees ee nA एकक E 2 1 9 i ee A [व ean

१९४ प्रराशरमाधदः।

“fea सर्वशंकासु शन्धिकायं तथेवच |

एषु कोशः प्रदातव्यो face: एद्धिश्द्धये*

भिर थोऽपि विहीनानि दिग्यादौमि विद्येत

धटादौनि विषान्तानि कोश्एकोऽशिरःख्वितः7*-दति धनतारतम्येन ¡ दिवव्यवस्धामार टदष्पतिः+-

“fag qearand पाटोने Wary: |

चिभागोने afer सवे देयो धटः सदा

चटुःश्रतेऽभियोगे तु दातं तप्तमाषकम्‌ ।'

विशते तण्डुलं देयं कोगरएकः भिरः रतः

श्रते. शते निदत्त वा दातययं घनप्नोधमम्‌ |

गो चोरस्य प्रदातव्यं WS फालं प्रयत्नतः

एषा सख्या भिरृष्टानां मध्यानां दगुण रता

चत्गेणोन्तमानां तु कन्पमोया परौचकैः”--दइति काल्यायनोपि,--

“काला dat सुवर्णानां शतमाने विषं सूतम्‌ |

श्रणोतेख् काभ वे garda इतागमम्‌

बष्छानारे विषं देय चलारिंग्रतिके धरम्‌ |

जिग्रहूशविनाभे वं कौशपानं विधोयते

warfare वा मागे तदधीधेष्य तण्डुलम्‌

1१2... श, [ 0 रि 711 an tathed

+ इत्यमेव पाठः was | भम तु, खुद्धिसिञ्ये,--दति पाठः प्रतिभाति। कोशर्कः तिरः सतः--दति णार ue | { परणतारतम्येन)--दइति wre ae |

९१५

agate नागरे तु दें पुचादिमसकम्‌ तदधाधविनागरे त्‌ शौकिकाश्च finer: इताः--दति | विष्ण्रपि। “Cady चाथेजातेषु मृद्धं कलकं कण्पयेत्‌ तच BURA ys दवाकर" भ्रापयेत्‌ दिष्णलोने fren, भचिषटष्णलोने रजतकर, चतुःह्णशोने सुदणंकर, पद्चहटष्णशोने thor, सौरोद्ूतमरौकरम्‌। दगु चवा विदिताः समव करिया वेश्वस्य जिग णेऽयं राजन्यद्ध चतुग ब्रह्मण्य दूति पारस्परादोनां विशेषाः art दभिताः,- “Ag तु मल्यवशनं दिनिष्के पादलम्भलम्‌ | ऊनं fak त्‌ Bo स्यात्‌ को ्रपानमतः परम्‌^--इति निष्कगस्देन काञ्चनकषेवतुचीग्रो यो सुद्रामुद्धितः प्रतिपाद्यते | तवापि wen निष्कयवहारात्‌ भाला मस्यां सुवर्णाना- fafa aga, 7% सुवणपरिमाएमाश मनुः, - ज्लोकसव्यवहाराथं या संशया प्रथिता yf t ताम्र्यसुवणा मान्ताः HARTA: जालान्तरगते भानौ यत्‌ द्र दृते TH: | प्रथमम्तत्‌ प्रमाणानां भ्रमरेण प्रचचते असरेएवोऽ्टौ fare fader परिमाणतः! ताराजसषैपस्तिखमते जयो sheets:

OR पजयन नात ०० कान आम कमय ~ =

* दूवीकर,-द्रति यन्यान्तसेयः पाठ सम चोमः। + parte पाठः सव्ये | मम वु, यधाभिष्हिव!+-द्रति प्राठः

प्रतिभाति।

१९९ परराशरमाधनः।

aia: षट्‌ थवोमध्यसियवन्बेकरृष्णलम्‌ | पश्च हष्णणको माषस्ते Gey Grew पलं सुवणाद्चतवारः पलानि धरणन्दश्र | शष्णणे सम्टते विश्नेयो रौणमाषकः ते षोड्ग्र स्याद्धरणएम्पराणचचैव राजतः | काषीपणस्त विश्चेयस्तासिकः कार्षिकः पणः धरणानि द्र शेयः शतमानस्तु राजतः | चतुःसोवणिंको निष्को fatiag प्रमाणतः"-दइति माषश्ष्दः Gate wien भागे वर्तते | TENE वर्ष- , दतौयभागवातौ माषपञ्चमां शस्य कलात्‌ Sagara नामनि कार्षवचनभसि+ काषोपणएशरब्टौ equine augue नाम- सेये | ग्यागधारणश्ब्यौ पलदश्मां ग्रस्य SURES नामनौ क्ष- खलारिग््समां शर्य Saxe माषसंश्षा | fea एकपले ङूणद्रे बतेते{ श्रतएव दयसं्षाऽधिकारे याज्ञवर्कधश्राच,- “श्रतमामन्त दप्रमिर्धराचैः पलकेव तु निष्कं सुवणंशचलारः---- "दति | इरस्यति: सुवंश्दश्य श्र्थाम्तरमाद,- “aranawat समुद्रा fasar कर्षका प्रण: |

नीद वाककषय

e Buy नामगिष्कषंवश्चगमस्ि-- द्रति ae |

इत्यमेव we: eae) सम तु, एराणकाषपणशब्दौ,--दति पाठः प्रतिभाति।

{ शल्यमेव षाठः स्वे | मम तु, निष्केशसमाबश्ब्दौ TAU. कूप्य- रथे वर्तते,--द्ति प्राठः प्रतिभाति |

SAUTER TET | १९७

सएव Wheat ste May धामकाः तद्दादश्र gate दौनारास्यः awa तु-इति | awe पले विकन्पमाद,- “पलं सुवर्णाः चतारः TE वाऽपि प्रकौन्तितम्‌'"-ए्ति | राजतेऽपि कार्षापणोऽम्तोत्यार नारदः “कार्षापणो विश्यं दिशि रोय प्रवत्तते"-दति। aay मौव निष्कस्य प्रमाणमाह,- “पलान्यष्टौ सवे स्यसे सुवणाञ्तुदं श्र एतत्‌ निष्प्रमाणन्त्‌ यामेन परिक ्तितम्‌"-इति TA सनुक्रप्रमाणात्‌ प्रमाणान्तरमाषादि दियदष्डग्यतिरिक्- विषये दिग्रषयवहाराविरोधेम रायम्‌ तया वृहस्पतिः, “Har facial’ मनुमा ममुदटाइता > वार्षापणान्ता मा दिखे नियोश्चा fara तथा AUNTS दण्ड उत्तमाम | agg मध्यमः परोक्तः तदद्धमधमः सतः" -इति आतिमेदेन दिवग्धवस्ामाश नारदः. "ब्राह्मणस्य धटो देयः चचचिय्य KATIA: | Swe मलिलं दयं शूद्रस्य fares तु हाधारणः समस्तानां कोः प्रको मनौविभिः'"-इति

afar चेयं व्यवस्था |

[क 1 ~ ~ ~ ~~न

[1

© दत्यमेव पाटः Bay | AY तु, AS ufanifa |

सिर जाभया,--दति पाठः

१९८ परान्नरमाधवः |

“सवेषु wifes वा विषवजं चिभो्तमः”--दइति TATA | were वयो विशेषादिना व्यव- स्यापनोयम्‌ | ATH नारदः,-- | “द्ञोवानुगत्तवधिरान्‌ पतितांखादिंताश्नराम्‌ | बाणवुद्धस्तिय एषां * परौेत धटे षदा स्तोणान्तु विषं प्रोक्तं चापि सलिलं खतम्‌। धटकोग्रादिभिस्ताणामतस्तासां विधारयेत्‌ arate: सोबाला धमेश्रास्लविष्वरणेः | रोगिणोये 4 agr स्यः पुमांसो ये दुभगाः॥ अहवाऽपागतानेतान्नेव ate farsa चापि हारयेदभभिं विशेषं! विशोधयेत्‌"-इति। काल्यायनः,- “न सीहभित्पिनामभ्निं सलिलं नाम्बुसेविनाम्‌ मन्यो विर्‌ाच्ेव विषं ददाख क्रचित्‌ तण्डुले नियुश्ौत व्रतिनां सुखरो गिणाम्‌--ईति | पितामशोऽपि- “afeat वजेयेदभिं सलिलं श्वासकासिनाम्‌ | , पिन्तर्े्नवतां fired विषनतु परिवजेयेन्‌ यदाप्यं स्लौयश्चनिनां कितवानां तथेवच

* बाशङ्डस्सियो येषां, इति कार | + द्रव्यमेव पाठः सम्भे | मम तु, विषेय,ः--हति पाठः प्रतिभाति,

कोरः ATH दातव्यो ये नासिकटकयः- दति काल्याथनोऽपि,-

“मातापितादिजगरडष्लोबारधातिनाम्‌ |

मरापातकयुक्रानां नास्तिकानां विशेषतः

दिय प्रक्पयेन्ञेव राभा ध्मेपरायणः |

लिङ्गिनां wana मन््रयोगक्रियाविदाम्‌ |

वणेसङ्करजातोनां पापाग्यासप्रवरिनाम्‌

एतेग्वेवा भियोगेषु मिन्येष्वेव यद्नतः |

एतेरेव नियुक्रानां arent टिव्यमहंति

मन्ति माघो यच ततर शोध्या: want: एति) यदपि पितासदेनोक्षम्‌,-

"-सत्रतानां शगराङ्ानां बालदरदतपस्िनाम्‌ |

प्लोएाञ्च wifes यदि घमेश्वच्धने"-दति तदम््म्ब विषयम्‌ | चन्त HTT AT MA.

“धनदारापदहाराण * सयान पापक रकाम्‌

प्ातिलोग्यप्रसूतानां fayat मतु रजनि

anfagria दिव्यानि मंग्येषु निर्दित्‌ "षति तत्ते नियुक्रपुरषान्लाभ विषयम्‌ | शारौतः वणनिपय। विष मार्‌,

“राजन्येऽग्निं He विरे पग्र तोयं नियोजयन्‌

नीमि

* छस्पप्यधनदारागां-- द्रति का | इव्धमेव पाठः समख | मम तु, वरविषष-- Ef प्रनिभाति |

१२० परसाश्र्माधबः।

विषं ब्राह्मणे दद्यात्‌ विषं वर्णानरे सतम्‌ | के एतण्डुलधमेस्हु धरममेखम्भवमेवच पुत्रदारा दिश्पथाम्‌ wae प्रयोजयेत्‌"--दति दिव्यानां कालविगेषमाइ पितामहः,-- “Sat anita षैभाखश्च तथेवच | एते साधारणा भासा दिवखानामविरोधिनः धटः सवेचिकः stat वाते वाति विवजंयेत्‌ | तथा शिभिरदेमन्ते वर्षाखपिष दापयेत्‌ | He सलिलभित्युकं हिमकाले त्‌ वजेयेत्‌"^-दति नारदोऽपि, “ety: भिशिरहेमन्ते वर्षासु परिको्तितः श्ररदगरोभ्रे तु सलिलं हेमन्ते शिरे रिषम्‌ ama कोश्रसिद्धिः स्यात्‌ नोष्णकालेऽभ्निशोधनम्‌ | urate विषं दद्यात्‌ प्रवाते तुलां नृप -इति॥ दिष्ण्रपि | “खौत्राह्मणविकलासमथरोगिणं तुला देवा सा नवाति वायौ मासिकस्य) श्रषद्ध्मलोहकारिणणममरि्दवः। शरद्योश्रयोश्च | दुष्टिपेत्निकत्राह्मणनां विषं देयम्‌ | arate Qvarafeaat arent arentfrenagstfaat चोद्‌- कम्‌ शेमन्तभशिशिरयोखच | arama: कोशो देयः। कुष्ट- व्याधिमारकोपदृषटेश्च""--षएति पितामहोऽपि "पूरवाह्णेऽभरिपरौच्ा स्यात्‌ पूर्वा धटो भवेत्‌ wae तु जलं देवं धमेतक्मभोष्ता

वैव हइारकाखम्‌। १९९६ `

feqew तु gale को शश्द्धिविधोयते | cat तु पश्चिमे wa विषं देयं सुनौतणम्‌ "--दति॥ दिव्यदेशणानार,- “angel faga: ara: set 22 घटः सदा दनद्रस्थाने सभायां षा रजदारे aaqway”--gfa ti | इद््म्धानं प्रस्यानटरेवतायतमोपलक्षणम्‌ श्रतएव मारदः,- "भभाराजक्लद्रारे दैरायतनषवरे--एति। अधिकारिसिगरेषण anfana रस्याप्यति काद्यायनः.- “amma sfarnral मद्धाणतकिनां नेम्‌ | anna aay राजव प्रयोजयत्‌ प्रातिलोश्यप्रञ्चतानां fea दयं चतुष्पथे | ्तोऽयेषु हु aa सभामध्ये किदुबेधाः-द्ति। दिथटेप्राद्यनाटरे faa प्रामाप्यरानिरित्यारं नारदः, - "श्दधेप्राकान्तदन्तानि Henan च) व्भिचारं wersuy ante म्‌ म्प्रावः- दति वासोः जनभमिवासः। नस्प्रादरिनिजेनप्रटशदति aad तया पितामहः “faaig waaratfa wif gare: Rae Agr y यथाऽ मोपा arava! तत sarareazara तिधिनाऽनेन धिन्‌ | mS: प्राशिता प्रावित्ाकम्नतोवरदंन्‌ wate भगवन्‌ wa अस्मिम्‌ fag ममातिग्र |

10

RR पराद्नरमाध्वः।

सहितो शोकपालेख्च वसा दित्यमरड्णेः श्रावाद्च तु धटे wa प्ादङ्गामि विन्यसेत्‌” | धट ग्रहणं स्व दिष्यापलखणाथम्‌ | एषां धमाणां सवंदिव्यसा- धारणएवात्‌ श्रङ्गविन्यासप्रकारसेनेव दथितः- “ge ga aq cera Raw cfea तथा। वर्णं ofa. भागे इुषेरश्चोन्तरे तथा श्रग्यादिलोकपालखं कोएमागेषु विन्यसेत्‌ ox: पोतो यमः श्यामो वरणः स्फरिकप्रभः Hare सुवणणंभस्लप्निाय्यसुवणभाः | ava fad तिः श्यामो area: mre Suray Ware: एवं ध्यायेत्‌ क्रमादिमान्‌ | wee chee TF वद्धनावादयेदुधः धर्मौ, yaa व्योम श्रापसेवानिलोऽनलः | WATE प्रभास वखवोऽष्टौ प्रको्तिताः Saad श्रादित्यानां यधाक्रमम्‌ धाताऽव्यैमा मिचख् वरुणे भगस्तथा cat विषान्‌ पूषा परजेन्यो द्रमः तः | . ततस्बष्टा ततो विष्णुरजयो यो जघन्यजः waa दादशादित्या नामभिः परिकोतिताः | sa: पञचिमभागे ठू रद्राणामयनं विदुः Tomy wag गिरोग्रख्च महायशाः |

णि

# पषयो,-- KEATS |

खवङारकाखम्‌। १२४ श्रजेकपाद हिवः पिनाक चापराजितः सुवनाधौश्वरथैव कपालो विाग्यतिः। स्धाणमेवश्चः भगवान्‌ रद्रासलेकादग्र खता; प्ेतेशरचोमध्ये माटग्धानं प्रकन्पयेत्‌ |

ब्राह्मो माहेश्वरो देव कौमार Feud} तथा TTR ARATE चामुण्डा गणएष्युता निष्छते त्तरे भागं गरेशायतनं विदुः वरुणम्योन्तरे भागे मरतां स्यानसु शते | गमः VTA वायरनिलो AKAGI प्राणः प्राणग्रजोवौ मर्तोऽष्टौ प्रकौर्भिताः धरस्योत्तरभागे! ठु दुर्गामावारयेद्ुधः एतासां देवतानां खनाखा पूजनं विदुः भूषाऽवसान Warr wat चार्ययादिक) क्रमात्‌ श्र्धादि पञ्चारङ्घनां श्पान्तभुपकन्छयेन्‌ गन्धादिकां निषेद्यान्तां परिचय्यां प्रक्पयेत्‌ चतुिंव्‌ तथा रोम: वर्तयो Heures

[क we

i ee eee क)

* स्थाग॒भगच- एति का०।

तथेन््ागौ+- दति ate He

{ भम्मस्योत्तरभागे,- दति are |

§ इत्यमेव प्राठः स्त्र मम तु, दत्वा चाष्यादिक्ग,--दति पाठः

प्रविभाति |

, श१४ भराग्ररमाधवः।

राज्येन इत्रिषा चेव मिद्ध मसाधनेः सा विन्या प्रणवेनाथ खाहान्तेनेव होमयेत्‌”-दरति प्रण्वारिकां Wasaga Ga: खादाकारान्तं THATS समिदाज्यचरन्‌ भव्येकमष्टोत्तरश्तं जयात्‌ | “Sama यत्त स्यात्‌ Wasnt खतम्‌ः- दति | एतत्‌ खवेसुपवासा दिपू्ैकं कतेग्यम्‌ | तदाद नारदः, “SRA AA: लाला च्दरवासा मानवः | पूर्वाह्न wafearat प्रद्‌ानमसुको तितम्‌" इति यान्ञवरक्योऽपि,- ‘yaaa सूद यउपोषितम्‌ | कारयेत्‌ स्व॑दिव्यानि देवद्रह्मणएमन्निधौ "दरति पितामदोऽपिः- "“चिराचोपषितायेव एकराचोधिताय | नित्यं देयानि दिव्यानि wea साद्रेवाससे"--दति श्रयञ्चोपवाभचिकस्पो वलवद बलवदविषयतया zea: | दो मानन्तर्‌ं पितामहः,-- “यञ्चाथम्‌भियुक्रः+ म्यात्‌ लिखितं तन्तु waa | मन्तेणानेन सदतं ara शिरोगतम्‌"- इति Rag,

~~ = ~~ ee ae ee an = OE OES AP Sree marr Pm पि 2 81 9 ote

द्रव्यमेव प्राठः सर्व॑ | यदधंमभियुक्त५--दति तु पाठः समीचीनः परतिभाति

QIWTLA Ww | १९५

श्रादित्यचन्द्रातनिलोऽनलश शौभूमिरापोहदयं way रख रातय उभे रे wag धर्मश्च जानाति नरस्य दत्तम्‌" sag विधिः स्वेदिव्यशद्ारणः। “दमं मन्तमिधिं हस aifeay योजयेन्‌" -दति पितामहस्मरणात्‌ प्रयोगावसाने रलिष्णं टात्‌ तथा भणएव,- “afaqquiaaraaia चिणाभिभ तोषयत्‌- दति | दति द्ियमाठ्का | अथ uzfafy: | aa पितामहः, - “reat निश्चलः ara: पवौ दग घटः aT | SRA मभायां वा want चतुष्पथे" sf मारदोऽपि,- ““सभाराजग्रदार खरायतमचलरे "इति पितामदः,-- <वि्ालायुद्दितां Wal घटग्रालयान्त्‌ कारयत्‌ यत्रस्धो नो पशन्येत श्यभिथण्डामत्रायमेः कवाटवौजसंयुक्षां परिचारकरकिताम्‌ | पानोयादिसमायुक्रामभन्यां कारयवृपः'- एति

Re पराशर साध्ववः।

धटनिर्माणप्रकारमार पितामहः,

“ata तुला . कायां पादौ कार्य्यौ तथा विधौ

शरन्तरन्तु Tae चेदध्यद्धमेवच

fem तु यार्जिकं cd Sarna |

प्रणम्य लोकपालेग्यब्ला areal ममो षिभिः"--दति॥ नारदः

“खादिरो कारयेत्‌ aa नित्रेणं शक्तवजिताम्‌ |

भिंशपान्तदभावे तु सालं वा कोटरेविंना

अष्लनस्तिलकोऽोकः wate रक्रचन्दनः

wafaurfa काष्टानि were परिकल्पयेत्‌

काश्व धटतुला कार्य्या खादिरौ तिन्दुकी तथा |

चतुरसम्तिभिः खानेधटः ककटकादिभिःः--दति faarae:,—

“Haars देयानि निषु खानेषु aaa |

weed निखेयन्तु पाटयोरुभयोर पि--दति वासः,

“wage निखेयन्तु प्रोक्तं quate: |

` षडहस्तनतु तयोः प्रोक्तं प्रमाणं परिमाणतः" द्रति

पितामहोऽपि, |

“ate तु तथोः ara पाश्ंयोरभयोरपि |

warqeat स्यातां faa द्‌ भिर ङ्गलैः

NIM तु कन्तेयौ तोरणान्याभधोशुखौ |

| अवहारकाकम्‌ | १९७.

सि wreagt waaay fiat इति नारदः, - |

“firmed ममाभाशच पा्भयोरसयोरषि।

एकच ford पुरुषमन्यण ag Sepa 1

धारयेदुन्तरे ay पुरषं ahaa feng |

पौटकं पुरतस्तस्ितरिष्टका" vielen eta पितामहः,

“एकस्मिन्‌ रोपयन्मत्यमन्यस्तिन्‌ afaat इएभाम्‌

दृषटकामस्मपाषाणकपालास्थिकिव्रिभिते"--दति aa व्वत्तितष्टकादावपांशनां विकन्पः। ममतानिरोकणायं

रान्ना तदिदो भियोक्तव्याः तयाच पितामहः.

“qagar नियोक्रवयास्तसामानविश्ारदाः |

वणिजो Suara कास्यकःरा स्येव

काय्यं परौ चके नित्यमवम्तवममोधटः |

उदकञ्च प्रदम धडस्योपरि पण्डितः

यस्िन्न waa ate विजयः ममोधटः |

तोलयिला at परै पश्चात्तमदतारयत्‌

wer कारयेत्‌ fare qaiarannt tara

तत श्रावादयेत्‌ Bara fanaa wrafaq

वायन gas भन्धमाम््ानुनपनेः"-इति gy विशेषमाह नारदः,

~ ete ATR 0० nena, ~ पक eee धल ~ =

* पिटकं पुस्येत्तस्मितिरटका,-- ति Ie |

शय पलशरमाधवः।

"पकमश aay दध्यपूपारतादिभिः।

श्रचयेत्त्‌ ve पूवे ततः frets पूजयेत्‌'--दति दनद्रारौनिल्यथेः ततः प्राञ्धिवाकस्तुलामामन्तयेत्‌ तदा

पितामहः,

“"धटमा मन््येचैवं विधिनाऽनेन शास्त्रवित्‌ |

ल्व घट, ब्रह्मणा GE: Was दुरात्मनाम्‌

धकारात्‌ wafers टकारात्‌ टिल नरम्‌ |

wat भावयसे यस्मात्‌ धटस्तेनाभिधोयते+"--दति प्रास्लपित्‌ प्राद्धिवाकः |

“aaa धट, ane विदु्यानि मानवाः |

व्यवद्ारेऽभिग्रस्तोऽयं मानुषस्तोखयते लय |

तदेनं संश्रयं तसात्‌ धमंतण्डेत्तुममि'"- दति ततः aural तलामामन्भ्रयेत्‌ | तदाद याज्वस्व्यः,-

““हुलाधारणविद्वद्विरभियुक्रम्हलाश्रितः

प्रतिमामसमोग्तो रेखां रतवाऽवतारितः

a aa, सत्यधामासि पुरा देवविनिर्मिता |

ce cee AES जाया I PCLT STL LE मक cee eee CE TS LAY EOS TR STN ON ow 11)

* इत्यमेव पाठः eat! ममतु, धटन्तेनाभिधौयसे,- द्रति पादः प्रतिभाति | |

सश्रोध्य,-इति wo) शोध्य,-दरति ate | ममतु, शोध्य, इति वा, शोध्य द्रति वा पाठः प्रतिमाति।

| सत्निधो aifa,—xf& शा० ae |

व्यवदार काम्‌ | १५६

तत्‌ wa वद्‌ कष्याणि, सेशया्मां विमोचय

यद्यसि ATAU ARNT त्मधो नय |

शद्धिशद्रमयोञ् ~ मां तुलामित्यभिमन्तयत्‌ "पति ततः प्रा ङ्धिवाकम्हलाधारकं ग्पयर्नियम्य शोष्यं एुनरारोपयेत्‌ |

तथाच नारद्‌ः,-

“समयं परिण्द्माय पुमर!रो पयेत्‌ ATH

fafea afecfer भिरस्यारोपय पचकरम्‌-दति। समयाः शपथाः ते विष्णना दिताः,--

“्दप्रानां हता लोकाः" मे लोकाः कृटमाकिणाम्‌

ANTS ते लोकाम्रलां धरयतो शषाः --दृति युनरारोपणएनन्तरं नारद

"त्वं afte सरवेण्रतानां पापानि सुरुनानि च।

तमेव देव, जानषे विदर्यानि मानवाः

व्यवद्ाराभिग्रस्लोऽयं नानृतं तोन्यते लया

तदेवं sued Es धर्मनस्तातुमदेमि

देवासुर मनुव्याणां मत्ये त्मतिरि यते!

सत्यषन्धोऽसि भगवन्‌ प्भाग्ररुभविभावतः।

[

सन ^ 4 जन oS

» द्रत्यभेव पाठः स्वत | मम तुः त्रकताप्राय AURA, Ela पाटः परतिभाति | t इत्येव wis: Gat ममतु, anfafraa,—efa ara: प्रति

भाति | [ इत्थमेव पादः aad | ममतु; विभावितः,--दति पाठः प्रविननावि। 17

१९१०. पश्रमाधवः)

श्रादित्यचनद्रावगिलोऽमणलख ghifacitecad way | sey राचिश्च उभे सन्ध्ये way जानाति नरस्य इत्तम्‌--दति। तद्नन्तर पितामहः, “ज्यो ति्िद्राद्यएरेष्ठः Haars | fag: पश्च fase: परौचा कालकोविदेः साच्चिए ब्राद्मणएष्ठाः यथादृष्टायेवादिनः | ज्ञानिनः गटचयोऽलबाः नियोक्तव्या you तु तेषां वचनतो गम्यः एद युक्रिविनिणयः*”-दइति श्रारोपितश्च विनाड़ौपश्चकं यावन्तावन्तथेवां खापयेत्‌ en वचरोचारणएकालः प्राणः, wearer विनाडिका क्रञ्च, “द्शगवे्रः प्राणः षटुप्राणणः सयाद्धिनाडिका?-दति प्रध्यषटद्भिनिणेयकारणएमाह मारदः,- “तुलितो afe ada विष्ररद्धः ara sue: | ममोवा रौयमानो aa fang? भवेन्नरः-दति॥ व्यासः, - “श्रधोगते वे शदोच्डुदयोदुष्वगतसथा |

7 1 ON ES 1, OS EY OO 1 111 11 1

* इत्थमेव पाठः aaa! मम तु, शधाश्डधिविनिगंयःः--श्ति प्राठः प्रतिभाति :

rN 1 यावयेव एति कार |

STE , unt

समोऽपि fag: स्यादेषा sefgeereat भिरण्डेदेऽचभङ्गे भ्य्ारोपयेश्नरम्‌ | एवं निःसंश्यन्नानान्ततो भवति निणयः'" Nee संश्रयो नारदेन प्रपश्ितःः- 'तुन्लाभिरोभ्यामुद्धान्त विषमं न्यस्तसचणम्‌ यदा aT BAUS वा चनेत्पूत॑मघोऽपिवा निसुक्तः wear asa तदा मेकतरं वदेत्‌" षति maa: | यद्‌] तुषनापभागौ तिक्‌ चलितौ, यटा ता BAA AT ari न्य्तमुदकतादि चलिते, यदा वायुमा प्रेरिता तुला क्मधष कम्पते, यडा VARIAN “ATA प्रमुच्यते, तदा जयं पराजयं वाम्‌ विनिशनु गर्यादिति। राज्ञः कन्तव्यमार्‌ पितामहः, - "द्धिः fiaat राला Ne es प्रपजयत्‌ | छलिक्पुगेदिताचायखान्‌ छिणाभि्च तोषयन्‌ एवं कारयिता राजा भुक्वा भीमान्‌ मनोरमान्‌ | ममो यौ न्तिमाप्रोति ayaa कन्पते ईति भट्विधिः |

्धाश्मिविधिः।

“शद्वेविपिं प्रवच्यामि यथावश्छास्तचोदिनम्‌ |

कारयेन्मण्डलान्यष्टौ पुरम्ताम्नवमं तया aiid मण्डलं we feats वासं तथा

१९२ प्राशरमाध्ः।

ama वायुदैवल्यं We यमदेवतम्‌ पञ्चमं विशदे व्यं षष्ठं कौ बेरभुच्यते" | ana सोमदेवत्यमष्टमं सवैदवतम्‌ पुरम्तान्नवमं यत्तु तश्मदैवतं विदुः गोमयेन तानि स्यरद्धिः पय्युचितानि दाजिंशद ङ्ुलान्यामेण्डलान्मण्डला न्तर म्‌) | श्रष्टभिमेष्डलेरे बमङ्गुलामां शतद्यम्‌ षटपश्चाशत्छेमधिकं way परिकल्पना मण्डले मण्डले देयाः gut: शा्लप्रचोदिताः"- दति | तच, नवमं मण्डलं परिमिताङ्गुलप्रमाणएकः, afeera श्रष्टभि- मैण्डलेरष्टभिशचान्तराकनः प्रत्यकं षोडगराङ्कुलप्रमाणकैर ङ्ुलानां षट्‌- पश्चाग्द्धिकश्रतदयं aad AMAT” खत्यन्तरेऽभि- हिनम्‌,- “ति्यग्धवोद्राण्यणे Bel वा तौहयस्तयः | प्रमाणमङ्गुलस्योक्क वितस्तां शा रुला द्रति श्रच च, गम्यानि oda मण्डलानि) “स तमादाय समैव मण्ड- लानि एनेव्रैजेत्‌"- ति यान्नवखुक्यसमरणत्‌ | नारदोऽपि.- “हस्ताभ्यां तं were प्राद्धिवाकसभिरौतः |

° oe ०७ न= + ~ ~न 9 नन = ~न = ~~ ^ ny ee ~ = "~ = = Ae Sy

(९) सच, मणडलप्ररिमाय षोडश्ाङ्लं मण्डलयोरन्तरपरिमाणमपि ता- वदेव | तथाच प्रथममखलमवधौकत् दितीयमणडलपर॑नतं दानि प्रदङकृलपरिमाणं सम्पद्यते इति बोध्यम्‌ |

VTTVICA BA | ६१९

खिवेकसिन्‌ यतोऽन्यानि' त्रजेतप्न लजिद्यगः श्रसभान्तः पनेगेच्छेदक्रड्‌ः सोऽषटमं प्रति पातयेन्तामप्रा्य या शुभिः परिकष्पिता॥ मण्डलमतिक्रामेख्न चा्वरगपयेत्पदम्‌ | awed गला ततोऽग्निं विषजेन्नरः'"- ईति गनि विसगेथ नवमे मण्डले काय्य: तदाह पितामहः Sapa मण्डलं गला नवमे निदिपे्षतः।”-इति रय पिण्डपरिमाण्माह पितामहः, “अमं तं aagar पश्चाग्रष्यलिकं समम्‌ | ' पिष्डन्तु तापयदप्माव्टाङ्गुस्तमयोमयम्‌ "- दति प्रथममण्डलाद्किणतौ fa प्रतिष्टाणाप्रये पदमानायेति sen ्ोत्तरग्रतवारं प्राङ्धिाको swear) “at एतमषटोत्तरं ग्रतम्‌"- दति सरणात्‌ | तसिननप्रावयःपिष्डं लोकक्रारेण तापयेन्‌ ¦ तदा नारदः, Carag लोहकारो यः कुग्रसश्चागिकमि | ुषटप्रयोगशचान्यच्र तेनायोऽप्नौ तु दापयेन्‌ श्रद्निवणेमयःपिष्ड मस्फुलिश्गः सुरज्जितम्‌ पञ्चा रत्य लिक यः कारयिला एवचिदिैः

* ska पाठः aan) भम तु. ततो्यानिः-दति पाठः प्रति. भाति |

1 fafartge,—xl काण |

१३४ | ULITNCATHA: |

हतयतापे arent बरूवातत्थपुरक्ललम्‌"-दति लो दष्द्यर्थमु षितजले* fafea पुमः सन्ताप्योदके निचिष्य qa: सन्तापनं उतोयस्तापः | तसन्‌ तापे वन्तेमाने धमावाहनादि मम्‌- मण्डपं garfafa विधाय पिष्डख्मभिभेभि्मन्तेरभिमन््येत्‌ aay नारदेन दगिताः,- “aa, वेदाश्चत्वारः TY यज्ञेषु हयसे | लं मुखं सवेदेवानां त्वं सुखं agaifeara satan fe भरतानां यथा af mira | पापं पुनासि परै aay तस्मात्पावक घच्यमे पापेषु द्शेयात्मानमचिश्नान्‌ भव पावक | श्रयवा हद्धभावेषु Wat भव Barwa aaa, सव्वे्तानामन्तश्ुरमि ahaa | aaa देव, जानोषे faquifa मानुषाः व्वदाराभिगश्रस्तोऽयं मानुषः प्रद्धिभिच्डति। तदेनं संश्यारक्माद्धमेतस्तरात्महेभि?-दति | तचादावेव त्नौ दिविमदंनेनं शोध्यस्य करौ लभेत्‌) तदश विष्णुः “करौ विष्डदितौ त्रोरिभिस्तस्यादावेव लक्षयेत्‌" दति लंचयेदित्यस्याथौ नारदेन वितः, ““लचयेत्तस्य चिक्कानि दस्यो रभयोर | manta गढानि सत्रणान्यत्रणानि 4 iI

== = ^ = ~ ~ ~~ ot nee ee oon ee

[ शि 1 ~~~ Oe

+ इत्यमेव पाटः aaa) मभ तु, लोहमु योचितशलेः-- दति ae प्रतिभाति |

व्यवहारकाण्डम्‌ | ११५

weedy सवेषु guigauerfa तु" | afanzaa: waaafemari aw whew करदयखितस्य श्रत्रणादिग्ानेषु meMafetaa रंसपदानि guatfeae: | ततः कर्तदमाडह BWNATK:,— “करौ faafeadiel wafaar ततो न्यसेन्‌ भप्ताश्त्थश्य पएांणि तावत्‌ इूबेए बेष्टयत्‌'--इति | quifa ममानि,- “"पतेरश्चलिमापृय wae: wife मभेःः- इति सरणात्‌ | वेष्टनदजाणि सितानि ariel | “aaa मतौरेम्तौ सप्तभिः सूजतन्तभिः"- इति नारदट्कर्णत्‌ तथा, aN ग्रमोपचाणि मतैव दृं वांपच्राणि ania श्दयत्यपचाणामुप्ररि faq) AEM we न्तरे, “eq पिष्पनपचाणि श्रचतान्‌ qaatzfu | हस्तयो मिचिपेत्तज garded तया”--इति | यत्त॒ Wants “mera पाणिभ्यामकंपतेम्हु मप्रभिः safe हरन्‌ एदम्लदग्धः स्परमे पदे” -द्ति। तदश्वत्यपवालाभविषयम्‌ | ग्रतौऽ्त्थपताणं मुष्यलमाह

पितामद्ः,--

* डः Sa) ममतु, weary प्रमादिष्या+ष्‌,-

* इत्यमेव पाठः सव्ये दति ata: प्रतिमाति।

१३१ पराश्ररमाधवः।

“पिष्यलाष्लायते व्किः fret sate शतः |

श्रतस्तव्य तु पत्राणि शस्तयोनिचिपेत्‌ बुधः”-इति | तदनश्तर कत्तयमाह सएव,

“ततस्तं समुपादाय राजा धमेपरायणः |

अन्दंगेन नियुक्रोऽथ हसतयोस्तत्र निकचिपेत्‌

चरमाणो गच्छेत Wet Wea: शनेः |

मण्डलमतिक्रासेननान्तरा स्थापयेत्‌ पदम्‌

WEA मण्डलं गत्वा AIT स्थापयेत्‌ बुधः |

ware: पातयेदयस्त avy विभाव्यते

पुनरारोपयघ्ोदं स्थितिरेषा इृढौरुता?--ई ति | यदा STALE: तदा श्राह नारदः+

यदा तु विभायेते दग्धाविति करौ तदा।

Aaa सप्तवारांस्तु मदयत्‌ |

मर्दितो चदि नो दग्धः सन्धेरेव विनिश्धितः।

गोप्यः NEY Ae दग्धोदण्डयो यथाक्रमम्‌

gazes fay ततोऽन्यचा पि wear

मण्डलं THIET यच स्यादाऽग्गिसम्भवम्‌

यो fang: विज्ञेयः सत्यधमेव्यवखितः"-ए्ति। यत्तु WAY प्रथ्वालेन ₹रस्ताभ्यामन्यत्न Ta, तथाणपद्ो-

भवति | तदाह कात्यायनः

CLAP CARED Cree CPI nn eC S TS TY AS Oa ae

SER Car WY! AIT SRD

* 7e,—xfa ate we | ममतुःयदि तुदति पाठः प्रतिभाति

व्यद रेक्गाररम्‌ | ane

“yeaqratar fare स्यामादन्यत्र द्यते

श्रदग्धन्तं freee: तस्य wat योजयेत्‌"-दति . श्षद्धिकालावधिमाह पितामहः,

“ततस्तद्धम्तयोः प्राेदग्टहौ वाऽनयेयेवेयंवान्‌

fafanaa तेषां a wenat मदने रते

निर्विकारे दिनस्यान्ते प्रधि तम्य निमिरदिपेत्‌"-दति।

इत्य्मिविधिः। अथ जसपिधिः।

aa पितामहः,

'तोयम्यातः प्रक््धामि विधि घर्म सनातनम्‌ |

मण्डनं dae tapal पृनयत्‌ तदिदक्षणः

परान्‌ BY AT भक्ता वरणवेश्च WAR |

ug पष्यधुपंश्च ततः कसं ममाचरत्‌"--ष्ति। धन्‌पः प्रमाणमाद् नारदः

gg धनु; RATA मध्यमं TEMA स्तम्‌ |

मन्दं पञ्चशतं Head AW uafafe:

nada तु wid WaT ब्ररचयम्‌ |

eararg श्रते ag च्छ रला त्रिचच्चणः

न्यनाधिके तू दौषः स्थात्‌ 1 पत्‌ माटकरम्तया- दनि mary frre faafaal ) TTI भरनायसायाः RAAT.

नपरैरनायघयेख Weta [ATs | 13

१९८ ` पराशरमाधवः।

धनुषसताञ्रोसचैव सुदृढानि विमिचिपित्‌”ईति

सरणात्‌ | चेत्ता चाज चजियः, तहृत्तित्राह्मणे वा ATH ` पितामहः

“षा चचिथः काय्यैसतहृन्निब्रह्मणिऽपित्रा

अक्ररददयः शान्तः सोपवासः चिपेत्‌ शरान्‌

प्ररस्य पतमं are खपणन्तु विजयेत्‌ |

सपन सर्पच्छरो AAMETETAT यतः

eng प्रचिपेदिदान्‌ मारते वाति वा गणम्‌ |

विषमे वा AAT टचस्थाणसमाङुलं

तरगल्मलतावक्षिपङ्कपाषा एमयु A” -दरति॥ तोरणं मन्ननसमो पस्थाने सभे प्रोध्यकणप्रमाणाच्छ्रित कायम्‌ |

तदाद नारदः

"गला तु सजलं ara’ तटे तोरणमुद्छरितम्‌ |

gata कणेमाचन्तु मिभागसमे wet’ —<fa खपादेयानुपादेयजले वि विनक्ि पितामशःः-

नस्थिरवारिरि aaa ग्राहिणि चाल्पके |

दणनेवालर हिते अलौकामद्यवजिंते

देवखातेषु यत्तोयं तस्मिन्‌ कुय्यादिग्नो धमम्‌ |

श्राद्धे aaa शोप्रगासु aly

विभेदमल्ले नित्यम्‌ भिपङ्विवजिते |

ख्यापयेत्‌ प्रयमं तोये TT पुरषं नृपः

+ तस्जलबख्धानं,-- ति का०।

ववडर काकम्‌ | Rae

श्रागतं TS Bar तोयमध्ये कारिणम्‌ |

ततस्वाषादयदवाम्‌ सलिलं चानुमनश््रयेत्‌""--दति तच चादौ वरणप्ूजा कर्तव्या तदाद नारदः.

“marae: सुरभिभिमधुरेशच एतादिभिः।

वर्णाय प्रङुरवीत प्रजामादौ समाहितः" टति।॥ एवं वसुणपूजाङ्कला धर्खमावादनादि मकणदेवतापूजां रोसं

समन्लक प्रतिन्नापचरगशिरोमिवेप्रनान्त हतवा प्राहिवाकोजलामि- wang | Hay fama गिंतः,-

“aaa: षवेश्तानामन्तश्चरभि माजिवन्‌

वभेषां भो विजानोषे विदुर्यामि मानेशः॥

व्यवद्धारामिग्रसोऽयं मानुषस्त्रयि मनव्नति

तैन संणयान्तस्मात्‌ धषतरतातुमहमि- दति पितामहेनापि

“तोय, चं प्राणिनां प्राणः षटेराद्य्त्‌ निर्भितम्‌ |

Use कारणं प्रोकं द्राणां दिना तया

MAS THATS WATT TTA शोथस्येतिकन्त्यतामार चाज्ञवस्काः+--

““सल्येमे म(ऽभिर्‌च लं Fay तम्‌|

नाभिदघ्रो रकसस्य म्र रेलोर्‌ जलं विन्‌ "दति + तदमन्तर कन्तेयमाद सएव,

“समकालमिपु सुक्रमानौयान्या जौ नरः,

गते afar fanny पेदच्छद्भिराकमः"--इति

१४० पराशस्माधवः।

saat: | चिषु wey great वेगवान्‌ मध्यरपातस्यानञ्गना मादाय ततैव तिष्ठति अन्यस्तु पुरुषो वेगवान्‌ श्ररमोचणस्ाने Arua तिष्ठति एवं स्थितयोखतौ यस्यां करतालिकायां stet निमष्नति | तमकालमेव तोरणमूलस्ितोऽपि RAAT मध्यशररपातखानङ्गष्छति। शरग्ारौ तस्िन्‌ TA तदुत्तर ATT मूलं प्रायान्तजलगतं यदि पर्चति, तदा प्रदरो भवतोति | तदेव wared पितामहेन, “गन्तुञ्चापि BUY समंगमनमव्जनम्‌ | गच्छेन्तोरणमूला ALAA जवौ नरः तस्मिगम्गते दितोयोऽपि बेगादादाय सायकम्‌ | गच्छन्तोरणएमूलं तु यतः पुरूषो गतः श्रागतस्ु श्रयो प्ति यदा जले | arena सम्यक्‌ तदा शद्ध विनिदिंगेत्‌^-दति जविनोशच नरयोनिद्धारणं wa नारदेन, “पञ्चापरतो धावकानां यौ स्यातामधिकौ जवे ततौ तच नियोक्र्थौ रानयनकारणात्‌--दूति निमग्नस्य स्थानान्तरगमने ऋष्ररुद्धिमाद पितामदः- .“श्रन्यस्यानविषशद्धिः' स्यादेकाङ्गस्यापि TAT | खानादन्य् गमनादयस्िम्‌ पूरवे निवेभितः"- दति एकाङ्गदगनादिति कर्णद्यमिप्रयेण,

जा A Sa ताना or et भि ्काााककक ~

9 + इत्यमेव पाठः सव्य | ममतु, GA a वि इःः- द्रति पादः प्रतिभाति |

व्यवहारकाणम्‌। १8४१

“भिरोमाचन्तु gia मापि नासिका WY Wat यस्य We तमपि निर्दिंभरेत्‌"--इति विणेषसारणान्‌ कारणन्तरेणोन्छस्लने पुमरपि कश्यम्‌ ATE कात्यायनः “निमज्ज्योत्‌ङ्वते यस्तु दृष्टथेत्‌ प्राणिभिनेरः | पुनस्तव fasta प्विद्धदिभा वितः" -दटति दति जल्विधिः)

AAR,

अथ विधविधिः।

aa प्रजापतिः | fawerfa पवद्यामोति। विषं agar

भादि area | “feat वत्सनामस्य feaae fase दृति

quatre एव, "चारितानि जोर्णनि afaarfa तयेवच | श्ूमिजानि at सर्वाणि विषाणि परिवेगयेन्‌'"- गति

og चारितं 3a शशिः भिधित तवा

कालकरूटमलायृश्च विषं यतेन वजंयत्‌”--इति

nn minal ee che ww SS er = [काकु ret mena oo HS गीष

* निमच्मेत श्रररिधिङविभावित- द्रति पार | भूमिशावानिः-दरति wee ° | भूपितं,--दति कार |

१४२ प्रराशरमाधवः।

कालश्च तेनेवोक्रः,- | “arafadfya काले देवं तद्धि हिमागमे, नापरा मध्याक्े सन्ध्यायां तु धमेवित्‌"- दति कालान्तरे FRAT TM TIA | तदाह सएव,- “ad चतुयेवा ara aR पञ्चयवा रता | हेमन्ते सा सप्रयवा श्ररद्यण्या ततोऽपि fe’—<fa विषश्च एतञ्ुत देयम्‌ | तदाह सएव, “विषस्य पलषद्भागाद्भागो विश्रतिमस्ह यः| तमष्टभागरहोनन्तु Whe दयात्‌ एतस्मतम्‌”-- दरति पलं चाच VU QIU | तेख षष्ठो भागो दग्र माषाः, माषस्य दश यवाश्च भवन्ति। चियवलत्वं कृष्णलं, पञ्चशष्णलको माषः | एको माषः पञ्चद श्रयवा भवन्ति) एवं दशानां माषाणणं यवाः agra भवन्ति पूरे दश यवाः। एवं षष्यधिक श्रतं यवाः पलस्य षष्ठो भागः। तस्मादिश्रतितमो भागो श्र्टयवाः। तस्याष्टमभागरौनः एकयवदोगः। तं सप्रयवं एतशुतं दयात्‌ way विषात्‌ जिश्रहुष WO ATH नारदः+ “प्रदथा्लोपवाखाय देवन्राह्मएवन्निधौ | धूपोपहारमन्तेख पूजयिवा महेश्वरम्‌ द्विजानां सन्निधावेव दरचिणभिमुखे स्थिते। crs meet वा cafes: aarfea:’—efa a प्ाङ्धिवाकः हतोपवासो महेश्वर सम्यज्य तत्पुरतो विधं खाप- विला धम्मादिप्ूजां वनान्तं waafaura प्रतिभाषते शोध्यस्य

MANTA | १४१

भिरि निधाय विषमभिमन्त्येत्‌। मन्धश्च पितामहेनोक्रः,- “a विष, ब्रह्मण ee परौचाथं दुरात्मनाम्‌ पापेषु दग्रयात्मानं Welw aaa, विष, लं हि ब्रह्मण परिनिर्मितम्‌ | चायदेनं नरं पापात्सव्येनास्याग्टतमव"- ति कच्च दिषमभिमन्त्य wea | aay वाश्चवरक्येमो क्रः, “@ विष. age: पुत्र, aaa wafer: | वायखास्मादभो UTA FAA भव मेऽग्टतम्‌ एवमुक्ता विषं शाङ्ग भक्येद्िमभेलजम्‌ | ay वेगैर्विना जय॑न्‌ श्रद्ध तस्य fafafenq ant रोमाश्चमाःयो रचयति विषजः खद्वक्षोपोषौ तस्येद तत्पसे दौ वपुखि जमयेदरणमेद्प्रेषौ | at वेगः पञ्चमोऽसौ नयननिवेगनां कण्डभद्गः शिक्षां aut निश्वासमोहौ पितरति wala स्मो भरतकस्य"- इति, site कुहका दिभ्यो रचणेय care पितामहः “विरावं पञ्चरात्रं खात्परुपेः सेरधिष्ठितम | करुदकादिभयाद्राजा रचयदियकी रिणम्‌ श्रोषधोर्मन््योगांश्च wera विषापहम्‌ | कः परौ रसधांसु TATA परौचयेत्‌- ति Qa: कालावधिमाह नारद्‌ Cqgarand कालं निर्विकारो यदा भवेत्‌ | aat भवति GNA: कुया चिकिद्छितम्‌"-- इति

१४४ पराग्ररमाधवः।

यावत्‌ करतालिका श्रतपश्चक, तावत्‌ प्रतौ रूपौ यमित्ययेः | यस पितामहेनोक्रम+- “भवते तु वदा wet मूका दि विवजिंतः | निर्विकारो दिनस्यान्ते एड न्तमपि मिर्दिेत्‌"- इति तदेतत्‌ चमारा विषयम्‌ | दति विधविधिः।

अथ केाशविधिंः। तच नारदः+- “ga पर प्रवच्यामि कोग्रस्य विधिमुत्तमम्‌ | शरास्तविद्धि्यया परोक्षं सवेकालाविरोधिनम्‌ पूर्वी शोपवासस्य खातय्दाद्र परस्य सशकस्याव्यसनिनः को शपानं विधौयते TSA अहधामस्य देवग्राद्मणएसलिधौ'"-दइति देवस्येति द्गाऽऽदिल्यादयो are: पितामरोऽपिः-- भ्राश कारिणं शला पाययेत्‌ प्र्तिचयम्‌ | yarn विधानेन पोतमादरेपरश्च नम्‌” एति qiaata walarenfe श्रोध्यभिरसि पजारोपणान्तमङ्गक- लापे निधायेति कारिणं नियुत are शला प्ष्टतिचयं पाय- येत्‌ तत्र किषो नारदेनोक्रः- “तमाहयाभिग्स्तन्त मण्डकषाभ्यमरे सितम्‌ | पयश्च खापयिला तु पाययेत्‌ प्रटतिजयम्‌"- इति

व्यद शारकाण्डम्‌ | १४५

खापनोयदेवानाह पितामह “भक्रोयो यस्य देवस्य पाययत्‌ AQ AAA | समभावे तु देवानामादिव्यश्च a पाययेत्‌ दुर्गायाः पाययेत्‌ चोरान्‌ ये mates विनः | भास्करस्य तु यत्तोयं age aa पाययेत्‌"-इतिं सापनोयप्रदे शविगरेषमाह ava,— “दुर्गायाः पायये।च्छूलमा {दन्यस्य तु मण्डलम्‌ Tatar देवानां सराप्येदायुधानि ठु" ति प्ररदििकालावपिभाद पितासदः+ः- “Carrara भप्नराचाद्वा दिसप्ता दात्तयाऽपिवा | र्तं यच दृश्येत पापकृत तु मानवः quae al सर्वस्य जनस्य यदि वा भवेत्‌ | रोगोऽगनिन्नातिमरणं सेव तस्य विभावयन्‌ "दति fe, “यस्य qua दिमपरादात्‌ चिमप्तारान्‌ तथाऽपिवा सोगोऽप्निलातिमरणं राजटण्डसयापिि aang faaritarfang तदिषय्येय'^--दति नारदोऽपि- Coognaat य्य द्विमपतादेन त्रा ot |

ee ne

तश्च,--दति wre |

इयमेव पाठः asia ममतु) खपरये- दति

t aay न+इति ग्र्यान्तरीयः पाठः समीचौनः। 19

दरति ata: प्रतिभाति।

१४१ पराशरमाधवः।

रोगोऽगम्नातिमरणमयसंशोधनकयः प्रत्याक्मिकं wane विद्यात्तस्य पराजयम्‌" इति एतानि दिभिसप्रादाद्यवधिवचनानि दरयाच्यतमरत्वाग्याममि- योगाल्यलमशत्वाभ्यां वा व्यवस्थापनया नि श्रवधेर पेृतदशने पराजय इत्याह नारदः wg तस्य faanreread सुमशद्धवेत्‌ | vhratsag विदुषा हेतकालव्यनिक्रमात्‌^-दइति seutatta— “aarerar दिस्तादाद्‌ यस्य किचित्‌ जयते पुच्रदारधनानां वा WE स्यान्न संश्यःः-टति॥ दृति कोगरविधिः।

पिव

if

अथ तण्डुलविधिः | तेच पितामहः ` “तण्डुलानां प्रवच्छाभि तिधिं भक्षएचोदितम्‌ | wa हु तण्डुला देया नान्येति विनिश्चयः दति चौय॑ग्रहएमथेविवादपदभनाथम्‌ | “ततश्चाथेख तण्डुलाः” -र्ति धमविवादि कात्यायनेन दशितलात्‌ | पूदयथ्यत्कन्तयं, तदा सएव, “तण्डुलान्‌ कारयेच्छुकतान्‌ शालेर्नान्यस्य कस्यपित्‌ | aga भाजने wer श्रादिल्यस्यायतः पचिः खञामोदकेन मेमिभरान्‌ wat तनैव वामयेन्‌ | श्रावानादिपूवेन्त्‌ छवा रात्रौ विधानतः"-द्ति

दारकाम्‌ | ९४७

धर्ावारनादि रवनाम्तं साधारणविधिना free, पुरतः जत्या देवताश्लानोदकेन तण्डलानाञ्रत्य॒प्रमातपय्येननं प्राद्धिवाकशषधैव व्यापयत्‌ | तदनन्तर कर्तयं तेनेव शितम्‌. “sara कारिणे tar: fa: war ARS तचा | पराङ्धिवाकममाद्ृतस्तष्डलाम्‌ भक्तयेच्छरुचिः afg: स्याच्छफनिप्रौवे विपरौते दोषभाक्‌ | परितं gad यस्य चनुस्ताल्‌ Was गास फम्पते यस्य तेदखाङ्द्धं विनिदि्त्‌-दति॥ दृति तण्डलप्रिभिः

eel

अथ तत्तमापविधिः। तच पिताः ‘oumqe उच्यामि विधिमुद्धरणे maa | कारयेदायसम्पाचे ताम्रं वा ATTA एथ] ; a eu 4 ne चतुर गुशखानेन्तु BTA वाध भण Aa SFA Hl मण्डलं वन्दनम्‌ एव विधपाच eaderat पूरयेत्‌ तथाच 3 न्म्‌ सएवः- e fa , , “पूरयेत्‌ एततेखाभ्यां fare वरे पेसु तन्‌ | लं एतमुपाद्य aut पाच्च; gains तिन्‌ सुते निचिपेत्ततः | ङग ङ्भलियोगेन घ॒द्धर तप्तमापकम्‌ स्फोरो वा जायते॥ कराग्रं यो धुतुयात्‌ वि

१४९८ पराशरमाधघवः।

wat भवति wate निर्विकारा यदाऽङ्गुलिः”-इति ङ्गा ङ्ुलियोगेन तजेन्ङ्गु्ठमष्यमानां समृद्नेत्ययः | केवल- गव्यष्टततापने विशेषमार सणएवः- "सौव रजते तासे श्रायसे सण्मयेऽपिवा गव्यं एतमुपादाय तद्रौ तापयेच्छुचिः सौवर्ण राजतौन्ता्ोमायसीं वा सुशरो धिताम्‌ | सलिलेन सषृद्धौतां afata तच मुद्धिकाम्‌ it भरमदो चौतरङ्गाच्ये श्रनखस्प भगो चरे | परोकेदाद्रेपणेन सचित्कार मघोषकम्‌"-दति afgaat watarenfe शोध्यशिरःपज्ारोपणान्तं कण शवाऽभिमन्त्रणं कुर्यात्‌ wag तेनेव दथितः,- ““परण्यविचमण्डतं एत, लं यन्नकमेस | ae पावक, पापन्तु feild wet भव उपोषितं ततः स्ातमाद्रवासषमागतम्‌ | यायेनयद्रिकां तान्तु टतम्थगतां तथा?-दति ग्रोध्यसतु, तमग्ने सर्वभ्तानामित्यादिमन्त पठेत्‌ प्द्धिलिङ्ग- न्याइ सएव,- “art aera atta: परोककाः। यस्य विस्फोटका स्युः श्टद्धोऽसावम्धधथाऽुचिः"-दति॥

दूति तप्रमाषविधिः।

जक कवक नकिष till

व्यवदहारकाण्म्‌ | १९९

अथ फालविधिः।

तजन रदस्यतिः+-

“श्राय द्वाद्‌श्रपनलघटितं फालमुच्यते |

ष्टा ङ्कलं भवेद WaT FATA

श्रथिवणेन्तु तचचोरो जिया लेलिङे्ष्टत्‌ |

दग्धसेच्छुचिष्धेयात्‌ sa तु ₹रोयते'"-इति॥ ्रत्रापि धर्मावादनादिग्ोध्यशिरःपचरारोपणन्तं काय्येम्‌ |

दति फालविषिः। अथ धम्माधम्मेविचारविधिः।

aa पितामदः+- | “अधना सन््वच्छामि धमाधमेपरोचणम्‌ | राजतं कारयेद्ध्ममधमे सोमकायमम्‌ लिसेत्‌ भजँ पटे वाऽपि ware मितामितौ | IY TENA WAM समचयेत्‌ मितपुष्यस्तु Wa: स्यात्‌ श्रधमऽभितपुष्यष्टक्‌ | पवंविधायोपलिण पिष्डयोम्तौ निधापयेत्‌ भोमयेन wer वाऽपि पिण्डौ कार्यौ ममन्ततः। खद्ाण्डकेऽनुपदिते" wet चानुपलङितौ उपलिप्य seat 2H देवन्रा्मएमन्निधौ श्रावादयेत्‌ ततो देवान्‌ लोकपाला पूववत्‌

ene ~~ ^ Mt ne => =

* नुपडित,ः-- दति काण |

११. OUTLAW |

धर्ममावाहनपूरवन्त्‌ प्रतिश्चापजकं fered |

यदि wofaqatsy ware मे at ti

श्रमियुकषस्ततेकं प्रोता विलम्बितम्‌”

धर्म VA WE Bess तु Vas

एवं समासतः Wim धम्माधमेपरौकरुएम्‌ "दति सौसकायसमिति सौसकमिश्रायसम्‌

दूति watuafeufaty: | दति faarate: |

[म

चथ RAMA निणेयपादः कथ्यते | श्रत इदहसतिः+ः-

“धर्मर व्यवहारेण चरितेण नृपाज्ञया | चतुःप्रकारोऽभिदितः सन्दिग्धायेविनिणंयः एकैको दिविधः प्रोक्तः क्रियाभेदाकनो षिभिः | श्रपराधानुरूपन्त्‌ दण्डन्तु परि कश्ययत्‌ प्रतिवादौ प्रपद्येत यत्र wae निणेयः | दियेवि्ोधितस्तन्यम्िनयस्यमुराचतः प्रमाणनिशितो यस्तु Va उष्यते। वाक्‌कलानुन्तरलेन दितौयः परिक भ्तितः श्रनुमानेन faata चरिजमिति कथ्यते | देशख्ित्था दतो यस्ठ॒ तत्वविद्धिरदाशतः

ad १. Ny i 2 A TTR Re Ne i oP ene AR भी ret nei tee Ay tte tee (9

» प्रग्टकौताविलम्बितः- दति Ate |

वयवहारकारढम्‌ | १४६

प्रमाणसमतायाम्नु राजाश्चा नियः सतः |

भ्रास्लमभ्याविरोघेन WU: परिक न्तिः" दति ti मग्रहकारोऽपि,-

उक्रप्रकाररूपेण सरमतस्थापिता क्रिया |

राज्ञा परौच्या सभ्ये eet जयपराजयौ

Weis चेव क्रियया सम्रमाघयेत्‌ |

भाषाऽचरमम मध्यं ज्यो परिकोरिनः॥

श्रसाधयन्‌ साधयन्‌ वा विपरोताथमात्मनः।

दृष्टकारणदोषौ वा यः पुनः पराजितः" एति॥ व्याषोऽपि.-

“तन्तु प्रदण्डयद्राजा जेतुः' पूजां प्रवत्तयत्‌ |

श्रजिताख्चाप दण्डाः स्यद्‌ शास्तविरो धिनः" दति पूनाकरणानन्तर्‌ः कात्यायनः, -

^सिद्धेना्न मसेज्यो वादौ मत्कारपूदकम्‌ |

लेख्यं खदस्तमयुक्रं aa cara पायिवः'"--इति नारदोऽपि-

नमसे यत्‌ स्थापितं 28 चनं वा यदि वा स्थिरम्‌ |

पञ्चात्‌ तक्ोदयं दाप्यं जयिने पचचमयुतम्‌*--दति पचर जयपचम्‌ | तदाद Tefal, -

“पूतीन्तर क्रियायक्त निण्यान्तं यद्‌ नृपः |

प्रदद्या्नयिने लेष्यं जयपत्ं तदुश्यते--इति

~ = छम = => ०49 = ~ = = = (ज कायक ~ = one

[म 3 ए, 1 == => = ~~

* fad,—zxfa शा० सर |

१५२ पसाश्ररमाधषः।

धमदापनप्रकारे पिगेषमाह" काल्यायनः,- “cat ठु खामिने विप्रं सान्येनेव प्रदापयेत्‌ | mata way दुष्टान्‌ सम्पौद्य दापयेत्‌ रिक्थिनः सुदं वाऽपि कलेनेव प्रदापयेत्‌"--इति ने केवलं खामिने धनदापनमाच, खयमपि दण्डं ग्ोयादि- द्याह नारदः+ | “णिकः सधमोयस्त॒ दौराव्यान्न प्रयच्छति | रान्ना दापयितथः स्यात्‌ weet तन्तुविंशकम्‌"--दति॥ एतद्‌ पि सग्मपन्नछणिक विषयम्‌ | विप्रतिपन्नष्णिक विषये विष्ण- राद) “उन्तमणेशद्राजानमिवात्‌ तदिभावितोऽधमतीद शमभागममं दण्डं zai प्राप्राथखोत्तमणं विंश्रतितमम्‌"-दति उन्तमणा- धनदानं तिले zeal यदा राज्ञः मरियोऽधमरीऽपलापवुध्या ws प्रवे निवेदयति, तज दण्डविगेषमार भनुः “यः शोधयन्‌ खच्छन्देम वेदयेद्धनिकं नृपे 1. राज्ञणेदतुर्भांग erage तद्भमम्‌"- इति ay तेनेवोक्म्‌,- “यो याव्निकृमीतायं मिथ्या वा द्यमिवादयेन्‌ | तौ afte हधर्मन्नौ arent afer दमम्‌"-द्रति

_— मी [2 0 ee tn काक 099 = a RA eS SN A Se eR कक यद eet mee oe +.

* दतमेव पाठः Gat | मम तु, धमदापने प्रकारविग्नेषमाद, इति पाठः प्रतिभाति

{ इत्यमेव प्राठः सर्व्व मम तु, BAM धनदानं भ्तितवेन que, —ata प्राठः प्रतिभाति |

शवे हारक्रारठम्‌ | १११

तद्घताधमणौन्तमणेविषयम्‌ यत्तु याश्ञवल्कयेगोक्षम्‌,-- “farsa भावितो दधात्‌ धनं राज्ञे ततसमम्‌'-ट्ति॥ तद्िगृणएदण्डपर्याप्रधनाभाव्विषयम्‌! मिध्याऽभियो faery श्रष्पा- पय्याप्रधनस्यापि aga दण्डः 1 यदा सएव. “सिथ्याभियोगाद्विगुणमभियोगा दून वहेत्‌" --टूति धनाभावेऽपिःश्रानुष्छ कमणा गच्छेत्‌ "- TAT TVR | ।प्र- थमतोनिङ्कवं छवा पञ्ात्छयं सम्मरतिपद्यते, TAS दण्डमाह वयासः, “fas तु यदा वादो ea तम्र तिपद्यते। Bar मा प्रतिपत्तिस्तु तम्प्राद्धविनयः सरतः” दटति यत्पुनमेननौक्तम्‌

Ge TR TAA कारणेन तरिभावितम्‌ | दापयद्भमिकस्यायः दण्डलेगं। श्रितः "--एति तत्सहृत्तब्ाद्धणाधमणेविषयम्‌। चिक्धव विपये त्रि्रषमाह याज्ञवस्क्यः+

"मनिङ्भते fafad नेकसेकाट गविभारितिः | टाः सवं aaa याद्यस्दनित्र(दितिः-टति। Senay प्रतिन्नाषान शि ग्वितमिभियुक्तं wart याद वमेव मिधेतदिति. प्रतिजानते, तद्‌ा$थिना vaenatacvarts विषयं प्रमाणादिभिः प्रत्ययो भाक्तः ङ्गौकारितः, तदा मर्व gate

इत्ताधमग(ततमयं विधव, -- ala केर | भा कु तन्‌ HE UAT

"सतम (विषयम्‌,-- द्रति पाठ प्रतिभाति | खच, यस्तु द्रति भविनुमुषितम्‌ | { दखदेयः- दति a? |

्ाक्रमणादिभिः+-- द्रति are | 20

१५४ UTC: |

faaafat ature दाष्ः। सवं भाषाकाले श्र्थिनाऽमिवेदितश्चन्‌, पञ्चात्‌ भितरेद्यमानो यराद्यो ardent aq: | नारदोऽपि, “्रनेकार्याभियुकरेन सर्वायस्यापलापिना | विभावितेकदै गरन देयं यद भियृच्यसे"-द्रति मनु प्राचोनवचनामां प्रागक्रा्याभिधाने धमनिपयाथले स्थात्‌, कलानुसारेण तेषां वयवदारनिरंयाभिधायकवात्‌ मन्ध, तथापि ate प्रागक्तपिषये व्यवहारनिण्यस्च धमेनिणेयवाघ- कलात्‌। | waa ररसमतिःः- “केवलं प्रास््रमाभित्य क्रियते aa favre: | gave: a विजेयो धमस्तेनापि दोचते-दति। यन्न्‌ काल्पायनवचनम्‌+- “श्रनेकार्याभियोगे तु यातत्तत्ाधवद्धनम्‌ साकिभिन्तावरिगासौ लभते साधितं घनम्‌ दति) तत्युत्रादिदयपिचा दिछएविषयम्‌ ¦ तच fe कटनर्यानभियुकः पुषादिनं जायते षति वदन्‌ निक्वत्रारौ भवतोति एकदश विभावितन्यायस्य तन्नाप्रहत्तिः। fea जयपराजय(तिधार्‌णद्ष्ट-ः fag: काव्यायनेन दशितः, “Tate दापयेत्‌ We, wet दण्डभाग्रवेत्‌ | fag तोये BAT तण्डलं तप्तमाषके-इति।

eed

= =

[क 2 7 7

RAI पाठः Sas | ममनु, पव्व,-- द्रति पाठः प्रतिमाति।

| धम्भनिगवाधायकत्वात्‌,+--इति we |

| तद ए्,-- दति aie) ममतु, दति उदन्‌ तरशरनिटववादी,--द्र्यारि पाठः प्रतिभाति | acu खभियोगविषया्धांशएश्य+-- त्यथः |

पचध wi

चतुम्ौन्‌ TRE a नै WAT कन्पयेत्‌ a Or eer सपण ura | पमन Serre:

Wag (ZZ! यद्रो नभ दापयेत्‌ i

प्च eUna भमिन ase arcets fui,

“fang चोरपणत; Kala

प्रण WHA cial [awa नि जपस्य दण्ड्य द्‌निष्यसादह ava “TCT AE Sz Fier 3 fafa: waa: | mitarsarfens ase: wat hea कािन्दिथायदण्डः Brag: AH | पारमे दग्रा At. द्वण्द्वं कधा! --दृति)। दश्रसेति सद्यानियमापम्‌ } apie वन्धनाद्तरण- कमेकरणबन्धमागामपरय7नना ररर पस्य WIT (IATA | i द्शविधलं प्रादरदष्डस्य emufa सनः. ‘aq स्थानानि ee Ha: ्ायम्भुवोऽ्रवीत्‌ | # दरति aaata.—--3fa afaqy aad | [ इत्यमेव पाठः सव्वत्र | A नुः स१८६६।द,--- धि पाठः प्रपिमाति।

t शातातपाऽपिः- दति vie | & swag प्राठः aay | BH त. Tae qm,—xfa पादः प्रतिभपत |

|| इत्यमेव पाठः Hee HA तु, GARE WS प्रतिभाति)

१५१ प्रसप्ररमधेवः।

= बण्ुर्ुंदरं जिक्का eat पादौ पृञ्चमम्‌

चदनांसा कणौ नरद दस्तथैवच "`इति! fa fay इ्युपल्णायेभ्‌,

गिग भोरुष्डन Tweet सिर्वामन पुरान्‌

ललाटे चामिग्रस्ताद्कः प्रयाणं गदसन च्‌ - दुनि {वि्यन्तर्‌सतल्रात | BTA दण्डस्य चातु विष्माङ, -

“वाण्दृण्डस्सम निगद्य घनदष्डो सचस्तया

Rt ae भमत दा अपर (धवग्ादितः' दति वाग्टृष्डः worm aaaraa: | धिस्दष्टे धिगिति भसनम |

waa योज HANTS मनुः.-

“वाग्दण्ड war दुष्येत्‌ THINS तदनन्तरम्‌ |

wary पनदण्डन्तं THETA परम्‌" दति) व्य्तानां योजने यवम्यामाद Tamla:

samicariy areredt व्िरद्षदः प्ूनेमाद्धमे |

मध्यमे सनदष्डम्ु यद्रे बन्धनम्‌ |

निर्वासनं बधो वाऽपि areauraheataet |

वसता: समस्ता एकस्मान्‌ भरैः TTP | पुरषतारतम्येन SATGTATS मषक =

मिवार्दिधु sasha वाग्दण्ड धिक्‌ तपस्खिनाम्‌ |

fagfzat भरांश्चापि न्ाया्दथम्‌ asa

nea पुरोष्ितान्‌ प्रजाम्‌ वाग्दष्डनेव दण्डयेत्‌ |

aqmi—rfa aie | Had, Eth, दति पाठः प्रतिभाति;

यव हार कागम्‌ { १५७

विवादिनों नरांचान्यान्‌ fumanat दण्डयेत्‌'"-- of |

यत्तु Mapa AR ` श्रदण्ड्‌) मातापितरौ सवतकपुरोहितौ परि-

AAA ज्धकर्मुतफरोलगाच। ARMA दृति यदपि कात्यायनेन. - “arene faquiaaiagiat alae | GAMA ठ्‌ रेष्डोनेय तिधोयते".-दति। aq {पसच "दद्मः प(महाप्रा tesa णटुयावरिः- कायथा्पदवगयुपारदायशच दति) तदनन्‌, “awa ae. श्रुतो दति) उद्वद्ग विद्र क्छ तिदामपुराणकुग्लस्तद पेसम्त- aFaatmaa @aaert: दलतः तषु कर्मस्तभिरतः मम-

mareain falas "न प्रलिणिनमद्स्रन{पयम्‌ | य्त्‌

[र

पकरदोनी SUSU HDR! THY AT, -

(२) Ga WeWAinnp नन HELE UI, Daina (पूगं ८८११९ Bid 43 a Hemi ey ya Pp Al tetera पपिमम- BUG | “aaa १777 गत्‌ स्मन Ha Tura,

11110 Moth) Fda, सवान, सप्ता)" गा] सयाम, WET यानमनु, Sabo degen ay तायत, Wea STT 3M) Ranier oe wedi GY धर" THe, रन्ध ` ममेय करापूलगपरा tous aecaregfa fay yey: सवासो aH हनियदमन्लाः, wlastat sacra sam: घोडपररे वालयमोजनरात माप्रा पलि AH सासवा इयत aaa nd ABATE | WACK द्गुशाः, Thy Aaya चान्त

SHBU UPITRATT AoC Ra | यस्यतं MT

Ceca संस्कारा. RP AC ISL CM MCh CMR CRE

a गच्छति --दरनि। {५१ AY CAPITA | समयाचादसाः

FAVA AT (HATNW UAT AT EC |

१५८ पराश्ररमाधषः।

“faarscara: Qwarat भार्य्या we: पुरोहितः मादण्ड्यो ara wetsfe watfeafeat: खकात्‌ विक्पुरोहितामात्याः Tar: wafer: | धर््ादिष्दलिता दण्ड्या faarer राजभिः पुरात्‌”--दति। तदेतच्छारोराथेदण्डग्यतिरिक्रदण्डविषयम्‌, “are पुरो इतान्‌ पूज्यान्‌ वाग्दण्डेनेव दण्डयेत्‌"-दति SAAT VATE बधदण्डो नेव वाये, किन्तु वरिसकाय- TAS कात्यायनः, “न जात्‌ AIBN न्यात्‌ सवेपापेव्ववस्यितम्‌ | राद्रा्वेनं तरिः कुर्य्यात्‌ समयधघनमचतम्‌'”--द ति | यस्तु afeart नाङ्गोकारोति, तस्य चल्तियादिवदेव दण्ड- TATE षएवः- “चतुर्णामपि वर्णनां प्रायशित्तमक्तुवंताम्‌ | WAL धनसंयुक्तं दण्डं धमे प्रकल्पयेत्‌” -इति | aq गौतमेन “a शारोरोत्राद्मणद्ण्डः"--दति। तदङ्गभङ्ग- रूपदष्डनिषेधायम्‌ | “न लङ्गमेदं विप्रस्य प्रवदन्ति मनो षिणः"--दति हारीतेनोक्रलात्‌ | यत्त WEA “जयाणमपि वर्णनाम- पहारबधबन्धकिया, विवासनधिक्घरण ब्राद्यणएस्य"--वति। azfa- श्नन्राद्मणविषयम्‌ तथाच गौतमः “कमेवियोगविख्यापनविव(- सनाङकर णद्यटन्तौ "दति श्रदत्तिनिधेनः धनदःनाश्मथै WETS मनुः re

` चभविटगुद्रयोनिष्तु दण्डं दातुमधकुबन्‌ | MAG कमणा गच्छेत्‌ fot दचाच्डनेश्नेः.- दति कमेकरणासाम्थं तु कात्यायन श्रार.- | -धनदानासदं बुध्वा VN कमं कारयेत्‌ WIA बन्धनागारप्रेग्रो ब्राह्मणादृते" रति मनुरपि,- “alaetanggrat दरिद्राणं रोगिणाम्‌ | भियिलापिलरभ्नायेवि्यावृपतिमर्दनम्‌'--इति aT area मोण्डं विदधाति मनुः. “Shug प्राणान्तिको दण्डो ब्राह्मणस्य विधौयते | दतरेषान्त्‌ वर्णानां दण्डः प्राणा निक भवेत्‌ ब्राह्मणबरधात्‌ पापाद्‌ घमा विद्यते कचित्‌ | AHS बधं राजा मनसाऽपि चिन्तयत्‌ BASH ब्राह्मणस्य नान्यो दष्डो विधौयते महापातकयुक्रोऽपि विप्रो बधमदति निर्वाषनाङ्करणे मण्डं कुरययान्नराधिपः'"--एति। aga किगरेषो नारदेन दग्तिः,- “गुरतच्ये भगः कायैः सुरापाने सुगध्वजः। सेये श्वपदं काय्यं ब्रहारप्शिराः पुमान्‌”--दति | wed दतिया दिष्‌ कत्तेयम्‌ |

+ ~ ~ ~ ~ ~ ~ RL 9) कि 0 ONE ५०७ कि कनि ~ were ee ee 9 = ~ ~ = [णी

* विद्याश्च दपतिर्धनम्‌,- एति शा" सर |

१९ पराशरमाधवः।

“ब्राह्मणष्यापराधे तु waa विधोयते | NRT सुरापाने स्तेये ब्राद्मणदिसने दतरेषान्त व्णनामद्कनं नाज कारयेत्‌” दति | केवलं अभ्यादौनामेव दण्डः, किन्तु जयिनोऽपोत्याह रदस्पतिःः- “Fafa asta: are WTA: शास्तपारगेः | दण्डयेष्जयिना साकं प्ूवेखभ्यांस्त दोषिणः ईति | याज्नवक्क्योऽपि,-- ^द्‌दृष्टासह GAZE यवदाराम्‌ ATW तू मभ्याः सजयिनो दण्डा विवादाद्विगएं दमम्‌”-इति जयलोभादिना व्यवहारस्य Bay करणे जयिसदहिताः सभ्याः mas विवादपराजयनिमिन्तादभेनात्‌" fend seg | यद्‌ पुनः ufamt दोषेए व्यवरारस्यान्ययालं, तदा साचिएएव दण्डा waza ta) यः पुनरन्यायतो निर्णौतमपि यवहारं ata qua इति मन्यते, THATS नारदः ''तौरितं qafrey यो मन्येत विधभेवित्‌ | fond दण्डमास्याय तत्काय्थं युनरद्धरेत्‌”-ति | वसि्टोऽपि- “यो मन्येताजितोऽसखनौति न्यायेनापि पराजितेः।

A A TI NE 1 शको On OE BO AE मम =-= 9-७-७9

[1 ती

+ इत्थमेव पाठः was | ममतु, विवाद्पराजयनिमिन्नादर्घाव्‌+-इति पाठः प्रतिभाति |

स्थर डारकार्डम्‌ | १६१

यसं पापमजिला पातयेद्धिगुणं दमम्‌"-इति | तो रितानुशिष्टयोभंदः कात्यायनेन water: “श्रसत्सदिति a: aa: सण्येवा योऽवधार्यते | | itr सोऽनुग्रिष्टस्तु साकिवाक्यात्‌ प्रक सितः" द्ति। यत्युनमेनुनोक्तम्‌,- “afta चानुशिष्टं यव चन यद्भबेत्‌ | छृतं तद्धमतो विद्याश्न तद्गूयोऽपि वत्तयेत्‌! "एति | तत्स रतला दि निटत्तिहेलभावतरिषयम्‌ | स्त्य दिविषये qaaa- हारः प्रवत्तनोयः | तटाद्‌ नारदः, Sata रात्रौ वदिर्ामादन्तेखरातिषु | व्यवहारः BALA पुनः कन्तयतामियात्‌”- रति | वलात्कारादिना कृतोऽपि व्यवहारो निवत्तेनोय care AAI: “वलो पधिविनिदन्तान्‌ area निवन्तयेत्‌ | स्तौ नकमनम्तरागारवददिःशदृरतं तथा'-ईति छ्पेग्येऽपि पुनयेवदारासिद्धिमाद सएव - "मन्तो नन्तासतवयसनिवासभोतादियोजितः। शरसंबद्ङतश्चैव यवहारो सिध्यति" दति) sufemaa दद्धादिपरयुक्रयवदारो गद्यते | तथाच मनुः

[री —— ome ee ene

ora oes (= = ae oe mere” भजक a E sare -~~ ~

> sear प्राठः Bas | AA तुः gafaet a पाप--हति प्राठः प्रतिभाति। t तद्कयोनिवत्तयेत्‌;--ति aaa: पाठः BATA 21

UR पराश्ररमाधवः `

“मक्नोकमनार्तयसनिनबाशेन मिरे वा | श्रसंबद्धशतदेव व्यवहारो सिध्यति" दति। नारदोऽपि “^पुरराद्रविरडधशच यञ्च राश्चा विवजितः शरसंवद्धो भवेदादो धमेविद्धिरदाइतः-द्ति | हारौतोऽपि- “org विजितो यस्त॒ खयं पौम्‌ विरोधष्टत्‌ | Ty वा समस्तस्य प्रतौ तथेवच mai वा ये पुरयाममदाजनविरोधकाः | श्रनारेयास्ह ते स्वं Bayer: प्रकौत्तिताः"-इति। सखवाक्यजितख तु पुमरन्याय CATH नारदः ““खाचिसग्यावमन्नानां दूषणे देनं एनः खवातेव जितानान्त्‌ मोक्तः पौम्भवो विधिः"-दति | श्रन्यानपि निवत्तेनोयव्यवहारानाह ममुः, 'योगाधमनविक्रोतं योगदागप्रतिग्रदम्‌ | यच वाऽप्येपधिं waned विनिवत्तयेत्‌”-इति परकौयधनस्याक्रौयलद्ेलभाषे यावितकादिना afer: | श्राधमनमाधिः। योगे श्राधमनं योगाधमनम्‌। एवं क्रोतमित्यत्रापि योच्यम्‌ यमोऽपि,- “बलाद बलाहक वलाश्चापि विलेखितम्‌ | सर्वान्‌ बणशटतानर्थान्‌ निवत्यानाह वै मनुः"-इति कात्यायनोऽपि,

६९९

THREAT HH: ve Je. ae श्राषोडग्रादर्षान्‌ qhgefe ; परतो यवदारश्चः aaa: पितराद्रते | जोवतोने are: स्याच्चरयाऽपि सपमनितः तयोरपि पिता अयान्‌ बोजप्राधान्यद्‌ गनात्‌ | aaa बोजिमो माता तदभावे ठ्‌ प्वंजः"-दति। केषुचित्‌ कायदिग्रपेषु स्त्रौणामखातन््यमित्यार हारीतः, “ara वाऽधमने का$पि unite वाऽविगेषतः। श्रादधाने वा दिसगेवान att खातग्यमरेति"-द्ति। ACS “sraneat, प्रजाः सर्वाः wane: एयिवौपतनिः | gaara wa. fre sree तु खलतन््ता-दति। sara निवन्तनं खतन्ानुमलव्यभावदिषयं बेदि- तव्यम्‌ | तथाच नारदः+ - “एतान्येव प्रमाणानि wat यथ्चनुमन्यते | मुजः पत्युरभावे वा राजा वा प्रतिपुब्रधोः॥ तज दाखहृतं कायं न्‌ हतं परिचचते।

ee en Ee ee DREN Moire 81 cess ee 2 11, = ~~~ -~ = er - ----- ~ 01

© ads पाठः स्वै | मम तु, वाद न्तरेकः-- डति पाठः प्रतिभाति

१६५ पराशरमाधवः |

्रन्यच खामिसन्देशरात्‌ दासः परजुराल्मनः 1

पुतेण वा इते कायै यक्छादच्छन्दतः पिदुः 1

तदष्यशतमेवादाषः guy तौ समौ" दति | ~ PA |

“श्र“ेचन्टदा्ानां दानाधममविक्रयाः |

शखतन्लहताः fatg राभयर्नालुवणििताः

प्रमां सर्वेते पण्चानां क्रयविक्रये

यदि खं aaa gaat द्यलुमोदिता,

केचादोनां तथैव स्र्भ्ाता Bega: चुतः |

निष्ठाः शृत्यकरणे गुरुणा यदि गच्छं “दति | इरस्यतिरपि,- |

qafaat निचुक्रस्त धममस्यापलापयेत्‌* |

ware taartusy मिष्ष्टायेस्त॒ खतः

प्रमाणं त्तं सवै जाभालाभं HATTA |

az वा विदेशे वा खातग््यं विसंवदेत्‌"-दति। अनुमल्यभागेऽपि कटुम्बभरणाये TAA नान्यया HTT

Tae मतुः+- “कुटुमर्थ्यधोनोऽपि यवकारं समाचरेत्‌

= [क lat OO OT (ककत CREE ad pore eae 9

[वं

+ puna प्राठः सव्ये | a: & सिमा नियक्तसत्‌ चनायव्ययपालने,- दति यन्धान्तरीयस्त्‌ पाठः SATA |

बुदुमबार्येऽगधीगोऽपि,-- इत्यादि mie वुदुम्बायष्मधौमोऽपि यव- WE यमाचरेत्‌, दति AIAN: WIS समीचोगः |

va WAN कौ RAR ee लकः विचालयेत्‌” - रति मरतिखखतन््नं वरः Fray. gree freREa | तथाच नारदः+ “'क्ुख््येष्ठस्तथा ओष्टः मतिर wt. भेत्‌ तक्छतं स्यात्‌ रतं कामे rear रतम्‌ ^ -टति स्वतन्तप्रशतिम्यहृतंमपि कां हृदिक. सिष्यतीत्यार काव्या- यनः,- “सुतस्य सुतदाराणणं grate बहाने | विक्रये चैव दाने sarah ae "पितुः" षति , एवं ग्राम्बोक्रमार्शेण fad gam crm: we grata द्दस्प तिः, “एवं matfzd राजा कुवजिकैष्मपाशनम्‌ | aay! यभो लोके महेश्धसदृशा भवेत्‌ erage), raat wre fae | ` वितव्येह ant राजा years विष्टपम्‌" दति दति farang: re

* aaa, —xta ate

afa—afa ae

t विततं wj—aft ate ,.

इत्यमेव पाठः eae) भम §, शाद्िनिशरषमानेनः- एति प्राठः प्रतिभाति |.

add पराश्ररमाधबः |

अष्टादश्परापयागिनौ वहारमादेका निरूपिता | अथेदानौमष्टादशपदान्यनुक्रमेख निरूप्यन्ते |

तच टदहच्यतिः,- “पदानां सहितस्छेष यवहारः प्रकौ तितः! विवादकारणणन्यश्य पदानि श्रटए्ताधुना णादानप्रद नानि यूताङ्ानादिकानि a mm सम््रवच्याभि कियाभेदांख तत्वतः"--दएति | तच्च प्रथमो दिष्टवेम aurea पदस्य विधिरुच्यते त्र णा टानं सप्रविघम्‌ | तदाद नारदः+ णं देयमदेयश्च येम यच यथा यत्‌| दानग्रदणएधर्माख णादानमिति रूतम्‌"--इति | तनाधमणे पञ्च विधमौषुश्रणं देयमौदु श्मदेयममेनाधिका- रिण रैयमस्मिन्समये देयमनेन प्रकारेण देयमिति उत्तमणे दिविधं, दानविधिरादामविधिद्चेति ) aa दामविधिपूवेकवादि- तरेषां तजादौ दानविधिर्च्यते 1 तच इदष्पतिः.- “परिपणे गटहोवाऽलं ददधेवां ary waaay | Varese सािमदा खण दद्याद्धनो सदरा”-इति | ae: परिपूेल्वं सदटद्धिकमृखद्रव्यपरय्याप्तता। टद्धिपरभेदाश्च रदेस्सतिना निरूपिताः, “sfgaafaar भोक्ता wears: परकौ्तिता।

+ इत्यमेव पाठः HAA | मम वु, ऋणादानगप्रधानानि,-इति yrs: प्रतिमाति।

अवहारकाद्धम्‌ | १९७

वदिधाऽस्िष्छमार्याता तत्वतस्ता निबोधत,

कायिका काशिका चेव चक्रटृङ्धिरतः परा |

कारिता गिषाटृदविौगलाभसयेवख

कायिका BMI मास्याष्या तु कालिका |

षृद्धरद्धिशक्ररद्धिः कारिता लणिना शता

way wad यातु fuarafgg सा मता।

गदात्‌ स्तोमः मदः Sarg aie: प्रको भ्तितः"- इति। ट्रद्धस्त परिमाणं मनुमो क्रम्‌, -

coitfaart wetarnfa वाधुषिकः गते"-दति। aad fant vax मपादनिष्कपरिमितां एड मासि

मासि aetna | एतन्सबन्धकयिषयम्‌ तया यानवष्कधः,--

“ग्रो तिभागोदद्धिः स्यामामि मामि मबन्धके।

वक्रमाच्छतन्दितिचतुःपञ्चकमन्यथा

मास्य sig nwa वर्णनामनुपूरवश्रः" -षति। सशद्मकप्रयोगे यामः, -

Sgaay भाग श्रारोतः षष्ठो भागः सप्रे |

निराधाने feana मामनामे उदाहतः" --एति। ग्ररोटभेरैरेद्धः परिमाण्णन्तरमाह ATH, -

[1 - 111 1 -

> qraaea faatua,—xfa ate

reemawewengever ५०५५०. ५= [क १.) -

(१) etaten ayarafafana माटश्म्‌ सदः HH पना इति चरेशरेग Bead |

१९८ पसाशरमाधवः।

“कान्तारगास्तु दशक सामुद्रा विंशकं ए्रतम्‌""--द्ति। कान्ारगाः दुगेमवत्मगन्तारः, ते प्रतिमासन्दग्कं शतं TT! सासुद्रास्षभुद्रगन्तारः विंशकं शतं ददयुरित्ययः। कारितायां तुम नियम इत्याह सरव, “egal @aat afg श्वे सवा जातिषु"--रति सवं ब्राह्मणादयोऽधमर्णाः | सबन्धके श्रबन्धके सर्वासु भातिषू- मणनुश्वतासु खाभ्यृपगतां इद्धि ददुः क्चिदनङ्गोङताऽपि दृद्धिभेवति | तदाह विष्णुः - ‘at शदौला खण पूवे दस्यामोति सामकम्‌ | दद्याल्लोभतः यथात्‌ तस्मात्‌ हद्धिमाप्रुयात्‌”-दति | सममेव सामकम्‌ प्रतिदिनकालावधिमङ्गौशत्य गरोतम- दृद्धिक wa यदि प्राग्दद्‌ाति, तदा श्रवेधेरनन्तरकालाद्‌ारभ्य वद्तएवेत्य्थः | कालावधिमनङ्गोरत्य Slade धनस्य षणलाया- gg afguadtany नारदः, “aq afg: मोतिदन्तानां या लनाकारिता कवित्‌ | श्रनाकारितमणुद्ं वव्छराद्धादिवधैते"-दति। याचितकं weler दे गान्तरगमने कात्यायनः, “यो याचितकमादाय aac दिशं aq | SE yaaa तद्धनं टद्भिमाघ्रयात्‌"-दति। एतञ्च प्रतियासितविषयम्‌ प्रतियाचिते तु सप्वाह,- “शलोद्धारमदला यो याचितस्न दिशं aq SE मासत्रयान्तख तदनं दद्धिमाभ्ुयात्‌"-दति |

IT TICS TT | RES

extart, धाचितकमाशापेश्यवेः we writer wate. aa एव स्थितोऽपि थाचितकं प्रयच्छति, ते प्रत्या चएव,- ` Cexaste स्थितो wa दद्मादयाचितः क्रचित्‌ ` तं ततोऽकारितां दद्धिमनिच्छन्तश्च दापधेत्‌"-षति | ` ततः, प्रतिवा चभकाखादारण्येव्यथेः श्थाच्यमानं वंत erry प्रतिबाचितस्‌ | याच्यमानमदकष्चेत्‌ FEA TER We” इति | निरेपादावपि सएव “fafar टद्धि शेषश्च कथविक्थएवच | याच्यमागमदन्ं चेत्‌ aga पञ्चकं प्रतम्‌”-ति ग्ररोतप्मोद्धानपेणविषये तु षएव,- “ag दोला यो मौखखमदलेव दिशं wat त्‌बयस्योपरिषटासद्धमं ठदड्धिमाश्रुयात्‌"-इति यतच्चाप्रतिथासितपिषयम्‌ श्रमाकारितद्द्धेरपवाडौ नारदेन दशितः, | “पष्छमृन्धय तिन्यांसो दण्डो we प्रकख्ितः | यादानाक्षिकपणं aga नादिवकितम्‌""--इति। eran, vate: nigra श्राचिकन्प Gey | faafad अरभाकारितम्‌। TATE ठद्यभावः, परवादमतिवाचना- भावे | न्याय तु दृद्यभावः, Tee परतिया्नाभामे ` अन्या कात्धाथनवचमविरोभापनेः | मग्नोऽपि, न्न दद्भिः प्लोधने era निकषे अथाक्िते।

22 :

१७० पररारमा्धवः |

afar प्रातिभाव्ये थदि wre शता-दति | यथांते faad व्यश्न्ययाकरणरडिते दातु योग्यम- योग्येति शन्दिग्ये। प्रातिभाये खणिपरत्यपैणादौ | काल्यायनोऽपिः- “कशमेससा सवदे पण्छमूष्ये सवेदा | away stg: खात्‌ प्रातिभाव्यगतेषु. च-दति सर्वदेति प्रतियादनादेः wera ठद्धिरगास्त) व्यः TEE का्यायनवचमविरोधः waa परितः यासोऽपिः- ‘nia yam” दिष्छतः | म्‌ aga प्रपन्नः स्यादय wa प्रतिथुतम्‌”-इति मुक्तबन्धेगरहणं निकेपोपायने यथा ठृद्धिर्वा, तथा गौप्यभोगे ठृद्धिमै देयेत्येवमर्थम्‌। “afd वद्धते- दति गौवमसमरण्णत्‌। seta दित्तःः- दति रतदृद्यपवादः, श्रतट्द्यपवादप्रसङ्गा- दुक्षः | शतटृद्यपवाद याश्नवस्क्येन दशितः, “Aaa wetfa नियुक्तं यत्कं धनम्‌ | मध्यख्यस्थापितं mage ततः परम्‌“ इति, TARA द्रव्यस्य दृद्धिणएमन्तरेए चिर कालावस्थितख परम्‌ | टृद्धिद्रथभेदानाहइ याज्ञवल्क्यः - “उन्ततिष्ठु पद्स्लौणां रघसाष्टगुणा परा वस्धान्यदिरण्यानां चतुख्िदधिगुण पराति प्सो सन्ततिरेव ठद्धिः। Tre तेरटतादेः खषटतया ट्या वद्धमामस्वाष्टमणण द्धिः परा भातः पर Tea | वस्रघान्य- fecarat यथाक्रमं चतुरा जिगुणा दगुण परा द्द्धिः।

अवहारकाखम्‌। ६०६

धत्त॒ वशि्ठमोक्तम्‌ “दिगुणं दिरष्यं fied धान्यं धान्येनैव रा व्याख्याताः | पुष्यमूलफलानि तुलाशटतमष्टमुणम्‌ "इति | यश मतुमोक्म्‌,- धान्ये we wa ang मातिकमति प्चताम्‌"-एति। श्रदः Sane पुष्पमूनफलानि। wat मेषोर्णाचमरौकेभादिः | वाद्यो वलौ वधर गादिः | धान्यगटलववाद्मविषथा ag: पञ्चगुणं न(तिक्रामनोति "उक्ताःयष्टगणा ग्रे Tet षड्गणा War सवणे guzaagy टद्िरष्टगृणा मता ng मधुनि aatar rym विरकालिका"-द्रति। कुन्धपुमौषकम्‌ | तदेतच्छवेमधमणयोग्यतागुमारे दुभिशा- दिकालवगेन wanted दप्मेदेनापि परां ठद्धिं द्रति मारदः,- नद्धिगणं जिग, पैव तथापिच चतुगृणम्‌ | तथाऽएग णमन्यश्सिन दय फेऽव तिष्ठते" --इति Fran वद्धंमानं चिरकालावयिल कितिगुणं कचिखतुुत BUNT भवतात्यधः | afuatsfa, “agg fanaa रत्रम्य रजत | fanny दीयते aig: BARATIR रिएौ तामायःकांस्यरौतो नान्वपुणसुपरोमकस्य च) {जिगणा तिष्ठते दिः कामादरहतस्य तुदति) मुक्तिरिति सुक्राफलं werd, TANTEI | ष्याबोपि,

१५७२ परशस्मार्धंवः।

“श्राककाांखनौलेलौ ष्गण्ा परिक निता | ACSA काले मद्यखष्रसाघवाम्‌”- द्रति | कल्यायमोऽपि- “तेलानाद्चैवं wet मध्यामामय सपिषाम्‌। दृद्धिरष्टगुण Fa aye wawa wef aa दृद्धिविगरेषो शूयते, aw दविगुफेव तथाच विष्णः “श्रुक्षानां दिगुण्ण"-दति श्रयं ठद्युपरमः सषटत्रयोगे सछ- दारणे बेदितव्यः। तथाच मनुः ‘“giizefgane wate सषृदाहिता"--दति | उपचये vam xa Bald, तस्य ay: gitzefg: tra arafa नातिक्रामति यदि सकशदाहिता weer पुरषान्तर- संक्रमणादिना प्रयोगान्तरकरणे, ahaa वा पुरुषे रेकभेकाग्द* प्रयोगान्तरकरणे दैगृष्छमतिक्रम्य पूववत्‌ aga सष्टदा इतेति पाठे na: ma: प्रतिदिनं प्रतिमासं परतिमंवत्र वाऽधमर्णादादत्य sre waa fa व्याख्येयम्‌ गौतमोऽपि “चिरस्थाने Brg प्रयो गख्य"- दति प्रधोगच्ेत्येकवनननिरदेग्ेन प्रयोगान्तरकरणे देगष्धातिक्रमो- ऽभिपरतः। विरखानेः-दति निदे गाच्छनेः we: इद्धिगरहे देगु- ` पणा तिक्रमोऽभिमतः | ome दृद्युपरमश्य कृचिद्रव्यविगेषेऽपवाद्माष रदग्यतिःः-

Or tes Aare. RAED SHEL 2 ने PLY SOTTO CLES TEN HS भा ir Hy = त-न (पि

* एकश पाभ्यां,- इति zee |

TATRA | १७४

“हरक ष्का सूभकिण्चका ध्वम्‌ | ेतिपुष्यफलानाश्च sige भिवर्तते"--एति fara: सुराद्रव्यो पादान्तो मण विगेषः। qa वाणादिनिषा- रकफलकः। तनुचम्‌। हेतिरायधम्‌ पुष्यफलयोटंद्यनिटृ्तिर- | ATA ay: | waa जिगणटृदधप्रतिपादकब्याषवकन- विरोधः yaafesta: | वभिष्ठोऽपि,- “'दण्डवर््रा खिप्एक्रणां शणए्मयानां तयेवच अर्या दद्धि एतेषां पुग्यमृलफशष्य च^- ति | स्य तिरपि,- “Crate कायिकाश्च भोगाभं vere धनौ तावत्छमादध्ात्‌ arent गोधितम्‌"-इति तदेवं, परिपू सखरोलाऽऽधिमि्थच wa: परि प्रणवनिशूप- पप्रसङ्गागता सविशेषा दद्धि निरूपिता |

ee eee भिमक

इदानी माधिनिरूष्ते |

तच नारदः नश्रधिकिदतं दव्याधिः faret दिशलक्षणः। कृतका लोपनेयस याव्दूयोद्यतम्तथा पुनदिंविधः प्रको गोणोभोग्यन्तयेवच""--दति naire द्रव्यद्धोपरि वि्ामाथमधमशोकलमणं ्रधिक्ियते

९७४ | पराग्ररमाश्चवः

श्राधोयते दत्याधिः। कतकाले अरधानकारएवेतदिवसा्यवध्यय- arfudear मोच्छते, weer तवैव भविष्यतीत्येवं निरूपितकाले उपरिष्टातरेवनौय इत्यथः" यावद यदतः, गरोतघनप्रत्यपेणवभि- निरूपितकाल इत्यथः | गोयो रच्षणौयः, भोग्यः फलभोग्यादिः zeufarfa,—

Carfgan समाख्यातः प्रोक्रखतुविंधः।

जङ्गमः स्थावरञ्ैव गोप्योभोग्यस्तयेवष

यादुच्छिकः सावधिश्च लेख्यारूढोऽय साचिमान्‌-दूति |

arfuata बन्धः दिविधः, गोपो भोग्यश्च पुनशचैकेकशो-

दि विधः, aya: स्थावर शत्यं चतु विधः पुनरपि रत्येकं दिविधः, यादृच्छिकः सावधिशचेति। araguaa ददामि तावद्‌्यमाधि- frad कालविग्रेषावधिशूल्यतया शतो यादुच्छिकः। इतकालोप- नेयः सावधिः | wary लेख्याः साचिमानिति दिविधः भर- STH! प्रकारान्तरेणाधेख।तुविध्यमादः-

Carfagafau: प्रोक्तो भोग्यो गोणस्तस्येवच |

श्रथेप्रत्ययदेतुखच चतु येस्वाश्नया रतः

श्रावणात्यवेिखितो भोग्याधिः Fe उच्यते |

गोप्ापिष्ठ परेभ्यः खन्दवा यो गोप्यते wey

श्रथेप्रत्ययहहेतुयै WI: उच्यते |

श्राज्चाधिर्नामयो राज्ञा संसदि लान्ञया शतः दति |

=, „~ ~ ~~ ~~ ~~~ ~~ Ree 9 se नि er etre, ETE Ete tees,

# विनेय xaw:,—sfa me |

आवणं cafe wana) शआधिग्रडशानन्तरं arafentct- दथोधथा भवन्ति, तया पालमोय care हरोतः,- “बन्धं यथा खापितं eraea परिपाशयेत्‌ | श्रन्यया नश्यते लाभो He वा सद्रातिक्मात्‌”-षति | ददस्पतिरपि,- “ज्यासवत्परिपाण्योऽसौ टद्धिगेग्येत्तयाऽशते | भुक्ते arsercal प्रापे मूखरामिः प्रजायते। asa यज गष्टग्टफिकं तोषयेत्‌ दैवराजोपघाते यज्राधिर्नाग्रमाभ्रुयात्‌ | warty दापयेषृष्टान्‌ षोदयं ध्ममन्यथा "ति | तथाच व्यासः 'हेवराओपाते तु दोषौ धनिनां करत्‌ | अन्यथा aaa लाभो मूलं वा नाग्रमाश्रुयात्‌ धणं ZUG THT बन्धनान्यकडपं तया" इति | श्रासेरमारवेऽ्येवमनुसन्धेयम्‌ | तथाच नारद. "रचमाणोऽपि Taha: कालेगेयाद सारताम्‌ | ज्राधिरन्यो$ऽथवा काया देवंवा धमिने धगम्‌"-एति। याश्चवष्वयोऽपिः- नाः सौकरणसिद्रौ रवमाणेऽ्यमारताम्‌ | यातद्धेदन्य श्राधेयो धनभाग्वा धनौ भवेत्‌- दति

saat: ) sata भोग्यस्य स्लौकरणात्‌ ग्रणात्‌ ७प-

१७९१ WEA |

भोगाञ्चाधियहणसिद्धिः, भ॒ शाचिलेख्धमाभेण नाणे प्रमाण तदाह नारदः “arfing डदिविधः प्रोक्रो जङ्गमः स्थावर स्तथा | चिद्धिरस्योभयस्यापि भोगो यद्यस्ति नान्यया" ईति एवं सति, या खोकारान्ता करिया gal, सा qwaat; या ूर्वाऽपि खौकारादिरदहिता, सा वलवतौत्युकं भवति श्राधिः प्रयन्नेन रक्षमाणोऽपि कालादिवशेन चद्यसषारताङ्गतस्तदाऽन्य BIT: | श्रय वा धनिने धनं देयम्‌ श्राधिशिद्धौ भोगएव प्रमाणएमित्यार विष्णः- : ‹“इयोनिचिक्तथोराधिर्विवदेतां यदा नरौ | यस्य भुक्रिजैयसस्य बलात्कारं विना हता?-दति इयोरपि qware शदस्पतिः,- ‘Wiad ai समकालिकम्‌ थेन भुक्तं भवेत्तस्य तत्‌ तल्िद्धिमवाभ्रुयात्‌”-दइति वसिष्ठोऽपि “तुका fers रेख्यानामाधिकमेणि | . येन शुकतं wage तस्माधिवेखवन्तरा“- दति भोगाधिभेषे ayare,— etenfaae तौ तु भोक्षुकामायुपागतौ | विभव्याधिः gavin भोक्कब्य इति नियः? इति।

दयोरेकमाभिं Haat Taare कात्यायनः,

व्यवहारकाखम्‌। reo

Serfyaag इयोः war यद्येका प्रतिपद्धवेत्‌ ` तथोः पूर्वकृतं यादं तत्कर्ता दण्डभाग्मबेत्‌""--दति प्रतिपदिति प्रतिप्तिरित्यथः। श्रधिविशेषे दष्डविशेष॑माह faq: | “गोचममाचाधिकरं सुवमन्यसय WTR तस्मादनिमं- ere यः: प्रयच्छे बध्यः ऊनां चेत्‌, षो इश्रसुवणं दण्डाः, इति | साचिक्लस्थरिद्योलंस्यमि द्धिवेखवतोत्यार काल्यायनः,- grata विक्रयो दानं लेख्यसाचिृतं यदा एकक्रियापिरुडधमत्‌ लेसे तजरापहारकम्‌”-- इति लेष्यमिद्धलाकिगेषेऽपि सएव. cgtaféey निरिंटमेकत्र विलेखितम्‌ | granada श्रनादिष्टं aga यद्यद्‌ यद्‌; fia तदादिष्टं विनिरदिगत्‌"-एति। त्रयमः श्राधातुराधानकाने afaqara धनं गिकपित- aged च, तद्भनमाधिवना दष तनिर्दि्टमित्युच्यते | तदिपरोौतन्‌ धनमायधिलेन कस््थमानमनिरिं्टमिति निर्दिजेदिति। fafee- त्वा विषे Aye, agri प्रतिग्रहे ata vat तु बलवन्षरा “इति | एकमेव केचमेकस्थाधि रला क्रिमपि weal पुनरन्य्याधाय किमपि waria, तच Ae aavawata AAT एव प्रतिय क्ये योजनौयम्‌ | खा दिषुत्तर क्रियायाः AAT ava,— “सर्वव्वयविवारेषु बलवत्धु तरा किया"-इति। येक रेनमेकष्याधिं ears विक्नौमौते, तथाह afaB:,— 23

७८ परान्नर माघवः)

नयः पूर्व्तरमाधाय विक्रिणौते तु तं gat किमेतथोबेलोयः श्यात्‌ प्रोकेन बणवत्तरम्‌"-इति | श्रा्यादौनां यौगपदयेऽ्याह सएव, “ea यजेकदिवसे दानमाधामविक्रयम्‌ | चयाणामपि सन्देहे कथं तच विदिन्तयेत्‌ चयोऽपि तद्धनं rel विभजेयु्यंयाऽ'शतः | उभौ क्रियानुसारेण जिभामोनं प्रतिग्रदो"-रति। एतदाधितोऽयधिकर्णिकविषयम्‌ खणप््थाप्नाधिनागरे are नारदः+ “Rage मूलनाग्नः स्यात्‌ देवराजशतादृते"--दति | बडमूखाभिनागे धनिकं समपेयेदित्युकतम्‌ तच विगरेषमादे मतुः,- ‘saa तोषयेदेनमा धिस्तेनो ऽन्यथा भवेत्‌ इति | गोप्याधिभोगे लाभहाजिमाह यान्नवसक्यः;- "गोप्याधिभोगे नो afg: सोपकारेऽथ हापिते नष्टो देयो विनष्टश्च दैवराजकतादुते"--दति | शरयमर्थंः | watered: समयातिक्रमेण भोगे सति aearfa दृद्धिदौतव्या। सोपकारे षटद्धिके भोग्याधौ हापिते eaerc- aug प्रापिते षति दृद्धिः। गोयाधिविकारं प्रापितः, पूर्वव- wat देयः) विनष्टसेदात्यन्तिकनाग्रं॒प्राएच्च्तबुदयारिदारेेव ¦ निषेद्यः। गोप्याधिभोगे नो इद्धि रित्येतदलात्कारभो विषयम्‌ | अ्रत- ` एवि AGS - |

BTU CAs | Red

“न भोक्तव्यो बलादाधिसं रागो इद्धिसुदसणेत्‌"- इति awarfaar श्राधिभोगे भोगागुषारेण eae नाभमाइ सएव,- “यः खाभिनाऽननुज्ञातमापिं भु द्ऽविचकणः। तेनार्धदद्धिमीकया तस्य भोगस्य निष्कतिः"-दति | कचिदिषये मृलद्रयनाभन मह शाभनाग्रष्य विकश्पमाद काल्यायनः,- नश्रकामममनुज्ञातमापि यः कमे कारयेत्‌ | भोक्ता कर्मफलं iat afg वा wera सः"-षति। दाख्या्याधौ कर्मफलं बेतनम्‌। श्राित arafzatga षए- वाण, “"यस्वा धिं कम Gata: वाम्धाद कोन कमेभिः* | Tea wads मररयात्पुवमाहमम्‌”- एति श्राङदितम्य द्वयस्य सलवमिटेर्तिफालमाद ATA: confa: प्रणगरेदह्धिगुण धने यदि मोचयते | कासे कालतो नश्येत्‌ फलभोग्यो नण्छनि”-- दूति

TAR धने स्वहतया दद्या कालक्रमेण हेग प्रापे सति UW

कालो गोयाधिने मीच्छते, तदा APACE, धने wag: A बति शतकालो गोप्यो मोग्यश्चाधिः सम्प्रतिपने काले यदि 4

= == =

_ दरति काण | मम तु ध्यानं ath —tfa पष्टः प्रविमावि।

[11 on newness

Ne teen aw

* arent cage wale, geal Facet wit,

१८० परर माच्वः,।

AA, तदाऽधमणेष्य नण्येत्‌ श्रहतकालः फलभोग्यः कदा चिदपि ग॒ नश्यति। दैगष्छनिष्टपितकालयोरुपरि चतुद शदिवसप्रतो चं कन्तव्यमित्याह व्यासः, “Ferg दिगुणौग्धते qa wart | बन्धकस्य धनखामो दिसप्तादं प्रतोकते तदन्तरा धनं दला खणो बन्धमवाक्रयात्‌"--दति | ware: waft: खलोत्पन्तेञ्च कारणं नास्ति, गरिषयोऽपि भासि। मेवम्‌ | केवलं दृनादिरेव खलनिदटत्तिकार णम्‌, प्रति- ग्रहादिरेव स्लवापन्तिकारणम्‌ ; किन्तु देगष्निष्टपितकालप्ाप्नौ द्रव्यादोनामपि तस्य याञ्नवस्क्यवचनेनेव ऋणिधनिनोरात्यन्तिक- सलनिदरन्िखवोत्पत्तिकारणएत्ावगमात्‌ मनुवचनविरोधः, त्योक्षकालभोग्धा धिविषयलेनःपुपपन्तेः यत्तु ewufaa प्राद- प्रतोचणसुक्रम्‌,- “पूर्णावधौ सान्तामे बन्धखामौ घनौ भवेत्‌ | श्रनि्गते दशाहे तु खणो मोचितुमहति- दति | तदवस्लादि विषयम्‌ | faxed दिगृणोग्डते,--इति व्थासेन विगरेषौ- पादानीत्‌ | यत्पुनसतनेवोक्षम्‌,- नगोष्याधिरदिगुणदृ्वं हतकोलसथाऽवपेः | grazagfage भोक्व्यस्तदनन्तरम्‌- दइ ति 1 तद्भोगमाचविधिपरम्‌, ga: स्लाप्तिपरम्‌। यदा तु सान्तल्लामे wt बन्धस्य तथेवावसख्थितस्य मो चनात्‌ प्राणिकश् मरणादिभंषेव्‌, तदा किं काय्येमित्यपेकितिमार दस्ति,

“fara दिगणोभते रते गषटेऽधमरिक | IMT संद विकिफोत ससाचिकम्‌ TAN HAW तु दशां जनसंसदि | शणातुक्पं परतो गहौलाल्यत्तृ वशयेत्‌ ` - दति हिरण्ये दिगुणो्ठेते पश्षादाधिमोचणादर्वागधमिंके मरते गे gafaya चिरकालमविज्ञाने माति. श्रापिरनं द्रं भमाचिकं विक्रीय चरितानुरूपं दिगणोगेतद्रयपयापतिं ava, ततो ऽवग्िषठं asa UH ममपेयेरिव्य्धः। तसाच काल्यायनः.- “STUTAT यत्र नष्टः स्यात्‌ wat बन्धं मिषेदयत्‌ | राज्ञा ततः रिस्यातो विक्रय दति धारणा॥ मरद्ध aver तु md राजन्ययापयत्‌"- एति) राजे BRING जत्याद्मभावव्रिषथम्‌ | AA_a awa wae णम्य न्यायखलात्‌ WaT वजयित्थनेन घनदेगु्ेऽयक्तकराशा- धथधिकाधौ धनिकम्यास्तामिचमवगम्यतं | une खलप्रतिपादकं याक्ञवनक्यवदवनं ममानाधि विषयम्‌ अतएव, wa श्रधिके बन्धे आधिनाग्नोनानि. [कन्तु दिगृषेभतं AAA रान्ना दापय TITY TRE ies ^ रितिवन्धिककतं ATE दापयेद्धनम्‌ | स्यहारहनं xa दिगण दापयत्‌ ततः" -दइति रिं ्नोभमाचरितं Sanaa | तैन यत्‌ बन्धक, चरित्र बन्धकम्‌ | तेना धिकेन यद्रयमासमात्‌ रतं पराधौनं वा कतं, तञ्च

ee et 1)

0 7) ता 1 |

* समांभाधिविषयम्‌,--दनि ate |

१८२ पर शर माधवः।

रि्वन्धकषतम्‌ | श्रयवा चरिवमभ्निहोषादिजनितमपूरवम्‌। तदेव बन्धकं चरिच्रबन्धकम्‌ तेन यटग्यमाद्मषाश्छतं, तत्घदद्धिकमेव दापयेत्‌, तु धनदवेगु्येऽ्याधिनाश्रः। सत्यस्य कारः AAT | तेम हतं सल्यृङारङृतम्‌ | तदपि द्विगुणमेव देयं, तु लाभादि- नागरः" | अ्रयममिप्रायः | बन्धकापंएसमयएव मथा दिगुणमेव द्रवयं aaa नाधिनाश्रः इति नियमे कते, तदेव forward दातव्यनाधि- नारः इति कयविक्रयादि यवसा निर्वाहाय यद ्ुलौयकादि पर- इमो समर्पितं, AMES | तवाङ्गुलौयकाटि welar वयवखा- मतिक्रामन्‌ तदेवाङ्गलौयकादि गुणं प्रतिपादयेत्‌ दतरशेद- ह्ुलौयकादिकमेव त्यजेत्‌ वस्ताधौ निथममाद प्रजापतिः, -

भ्यो वै धनेन तेनेव परमाधिं मयेद्यदि |

wet तदाऽऽधिखिखितं पवश्चापि समपेयेत्‌”--इईति

यदन्धकखराभिनि wi wae ayaa धनेन ut धनिका-

म्तरमाधिं नयेत्‌, लधिकेन | श्रयं वस्वाधिधेनष्ठ Bae सति। waar तु चेगण्णाद्वांगपि zea: |

अथाधिमाचनम्‌।

a4 इदसतिः,- “धनं gated दला चदाऽऽधि प्राथयेदणौ | तदैव तस्य मोक्रथस्लन्यया टदोषभाग्धनो-दति |

(1 शा bee neve ~ ~ = ~~~ ~~ ~ To la 8 1. ---~ =

® सामनाप्र+--द्रति कार

चबहार कष्टम्‌ | १८

मृशोर्हेतमधमरएेन देयं धमम्‌; वम्तुभोग्याधौ qears, गो- पाधौ तु सटृद्धिकम्‌ यदा ager खौ श्राधिं area’, तदा धनिना Atma: waar cheatin: | तराई Tee वस्व्यः “उपस्थितस्य मोक्रयः श्राधिष्षेनोऽन्यथा भवेत्‌ प्रयोजके षति धनं ठुले<न्यस्याधिमाभरयात्‌"' दति | धमप्रयोक्रय्येसन्मिहिते मति तदाप्ररम्ते vafga धनं निधाथ खकौयमाधिं zeta) atria मूलमात्रं दना फलकाशाको मोक्रयद्त्याड वयामः,- ^फलभोग्यं पूेकाने दला द्रव्यन्त्‌ मामकम्‌" इति सममेव मामकम्‌ मणमाज दला णो बन्धमवाप्रुयारिति। आधिनागरनिबन्धमले वेग्छादिकानादर्वागेव भाधिमीक्ष्ः | तथाच मणए्व,- “श्रतोऽन्तरा धनं दला खणो बन्धमवा्रुयात्‌"- इति | यत्त॒ तेनेवोक्म्‌,- “गोप्याधि डिगणादूद्ं मोचयेदघमिकः"-दति। agra, vata िमपतारान्मो नय दिव्येवन्परम्‌ अन्धा, श्राधिः परप्ेद्धिगुणे धने दति या्नवस्कयत्रचनगिरोधापत्तः। यदि परयोक्रय्यमज्निहिते तत्कुले धनग्रीतारो मन्ति, यदि arssfi- विक्रयेण धनादित्पा सखादधमपंषय, ay यत्कं तदाद UT TR: Cqarnmmaan a aa facefge:”—efe |

१८४ ` परारमाधदः।

ऋणदानेच्छाकाले यत्‌ तसाधे्मूरध, तत्परिकर्् ava धनिनि तमाधिं afgcfed qraawa oat वद्धेते इति भोग्याधि- fava क्चिदिगेषमाह इशष्यतिः,- “"चछेचादिकं यटा भुक्रमत्यन्तमधिकं ततः | मृलोदयं प्रविष्टं चन्नदाऽऽधिं प्रा्रुयादृणणौ- दति तेन प्रविष्टे सोदे द्रव्ये लयेतन्मोक्व्यभिल्येवं परिभाव्य यदा सेवादिकमादभ्यात्‌, तदा भोगेन चेजायव्ययश्चहितसटद्धिकचनपरवेशे सति श्राभिमादद्यादधमणे इत्ययः यान्नवख्क्योऽपिः- “यदा तु दिगुण्णौश्वतद्णमाधौ तदाऽखिलम्‌ | मोच्यश्राधिखदुत्यकने प्रविष्टे दिगृणे धनेति | श्रयमेव .चयाधिरिल्युष्यते sta यच तु दद्यर्थएव भोग- दति परिभाषते, aa भोगेनाधिकधनमषेगे यावकूलदानं नाधि- मेक्रियः। न्परिभाख यदा कचे तथा तु धनिके खणो ल्येतद्न्तलामेऽयं भोक्रयमिति निश्चयः प्रविष्टे सोदये xa प्रदातयन्वया मम'-इति | , खणय्रहणएकाले धनदरेग्णान्तरं भोगः। मूलमाचे दत्प्रःधमणे वन्धनं प्राप्नोति धनौ णं मूलमात्रं zeta) किन्त पूर्तं ववं समयदद्धिपर्य्यापे धने ufaé सति धनिमो मूलमाचं देयम्‌ णिनो बन्धलाभ दति परसरागुमतौ टद्यपर््याप्त- भोगेऽपि मूशमा्दानेनैवा धिलाभः cae परिभापषितकालेक- zea समयटदधिपर्या प्तवषेप्ेशे सवाद, -- `

+

चतहारकारम्‌ | १९५

“यदि प्रकषितं तत्या्तदा a wana | णो लभते बन्ध परस्परमतं विमा" इति) दत्याधििधिः। अथ प्रतिभूः। तज ररस्पतिः,- “ana प्रत्यये दाने खणे garg नया चतुःप्रकारः प्रतिभः mead दृष्टो मनोचिभिः॥ meat दग्रयामौनि साधुरित्यपरोऽतरशौत्‌ | दाताऽमेतद्रविष्मपयामौति चापरः -दमि। श्रमे तदौयं धनमपेयामोति admin) दभभुप्रतिमुवः लत्यमाह सएव,- "द्‌ गेनपरनिभर्यम्तु BH काने ena | निबन्धं वायत तव येत राजरहतादृत''-दति। निबन्धं wu वादयेत्‌ धनिनं प्रापयेन्‌ ag दग्रयति, तं प्रत्या ममुः, श्यो यम्य प्रतिभमिष्ेत्‌ दग्रनायह मानवः) श्रद्गेयन्म तं तत्र wae] स्धमादृणम्‌'"- दति | दशनाय कालं दथ्ादिव्यार रहम्पतिः,- aperaan कामं ददाप्मतिभुषे धनौ | टेप्ानुक्पतः vd मामं wigaatfaa” दति।

कात्यायनोऽपि, 24

reg VETTE AT AS: |

“नष्टसानेषणा्थनत देय Taw परम्‌ यद्यसौ TAA मोक्षः प्रतिभभेवेत्‌ ` कालेऽयतोते प्रतिश्येदि तं नैव दयेत्‌ म॒ तमयं प्रदाप्यः wad, चेवं विधोयते-टूति। दानप्रत्ययप्रतिभुत्रोः AAA नाररः,- "“'इणियप्रतिकुवेत्यु प्रत्यये वाऽय दापिते प्रतिभस्त दद्यादनुपश्थापयस्तद्‌ा-दति | ea aaa wera प्रत्यये ज्ञापिततदि- श्रासेऽपगते | धनापेरप्रतिमुवः शत्यमाद सणएव,-- “विश्वासां कतस््ाधिने प्राप्तौ धनिना yer) प्रापणौयम्वदा तेन ca त्रा धनिनां घनम्‌”-इति श्राधिप्रत्यपणप्रतिमुवं ware षएव,- “Carat वित्तदौनथ waat वित्तवान्‌ यदि | मृलं तस्य भवेदयं रद्धं दातुमरति”-दइति | खादको THAT: aga: प्रतिश्वः। सत्‌ दद्धि ara नारंति। खादकादप्यच, aaa तोषयेदि ति वचनात्‌ तन्मा परेव * देयम्‌ | vafaatat प्रतिभुवामपि दे षद्रयविधयो gear) प्रतिशचर्ाद्य- दति प्रक्तमाद का्याखनोऽपि.- “दानोप्थानवारेषु विश्वासग्रपयाय | | ann कारयेदेवं यथायोगं विपर्ययैये"--दूति।

~ काक जके

+ इत्यमेव पाटः RAT) मम तु, मूलेन तोधयेदिति वचनात्‌ मूलमाच- मेवः-दति aia: प्रतिभाति।

व्यवहारकारणम्‌ | १८७

उपान दशनम्‌ वयारोऽपि- “लेख्ये छते दिये वा दानप्रल्ययदग्रने | aan efagaqa तया इति | प्रतिश्वर््रह्य इति भेषः प्रतिश्रमरणे व्यवम्थामाद् aTy- AVR “onqufaray सरतः भाल्ययिकोऽपिवा तत्पुत्रा छण guzaztara यः faa” -द्रति यद्‌ दभेनपनिशधः प्द्धयिकरो वा दतः, तदा तथोः gar ्ाति- arated विदकतश्टणं दुः यम्ब दानाय ग्यितः प्रतिष्ेत- way ऋणं ददुः amgrayaety qaaa दयं, efezer तथाच AA ant Farad Tha wifaaraid सुतः। ममं erat तु दाणाद्वत fae ThA तत्घुतौ पौत्प्रपौलौ wera. Cored a पित दण तकानात्रेदिलं धनम्‌ | art तू तिद विना तदतौ तथा" दति श्राय दमेनप्रत्ययपरतिमुतौ, (तय NAAT द्रपधि्यामि sat साधु रित्येवं विधयोर्वाक्यः मिश्य किंद्यापंपमतियुवौ विम्बाद्‌ eraifeat भने {पिकेन श्रप्रति- दत्ते दायो TaN तुन दाप्यौ प्रत्ययप्रतिभ्वद्ममाप

गान्ना grat) watt दान-

* इत्यमेव पाठः aaa) HA 4,

सुस Ws. पस

१८८ qc) . `

प्रतिभ्रेव दाणो aq: विवादप्रतिश्चक्षसाधितं धनं दण्ड दाणः। तदभावे तत्पुजोऽपौल्याह बावः | “विप्रत्यये लेष्यदिथे देने arsed सति | एं zim: प्रतिभुवः gaat दापयेत्‌ दागवादप्रतिशुवौ दाप्यौ तत्पुषकौ तथाति | यज SMAI बन्धकं AMAT प्रातिभायमङ्गीकुरतः, तच विग्रेषमार कात्यायनः Codie बन्धकं यश्च दगेनष्य feat भवेत्‌ | विना fra धनं तस्नादाण्तस्य णं सुतः“ टति। श्रनेकप्रतिशदानप्रकारमाद AAMAS: ‘qua wife aiteg: प्रतिभुवो धमम्‌ एकष्ायाभितेखेषु धनिकस्य यथा रचः" एति | *एकसिन्‌ प्रयोगे at वहवो वा प्रतिभुवः, तदं विभज्य सेः दधुः एकड्धायाजरितेषु यं पुरुषं धनिकः प्राथेयेत्‌, सएव Be ददात्‌ माँश्रतः। एकक्षायाधिषटितेषु यदि किदे शरान्रङ्गतः, तद तत्पुचोऽपि दशात्‌ गते तु पितरि qa: पि्॑रमेव दद्यात्‌, ` BGA | तथाच कात्यायनः,- '(ठकङ्ायाप्रविष्टामां दाष्योयस्तज दुष्यते | mea age: स्वै faq ते तु सः"-एति। प्रातिभाययापलापे दष्डमाइ पितामहः भयो ae प्रतिडगरेला मिष्या चेव तु एच्छति।

A er tene ntnees “tree eeres + ame

* ay, यदिति भवितुदुत्विवम्‌

i 0 1 7 |

BATON | et

धनिकस्य धनं ret tan दण्डेन तत्पमम्‌ gate प्रति्र्वादं कां चार्थःथिना सह सोपसगेस्तदा ut विवादात्‌ feat दमम्‌"--दति रच प्रतिक्रियाविधिः। तत्र याश्वरक्यः,- ^प्रतिश्वदा पितो aa wart धनिने धमम्‌ | दिगणं प्रतिरातयं खणिकेसतस्य तद्भवेत्‌”--दति | धनिकेन पौडितः सन्‌ प्रतिग्रस्ततसुतोवा भनसमच राशा यद्धनं दापितस्दुद्विगुण्छणिकः प्रतिभुवे दद्यात्‌ Aare मारद्ः- | न्यं qa प्रतिश्वदयादूनिकेनोपपो fea: | णिकः खप्रतिभुवे दविगुणं प्रतिदापयेत्‌”-इति कदा fe fan दधादिव्यपेचिते श्राह कात्यायनःन "प्रतिभावं तु यो दद्ात्पौडितः प्रतिभावितः, जिपचात्परतः aise दविगुणं लभुमहति-इति ,. Rae छिरष्विषयम्‌ | परादौ तु किगिषो areas “सन्ति; स्तौ पदव्ेव धान्यं विगुणमेवच वस्तं UT परोक्त रसयाष्टगुण्तया”-दति | प्रातिभाषे निषेधानाह काल्यायनः- न्न खामो ata प्रजः खामिनाऽपितसथा। निरद्धो दण्डित afar कंचित्‌ Ba Feat मिं दा चेवाल्यन्तवाभिनः। राजकाय्येनियुकषश्च ये प्रत्रजिता सराः eruat धनिने दातुं दण्डं WH AMAA |

१६० प्रराशरमाधवः।.

aaa वाऽपि पिता यद्य तथेवेष्डापरवत्तंकः नाविन्नाततो यहोतयः ufos: खर्कियां प्रति-दति। मन्दिग्धोऽमिभस्तः श्रत्यन्तवासिनो नेषिवाब्रह्मचारिणः यान्न- वर्क्यीऽपि,- ‘aqauray दम्पत्योः पितुः qe चेव fe प्रातिभावयण्णं साच्यं श्रविभक्तं न्‌ तु सतम्‌” ति | arcatsfa,— “arfaa प्रातिभाव्यञ्च दामं यरदएमेवच | विभक्ता भ्रातरः श्यः नाविभक्ताः परस्परम्‌” दति खतन्तेषु धनप्रयोगनिषेधमा ATTA @hat दामवाक्तेभ्ः प्रयच्छेच क्चिद्धनम्‌ | दत्तन्न लभते TY तेभ्यो दत्तं ठु चद्धनम्‌"-दरति। अथणैग्रडणधम्पाः | तत यान्ञवस्कयः,- "प्रच्छन्ने साधयन्नथे वाच्यो नृपतेभेत्‌ साध्यमानो नृपं गच्छेत्‌ दण्ड्यो दाप्यश्च तद्धनम्‌”--दइति | sere: | श्रधमर्णंनाभ्युपगतं साच्छादिभिभावितं वा धर्मादि- मिष्पायैः साधयन्‌ रान्ना निधारणेयः। यदि तु पापात्तदा इसखतिः- "ध्चीपयधिवलात्कारे गटदसम्नोधनेन' च-द्रति |

2 व; [क [काका MARR et eae AREER ARR OP ne er RS Be eS Re eam ~~~ een 2 eens net ee en ect

* व्यमेव प्राठः a ‘YY तु, संसोधनेनः--दति प्राठः प्रतिमाति।

व्यवहार कारम्‌ | १९१

धर्म्ादौन्‌ खयमेवाहः- ““सुद्धत्यम्बन्धिसन्दिटः मामोकयाऽनुगमेनं च। प्रायेणाय ऋषौ दायो धमं एवमुदादतः ददाना यादितं चायमानो wefan घनौ gated ममादव्य दायते यत्र atafu: i यदा QIAN ताद्नाचेरपक्रमेः | णिकौ दाणने aa वलात्कीरः WATER: दारपुच्रपश्न बध्वा BAT दारोपरोधनम्‌ qa द।पदेऽचैन्त्‌ तदाचरितर््ुच्यते "दरति | मनुरपि धर्मादोनुपायान्‌ दयति. “gga दैदद्यरेए न्छलेनाचरितेन च। प्रयुतं माघयन्‌य vata wea द" TTA | घर्म्ादयश्चोपायाः qatar प्रयो क्राः तदार कात्या - यन्‌:+- eran तु सतामिनं तपरं WAT प्रदापयेत्‌ | रिक्थिमं que यपि BAIT प्रदापयत्‌ वरिका: केपिकाः चव परिज्थिनथा नतः gat: देग्राचारेण ear: BHA HAT aaa TA | दापने विग्रषमाह ase” "दहोतासुकनादापयो धरमिनामधमण्षिः | दला तु ब्राह्मणाय नपतम्दनन्तर म्‌ - इति |

खमानजातौयेष्‌ धनिषु युगपत ग्टहोतानुजमान्‌ चम

१९२ पराशररमाधवः |

दाणः, भिनजातौयेष्‌ तु angurfemae साधयितुमशक्तं धनिकं प्रत्याह AHI, “राज्नाऽचमणिकोदाणः साधिताहगकं शतम्‌ | पश्चकन्तु श्रतं दाप्यः प्रक्नायौ यन्तमफिकः"- दति प्रतिपन्नर्यार्थस्य राजा दश्रमांगश्मधमर्णिकादण्डरूपेण ग्टलो- यादुत्तमणोदि्रतितमं भागं इत्यथे रक्ञोयादिल्ययेः। श्रधनिक- णा दानप्रकारमारह यान्नवस्क्यः,- Maarfa ATU कमे कारयेत्‌ | arg परिरीणः waatet यथोदयम्‌”-इति | ्राद्मणग्रहणमुक्कषटजाल्युपलचणर्यम्‌ “कर्मणाऽपि समं ate ufaa वाऽधमणिकः। समोऽपषष्टजातिख ददात्‌ अेवांस्वु तच्छनेः-दूति सरण्णत्‌। नारदोऽपि “श्रय ग्रक्रिविहौनयेदृणौ कालविपय्येयात्‌ | श्र्यपेच्टणं दाप्यः काले काले यथोदयम्‌" दति | दृष्टाधमणिकं प्रत्याह AA: “सणिकः सधनोयस्तु दौराव्थान्न प्रयच्छति | राश्ना दापयितव्यः स्यात्‌ होला दिगृणो दमः" दति) ahead खणग्रहं ङु्वतोऽचंहानिदंष्डसेत्याद रहस्यतिः,- “श्रना तु राज्ञे यः सन्दिग्धा प्रवत्तेते | प्रसद्य nam: wrgasaa सिध्यति” इति काल्यायनोऽपि,~

यवहारक्षाखम्‌ | १८१

aan धनौ यच णिक न्यायवादिनम्‌ | तस्मादर्थाच्छ ₹हौयेत तत्समं mya दमम्‌"-इति यस्वधमणेस्त्तमणंसकाशात्‌ वयवदहाराथं धनं ग्रो तवान्‌, waa धनं दधात्‌, नान्येषाम्‌ तदाह कात्यायनः,

“यस्व xan garg साधितं यो विभावयेत्‌ ageafuacta दातं aa नान्यथा”--दति | निर्घनाधमणविषये खणप्रतिदानप्रकारमार भारदाजः- efi धनाभावे देयोऽन्योऽ्ख TWAT | धान्यं हिरण्छं ate वा गोमहिव्यादिकं तथा

वस्तं दांसवगेश्च षाहनादि यथाक्रमम्‌ |

धनिकस्य तु विक्रय staan:

Sarasa तथाऽऽरामस्तस्याभावे ₹रयक्रयः |

दिजातोमां खटहाभावे कालदहारो विधोयते"--इति

मनुरपि,

Ceut दातुमशक्तो यः aif: क्रियाम्‌ |

a za निजितां दद्धि acm परिवन्तयेत्‌""-इति [ने धनामन्यत्तिवगासटद्धिकमलदाना- धनिकभ्य WATATY- |

aay: | प्रतिदानकं शरक्रोऽधम्णः wae चिरन्तमलं परिदरतो क्रियां लेस्यादिरूपां पुनः कर्मिच्छत्‌, म॒निष्यना ag दता dete क्रियां वत्तमानवत्छरादिचिश्ि्तां

करणं परिवत्तयेत्‌ ; पुनस कु्यादिति। यः qifafaaetg दातुमसमथः, ठु तां qara-

भारोपयेत्‌ तदाद षएव,-

25

१९४ पराश्राव)

“शदूर्रयिला aaa fece परिवर्तयेत्‌ | यावतो aaaefg: तावतौ हातुमरेति?-दति। हिर्छमदग्रंयिला मिजितां afgaget aaa wei परि ea | यस्तु खणएप्रतिदानकाले सटृद्धिकं मूलं दाद्‌ शक्रोति, तं प्रह्याद यान्नवसक्धः,- a ‘ere vashufway zat दलरिकौ धमम्‌“--इति। शेख्यासन्निधाने विष्णुः। “श्रषमयदाने लेश्यासज्निघाने we-: मेष्य लिखितं दद्यात्‌"-दति नारदोऽपि, “eaten दध्यादृरिकात्‌ दद्धिमाभ्रुथात्‌ | यदिवा भो परिलिखेदुणिना चोदितोऽपि. सन्‌ धनिकस्यैव aga तयेव शणिकस्य ashe qq खणापाकरणं करोति, तस्य प्रत्यवायः पुराऽपि द्‌ भिंतःः~ | “तपसौ चाग्निहोचौ णवान्‌ चियते" यदि तपदचैवा परि ोचश्च सवं तद्धभिने waq’—<fa | कात्यायनोऽपि 'वुद्धारादिकमादाय खाभिने ददाति यः। aw दारागत्यः सलौ पवां जायते zea fA | उद्धारारिकं दात्देयतया शितम्‌ नारदोऽपि. ‘aed ददानत खएमाधिप्रतिग्रहम्‌ | तदरश्च agama थावल्को टि शतं भवेत्‌

„~ ~~ ~ nen जा A क-म ५. a death कतमो

« ऋय नोभ्रियते- दति We |

श्थवश्ारकाकःम्‌ 1 १९४

ततः कोटिश्रते पणें दामनष्टेनः कमण aq, खरोटषोदामो wsafa जन्मनि"-ट्ति। प्रतिराहुः AAMAS याल्नवस्कयः,- “sae पाटयनरष्यं इद्रे चान्यन्त्‌ कारयेत्‌ | arfau ख्यापयदयद्वा दातव्य वा ससासिकम्‌ दति) ससाचिकण्डणं परमैमाशिसमदमेय दातव्यम्‌ | पूवमाकिणामसम्भगे मच्छन्तरसमलमेवं दातव्यमिति नारदोऽपि. - “aa दना रण शरद्य तद्भावे सुतेरिति" [शरस्पक्रालमरोधकालभ्रणं याच्यमानभममन्तरमेव देयम्‌ सावधिवेन छतं तू प्रदे लकौ सान्तलामं aa धनिकणिकेयो- रेवं fanfz: स्यात्‌ प्रलिश्टञमिति।। खसप्रतिदाकनार aera, ''याच्यमानाय दातयसन्पक्रान्स््ररय छतम्‌ | giiadt मान्नम्नःममभाये पितुः कित्‌" ईति नन्त qaqa qu! तभ्य पितुरभावे पिटकृतश्रण सुनिरवश्वं

दातयम्‌ अवश्यं द।तव्यमित्यच STATS नारदः,

(य —_ ~ == ~ ee = oe नरन क, = ane ee eS कक we

* वाशु नरम, -इति का | + दव्यमेव पाठः सन्त्र {4 गम प; अन्पकालन्टशं देयं याचितं समन

न्तरम्‌ | qasaut सावभो त्‌ arena Ffafafedq afanfa- manta fagfa: aia प्रतिश्रवम्‌" एति | GAMA क्षालद्टणं याद्यमागसमनन्तरमतव्र दवम्‌ | atu नन्त पुवं वधो सान्तलाभं देयम्‌ | उति पाठोमवितुनर्इति qatar sts- प्येवं far: प्राठः eta, std द्रनिभाति। पर BAN TWAT: लम्रणव पाठोमूलै रचितः ण्व TN! ¡ दव्य मेव पाः aa!

१९६ पराशरमाशवः।

“दृष्छन्ति पितरः पुवाम्‌ स्वाचेतोयेतस्ततः | उत्तमर्णधमणंभ्धां मामयं मोचयिय्ति श्रत; पुतेण जातेन खाथमुतृष्व्य Waa: | छणात्यिता मोचनौयो यथा नरकं त्रलेत्‌”-रति। उत्तमद्णं, “जायमानो ब्राद्मणस्िभिच्ैएषान्‌ जायते” दूति श्रुतिप्रतिपादितष्टणम्‌ श्रधमद्टणं परदस्तात्‌ क्रुसोद विधिना meray कात्यायनोऽपि, ‘sur सुनुभिजतिः दानेनेवाधमादृणात्‌ | विमोचस्त यतस्तस्मादिच्छन्ति पितरः सुतान्‌" ईति जातेनेत्यमिधानान्न जातमाचस्य णमोचनेऽधिकारः, किम पराप्तयवहारसेत्याद सएव, “नाप्राप्तयवदारश्ह पितथ्युपरते कचित्‌ | काले तु विधिना देयं वभेवुनरकेऽन्यथा'--ति afefaqurasfa पितरि gacafaare सएव, “विद्यमानेऽपि tina खरदेश्रास्राषिते तथा | विंभराव्छवतरादेवण्टणं पिदषटतं सुतेः-दति | दस्यतिरपि, “सान्नियेऽपि पितुः पुः णं देयं विभावितम्‌ जात्यन्धपतितोन््रत्तचयित्रादिरोगिएः'-इति खणदाने श्रधिकारिणं qa eat कात्यायनः, “णं तु दापयेत्पत्रं यदि स्यान्निरपद्रवम्‌ | द्रविणं wary नान्यथा दापयेतसुतम्‌”-इति |

यवहारकाकरम्‌ | १९७

नारदोऽपि.

“पितथुपरते पुत्रा खलं SETS MA |

विभक्रो arsfaaat ar at at तामुदरेदधरम्‌"-दति। विभागोन्तरकालं पित्रा यदृणं छतं, तत्केन देथमित्यपेचिते are

कात्यायनः,

“fagaut विद्यमानेऽपि qat धनं हरेत्‌ ¦

aq agfaa ga ad गकस दाप्यते'-दति, पित्रारिरतणेममषाये दानकमसार्‌ ठदस्पतिः. -

“fagmelan देयं पथूादत्मोयमेतच।

तयोः पेतामदं एद Bakara भदा"--उति। पेतामदश्रणं सससेय देयम्‌ Ty २०३,-

“uaa पितं पञ्छयं यादितिम्‌।

पेतामदं पमं देयमयं aaa च~ -दति। तत्सुतस्यागरोत घनस्य प्रपौ तम एतदत्र श्रभिप्रत्य ATT

“णा दव्यादतं प्राप ुेशवत्रणंमुद्ूतम्‌ |

दुः पैतामहं stareraqylfaana’— दति कात्यायनोऽपि,-

"पपिच्रभातेऽपि दातयण्पं पौ वेण यन्नः

चतुर्थेन stay तस्प्रात्दिनिवत्तते"-दति। देयग्टफमनेन देयमित्यस्मिन्‌काने यमित्यतछितयं ary-

“पितरि प्रोषिते प्रते व्मनाभियुतेऽपितरा 1

१९० पराश्ररमाधवः।

qaniaae देयं fase साकिभावितम्‌"-द्रति | azarae wea la:,— "सौ राचिकं wert कामक्रोघपरतिश्रुतम्‌ | प्रातिभाव्यं TH शेषं यन्तन्न दापयेत्‌"--दति | | सुरापानाधं यक्कतं AAT चुतपराजयनिमित्तकं aha कम्‌ TUNA alfa यत्तु दन्तम्‌ कामक्रोधप्रतिश्रुतयौः खरूपं कात्यायनेन दशितम्‌, “लिखितं qan वाऽपि देयं यत्तु प्रतिश्रुतम्‌ परपूतैस्तिये दत्तं विदयात्कामलतं amy यच feat मसुत्पाद्च aturzay विनाश्य च। यक्तं तुष्टिकरं aa विद्यातक्रोधतं तु तत्‌"-इनि | मुक्तकं लेखनर हितम्‌ ; प्रतिभाव्यं द्रनप्रातिभान्रागतम्‌ तथाच At ` "प्रातिभाव्यं दरधादानमाचिकं सौरिकश्च तत्‌ | दण्डश्एम्कावशि्टञ्च gat दाहमरंति"--दति। द्भेनप्ातिभाव्ये तु नेष विधिः श्यात्‌ | “दण्डो वा शण्डगेषं वा एकं तच्छेषमेव वा दातव्य तु पुतेण यच्च यावद्धारिकम्‌"'। gray freien छत्टं wet दचादित्यार रदतिः, "पिदवयभ्नाद्रपु बस्त्रोदासभियानुक्नौविभिः। ane कुटुम्बाधं तद्रौ दातुमहेति"-दति नारदोऽपि

MTCC | १९९

“भिव्यानोवा सिदामस्ोपरे्यरुत्यकरेश्च यत्‌ | कु दुमब्ेतो स्‌ दपं दातव्यं Awaz म्बिना"-इति गिष्योऽ्र feat गिन्य्रा्ताधौं waar) उत्‌किप्रम- सन्निधागादिना @rant विनाऽपि waaay काव्यायनोऽपि- “भ्रोषितस्यामतेनापि बु युम्बायण्डपं कतम्‌ | दासस्तरौभादगिेरवा ददात्पुचेण वा पिता^-दृति भ्गुरपिः- “au qaad पिचा भी भ्य यदनुमोटिनम्‌ | सुतलेरेन वा zqrareugianefa'’—xfa | नाररोऽपि,- “पित्रेव नियोगादा कुटुम्बभरणाय च--हृति। कुसबव्यनिरि क्रणेदिषय याजञवन्कयः- “a योषित्यतिपुचाभ्यां पुरेण aa पिता। द्थादृमं कुमारौ प्रतिः cated तया"-एनि। पुत्रेण ad futae फिर पवादमाद एरस्पतिः.- Sea at aga श्रं द्यात्पुचण afar’ fa | ay पुगरदरं कुटुम्बोपलचणाचम्‌ | पिदटगरहणश्च प्रभोकप- AGU | तयाच कात्यायनः, ~ “कुटुमार्धमगरके तु mata याधिमाऽयतवा। उपञथमिमित्तञ्च तिद्यादापक्ततन्त्‌ त्‌ कन्यप्रेवारिकदयैव परनकायषु यक्तम्‌ _ ` # cake पाठः wala | ममतु, ददया्रन्धधा TIAA, The पाठः प्रतिभाति|

17 1 6

Roe पसशरमाधदः |

एतक्छवै प्रदातय FAA BA प्रभोः” दति पतिः Sled तथेत्यस्यापवाद माइ APIS: “गोपग्नौष्डिकगेखुषरजकव्याधयो षिताम्‌ ऋणं दद्यात्पतिस्तासां यस्माहत्तिस्तदाख्रया-दति | योषित्पत्या anata ददारित्यसखापवादमार नारदः, "दृदयाद्‌ पुत्रा विधवा नियुक्ता वा सुमूषुष्ण | या वा तदृक्यमारद्ाद्‌ यतो खक्यब्टणं ततः“ इति | याज्ञवसयोऽपि,- “प्रतिपन्नं स्तिया दयं पत्या वा सद यत्‌ कृतम्‌ खयं छतं वा Agu नान्यत्‌ wt दातुमहति-दति | शरप्रतिपन्नमपि तदुक्यदणे स्तिया दे यमित्याद काल्यायनः+- “णे ते Goats भन्तुः कामेन या भवेत्‌ | दद्युः तदृक्थिनः पेते प्रोषिते वा कुटुजिनि”--द्नि श्रविभकतैः Geared erat कुटुम्बो card तिन्‌ प्रोषिते agian: सवं दयुः। नारदोऽपि 'पिद्येणा विभकरेन भरात्रा वा यदुंणं ठतम्‌ | , माजा वा यत्कुटुम्नाधं दश्ुस्तत्छवश्ठक्यिनः"--दति श्रनेककणटाहसमवायं वान्नवरक्यः,- “रिक्थग्रारो wu दाप्यो यो षिद्‌ यारस्तयेवच | पुचोऽनन्याथितद्रयः greta रिक्थिनः"-दइति | यो यदयं दर्ये चछक्यषूपेण गरहाति, a awe रापः | तदभावे तू रागादिवश्राद्यो यरौयां भाय्थौं wera, ताहतशटण

अव्ारकाखम्‌ | at दाणः तदभावे अनन्याभितद्रथः ge we दाथः पुजरौभक ऋक्थिनः काणं दाणाः | एतेषां समवाये पाठक्रमाहेवे शाणः | मग्वेतेषां षमवाय एकदाऽनुपपलः। पुषे Ser अक्यपाददिषा- सभवात्‌। पु स्यपि fanaa: ऋक्यहा रित्यमिति वाश्यम्‌ | “a भरातरो पितरः पुज तदुक्यहारिणः यतो छक्यररा एते GIs सक्थिनः"-- दति ga सति ऋक्थगाहिवस्यास्यतलात्‌ चोषिद्याहिलमपि सम्भवति, | “न दितौयश्च साभ्योनां करिद्र्ोपदिश्ते "ति Ramer पुवोऽनन्यो भितदरव्यः+-द्व्येतरयनचकम्‌ | We aearet ऋणं दायः.-दत्यनेनैकाथेनान्‌ एुजहोनष्य el, इत्येतदपि, qa ऋक्यपारिणएव दणापाकरणाधिकारण्य अष्थ- धा शणं दाय TAWA TIA | तदेतदभक्गतमं। सतपि नौवारदिषु पुजेव्वन्याथवक्तिषु वा सव्पुेषु freee सगरा हिवमन्वात्‌ | grarerat क्यया हिताभाव HATE, ~ श्रमे Branfadt भाश्यसबधिरो तथा | म्भङमूकाञ्च ये नेसिक्गिरिद्धिवाः"--९नि | घवर्णापुजव्यान्यायट्कस्य श्क्यायोग्धता गौतम श्राह ! लवा सवणा पुणोऽयन्यायडलो रमतेकेपाम्‌”- इति शतः एते बग्थपि अव्ययासो अन्यः सम्मति ¦ योषित्‌णडौ aire fer Ferg sea ferent

waft: were तदाह UTE 8G

२०४ पराच्िरमाधषैः |

यटा तु सकुल्याः wt सम्बन्धिबान्धवाः | तदा दधयादविओभ्धस्ठ Arey निकिपेत्‌- दति दति ऋणादानप्रकरणम्‌। `

अथ निक्ेपाश्चस्य दितोयपदस्य विधिरुच्यते |

aq निखेपखरपं मार श्रा, “छं zai aa विखम्भाजिचिपत्यविशङ्धितः। fateh नाम amit यवहारपदं बुधेः"-दति उपमिधिन्यासो मिकरेपविगरेषौ तयोः @evare इरस्पतिः, - “gare वयवहितमसद्यातमदभितम्‌ | quifers यदन्न्तदौ पनिधिकं waa | राजचौरादिकभयार्‌ दायादामाश्च वद्मात्‌ | wrasse age न्यासः परिकौ तितः" दति | Kua विशेषमकथयिला समयभन्यषसे TITY यत्‌ श्यायते, तद्यमो पजिधिकंम्‌ निरेपणविधिमार मनुः, “कुलजे sna धे स्धवादिनि | भहापचे ufearal rad निरपिदुधः-इति | evuta:,— “ard ay श्व aed विविधान्‌ गुणान्‌" सत्यं whe बन्धजनं परोच्य श्वापयेभिधिम्‌"-इति तस्य निकेपख्य पुम विष्यभाद नारदः,

ete 2 111 rene sate amewn be yitareenei ahaa ryinttatiaranatie al teat, prema Rta wer ek ates eetmntion,

+ दयान VW zyary तदलं विमधं Fary,—xfs पुखकरान्तरे ws: |

वहारकाखम्‌ | at

“घ पुभदिंविधः पोकः साशिमानितरस्तया | प्रतिदानं atare प्रत्ययः are विपधये"--इति हदश्यतिरपि,- ““छसाचिकं रहोदत्तं दिविध तदुदाइतम्‌ | पुभवत्‌ परिपाख्यं तदिन्व्यनवेकया wifad येन fafaer येन ae विभावितम्‌" | तचैव ay दातव्यभदेयं प्रत्यनन्तरे--इति स्थापकेनरस्य यस्य श्यापितेद्रयं खाम्यभस्ति, TY प्रत्यन्तर- cary | मनुरफि- भ्यो यथा fafatga wad यस्य मानवः | तयेव owaat चया दास्तथा ae”’— ThA | दायो दानं स्थापनमिति यावत्‌ | ग्रहो ग्रहणम्‌ पालयितुः फलमाह weafa:— "ददतौ यद्धवत्पुष्य डहेमरूप्याम्नरादिकम्‌ | त्‌ श्यात्‌ पालयतो न्याभ तथव श्ररणएणगतम्‌”-- इति wane दोषलेनेव द्‌ गितः, ae यथा नायाः GH: TIGR | tite न्यासे भक्ितोपेचिते नृणाम्‌ ”--इति | देवाध्ुपधाते तु दोष इत्याद awuta:,— ‘ogeatqaran यदि AATTATTAT | qwaxeafed तत्र दोषो विधधते-इति।

20 कमज डि जन come

जक कि ननि (जमित निक A मकण == ~

+ यथाविधि, दति प्तकानरे प्राठः |

परोतुरितिभेषः | राणग्रष्दनाखमाधेधनिमिनसुपशच्छते | श्रतएव काल्थायनः, “श्रराजदेविकेनापि मिरिक्र यक नासितम्‌ i TRA: सह भाण्डेन SAAS तदुष्चते--इति | नारदः+ “nga: योऽन नष्टो नष्टः दाविनः। Jarman तदन्न चेत्‌ तश्जिष्यकारितम्‌”--दइ ति, SATE तस्करोपल्णायम्‌ WATT यान्चव्क्यः.- “नं दाप्योऽपदइतं तत्त राजदे विकतस्करेः--षति | मनुरपि “ated जलेगोदुमग्निना दग्धमेवच | नदच्ादयदि तस्मात संहरति किश्चभ^--द्ति। यदि aargara लोकमपि wera, तदा दथादित्यथेः। तथाच सएव,- “समुद्रे ayer किचित्‌ यदि तस्मान्न संहरेत्‌"'-इति | कचित्‌ केनचित्‌ Sqr नष्टमपि योता मूलद्ारेणए दाण- द्याह काल्धायमः+- “grat दइ्वयवियोगन्त्‌ दाता aa विभिकिपेत्‌ | सर्वापायविनाेऽपि योता नेव दाणते"-दति। उपेषादिना नाग्रे तु शदस्रतिराइ,- “मेदेनोपेच्चवा न्यासं weer यदि नाश्रयेत्‌ | द््ाद्याश्यमानो वा दासं Ved भवेत्‌“ दति,

शवकार्कादम्‌।। शक

कौद्थाचनोऽपि,- “न्यासादिकं परद्र प्रभरितमुपेकितम्‌ | श्न्ञाननागिल्तर येन दायः ees तत्‌*--दति sa fame याषः- “भचिते भोदयं दाणः ममं दाय उपेकिते | किषिदूनं vere: स्याद्रयमश्चामना शितम्‌"-इति | या चननम्तरं AAU पशचादेवराजेपघते स्थापकाय FAATY देयम्‌ | तथाच यामः, - “याचनानन्तरं नागरे दैवराज्ठतेऽपि सः | गोता प्रतिदाणः खात्‌"-दति। मूलमा जमिति गेषः प्रत्यपेणविलस्वमाचापराधेन efgern- योगात्‌ | याचेनानन्तरमदाने TATE नारद्‌, "याच्यमानस्तु यो दातु निचेपं प्रयच्छति | दण्डयः राज्ञा भवति नष्टे दाणश्च wea eA | यः पुनः TATA ET FAT AYR, तख दष्डमादइ एव “यचाथे माधयेेन्‌ निचेपुरननुन्नया | तजापि भवेद्रष््यस्तश्च मोदयमावहेत्‌"-दटति योश्ञवद्क्योऽपिः cag Fra SHA दण्डयो दाणलश्चापि सोदयम्‌” fat wae facta, "न्याबद्धवयेल यः HA साधय द्‌ात खम्‌" |

~^.

ant

* खाधमेवृं काग्येम्दः.-- एति कार |

go UL ATTT |

दण््यः a राशा भवति दायसतथापि सोदवमूर्िति श्र दण्डोऽपि समणएव OTH तदाह मलुः-

“जिरेपष्यापदन्तारं AeA दापयेद्धनम्‌ |

तथोपनिपिष्टत्तारं fanaa पायिवः"-दति | ` एदस्पतिर पि,-

“aed निङ्भुते चच साक्तिभिः rea वा

विभाव्य eroded तत्समं विनयं मपः--दटति श्थापकश्यामृतवादिवे CA मनुः

“faa wfatet यः धनवान्‌ कुषन्निधौ

तावानेव विज्ञेयो विबुद्धं दष्डमरेतिः-एति भसाशिनिसेपे सारिविचनविरुदरुं 4 दण्डाः | श्रसाकिकेतु र्द

सपतिराहः-

^ रशो zu निधौ ay विसंवादः प्रभायते।

विभाषके aa -दिव्यञुभयोरपि सतम्‌” -इति | ग्ररौटस्थापकयोर नृतवादिले दण्डमाह मतुः

` “निकेपस्यापरर्तारं अभिशषेप्तारमेवषे |

सवैपायेरनिच्छेत्‌ शा पयेशचव प्रेदिकेः

यो निरेपं नापैयति यथ्यानि्धिष्य याचते

तावुभौ चौरवच्छास्यौ werent तमं Tay’ The निचिष्द्रयमकारे ददतो दिगृणोदण्डः। तदाह काल्धायनः,-

“पराद्मखधपनिधिः काले काशन वजयत्‌

कालरौभं दददष्छं दिभुरश्च मराणते”- दति

शवश्ारकादम्‌। दण्ड धद्गथादु पनिधिरन्यख रणे ग्यः, तद्वधातौते काले org तद्ववातौतेऽपि काले खयमेव मापैषणेथः। “auguretsteey— षति weafancare | aga THAIN Quad दौोयमानं काश aa तदहानमिष्टं नैवेति तददतोऽपि THOM: | UY बशा- apa faau ददाति, तं राजा निगद्य दापयेदिल्याद मनुः, “येषां a दधाद्यदि तु तद्धिरणपं यधाविधि दूत्यं निग दाणः श्यादिति ware धारणा मिचितप्रस्य धनश्येव प्रोत्यो पमिदितस्य कु्यादिनिणयं राजाऽप्रचिखश्चासधारिणम्‌"-- इति | शरप्रकिन्वन्‌ WHT! यद्‌ तु WAKA TUT, तदा AAY- | नन्तरं प्रत्याह सएष -"श्रच्छलेजेव वाऽनिच्छन्तमथं पौ तिपूंकम्‌ | विवाय तद्य वा टन्तं मानैव परिंषाधयेत्‌”~-दति। निक्पेऽभिरितं wa यादितादिष्वतिदिशति wea: “qua विधिदृष्टो याचिताण्वाहिता दिषु | farfeaqafartt न्यासे प्रतिन्यासे तथेक्व--षति याश्चवस्वयोऽपि,- न्यादितान्वारितम्यामनिकेपादिष्वयं fafa: eh | याचितसुकववादिषु परकोयमलारा्म्‌ | WIEN खडिन्‌ fart परान धनिकान्तरण्य तवा इतम्‌ | न्यासनिरेपौ पूर्वभेवा- भिदितौ ewufecta “्न्वाहिते थाचितके भिख्पन्याे सबन्धके

27

शिखिनयासोनाम, अकुलौधकार्काथ. करो कीर दिरष्तदिर्ित | eterarfera foferwenare देवराजो पधातेण fare ` बादपर्तथसरदा दाष्या इत्यं भवति ` अभाषेवादमाद काश्या" धनः, " i ‘Sq संस्यते caret fae: परिभिधिषैः। agg खापयन्‌ fired} दाप्यो देक्तेऽपि aay fA | Raed. रजकादिन्यरवष्ता दि fase सएव, नन्याघदोषादिनाघ्रः सा च्छिश्पिमसन दापयेत्‌ | दापयेख्छिल्पिदोषात्तत्‌ संखाराथं बट्‌ पितम्‌--दति | ay तन्धादिकं वस्वाध्ं ङुविन्दारौ न्यं, शष्डपटादिद भाषा ग, एरिपुशेदप्रायां वा कुविन्दादिना-टौवमानं कामिना खरोत AY, AWAY घएव,~ Cqerrta चत्कमे नष्टं AeA तत्‌ प्याप्तं faqawe विगश्येषद्‌स्छतः--इति | खत्पेन aracenigar विकलं wee, कतक शिशिनो- qed! पुमर्धतमेग्रहणमन्तरेरेव रचनादिक्ियां ुव्यादिश्यचैः। यदि कामौ दुनरन्वादिकं गापयति, तदः -एुजर्वीनाद्मभाभे बेलन भि- fet दन्तं दात लभते। परिपतव(रिकः, अदिष्छतो- भक य) लामो, तस रौवमममरवगयतय न्दो | :, चादितकविषयेऽपि विगेषरेगेवो a "अद्धि |

र,

"4 ate > 1 Creare: + “y remnant ot oda

eae sgest तरिश दु रयत" तिः; रु: काये Sarees, तत्वाय थरि wife, बः ‘a degrada दोवताभित्येवं कालं afthrena. eer, ne, काम्ये परिनियतकालमये वा प्रतिवाश्चमागो धाक्िष कैः ददाति ; wet सोदयं Te: ) वादितकमाभमेवादौ इते कां

परिभिंधतक्रासाद्यये वा दद्यात्‌ यदि तदाऽपि ददाति, wet दवारितो बिना जाते मृद्धं देयमित्ययंः। आह सएव,

“शय कोास्यविपन्तिरह aaa खाभिनो भवेत्‌ `

ama देव कारे तु TREATY तत्‌“-दति

दति निखेपप्रकरणएम्‌ |

gaara: |

तद्य MEANY नारदः “fafead वा We HS लन्छाऽपदत्य वा | विक्रीयेतासमचं * यस श्ेयोऽसामिविक्रयः"-इति | इहसतिरपि,- जिकेया्ारितद्रार्तयाचितन्धकम्‌ | डपा येन विक्ोतमल्लानो शोऽभिपौयते"--दति। श्रक्ञानिना कतो वहारो जिवन्तते द्धाहइ TET, मश्ग्धामि विक्रयं दानमापिं विनिवतयेत्‌-इति |

BLE UCTMEATAT tb

भारदौऽपि,- भ^श्रञ्ञामिना तो eg क्रयो विक्रयणएवच | अहतः तु विज्ञेयो व्यवहारेषु नित्यरः"-इति | ततद्चाखामिविक्रये थाश्नवस्कयः,- “चतं WUE यदव्य परदसतादवाध्रुयात्‌ | अनिवेद्य नपे दण्डयः ठु षरवतिं पणान्‌" इति यदा पुमः WRATH धनखामो, तदा लाह सएव, - “मष्टापदतमाषाद्य WAT ग्राहयन्नरम्‌ | देशकालातिपत्तौ वा खरहौला" खयमपयेत्‌"-दति | गृ्टमपदतं वा wala श्रधिगन्तुरपरन्तुवां दसत इहा श्रधिगन्तारमपदश्तारं वा राजपुरुषा दि भिग्रदयेत्‌ पुरुषः; राजा- धानयनार्थदेरकालातिकरमसद्ववति, तदा सथमेव गरौला रान समरपयेरिश्यवः। यदा पुनर्विकयाथमेव खकौयं za कत्त पश्यति, तदाऽणाईइ सएवः- "खं समेतान्यविक्रोतं कतुदीषोऽपकाभिते | Var Wage बेलाहोने तस्करः“ इति | सामो खसम्बसििद्र्यमन्यविक्रीतं चदि पश्यति, तदा लभेत awa | अ्र्लामिविक्रयस्य सवहेतुलाभावात्‌ | केतुः पुनरप्रका- faa गोपिते क्रये दोषो भवति हौनाद्रव्यागमोपायहोनात्‌ एकान्ते Cass अन्यतरेण द्रेण धिकमूष् वेशारोने caret

(णोर

* प्रडोता,--ढवि यन्बन्तर्टवः पाठः |

AW TT TTR +

तजन भिद्यते दोषः सेनः ख्याद्पविक्रये"-इति | घेन Rar Waa क्रयात्‌ प्रागेव राशे निवेदितं, ay दौषः | उपविक्रवग्रब्दश्यारथसनेव दशितः “श्रर्गंडे वरिर््रासान्नि्रायामख्तो अनात्‌ | Saag ald ्ेयोऽसावुपविक्रयः'"- दति | श्रसतोजनात चण्डाला रित्यथः। श्रमद्रदण खानम्यननुज्ञाता-

धुपलणाधंम्‌ FAVA नारदः ““श्र्ाम्यतुमतादासादमतश्च AATRE: | होनमूरखमवेलायां क्रौणएसदोषभागबेत्‌ रति | कात्यायनः "नाषटिकसत ABA तद्धनं Wah BATA नाष्टिको नष्टवमः, तद्धनं नष्टधनं, न्तादभिः साच्यार्दिभिः, हुवो साधयेदित्य्ैः श्राह याश्नवष्कयः,-- 'श्रागमेनोपभोगेन नष्टं भायमतोऽन्यथा प्चयन्धोद मसज रा जनसेनाविभा विति" दरति aang सल्यन्तरेऽभिहिती इष्टयः मल arama शौचे वेवाहिकं तचा | बान्धिवादप्रजातस षद्धिधस्ध घनागमः -दति। qatar सकोचलानपगतिरपि दानाशचभावेन बाधनोचे-

९६४ परसाप्ररमाधवः |

द्याह कात्यायनः,- , “भद तत्यक्षविक्रौतं शला @ लभते धनम्‌"--इति) ` stages ferns भवतौति प्रमाणः wane खकौयं धनं नाह्िकः (Rare: Sarena इत्यथैः) पचविषये* विगेष- माह THA: - “deat तु त्रयं यद्‌ाऽऽगल्य विभावयेत्‌ | तच मूलं aime केतुः प्रएद्धिषतो भबेत्‌”-दरति | मूलं विक्रेता विकरेतुदे नानन्तर व्यासः, “मूसे समा'इते क्रेता माभियोष्यः कथश्चत | मूलेन सर वादस नाष्टिकस्य तदा भवेत्‌”--इति | यदातु मूलभ्रतो दभिंतोकिक्रेता fafagat ददाति, तदालार इस्तिः, "विक्रेता दर्भितो यच विनो यवहारतः। RATT परदशात्‌ स्ञामिमोधनम्‌"-इति यदा तु मृलश्तोरिक्रेता देशान्तरङ्गतः, तदा कात्यायन आद “मूलानयनकालश्च देयो ata a | yar प्रक्रयं gat arfafirntfaien: खकेः॥ तत्रान्या जिया प्रोक्ता दैविकौ मागुषो। parfad क्रये राज्ञा awe: किञ्चम-द्रति। अयम; धस्तु केता काशविलमनेनापि मूलं दगरेधितु न्‌

[ण chee 1१ 1 1 ए.

* यथ विषयेऽपि कार ममतु, खन्न विषयेति प्राठः प्रतिभाति |

शक्रोति, erate करोति, भराधमः। तस्माच arfeat uri wat इति AEM मनुना, “श्रय मूलमनारशाय्ये प्रकारक्रयप्रो धितम्‌ श्रद्ण्डो qed राज्ञा गाटिको waa धनम्‌""-दति RA षका शाद्धनप्हणमद्धंमूखयं दलेव | तथाच HITT, “वरणिम्पौधोपरिगतं विन्नातं राजपूरषेः | श्रदिज्ञाताख्रथात्‌ ala विक्रेता यञ वा aa खामो casera Awl घमम्‌"--इति | श्रविक्ताताश्रयाद्‌ विक्नात्ामकादिव्यये, कयप्रकाग्रनपशयोः१ सति स्वे मृलानयमपकएव UNG: | ATH कात्यायनेन - “यद्‌ मूखमुपन्यस्छ पुनर्वादो क्रयं वदेत्‌ | TRL मूलमेवामौ क्रयेण प्रयोजनम्‌ quaryraqag mana fam धयेत्‌^-इति यदा मूलदने करयप्रकाशनं वा करोति, तद्‌ दण्डय द्याह सएव,- | “श्लुपरधा पयकूलं करयं वाऽयविशोधधन्‌ | यथाऽभियोगं धनिने धनं दाप्ोदमश्च सः"-एति माण्टिकविप्रथोगमाहइ षणव Cafe खं नेव कुरते ातिमिर्ना्टिको धनम्‌ |

पष्कविनिषत्ययै चोरवहष्डमरुति"-रति

ow ee

cee aap ei eee To ae rare AD

a ae

# इत्थमेव पाठ; wat! मम तुः मूलानयमकयप्रक्ाप्रनपक्षयो५- दति पाठः प्रति्ाति।

११६ | QUIET 1

यन्त vatfnd wa केतः खल्प्रतिपादक्षं मरोचिवचमम्‌,- "वरिम्ौधौपरिगतं विज्ञातं राजपूरूषेः ।* ` ` दिवा ररौतं यत्‌ केचा स॒ Rt लभते धनम्‌^-इति | तदेवं नाष्टिकेन साधितद्रव्यविषयम्‌* श्रन्यथा, श्रय मूलमना- हायेम्‌,-दति प्रागदाहतमलुवचमविरोधपरसङ्गात्‌ यदा क्रेता शच्छादिभिः क्रयं विभावयति, नाष्टिकोऽपि eater, तदा नि्णयमा₹ह खरस्यतिः,- "प्रमाएरोनवारे तु पुरूषापेच्या नपः | समन्यनाधिकवेन खयं कुर्या दिनिणेयम्‌"--दति नमु मानुपप्रमाणाभावेऽपि दिव्य विद्यमानलाग्ममाणएहोन- agua aaafa उच्यते श्रस्यस्लामिकिक्रयविवादे दिथा- भावात्‌ तथा "प्रकारं क्रयं श्यात्‌ साधुभिर््ातिभिः सके: | तचान्या क्रिया प्रोक्ता देविकौ मानुघो॥ श्रभियोक्ता धनं कुर्य्यात्‌ प्रथमं writ: खकम्‌ | पशचादात्मविशएद्यथं कयं केता खबन्धुभिः ॥- षति TIAA सारौतरप्रमाणएभावोऽवगम्यते। ATATS काल्याचनः,- “श्रद्धे इयोरपद्तं AY VAAN: | KAMARA दोषस्तथा चाप्ररिपाणशनम्‌

जनको ey EE कि =

* gua प्राठः war) मम तु, तदैवं गाष्िकेवासाथितद्रथविषयम्‌) —tfa पाटः प्रतिश्रावि। सस्म्रसामिविक्रवे दिव्याभावान्र थाः--हति का |

यवशारकाशम्‌ | aye

एतददयं समाख्यातं Tee Te अविज्चातस्थानशतक्रटनाष्टिकयोदयोः"”-एूति। श्रल्ञामिविक्रेतुरिष खाम्यदत्तमुपसुश्चानश्य दण्डमाह नारदः+ ^उदिष्टमेव भोक्तव्यं at पग्रयवेषधाऽपि av—tfit | +शअविश्नातात्‌ क्योऽपिन्नातक्रयः। श्रथवा परमाथतोऽयं खानो- त्यक्ञानातकयोऽविन्नातक्रयः" | मरोचिरपि- “श्रविक्लातनित्रेशवाद्यच aut विद्यते | हानिं समा करा केदनाण्टिकयोदयोः श्रनरपितन्तु यो भुङ्के मुक्भोगं प्रदापथेत्‌ | श्रनिर्दिंष्टनतु age पाएलेचग्टहादिकम्‌ खयलेनेव zara: चोरवदण्डमहति। श्रनद्ाहं तथा धनु नावं दासं तथेत afafes YMA दथ्ात्पप्वतुष्टयम्‌ | दासौ नौका तथा yale भन्धकं नोपभुच्यते उपभोक्ता तु age wana विशोधयेत्‌ दिवे दिपणं दामों भेनुमष्टपण तथा अथोदग्रमनद्धारं मत्यं ममिश षोडग नौकामशशच dae are कामिक बलात्कारेण चो YR दाय्चा्टपणं दने

fy wees ens me eR eee = = => ~

a Wa यद्य qeifalaaaferaruay qe nfagy faa |

enter arenes ate

प्ररमादेशपुरसकेष THAT AI cfara: |

+ gute wat सन्म | ममतु, qi,—afe wre: प्रतिमावि। 38

२९७ प्रराश्ररमार्धवः।

GIA TSA FITS पणदयम्‌ | gia auger देविध्यं सु मिरमवोत्‌*-इति | श्रसखामिविक्रयारद्यं पर समाप्रम्‌ |

अथ सम्भूयसमुत्धानाख् पदभु्यते | तस्य BEAT नारदः, ^“वणिकप्रश्टतयो यच wa" AT कुवते | त्छम्भमयसमुत्थानं श्यवहारपदं सतम्‌”-एति | तच्ायिकारिणे दभेयति शशसतिः,- कुलोमदक्षानणतेः WH: ATTRA fala: | श्रायवयन्नेः एूएविभिः शरेः कुर्यात्स क्रियाम्‌” इति | क्रियां रषिवाणिष्यशिदिक्रतुस्गीतसतेन्याद्मिकाम्‌ नाणका- fama वाणिष्यक्रियायामुपयुच्यते | श्रायव्ययसानमाचं हषिक्रिथा- याम्‌ | सषीतादिभिष्विकरियायां प्राश्चलसुपयुच्यते क्रतुकियायां तु कुलोनलयप्राज्नवशटदित्ादि। सेन्यक्रियाथां शूरवमाचम्‌। दचत्वा- नणसवे तु सवत्र पयुज्येते | श्रतएवादचादि निषेधति सएव, Commarea RAAT ACTA: | arfueqra: सरैतेस्त॒ कन्तवयायुधरेः करियाः-दति ये तु aya वारिष्ादिक्रिधां gata, ते द्रव्यामुसारेणे खाभभानः | तचाष खंरस्पतिः, | “प्रथोगं gaa ये डेमघान्यरशादिना |

कज ०१८०५००५ कन wh Ol

rene 9०0 जोक जोन वोन केक >^

[0

© असंः--एति क(* | eR, दति TTR प्राठः समौश्नीमः |

VIVIAN |

समन्युनाधिकेरगे्तभलेषां तथाविधः" शति | armada श्यादिरपि watery सएव, “मन्यनाधिकोवाऽ श्रो येन चिक्रस्तथेव भः | व्ययं Tara ङुर्ययात्ततसोषां ` तथा विधः"--ति | दरव्यानुसारेण लाभ इत्यस्वापवाद माह BT, समवायेन वणिजां wart कम gaara | लाभानाभौ यथाद्रथं यथा at संविदा शतौ-ति। संविदा anda पुर्ष्िरोषानुमारेण, छतो कश्ितौ शाभालाभौ जेयो, ठ्‌ Kraay: | भशूयकारिणौ TVA ATE, “समचमसमय वाऽरश्चयन्तः परस्परम्‌ | मानापष्डानुमारात्ते TR: क्रयविक्रयौ श्रगोपयन्तो भाण्डानि भनक दथ तेऽध्वेनि। शरन्यथा दिगुणं दाथः एरएत्कम्धामान्‌ वहिः शिताः" ea नारदोऽपि, “भाण्डपिष्डययौ द्धारभारसाराशवेचणम्‌' ^ कुरसतेऽयमिदारेण समय खे व्यवद्धिताः-इति |

ee 2 oo.

yee

दत्यमेव पाठः waa aa gq, कुर्यात्‌ नभलेषा-- षति पाटः प्रति भाति | grata ata ग्टक्तेत way, era यश्यान्तर्शतः UTS! |

१0 17 me

om pea

oo) +0 wry

(x) भाद mrenfamreraaze: | firme माचेयम्‌ अयो वेतनम्‌ उङ्ञार- रसतात्‌ देयदरद्यात्‌ प्रयो नविष्रषादाकरषणन्‌ | MLTAG | चार्‌

nee चन्दनादि | waa रचणयोगनादि | दति विदादर्छा- HTT आद्या |

२९१ पयशरमाधवः 1.

सन्भुयकारिणां परस्परं दिवादनिषेवग्रकरमाइ wee fa:,— “acatar: साचि तएवोक्ाः प्ररस्परम्‌ | संन्दिधेऽथे agarat ते चेद्‌ देषसंयुताः+ a: कञिदश्चकस्तेवां विज्ञातः क्रयविक्रये | maw: fame: खात्‌ सरवेवादेव्वयं विधिः दति | देवराजक्तद्रयद्दानिविषयेऽप्यार सएव, “चया निदा तच देवराजृता षेत्‌ | स्वेषामेव सा परोक्षा क्पनौया यथाऽ ग्रतः”- इति | चयायेव हानिः चयदहाभिः, तु sarge aa प्रातिखिक- दोषेण FAA सणएवाद,- “श्रनिर्दिष्टो वामाणः प्रमादादर्यस्त नाशयेत्‌ | ` तेनैव agiza सेषं समवायिनाम्‌" दति | श्रनिर्दिष्टः समवाय्यः, नतु श्रसुक्नातः। चौरादिश्वः पालयितु- लभाषिक्यमसोत्याह काल्यायमःः- “चौरतः सलिलादगनरेवयं यस्तु समाहरेत्‌ | तसां गौ amt देयः सवद्रयेव्वयं विधिः{”-दति | समाहरेत्‌ Wet परि पालयेत्‌ ag समवायिभिः san धनं aaafafa ae प्रतिपादना- दिभिः a साधयति, aa लाभदहानिः। तदाह Teun,

* पेदिदरपसंयता५- दति म्राभतरतः Ts! | प्रषासाथ,"~दइति ate | '‡ तस्यां दशमं दला VHS ततोऽपरम्‌+--दइति पाटाश्वरम्‌।

STUCK | ९९१.

“समवेतेस्त यदं write’ तयेव aq याचते यः कथित्‌ wary परिरोयते"-इति | सर्वालुगतः wat कायमेकएव Faiz तदार सएव,- "बह्कमां सम्मतो यस्तु रद्यादेकोधनं मरः | करणं कारयेदाऽपि सव रेव एतम्भवेत्‌"-इति | करणम्तरस्यादिकम्‌।। सम्भयकारिणाग्टविजां फनतव्यमाह मनुः, “विजः समवेता यथा सत्रे निमन्तिता; | कुयरचथाऽरतः कमे रहो युदं चिणाम्तथा"--दति | तयेति कर््ातुमारेण efaui खन्रोयुरिव्ययः तथाच सएव “सुय सानि कर्माणि कुवंद्धिरिष मामः | श्रनेम कमयो गेन कर्तं खां रस्रकन्पयेत्‌ "~ इति दयं चा शकन्पना “तस्य दाद्‌ पश्रतं विणा" दयेव कतुसम्बनि- माजतया विरतायां दत्तिणायासेव, खलि नि शषो्ेखेन faty- तायाम्‌ | श्रतषएवोकरं तेनेव, “रथं हरेत वाऽध्व्तरेद्याऽऽधाने वाजिनम्‌ | war इरेत्तपरैवाथ्ं seat चानः wale दकिणाश्रकल्यनामाद्‌ सएव,

[न "1 anand

जक -००५५०००००- ~~ =

* इत्यमेव पाठः Bead | AA 4, waite, —axta पाटः प्रतिमाति। †-करशं लेखयादिकम्‌,- ela रिविदगनक्रयाद्या |

on ee = ee ene te AAD ieee Heme etae oot oh ee a fem SA IE. SE

(९) केषधांचिन्डाखिनामाधने भष्नव्यत २्थश्चाश्रायते, Aa बेमबा- मखः WIT चाश, BA सोमोदाङइकमनः शकटम्‌ | दति `

SBE UST |

२९२ QUILT |

"सर्वेवामर्पिनोमुर्यासदर्धनाधिमोऽपरे दती यिनसनीयांपराखदरोयां प्स पादिभः“--एति। मरां पोड्रलिंजां मये सुण्याञ्चलारोरोजध्वय ब्रह्मो दतारः | ते गोग्रत्या धिनः, सर्वेषां भागपरिपूणापयत्तिवशादाथाताष्टाचला- रि्द्रपारदधणाद्ंभाजः) WIT मेजावरुणप्रतिप्र्याहग्राह्मणएच्छसि प्रस्तोतारस्तदद्धिनः घनसुव्याश्रस्यादून चतुविश्रतिष्टपेणद्धभाजः ये पुनस्ततौ यिनोऽच्छावाकनेश्नौ प्रतिरत्र हतौ चिनोसुख्या शस्य दोडशरमोरूपहतीयांग्रभाजः। ये पादिनो ग्रावरोटनेढपोटस॒ब्रह्म- प्यास मुख्यस्य भागस्य VATA दादशगोरूपेणं श्भाजः | मुख्यानां aut मिथो विभागः समलेभेव \ एवं तदनन्तरादौनामपि मिथोवि- भागः) तथाच कात्यायनदूवम्‌ | “दादग्र दाद गरायेभ्यः षट्षर्‌डितो- येभ्यः चतसश्चतखणतौयेभ्यसि खलिः दतरेभ्यः"--दट्ति। खको- यकम॑कलापस्याश्रश्याऽकरणे इतानुमारेएए भागोदेयदत्याह मनुः,-- Cafanate टतो यशे कमे THT | aw कर्कानुष्पेए देयोऽ श्रः een भिः--दति सहकर्तृभिः" सभरूयकारिभिरिष्ययः | RATATAT faut ददयादिल्युक्षम्‌ | तख afecqareare घएव,- "द्चिणसु WATS खकमं परिहापयन्‌ | छत्घमेव रमेतां गमन्येनेव कारयेत्‌”--इति रयन खखगणवन्सिनां मधे TTR) कमेमध्ये छलिक्षरणे" नारद्‌ श्राह * इत्यभेव पाठः स्येव मृम तु, ऋलिक्मरये--दति पाठः प्रतिभावि |

शकशारकाणम्‌ |

“विजां व्यसनेऽणेवमन्यलत्छमं विरहरेत्‌ |

लभते दकिणाभागं तस्मादन्मरकर्पितम्‌ "एति घशथकारिणं छतिकराणां angry रदस्य तिः,

“gaa नगराभ्यासे तथा राजपथस्य

ऊषरं मुषिकव्याप्रं रेवं aaa वजेयेत्‌"-इति | वाद विवन्नैनोयानाड मएव--

“हृष तिष्ट ag रोगिणं प्रपलायिमम्‌ |

काणं खं विनाऽऽदघात्‌ बाद प्राशः छषोवलः- एति प्रातिस्िकदोषात्‌ फलदहानो विगषमाह रव,

नवादतौजात्ययार्यस्य चेतरडानिः प्रजायते |

तेनैव सा प्रदानव्या सवषां हषिजो विनाम्‌”-इति बाद्यवोजयदणं रंधिसाध्नानासुपलकणाधेम्‌ सनभूयकारिणां

fafaat विभागमाद सवे--

"हेमकारादयो oa fred मनुय शवेते |

aid fads wate Gers WAL TTA निरविग्ौगटतिः कात्यायनोऽपि,

"रिचाकारि्रङ्ग्ला, श्राचाय्यदधेति forint: |

एकदिजि्तुर्भागान्‌ vitae यथाऽ प्रतः” ThA सेनाम्‌ HATE सएव

"छखाम्यान्चया तु TRIS! परदेप्राष्ठमादइतम्‌

राजे दला तु षड्भागं HAZE चचाऽ WM

एकक eee

ee अं Ponte भज

* .सियदसिजकशलाः--ति राक्र टतः पाठः

ere URTWEAT HT |

चतुरोऽ शान्‌ VIS CRM | wag Vtg wore waif दति | परदेशात्‌ वैरिदैगादिल्यथेः मवलवेरिदेद्रादाइतधनिषय- मेतत्‌ दुबेलवेरिदेश्ादाइतविषये ary का्यायनः,- “OUTST वख चोरेखेदान्चयाऽऽइतम्‌ | राजे quinggy विभजेरन्‌ यथाविधि" दरति शग्परयसमुत्थानास्यं पद्‌ समाप्तम्‌ |

~ कू ~~

अथ दत्ताप्रदानिकास्यं पदमुच्यते | तच नारदः, “ट्वा द्रव्यममम्यग्‌यः पुनरादातुमिच्छति | दत्ताप्रदानिकं नाम तदिवादपद्‌ इतम्‌ श्रदेयमथ देयं दत्त चादन्तमेव च। व्यवहारेषु विन्नेयो दानमागेखतुविधः"-दति | श्रदेयखश्पभेदानादह टदस्पतिः,- "सामान्यं पुत्तदाराधिषवसखन्यासयावितम्‌ | प्रतिश्रूतमयान्यसछ न्‌ देयं वष्ट्या रूतम्‌"--दति सामान्यमनेकखत्वका रण्यादि नारदोऽपि, “्रन्वाहितं याचितकमाधिः; साधारणश्च थत्‌ | निकषं पुजदारश्च aad चान्वये सति i श्रापत्छपि हि कष्टा कन्ेमानेभ देहिनि | श्रदेयान्याहराचा्या चश्वान्यदौ परतिश्रुतम्‌^--द्रति |

area: | श्रतएवे कस्य पुज

शयवहारकषाखम्‌ २२१

शरन्वाहितादिवत्‌ सलौ धनमप्रेयम्‌ | अतएव दक्ष,

Cora याचितं न्यासश्राधिदराख तद्धनम्‌ |

अन्वा द्दितिञ्च faad vad अन्वये सति

श्रापत्छपि देयानि भव व्छनि पण्डितैः |

यो ददाति मृढ़ात्मा प्रयञचित्तोयते नरः"'-द्ति। श्रदेयदाने प्रतिग्रहे दण्डो मनुनाऽभिहितः-

gra ay गाति यश्चादेयं प्रयच्छति |

ताबुभौ सोरवन्क्ास्ो दण्ड्यौ चोत्तमसाशषम्‌”- इति | श्रदेवग्रहइणमदनतस्याणुपलक्षणा्ेम्‌ | HALT ALA

"दषात्यदत्तं यो शोभाद्यश्चादेयं प्रयच्छति |

दष्डनोयावुभावेतौ धर्मज्ञेन मरौचिता"-दरति | किं तरिं देवमित्यपेलिते मएवाश,

“कुटुम्बभरणं यत्किञ्चिदतिरिच्यते)।

तदेयभुपर्द्ान्यत्‌ दर्द षमताशुवात्‌”"-दति भर्तव्य GATT | कात्यायनोऽपि.-

gig WEI कुटुम्वभरण्ण धिक्रम्‌ |

aga ATA दयमद्‌यं स्यादनोऽन्यथा"--इति | याश़वख्क्योऽपि,-

“ag हटुभ्नाविरोधन दयं दारखताड्ते"- दति | सृतश्यादेथलं एकं पु्रविषयम्‌ | तग्यापि दाने कृते मन्तानविष्डे- स्य दानं निषेधति वसिष्ठः “भ लेगा युजं दधात्‌ मतिग्क्तौयादा 4 दि सन्तानाय Gaara” ete | 2 ` ".

२९६ UIATATSH

‘ore gaara afi aera | विक्रये चेव ङाने विलं gata’ —cf | एवभादौनि सृतख्ारेयलप्रतिपाद कानि वचनान्येकयुजविषथा-. फौल्यवगम्यते | अ्ननेकपुच्धेव्वपि माता पिदिवियोगशहम्मएव Te: | “विक्रयं चेव दानं नेयाः श्र निश्छवः। , दाराः Garg wear तु योजयेत्‌”-इति काल्यायक्मरणात्‌। नेयाः खरनिश्छव इत्यनापदिषयम्‌ | `“श्रापत्कालेऽपि are दानं विक्रयएववा | अन्यथा प्रवर्तत दति शाश्विभिखयः"-दति atari तेनेवोकषलात्‌ gaa प्रतिग्ररमकारविगेषो- afaga दशभ्ितः। “पुश्ं॑प्रतियहो्न्‌ बन्धूनाङ्ृय राजनि faty निबेशनस्छ मध्ये व्याइतिभिषेलाऽदूरवान्धवमससिषष्टमेष सक्ोयात्‌"- दति अदरवान्धवं सन्निहृष्टमातुलादिबाग्धवम्‌ | sufuas सजिशटभाषपुष्ादिष्यतिरि कमेव श्धावरविषये देयं Bary प्रजापतिः, “स्तागमात्‌ ग्ठेचाद्‌ यद्वत्‌ VT WU | ‘faay वाऽय we प्राप्त तहातव्य विवकितम्‌”--इति। ` सपरभ्यश्रागमेभ्बो यत्‌ mitt safes स्वाकतदतव्यलेन विवकितमिति। खयं प्रातं द्रष्ये अविभक्रधनेभ्नाद्भिरमतुक्ातमपि देयम्‌ “खेच्छारेय सखयस्माप्तम्‌""-इति हदस्पतिवचनात्‌। चकु तेनेवोक्रम्‌,- | | “faapet वाऽविभषह्ा वा दायादाः Gat षमा;

ववहारकाखम्‌ | ` ene

एकोऽखमो ग्रः सवेन दानाधमनविक्रके"-दति | तदविभक्रश्यावरविषय, सप्तानधिकष्वावरविषय वा षा- भिकश्ेव देयवेना भिधानात्‌ किंचिद्‌ भां भाय्ययाऽशुद्चातनेष देयम्‌ किचिदासेम स्याजितमपि aru देयम्‌ तथाच एव, | ‘“Harfea कमायातं गो पाप्तशच . यह्वमेत्‌ | सतौज्ातिखाम्यनुकनातं zi सिडधिमवाभरुयात्‌^-इति | खौ दायिकं विवाहलबधम्‌ क्रमायातं पितामहादिक्रमायातम्‌ aya सावगेषं देयम्‌ ‘Barfea कमाथाते सवे दानं" a विद्यते-षति तेभेवोक्रलात्‌ | cat देयादेयखरूपंनिरूपितम्‌ दन्नादन्तयेम्त्‌ SET freee तज दतं स्तविधमदन्तं षोडशात्मकम्‌ तथाच नारदः, "दन्तं सप्तविधं HATH ष।डगराकम्‌ | geal शतिम्दष्या AUT] HATHA: सो एएस्वाणयहा्श्च दत्तं दानविदो विदुः BSA भधक्ोधश्नोकबेगानुगर्गितम्‌ तथोत्‌कोचपरो CATT TTA: arene Tem a TN TTA TOTAL ममायं कर्ति प्रतिशानेच्छथा यत्‌ sare orate काथं wrested +

इत्यमेव पाठः HAT | मम तु, SRT, aL प्राठः प्रतिमावि।

२९८ पराशरमाधवः।

wed स्यादविज्चानाददन्तमिति तत्‌ रतम्‌“ दति |

पस्य क्रौतद्रयग्य We ulated wae दन्तम्‌ am वन्दिचारणादिग्यो दन्तम्‌। खेहाहुहिष्रादिभ्यो दशम्‌ | MIATA: STATA प्रत्युपकारङ्ूपेणए म्‌ wire परि- एयनाथं दन्तम्‌ ATTY श्रदृष्टाथं * दत्तम्‌। तदेतत्पण्यमूख्यादि सप्तविधं दत्तमेव प्रत्याहरणौयम्‌ | तथाच UTA:

“a प्रतिगरृतश्चैव दला नापररेत्युनः"-इति |

भयेन वन्दिग्रहादिभ्यो दत्तम्‌ क्रोधेन पुज्नादिविषयकोपनि- ्यातमायान्यस्मे दन्तम्‌। पुच्तवियोगादि निमित्तश्नोक वेगेन दन्तस्‌ उत्कोचेन काय्यप्रतिबन्धनिरासायमधिषतेगभ्यो दन्तम्‌ | परिहा- सेनोपहासेन दत्तम्‌ RaW दत्तं एकस्य RAAT ददाति, दामबल्यासेन दन्तं WR दातव्यस्यान्यसी दानम्‌ इलयोगतः शतदटानममिषन्धाय सहसमिति परिभावय दन्तम्‌ | बालेमाप्राप्रषोड्ग्रव्रए दन्तम्‌) मूढेन लोक्वेदानभिशेन दन्तम्‌ | Tara पुल्लदासादिना दत्तम्‌) wha रोगोपदहतेन दन्तम्‌ | waa मदनियमितेन, sata वातिकायुग््ाद यस्तेन श्रपवजितं दन्तम्‌ wi मदौयमिदं करिषतौति अरतिलामेष्छया प्रति- लाभमकुर्वाणाय दत्तम्‌ श्रयोग्याय योग्योक्तिमाचेण दन्तम्‌ ) ay करिष्यामोति धनं wayr. garet विर्निथुन्ञालाय दन्तम्‌ एवं ayaa दत्तं पुनः प्रत्याहरणोयलाददन्तमिद्युच्यते ।. तथाच काल्यायनःः-

व, [किक | ~ ~ = ~~ ~+ 9 भी योक

ew we

+ खदृराधः--इति का" Tey नालि

TATA | | wag:

^कामक्रोधारूतन्ाद्ा HATTA EA: | व्य्यासपरिशासान्च यदुं तत्पृनहरेत्‌ या तु aera शद्यथमुत्‌कोचा स्णतप्रतिच्ुता | तस्मिन्नपि प्रमिद्धेऽये" देया स्यात्‌ कथञ्च श्रय प्रागेव दत्ता स्यान्‌ nfaara. तां बलात्‌! दण्डञचेकाद प्गणमाङर्गागो यमानवाः "दति उत्‌कोचखरूपमाह सएव, “लेष्टसा इसिकौटृत्तपारदारिकसम्वात्‌ | दशेनाट्ृत्तमष्टसय तथाऽभत्यपवन्तनात्‌ प्राप्तमेतेम्ठ॒ यत्कि्चिदुत्को चास्यं तदुच्यते | दाता तत्र दण्डः खास्मथद्यदेव दोषभाक्‌" षति मध्यस्य क्रानुवादकः(। चक।रात्‌ VA: समुश्चौयते। ताबुभौ दोषभाजौ दण्डमोयापित्य्थः। ्रात्तद्‌ ेत्यादिकं तु wierd व्यनिरिक्रविषयम्‌ | तथाच मएव, “aearia वा दत्तं रावितं धन्मकारणान्‌ | Za तु सते दाणत्तत्घुतो नाच ane.” Tha | मनुरपि सोपाध्िकदानादर्निवत्तनोयतामाह- "योगाधमनविक्रीतं योगटानप्रतियरहम्‌ |

«+ ~~“ ~ ~~~ 7 7 Oy

nae अज ००० अन क्७ iM = = ==

« इत्यमेव प्राठः सनव तसित्रथंःप्रसिङ वुः--ध्ति म्रन्यान्तदौव Tse लमोचोनः

श्रंसनाव्‌,--दति यन्यान्तरढतः प्राठः |

{ उक्नापादक+-दइति ate |

२६० UIRMEATT |

थच वाऽ्ुपधिं पयत्‌ तत्‌ से विभिवत्तयेत्‌”-दति | योगखपधिः श्रदेथदामतश्मतिप्रयोदंण्डो नारदेनोक्रम- "दर्षाव्यदन्तं योलोभाद्यञ् देयं प्रयच्छति | श्रदेयदायको* TTA ST AAALAC इति दश्लाप्ररानिकम्‌।

विविनक्ति

श्रथ चेतनस्यानपाकम्मास्यं विवादपदमुच्यते, AQ PIAS नारदः “सत्यानां Javea दानादानविधिक्रमः। ्रतनस्यानपाकम्मे तदिवादपदं सतम्‌" दति | dad ee तस्यानपाकम शटव्यायासमपेणं समर्भितस्य परावन वा तन्न समर्पणे विगेषमाह नारदः areata वेतने ददात्‌ AHA यथाक्रमम्‌ | श्रादौ म्यऽवसाने aout यदिनिथितम्‌” दति एतावदेव तत्कैकरणदास्यामोति भाषाया शरभा विगशेष- माद सएव,- | ‘aarafafgararay HATTA AS: | लामगोवोययशरस्यानां वफिम्गो पक्षौ वलाः” दति | ADA पा्यमानगवादिग्रमवं पयःपरति यदि aware सत्याय ae भागं प्रयच्छति, तदाऽघौ राशा दाप्य इत्या

»* दापको,-दति we |

AYA |

qrarey THe भागं ATP MTGE | afafaa ति ay कारये मरोदिता- इति यत्तु इषस्यतिनोक्रम्‌ः- नजिभागं पञ्चभागं वा WAT TATE EL .. तदायासषाध्याद्च्टकेजकविषयम्‌ तजापि भिभागपद्लभागौ थवस्थया विकन्धिलौ बेदितयौ तथाच सएव “भक्राच्छादश्तः सौराद्वागं wet पञ्चकम्‌ | sare जिभागन्त्‌ प्रटहोयात्तथाखतः-इति श्रनाश्छादानाभ्धां शतः atlas: चेननातशात्पश्चमं भागं away) anand भागभित्यधेः एतावदाख्ामोति परिभाषायां सत्यामपि किन्ततोन्यूनं खामिबुद्धिपरिकशपितं aaa Za, कवित्ततोऽपयधिकं देयम्‌ AY याश्जवर्क्यः,- "देशं कालश्च योऽतोयाश्ाभं gay योऽन्यथा | तदा तु ख्ञामिनः इन्दोऽधिकं देयं ततोऽधिके"-दति यः ्टाम्याज्ञामनम्तरेण वाकिण्यादिणाभखाधनदे ्रकालातिक्रमं करोति, ल्लाभं बङतरव्ययकरष्णदमपं करोति, aA खनौ सेष्छातुसारेण किश्चिदथात्‌ यस्त॒ सखातग््येए sword करोति, तसे परिभावितमू्याद धिकं दे यमित्यथैः। अनेकमत्यकदेककंकोणि वेतनापेणप्रकारमार सएव,- ‘at यावत्‌ क्रियते कं तावन्तश्य तु बेतनम्‌ उमोरणसाधयं चेत्‌ era कुयात्‌ यथाश्रुतम्‌" एति 1, . दा gata कषये नियतवेतनबुभाग्वां वनिं नियमाद्‌

RRR पराश्नश्माधवेः।

मुभयोरणथसाध्यं॑चेदुभाग्याभेवापरिसमापितं ; तदा थो चावत्क्र- करौति, TA तत्वर््ालुसारेण मध्यस्यकर्ितं वेतनं देयं, पुनः समम्‌। साथे उभाभ्यां wate परिशमापिते तु थथा्रुतं यथावत्य- रिभाषितं तावदुभाभ्वां देयम्‌ नं पुनः येकं BEAT देच, नापि कर्मानुरूपं परिकल्य देयम्‌ ) शल्यानां कटेवमाह भारदः,- “कंश्मीपकरणं तेषां क्रियां प्रति यदाहितम्‌ | श्राप्तभावेन A Aga कदाचन्‌" इति | तेषां क्खाभिनां कश्षापकरणं साश्रलादि क्रियां उदिश्व ufaa ea निदितं, तेन सवेदा निःगायेन रच्चमित्यथेः | रद- सतिरपि- waag aaa खामिना waaay | wfaefa समाप्नोति ततो वादः प्रवन्नते--इति। यस्तु तिं alae कम्मे a करोति, तं sare सएव, “ग्रदहोतवेतनः कके A क्ररोति चदा wa: | waged दाप्यो feat तच्च वेतनम्‌"-इति श्रगटहोतवेतन्‌विषये याश्चवषफ्य श्रा, “प्रगते ममं दाप्यो way उपसरः”--इति ad, यावता Fata अत्थतवमङ्गोहतं, तावदेव खाभिने दशात्‌, तु राशे दण्डभिव्यथेः। यदा, श्रचाकुगोसबेतनं दला बला- त्कारयितव्यः | तदाह नारदः,- “कर्माङ्वेन्‌ प्रतिशरुश्य काचादला भतिं were | शतिं ग्टहोलाऽहुरवाणः दगुण अतिमाभुयाग्‌"-दति

QTC शरम्‌ | REE

प्रतिभत्येति प्रारध्याणुपलदणयेम्‌ ETE कात्धाचनः,-- ` “कारमं तु यः हला सथं नैव तु कारयेत्‌ | बलात्‌ कारयितयोऽसावङुग्यम्‌ दण्डमङति | चेन्न Healy तत्के परागुयाद्विगणं eA” ThA \ ford कार्षापणद्धिग्रतमित्ययेः | ay ममुव्नम्‌,- “शत्योऽनान्तौ gaig at दपात्फ्मं थयो चितम्‌ दण्डयः रष्णणान्य्टौ 4 देयं ae वेतनम्‌"--इति | तद्धावरे षितविषयम्‌। किशिश्माचाषगेषे तु दण्डवजबेतना- . दाभम्‌ | तदाह एव. "'यथोक्रमान्तः ख्यो वा यस्त॒ कम्मे कारयेत्‌ तस्य aad देयमन्पोनस्यापि क्मणः"-दइति | यसु काणविगेषादधिकं aa प्रतिश्चाय कालात्पेमेव कषम त्यजति, तं प्रया नारदः,- | mae त्यजन्‌ TH खतेर्गाप्रमवाभरयात्‌ | ख्ञाभिटोषादकरणे यावह्ुतिमव्ुयात्‌” षति सखाभिदोषात्‌ पारखकरणादिख्लामिदोषात्‌ | नारदः "माण्ड श्यसनमागच्छेदयदि वाहकदोषतः | greens नष्टं स्यादेवराजरतादृते” दति बाहकदोषतः तकदोषतः | SEAT

का मीं

(९) श्तद्याख्ागदग्रमात्‌ दिशतं दममिति पाटः प्रतीयते | wane parery लमैतजेव faga दममिति wtatyraa | 30

age TRACY |

“sararatfad are: ea faxrenfaar तु cet wettdds जलेन वा-इति | grentid तोव्रपरहरार्दिना दरेण नाशितम्‌। बद़मनुः,- “अः करममकाले Ura garfewaretq | अद्तयान्यसह कायः स्यात्‌ दाप्योदिगुणां ऽतिम्‌-दति। THI": .— “श्रराणदेवकाधातं भाण्डं STAG वाहकः | प्र्ानवित्रटचैव प्रदाप्यो हिगुणां तिम्‌ i maT सप्नमं भागं चतुथं पयि संत्यजन्‌ कतिमद्धेपये स्वां प्रदाणद्याजकोऽपिष"-दति | श्राजदेवकोधातो चस्य भाण्डस्य, तद्यदि परज्ञादोनतया वाहकेन भागते, तदा वकूष्धानुसारेण ARG areata: ey प्रखान- शप्रसमयएव Wc Ay त्यजन्‌ प्रसानविप्तं करानि, तदाऽसौ दिगण शतिं दाणः ag श्द्याकरोपादानावसरसश्भे खाङ्गौरतं कमो जति, wet भत्यः सप्तमं भागं दाणयः। यः पुनः पचि mart गममे वनतमाने सति कमं त्यजति, शतेखतुय भागं दाणः। शङ्धपये त्यजन्‌ खवांश्तोदापनौयः। ag, सानौ wa खयमेव कमं areata पूरी कदेगेषु, असावपि पूीकलप्तमभागा- दिकं areata: | एतखायाधितादि विषयम्‌ व्याधितच्छपराधा- भावात्‌ | यदा पुम्यांभितो याध्यपगमे तदितरदिवसान्‌ परिगणर्ग्य पूरयति, तदा wanes eat तिम्‌ तदाह मनुः, | “srt हरात्‌ we: सन्‌ धयाभावितिमारिकः

qzraerfa saree amas बेतनम्‌"--द्ति | rary खामिनदतुधेभागारिदापनमविक्रोतभाष्डविषचम्‌ ! fara तु भाण्डे विग्रषो रद्धमनुनाऽभिदहितः- “ofa विक्रोय agree वणिमुत्यश्चनेर्‌यरि | श्रगतस्यापि९ देथं स्यात्‌ ATS लभेत w"— ThA aaa प्रतिबद्धभाष्डविषये राजा्चपहतभाष्डविषय" शाह कात्यायनः, “get पदि तद्वाण्डमासिद्धत fret वा यावानध्या गतस्तेन ATTA, तातो मतिम्‌"--इमि। भाटकश्चोकृतेन यामारिमा भाष्डनेतर METS ATS: नश्रानोय भारवयिला तु भाष्डवान्‌ GTA EA) grat wa: चतुर्भागं सर्वामद्धंपथे च्धणम्‌ area वाशकोऽयेवं भति्ानिमवाशरुथात्‌ "इति द्यः ्रकटादिकं भाटयिला तदेवोपकार शन्वमादाय दिभा-

= ००० न~ et ^ एव td cccenmy mae [का reaanee ea AIRS POPPI

1 ~ ener a eiipench ren DOE

© EMIAT पाठः Bam | ममतु, सजाद्यपदतमाण्डविषमे,---ति Ws

ufaatfa | + gata पाठः wale | ममतु, यदए-षनि प्राठः प्रनिभावि। ] इयमेव पाठः सम्ब | ममतु उपण्डर,-- दति पाठः प्रतिभाति

we परथ |

वा षी

णा mee stn eS

(९) ष्थगदख्छाभि यावम्‌ यन्तदयमगवस्यापौति SSAA वाल्ला | (x) आकवान्‌ खामो | यानं प्रकटाटि | वाहनमनशवादि।

eee WEAN |

MUP EA भाटकः* | उपकारश्रब्देन तदाधारोशच्छते। परमौ ग्रहनिर््राणदिभारकदातारण्मद्याह नारदः+ “Oat गदं wer ata’) दला वरन्त a | agevien निगेष्छेत्‌ दएकाष्टामि च्ष्टकाम्‌"-दति। तथा,- | “स्तोमाटिना वसिता तू परण्धमावभिखितः। जिगच्छंलएकाष्टादि ग्टक्ञौयात्‌ कथश्चम यान्येव awarstfa लिष्टकाविमिवेभिताः विभिगेच्छस्त॒ तत्सवं शमिखामिनि बेदयेत्‌”--ईति | afafga: दणएकाष्टादिषणापरिभाषायामिद्ध्थेः। परिभा- षिते तु थथा परिभाषा तथेति। वेदयेत्‌, भिवेदयेदिव्यथेः | भारक दषा द्रयाद्यपणथं गटहोतमणिकादिपाचमेदनादावष्याद सुएव,- “सोमवाहोनि भाण्डानि पू्कालान्यपामयेत्‌ UATE AS aera संक्षवात्‌"-दईति। daa: परस्पर संघषैः। तेमार्पकेन areas वा भिन्नं gaa भाण्डंवा THe वा सामिमे देयम्‌ VATE भरे तु भारकष- गरहोतुरेव तदित्यथैः। waa were वेतनादातार ग्र्या इृसतिः,- ` * इत्यमेव पाठः सर्ज भतिं भा्रयात्‌,--६ति wefan भवितु युक्षम्‌ | 1 तेम Sareea ate |

1 17 Pk 1 7 we ect outa कठ

PIPING चदि een et,

a

(९) सोमं वासमूण्यम्‌ |

व्यवहारकषाशम्‌ |

“हृति कणि चः eral दधारेतलं ते राजा दापयितयः शात्‌ विनयं चारुष्ूपतः'“--इतिं faan wa पयि त्यजतो TATE काल्थायनः,-~ "त्यजेत्पयि सशाथं यो अत्यं रोगामेवचे | प्रा्रुयान्‌ साहमं पू ग्रामे हमपालयन्‌"--इति | पष्छस्तरोलदु पभोक्रविषये ae मारदः,-- “qe welt UE नेच्छमतौ fag ase" श्रनिष्छन्‌ श्ररस्कद्‌ाताऽपि एस्करानिमवाभ्ुयात्‌"-दति | एतदव्याधितादिषिषयम्‌ व्याधितविषये तु MEAT "व्याधिता मंभमा यग्रा राजाधम्मपरायणा mieten नागच्छेत्‌ श्रवाश्था TAT GAT’ UL शर्यन्तावण्धके जातसम्भमा सन्भुमपदेन ST | तेव ग्याङ्ुला शयया | बडवा दामो दानोगदणमत्र पण्धस्तोप्रद नायम्‌ छप- भोक्रार प्रत्याह नारदः “प्रयश्डन्‌ तया wep पुमान्‌ faa | aanu सक्गच्हातयेद्ा मखादिभिः॥ watt यः समाक्रामेदडभिवां विवाखयेत्‌५ |

[ण वि eee

#+ तदा,+--दति He |

गडु,--द्ति का० शा. | ` पठे quate कामश्राखोक्तपरकारविसोधेन चावयेद्ा नखादिमिरसिमि- आप्येवदलुष्ननौयम्‌ अयोगो मुखादौ, समाकजरामेत्‌ awe gaatq आत्मां माटयिता बङनिः Tee: ey fetta Tee: दिति व्षनाधः। oe

ee meres ee 2 1 1

pment sens

ge OUTTA: t wen aed arent fame तावदेव त्‌"“-दति | प्थस्तियास्वपराधे दण्डादिकं मश्छपुराणेऽभि्दितम्‌,- “sete वेतनं वेश्छा लोभादन्य्न गच्छति | तां दमं दापयेद्धन्यादिव्यस्यापि भाटकम्‌"--इति। aq fataare नारदः+ | “वेश्या प्रधाना ATT कारुकाः तद्ग्टहोषिताः। त्मुत्येषु aay निशेयं संश्रये विदुः"इति

इत्यं वेतमस्यानपाकश्ामिहितम्‌

अयेदानौमभ्युपेत्या FAT विवादपद्‌- मभिधौयते।

AM खरूप नारद श्राश्.- ‘mate तु wget wet प्रतिप्थ्यते | ATAU NG ATALS वादपदमुच्यते-द्ति | ` शआरन्नाकरणं WATT प्गूषकश्च पञ्चप्रकारः तथाच सएव

“aya: पञ्चविधः mrad दृष्टोममो षिभिः |

तु विधः कथकरः शेषा दासास्तिपञ्चकाः गिष्यान्तेवासिश्वकाः wae frase |

एते RURUTHA STATS गदनादयः सामान्यमसखतन्तलं तेषामाङमेनौषिषः

errata) विषो efaaeren

waite fafad dead शभमेवच |

WA TRA WHRTRT सतम्‌ -

ग्टददरारारएचिस्थानरण्याऽवखर शो धमम्‌

गुह्ाङ्गसयशनो च्छिष्ट fear eRe

द्वहतः सखामिनयाङगरूपय्यानमथान्तः |

aes fara एभमन्यदतः परम्‌'--द्ति।

तज श्रियो वेदकविधार्यौ amare} तिष्पगिशाथौ gee

चः ae करोति, wan) श्रधिकममेशत्वशम्ुवतामविष्टाता | sufeart उख्छिष्टप्रचेपाधंङ्गन्ता दिकम्‌ अवस्करः ग्दवमार्जित- पाशा दिजिषधत्यागस्यानम्‌ | तकख विविधः तदु तेनैव,

“San, RO मथ्यमस् शपो वलः | |

gut भारवारौ श्यादिव्येवं fafaut अतः - दति |

दाशखलरूपमपि तेनेव दभ्रितम्‌,-

“जातस्तथा HAT MATA IATA: |

अराकाणग्तसददारितः खामिना चः

मोकितो महत्र्णदयद्धे प्राप्तः पणे जितः

तवाहमिद्युपगतः प्र्र्याऽबमितः शतः

भक्षदासख दिच्चेयसतयेव वड़्वाऽऽइतः।

विक्रेता चात्मनः ग्रासे दासाः पञ्चदश दताः“ CA

ष्ककककाकृ rah SUR CRANE wane OY om err ८७०) ore ५०० 9-१-५५ ee Aten? NET wor मि पि ७४१० ty arte

सवक

(९) merece धः कमारः जातकन्मकरः। गन्यान्तरे तु नातिशवर इति पाठः) अजाप तचेवाधः।

[ UCTNCATHTT |

UMA: BEY दास्यां जातः | श्रौतो yea) war प्रति- ग्रहादिमा | दायागतो रिक्थयाडिलेन uta: | अ्रन्नाकाशस्तः दुर्भि दासखाय पोषितः fea: खाभिमा धमग्रहणेनाघोनतां नौतः) णमोषित खणमोचनप्रदयुपकारतया दाशत्वमन्युपगतः | TENTH: wat विजित्य zeta) पएविजितः दासल्पक्े gaat fara: तवाहमिन्युपगतः तव eretswtia खयमेवागतः | प्रत्रव्याऽवसितः PRAT: | तः MARTH, एतावत्कालं लं AEE TATA दूति | भक्रदासः Gaara wart एव दासलमभ्युपगतः। agaaT गदाया MYA: THA तामुदाद्म दामलेन भविष्टः। a श्र्मानं विक्रोरौते ्रषावात्मविक्रेता एवं पञचद्शप्रकाराः। यत्त मरुमोक्रम्‌,-

“ष्वजाइतो भक्रदासो we: क्रौतदतिमौ | Qeat दण्डदासश्च सपेते दासयोनयः" दति |

तत्‌ तेषां दासत्वतिपादना्, तु परिसश्चारथम्‌ | श्र शिथाणं ककत विपेषो नारदेगोक्ःः-

“at विद्याग्रहणाख्छिव्यः TAA प्रयतो WE तहृन्तिगीरुदारेषु wage तथैवच'“- दति |

विद्या चाच जयो तदुक्तं इदसपरतिना,-

“विद्या बयो समाख्याता शछयजुःखामलकणा |

तदथं meat ngage प्रचोदिताम्‌"-इति | शन्तेवासिनामपि adedt विगेषसेेवोक्ः,-

“anagea firs डेमरूप्यारिसंद्ञतिः

ववहारक्षाणम्‌ | ms

भंत्यारिकश्च ततप" इत्वं रोररे"-इति। नारदोऽपि “खं शिम्यमिच्छनवाहनतु मान्धवानाममु जथा | अआचायष्य qa are wer पुनि्ितम्‌"-दषि। wrersienfa कन्तव्यमाड षएव,- “gray: शिचयेदेमं खण्डे द्लभोजमम्‌ | MSTA पुशवचेगमाचरेत्‌"-इति अन्यकर्रकारकमाचाय्ये ITE का्धायमः,-- Cag area fire कश्ा्छन्यानि कारयत्‌ MIATA ES पृषे तस्मात्‌ fuer निवकतेतेःः-दति। परिभाषितकालाह्मागेव विथाप्ापतावपि तावत्कालं बेरित्याहइ नारदः+ "मृचि ितोऽपि छतं कालमनोवामौ SATE | ara कमं चत्‌ हुरययादाचाययसेव meme” TTA याश्कसकधोऽपि, “दृत शिसपोऽपि निवसेत्‌ छतकालं ATER gaara गरपराप्तभोजनप्तत्फशप्रदः”- एति | दुष्ट प्रत्याद नारद | QUAY यस्छाचाय्य परि्यजत्‌ | बलादासथितन्यः ष्यात्‌ वधबन्धं खोऽहेति"- दति

८.७७.७८ Be कैन्यन 4 oot ice oe aot 1 ws) मी कक १९ [क धि

$ वत्‌ fant fa यन्धान्तरव पाठः।

१8९१ पराक

ats ताद़नादिः। परिभाषितकाशलपूतती क्ग्यमाद aT | “"द्ररोतथिखः समये weiss war | शक्रितखानुमाग्ेनं अनतेवासौ निषन्तेते"-इति तकानामपि तिरतः कालक्त्च विग्रेषो इहस्यतिना इगिति “a ae परदासोन्तु wet ayer: | कम तत्छ्ामिनः इयात्‌ यथाऽनेन wat मरः बह्घाऽथेखतः प्रोक्स्तथा भागव्तोऽपरः | array wera चोदितम्‌ दिनमाषाद्धैषण्सासतिमाशाष्दग्टतसथा | कग क्र््ात्‌ प्रतिज्ञातं लभते परिभाषितम्‌"-द्ति चर्थग्तस्य TRUS BANTAM, TVA ते चा्पल- ` भरले श्ह्मनुसारतो द्रष्टव्ये | तचा नारदः+ ‘weary निविधो Ha उत्तमो मध्यमोऽधमः | शरक्रिभक्षामुसाराभ्षां तेषां कर्माश्रया तिः"-दति। | arene देविथमाइ इरसतिः,- | “दिप्रकासे भागतः कृपणो जौषितः खतः MATAR PTAA तु संश्यः-इति। श्रधिकशुतम्त्‌ GET नारदः ` “qtafuent a: सयात्‌ Jere, तथोपरि | सोऽधिककतो जेयः घ. atefin सरतः"-दति

थवहारकाखम्‌ | श्यै

wt निङ्ूपितेभ्वेः frarinies weefeedetat qremt भेदं qremqurafaaingaay कालयानः, ` ` “PTR TA STATE TSM CAT EA sea: | थथा ay: alters खप्ररीरदानादारलं, तथा खतन्नष्यातमगो दानादासलम्‌,-दति शगुरा शाीमन्धते,-दति तेन सात्यकपार श्थेमासाद्च WANA: Te: arerelarearere एमरूषकाः कोका cen भवति creme बाह्एव्यतिरिकरेगेव ` faq वसवु fate) “are fare a कथित्‌”"-ति तेगेवोक्- ary | तेव्बपि दाद्यमानुलोग्यनेवेत्या बएव,- नवर्णामामानुलोग्येन दास्यं प्रतिशोमतः। राजन्य श्मशचद्राणगधजतां हि खतन््रताम्‌"-इईति | प्रातिशोन्येन दामलप्रतिषेधः खधम्मपरित्या गिन्योऽन्ब् Kee: | तथाच नारदः . (दर्णानां प्रातिलोग्येन erat विधौथते | खध्त्यागिनोऽन्यज दारवदासता मता'-इति | रारवद्‌।सता मतेति वचनात्‌ ब्राह्मणच उवे परति दाषल- भामाण्माह कात्यायनः, “शरवत तु fare qed नेव कारयेत्‌”-इति | यदि ब्राह्मणः सेच्छया ere भजते, arent age करं कुप्यादिव्याहइ सण, . भगुताश्ययनसन्बत तदनं we कानतः।

senate ष्यं

` ` ° भषकात्थिकनतेवरेभ्यख--एति भवितु दम्‌ |

R60

तथापि नाशं किचित्‌ vegeta दिभोलमः"- इति | cha रोनमपि we कामतो वेतनग्रहणएमनम्परेण Swear पर- हितार्थम्‌ सजियवेश्विषये खाभिनः कन्तंयमाह मनुः “कशचिययश्चेव dag ब्राह्मणोऽढस्तिकर्षितम्‌ | विष्धयादानभंखेम खानि कर्णि कारथेत्‌”-इति ag दिजाति Terre क्म कारयति, Te दण्डमाह सणएव,- “दाखन्त॒ कारयेश्मो शद्राद्यणः स्तान्‌ दिजान्‌ | अनिच्छतः प्रभावलाद्रान्ना दाथः शतानि षट्‌ दति) प्रभावस्य भावः प्रभावलं, तस्मादिति | WRAY यथा कथमपि दाशं कारयेदित्याह सणव,- “QE कारयेदासयं कोतमक्रौतमेवच | दास्यायैव fe ङ्ष्टोऽसौ खयमेव खयम्भुवा दति पश्चदश्प्रकाराणणं दासानां मध्ये ग्ठंहजातक्रोतलभद्‌ायागतानां चतुणां aaa खाभिप्रसारादेव मुच्यते मान्ययेव्याह नारदः+ “तजर पूरव्तुवेगं दाषलात्‌ विसुश्यते | प्रसादात्‌ खामिनोऽन्य् दास्यमेषां फमागतम्‌"-दति | श्राद्मविक्रतुरपि दाखल सखामिप्रसादादन्यतो भायेतौत्यार नारदः, CRT खतन्धः खन्‌ श्रात्मानं नराधमः जघन्यतमस्तेषां सोऽपि दास्यान्न भुच्यतेः-दति। प्ष्याऽवसितस्यापि geste नासोत्यार षएव,- crane हि दासः खान्‌ प्ज्याऽवयितो गरः

%

इडारकाथम्‌ | a i

ae nfaatetsfe विषडिः aren’ —efe याभ्चवल्वधोऽपि,- “प्रनष्याऽवसितो राज्ञो दाख श्रामरणग्तिकम्‌'--श्ति। पर्रज्याऽवसितसख्य दाखल ब्राह्मएतर विषयम्‌ ब्राह्मणस्तु frrirer- इत्याह कात्यायनः,- “omegrafaara तु जथोवर्णादिजातयः निर्वासं कारयद्धिप्रं crea शजिथं विश्रः"--दति। निर्वाखमप्रकारमादर नारद्‌ः,- "पारिव्राज्यं ग्होवा तु यः awa a तिष्टति। श्वपदेनाङयिला तं राज why प्वाशयेत्‌"-षति प्रब्रच्यावसितात्मविक्रहव्यतिरिक्रामामनाकाणग्तादोनां दाच्या- पनयनप्रकारमाह सएव, “gaara तो दास्वाखमष्यते गोदयं ददत्‌ | तद्दितं दुभि यत्‌ ठु शएदयेदकमेणा* श्राहितोऽपि धनं दवा erat यद्येनमुद्धरेत्‌ | स्पय्याप्तश्टएं दया aru विमुच्यते भक्षसयोतृकतपरनेव भक्रदाशो विशुश्थते | मिगहादडवायामस्त मुष्यते बडवाऽइतः'"-- इति शञामिनः प्राएसरचणणदपि गदजातादवः सवं दाख्यग्ुष्यनो CATE नारदः+

णण mit ny Cr oe erento ouninetinier eaviniinterisin भकजा of ^

* द्रव्यमेव षाठः waist) भद्धितद्चापि यत्तेन तच्छ््यति gat, इति gat वपाक SATA |

itt Cees OO EEO pe ME ee 7 tg) 1111

९१ पराशरा)

“यश्चैषां खाभिनं कञ्चिकोषयेत्राणलंश्रयात्‌ |

दासाश्च विसुष्येत quan लमेत च-इति | दाशाभाषानां मोषनमाईइ चान्नवख्वधयः,-

“वलाद्‌ासोकतसौरे विंक्रौतश्रापि शुष्यते दति। चकारादाहितो दन्तश्च we नारदोऽपि,-

“चोरापश्तविक्रौता ये दासोरताबलात्‌ |

राज्ञा मोचयितव्याले दाखल तेषु नेश्छते"- ति धसक ya दास्यमङ्गोषव्य परस्यापि दाखलमङ्गो करोति,

श्रषावपरेण विसजेनौय द्याह सएव,-

“तवाहमिति वाऽऽत्मानं योऽखतन्लः प्रयच्छति

maya Wea रमेत तम्‌”-इ्ति | दाश्विमोच्एतिकन्ेयतामार्‌ सएव,

“खदासभिच्छद्यः कम्तैमदेसम्मोतमानसः |

खनादादाय तष्यासौ FRA सराम्भषा

साचताभिः सपुष्याभिनूडधन्य्िरवा किरेत्‌ |

ware cia Star चिः areas wate"

ततः mafa ame: खान्यसुहपालितः |

viereitce afrnel भवत्यभिमतः सताम्‌" दति |

cenqrenspyarel विवादपदं समाम्‌ |

NE NL I hE IT NT NEES ee NNR ONES ARTS Rint spam ORE BOS °

* WIS तमथोवृश्जेत्‌,-- रति प्रन्याशरदतः Ts: |

यदहारक्राकस्‌ | ae

wa सम्बिद्व्यतिक्रमाख्यविषादपदस्य विधिरुच्यते | तख wet नारदेन यतिरेकमुखेन दभितम्‌,- “पाषण्डनेगमादौनां स्थितिः समय उश्यते | समयस्यानपाकर्म तदिवादपदं खतम्‌"--दति। समयस्यानपाकश्य श्रयतिक्रमः समयपरिपाखनम्‌ | त्रा माणं विवादपदं भवतौत्ययेः | तदुपयोगिनमथेमाद शदस्पतिः,- ` “बद्‌विद्याविदोविप्रान्‌ श्रोचि्याश्चापरिरोजिएः | आहत्य स्थापयेत्तत्र तेषां afa प्रकल्ययेत्‌-इति ` याश्चवश्क्योऽपि.- | "राजा रत्वा पुरे स्थानं ब्राह्मणान्‌ न्यस्य AT तु | Weary इन्तिमहूयात्छधमयः पासयतामिति"”- इति ब्राह्मणान्‌ Shera वेद जयमग्पजनाम्‌ इत्तिमद्धरिदिरण्वारि- ang शला खधरवर्णश्रमथूतिरूतिविहितो भवद्विरगुष्टौयता- मिति ताम्‌ ब्रूचात्‌ इततिसम्पत्ति्च ररस्पततिना दभिता,- ` “श्रमाष्डे्यकरासभ्यः ALU गदन्मयः। मुक्रभाव्याञ्च^४ नृपतिलंखयिला सशासने""-दति। तेभ्वो दथादिल्य्धः। तेषां कल्त्यमाहइ इरहसतिःः- foes नेमिन्निकं काम्यं ्रान्तिकं पौष्टिकं तथा

nena 1 जानन काम कि >

(१) खगाच्दे्कराः, area सादत्तयः करोरागगराह्ममागोयाशां व्याविधाः। उगूमय दति दितोयायें प्रथमा | शटगूमौरिवचेः।

मुक्धमाग्यास्छक्षराजदेयाः।

[2 „~ = 0 SDN ०.० चो

१४८ पराधस्माथषः

पौराणां कषे qed afer निटवम्‌”-दति | ाञ्नवषश्योऽपि,- “Praia यस्त॒ सामयिको भवेत्‌ ।. खोऽपि aaa duet wars यः" एति | ओनौतस्मा्तधर्ातुपमररेन गोजा चारे चफ+देवग्टहपालनादिरूपो- थो ua: समयाश्निष्यन्नो भवेत्‌, सोऽपि aaa पालनौयः। तया, राज्ञा निजघर््ाविरोधेनेव यावत्पयिकभोजनं देयं wari मण्डलं तुर ङ्गादयो प्रखापनोया इत्येवं रूपः समयमिष्यन्नः, सोऽपि रषषणोयः! एवं राजनियक्रसमुदायविगेषस्य कन्त विशेषोऽभिहितः | ामादिस्वसमुदायानां तु साधारणकाय्येमाह टदव्यतिः,- 'द्मामथ्रेणोगणानाश्च wea: समयक्रिया | बाधाकाले तु सा कार्य्या धन्मकार्यं तयेव वारशोरभये बाधा सर्वसाधारणे WAT | तचोपश्नमनं काय्यै eaten केगवित्‌*-दति | चकारेण पाषण्डनेगमदौनां चोपसंयरहः ततस ashe पाषष्डनेगमादौनासुपद्रवकाले धकारं चयां पारिभाषिकीं समयक्रिया विना उपद्रवो दुःपरिहरः ward” दुःखध्य, घा पारिभाषिक समक्रिया स्बभिंशितेः कार्या वारषौरेभ्ो भये प्रपते तदा चोरोपशमनं wa: सम्य wate: धका तु विगरेषरेनेवो कः,

A पकक एक te SP trae oe sa nite ^~ 0 A RNG ००७१ ७०७9 9

* भोप्रचारेच्ब,-दति are |

ष्यवहारकाखम्‌ | ae

“सभा प्रपा Base ayrarcradee: | तथाऽनायदरिद्राण्णं सारो चजनक्रिया कुलायमं निरोधश्च काय्यैमद्माभिरप्रतः। aud’ लिखितं प्नं धर्म्या सा समयक्रिया पालनौया waeig यः समौ विसंवदेत्‌ | wu टण्डस्लस्य निर्वासनं युरात्‌"-दति | यजनक्रिया सोमयागादिकरतभ्यो दामम्‌ इुलाधनं दुर्भिषा- दिपौडितदटथागमनम्‌। तस्मिन्नागते सति यत्छविधानं विधेयं, तदेव तच्छष्देनोच्यते | निरोधः दुभिंचाद्यपगमपग्येन्तं धारणम्‌ wat: रदखेचपुरुषा दिप्रयुकरभग्टहोतधनेनाव्यकल्वेन वा सितेन काय्येमिति एवं छता समयक्रिया केवलं समुदायिभिः पाश. नोया, किन्त रा्नाऽपोत्यादइ नारदः+ ““पाषण्डनेगमश्रणिपूगव्रातमणादिषु | संरजेव्छमयं राजा et जनपदे तथा”--इति। पाषण्डा वेदवाश्मा बेदोक्तलिङ्गधारिणो वा ्रतिरिक्षावा सं लिङ्गिमः। तेषु म्ये श्रमिचरणयाः ममयाः सन्ति। नेगमाः साधिका वणिकृप्रशतयः तेषु सकम्पकमन्दे रहर पुरुषतिरष्का- रिणो दण्ट्या द्थेवमादयो बहवः समथाः विदन्ते WaT, भैगमा-

ee etn कक 1

# POC प्राठः Aare | ममतु, ae 4,—xfa पाठः प्रतिमाति। इत्थमेव पाठः wert) मम तु, पीड्विजनागमनम्‌+--एति पाठ,

प्रतिभाति |. 82

eye पाद्माः | .

anoctiaaa बेदप्रामाश्चमिष्छभ्ति ये पाएपतादबः। त्रातगण- शब्दयोरथः कात्यायनेन दितः “नागायुधधराग्राताः घमवेताग्ठ कौतिताः | SAAT TCG. गणः ACHAT पूगे त्राते चान्योन्यसुक्सुष्य समरे area fare: afta WHAT: | AT तु पञ्चमेऽहनि पश्चमे वाऽब्दे BOTA: कर्तव्य दत्यादि- समयाः दुर्गे धान्यादिकं Veet अन्यत्र यास्यता कभ तदिक्रेय- मिद्यासे समयः | जनपदे तु कचिदिक्रेतुरदस्ते कचित्‌ क्रटरस्त इखाग्रर्णमित्यादिकोऽश््यनेकविधः VA | तत्समयजात यथा भेष्यति afar, तथा राला Gatien समुदाये तु पुदषषिषये विषमा इदस्पतिः,- "कोभ लेख्यक्रियया weet परस्परम्‌ | विश्वासं प्रथमं शवा qa: कार्य्याश्नन्तरम्‌"-दूति rare: प्रतिभभिः। कार्य्याणि समूहकार्य्थाणि। काल्यायनोऽपि- "समूहानां तु यो ध्नः तेन धरण ते सदा! maya: सर्वकरणि खधर्षु ्थवसख्िताः"-इति समूहकाग्येकारिषु रेयोपादेयाविभजति इहस्यतिःः- “fasfamt wafer श्रालोनाणसभोरवः | द्धा arg वालाख काः काय्येचिन्तेकाः wet stewie: दकाः दान्ताः कुलोद्भवाः | सवैकाय्थपरमोणख HUY AEWA: Tia ते कियन्तः ater इत्यपेकिति qwa4ry.—

WAYCATT | eek:

“2 wer ag at कार्व्याः घमूहहितवादिभः। यस्त विपरतः erg दाणः प्रथमं दमम्‌?-ईइति। काल्यायनोऽपि,- “युक्तियुकषश्च यो erga: कार््यागवका शरद्‌: | शरुक्रशैव at rere दाणः eae” EMM eeufact,— Cog साधारणं fear किपेत्‌ afaqea बा संविक्ियां faeare निर्वस्यएतः पुरात्‌-इति | चमू हिनामयधरश्चंण देषादिना काय्येकरणे दण्डमाह सएवः- “जाधाङ्कुखयुवेदे कस समभूतादरेवमयुताः | राज्ञा सवं ग्टरीतार्थाः ्राश्याखेवानुबन्धतः - यथा खमयं TN: GAT ATT तान्‌" इति यस्तु qe: समूद्रयादिकमपदहरति,ः AG CGAY याश्च वर्कः, naga इरेद्यस्त संविद्‌ WAH यः | सर्वद्लहरणं war तं राष्ादिप्रवासयेत्‌"*-दति aaierenretat पुराजिर्वासनमेव दण्डमाह शपति “SEE: TITY मेदशाहसौ तथा | HATTIE fei निर्वास्यते तदा पुरभरणोगणध्यक्ाः पुरदुगे निवाधिमः | वाग्धिग्दमं परित्यागं wee: पापकारिणः तैः शतं यत्रय निग्रहारहं FTA

५५९ परारमाधवः।

तद्राज्नाऽयनुमन्तव्यं निष्टा हि ते खताः“--दति 1 निष्ट्याः, श्रतुज्नातकाय्यं ware: पाषण्डा दिखवेसमूरेषु या राज्ञा व्तित्ं, ATE नारदः ca धकः कश्यं यच्ेषामुपस्थानविधिख्च चः | यदेषां प्राप्ुयादयमनुमन्येत तत्तथा ्रतिकरूलश्च यद्रा ननः ्रशत्यवमतं यत्‌) दोषवत्‌ करणं यन्तु श्यादमालायकन्पितम्‌ ्रटृलमपि तद्राजा Beeara निवन्तयेत्‌--दति | धक्षौजटाव्वादि कन्म प्राप्त^पम्यषितमिश्ाटनादि | उपखा- नविधिः समूरकार्ययाथं पटदादिष्यनिमाक्यै मण्डपादो मेलनम्‌ arama) जौवनाथं तापसवेषपरिग्रहः | राजनः प्रतिकूलमाधि- कारिशएद्रकैकं चेवणिंकविवादे धमेविषेषनम्‌ तस्य प्रतिकरूल- लमुक्र खत्यम्रेण,- “qa राज्ञस्तु कुरुते शद्धो धमेविवेचनम्‌ | सख प्रणश्यते राद बलं कोवश्च मश्यति-इति। * इत्यमेव प्राठः aay | मम तु, प्रात--इति पाटः प्रतिभाति| (र) प्य, यदा ara fee थास्था | रतद्यास्यादशनेग, यदेवा प्राह्गयादथेमिय, यद्ेमां SHUM ECT पाठः प्रतिमाति। विवादरनाकरे तयैव पाठोषटतोद्तेते। परमादशएरतकेषु दशगात्‌ यज्वा पाप्नयादध॑मित्मथमेव पाठो मृते रचितः | श्रा" का एख- कयोः प्रयपादान,--इति पाठो दक्षते

SAGA | mm

प्रहत्यवमतं Baas uaa; पाषण्डयादिषु ae Hae, परस्यरोपतापः, राजयुरुषाखयफेनान्योन्यमर्थापहरणटि दोषवल्करणं श्रुतिर्रति विरुद्धं विधवादौ बेग्ठालादिकं प्राषण्डया- दिभिः प्रकख्ितम्‌। संविष्वषटने दण्डमाह मनुः, “at यामरैग्रसंघानां wear स्येन संविदम्‌ | विषंवदे जरोणलोभान्तं राद्राद्धिप्रवासयेत्‌ faery दापयेदेमं समयव्यभिचारिणम्‌ | चतुःसुत्रणेकं निष्कं * श्रतमामश्च राजतम्‌ एवं दृण्डविधिङकर्य्यात्‌ धार्मिकः एथिवोपतिः। यामजातिखमूदेषु समयव्यभिष्वारिणाम्‌”-द्रति | सत्येन प्रपथेम एतेषां नि्वांसमचतुःसुवणमिष्कश्तमानरूपार्ण लातिविधयागृणाद्यपेचया ATT कन्पनौोया | ATTA राज्चा समर्पितं zai समूहाय योन ददाति, तं प्रत्याह याश्चवरक्यः+- “समृहका््धं ्रायातान्‌ कतकार्य्यान्‌ विसजेयेत्‌ खदा सम्मानसत्कारैः पूजयिला महोपतिः॥

[ह ee meee a ame * 02.18.815. 1 |

* चतुः सुवर्णान्‌ षट्‌ निष्कान्‌,-- ति प्रन्थान्तर्टतः पाठः|

[1 SET मातत जनयक कक नण 0 मिण = ०.१४.

(९) अथ च, “ard श्रतं वर्णनां निव्वमाङमनौनियः?- दादि. निन्कराां aac चतुःएुवणकमिति गिव्केविगेषयनुपरात्तम्‌ | wasnt cred रन्तिकागां विं्चधिकं एतजयमिति अनरे

शास्यातम्‌ |

२१४ पराकरमाधक I,

समूदकाय्यप्रहितो awa तदपेयेत्‌ |

एकादशगुणं दाप्यो यद्यसौ, मापयेत्‌ खयम्‌""--दइति | विभज्य प्ररणएमणद्र विषयम्‌ | यतस्तत्पश्चविषये सएवाइ,--

“वाए्नाभिकं age वा ferme यथाऽ शतः |

देवं बधिर दद्वान्धस्तौबालातुररोगिषु

-साकानिकादिषु तथा धमंएष सनातनः” दति राश्नः प्रसादलभवदृएमपि स्॑षां समभित्यार सएव,

“aa: uit रखितं वा गणां वा शणं शतम्‌ |

Tie प्रषादलमश्च सर्व्वेषां तत्मारितम्‌।”-इति। एतदभकित विषयम्‌ भक्ठिते कात्यायन श्राद,-

“गणएसुदिश् यत्किधित्छमणे भसितं भवेत्‌ |

आवा विनियुक्ं वा देवं तैरेव लद्धबेत्‌-इति पेतु wager wary तदन्तगेता ये समुदायचोभादिना

ततो afar, ताम्‌ प्रत्याह सएव, “गरिनां भरिज्िवर्गाणां गताः we तु मध्यताम्‌ | Wedge! षमां णाः सवेएव ते

|) eer

* देयवानिखः-इति ate |

सर्वषां तत्स॒मूह्ितम्‌,--दइति ate सर्ेवामेव तश्छमम्‌+-- दति मरन्धान्तर धतः ATS: |

व्यमेव पाठः eis) mare धग््टः--इति न्थागार्टतस पाठः सर्मीचौनः।

वदहारकाक्छम्‌ | , „8

तचेव भोजनेभाव्यं* द्‌ानध्ेक्गियासु VACA MATT स्यात्‌ प्रगतस्लं शमागभाक्‌ौ दति | संविद्धतिक्रमास्यं विषादपटम्‌ |

AY क्रौतानुश्यः कथ्यते | AME नारदेमोक्रम्‌.- “Rear मूल्येन यः We RAT बड मन्यते | करीतारुश्य इत्येतद्विवादपदमुश्यते"-इति। RAISE क्रेता क्रयात्‌ प्रागेव सम्यक्‌ परौशेत तथाच सएव, “mat we परौदेत प्राक्‌ स्वयं गुणदोषतः परीचाऽभिमतं क्रौं विक्रेतुं भवेत्युनः""- द्रति | परोचाऽभिमतं ata ` तदोषदगंनेऽपि ग्रहोतुरेव भवति, भं विकेतुः तथाच इस्तिः, "पसेकितं asad खरौला पुनस्यजेत्‌""--दति | तत्कालपरोक्ितस्य पुनरपैणाभावः सावधिविषयः। तत्य परौचणस्य विहितलात्‌ तथाच याभः,- “समेकाषेष्टकासूचधान्यासवर मस्य

wen 2. 1 १7 1 117. 177,

ot ~ <~ ~ ~~~ पिक A EER oN ATE = भम

+ भोण्यपैभाव्य,--द्ति are |

+ प्रगवश्ठंद्रमागिति,- एति are | प्रगतस्व्नाष्‌ तु-इति ग्रश्चाग्तरौयः Tse समौचीनः।

इत्यमेव पाठः cere मम तु, अन्येषां Sa, —a पाठः प्रतिमाति।

९५१ URINATE! |

aeeafecerat ways परोखणम्‌"- दति | क्रीतानां warat द्रयविशरेषेण परौशषणकालावधिमाह सएव- “अहादोद्यं परोचेत पञ्चादादाद्मेव तु मणिसुक्राप्रबालानां सप्ताहात्‌ खात्‌ परोकच्णम्‌ दिपदामर्धमासं स्यात्‌ पुंषान्तद्विगणं स्तियाः | द्‌ ्राहात्सवेगोजानामेकाहा स्रो दवाससाम्‌ श्रतोऽ्वाक्‌ पण्छठदोषस्ु यदि स्नायते wife | विक्रहु प्रतिदेयं तत्‌ क्रेता मृच्यमवाश्रुयात्‌”-दति यथोक्रपरोखाकाल्ातिक्रमे तु प्रतिदेयमित्याह काल्यायनः+- “श्रविज्ञातं तु यक्कोतं दुष्टं पञ्चादधिभावितम्‌ | wid तत्‌ खाभिने देयं oy कालेऽन्यया तु-इति | श्रविन्ञातं ahaa तवतोऽपरि ज्ञानं यस्य gare; तत्‌ यावत्‌ ` परोचाकास उक्तः, तस्धिन्‌ काले प्रतिदेयम्‌ अन्यया तत्कालाति- कमे दुष्टतया परिन्नातमपि क्रीतं तत्खामिने देयमिल्यंः | पण्यानां दिपरकालवश्रादुपचयापचयौ प्रथमतो श्चातयावित्याह नारदः “ad afg malar पष्छानामाममं तथादूति। श्रश्वादिपण्धानामखिन्‌ काले afar रद्धिभवियतौति जानौयात्‌, तथा श्रागमं कुलीनता दिश्नामायेमुत्पाद कजग््धम्या- दिकश्च जामौया दिल्यथंः। एवं सम्यक्‌ Whe गुणदोषद ग्नादि- कारणमन्तरेण नानुशयः काय्यं इत्याह यान्चवरकयः,- ` wi ठद्धिश्च वणिजा पष्छठानामविजामता | WAT नानुशयः कायैः Yay षडभागदण्डभाक्‌"-दति।

WAV TATV | rae

qdfarrart क्रयकालोन्तरकाखम्‌* कयकाशपरिज्नाने पुमः केतु विक्रेतु रलुश्यो भवतोति अखतिरेकादुक़ भवति we दोषतद्‌टद्धि्यकारणतरितथाभावेऽसुश्यकालाश्वन्तरे यश्चसुश्रथं करोति, तदा पण्छषड्भाग दण्डनोयः। श्रसुं्यक्षारणसद्वाषे- ऽयनुश्रयकालातिक्रमेए योऽनुश्यं करोति, ated दणष्डनौयः। एतश्चोपभोग विर्मश्वरवस्ठ विषयम्‌ | ऽपभोगेना विनश्वरवश्ठविषये भत्य- पणे वद्धिमाह नारदः | “Prat मन्येन यः We दुश्ोतं मन्यते कयोः विक्रत्‌ः प्रतिर यन्तन्तस्मिकवा दिवकितम्‌€"इति | दवितौयादि दिषसप्र्यपणे तु विगरेषस्तेनेषोक्ः+- नद्वितौयेऽङ्कि ददत्करता Tar जि्राग्रमावहेत्‌ दिगणन्त॒ हतोयेऽद्ि परतः केट्ररेवख--दइति परतोऽनु्रयः कर्तव्य इत्यर्थः TY पुनमेनुनो कम्‌,- gat विक्रीय वा किञ्चिद्यसयेहानुग्रयो भषेत्‌ | सोऽन्तद॑गरादात्तद्रयं दचाश्ैवाददौत ar” Tha

ee tee

* aa, दति te —efe भवितुमुचितम्‌ |

pate we: सर्ज ममतु, Nghe विकेतुः-दति. पाटः

प्रतिभाति | इव्कोतां मन्दते क्रियम्‌,--दरति कार | § afetatis शराचतम्‌,- ति, तक्िप्ेवाकपवीचिवम्‌,-~्रति

ग्रान्तरछतौ wt | .. 9

२५८ परा्रमाधवः। ,

तद्पभोगेमा विनशवरण्टहकेचक्रयागुश्रया दि विषयम्‌ तचेव द- गराहारैरक्रलात्‌। तथाच कात्यायनः,

“भरूमेदेशादडे विक्रेतुरायः ततक्रेतुरेव च+

द्वादशाहः सपिष्डानामपि area: परम्‌”--दति) वाभो विषयेऽपि नारदः+

“परिभुक्रन्‌ यदास; freed मलो मसम्‌

सदोषमपि तत्कौतं विकरेतुने भवेत्युनः”--इति

दति क्रौतातुशयः।

अथ विक्रौयासम्मदानम्‌। TA BU नारदेनोक्रम्‌,- “fale oy aaa क्रतुयेन्न प्रदौयते | किक्रौयासम्मदानन्तत्‌ faarcuzqaa’—<fa | पण्ये विष्यमुक्तं तेनैव, “लोकेऽस्िन्‌ दिविधं द्रव्ये खावर जङ्गमन्तया | क्रयवपिक्रयधर्मेषु सवै तत्पश्यमुच्यते विधस्य ठ्‌ au: दानादानविधिक्रमः। गणिमिन लिमं मेयं क्रियया रूपतः frar’—<fa | गणिमं ag करमुकफलादि तुलिम्‌ टया धाय हेमचन्द- नादि। मेयं ब्रोष्यादि | क्रियया वाहनदोहमा दिक्रियोपलकितमश्च-

हि = शि [1 ~~~ ^ [त 1, वि tte ee

* द्रव्यमेव पाटः wears |

शथवहारकाखम्‌ | Re

afeanfe: eam: पर्छांगनादि भिया प्रागादि | तदेतत्‌ षद्‌ प्रकारमपि पथ विक्रौयाप्रयच्छन्पोदयन्दाग्य इत्याह UTTER, “WHAT वः पणं aaa प्रयच्छति | सोदयं तस्य दायोऽसौ दिग्लाभं ar दिगागते-दति 1 mere प्यं fata यदि पाय॑यमानाय सखद शवणिजे RI समपयति; तच्च पण्यं परिक्रयकाले awe सत्कालानारे सखन्यमूखेनेव सभ्यते, तदा सोदयं ser सरितं विक्रेता AY दाप- नोयः। यदा मृचखद्रासषहृतः पण्छस्योदयो नास्ति; किन्त कयकाले याव्रदेव यतो qua यत्पश्छमिति प्रतिपन्नं तावदेव, तद्‌ तत्पण्य- मादाय afar देओ विक्रौणन्य योलाभस्तेनोदयेन सहितं दाप- नोयः। यथाऽऽ AT, “श्रचश्चेदवरौयेत सोदषं प्यमावरेत्‌ | स्थानिनामेष नियमो दिग्नाभं दिनिषशारिणएम्‌?-इति। Ud लघैमहतेन पण TART तस्मिन्‌ VA वस्ग्हा- दिके उपभोगः तद्‌ च्छादनसुखतििवासादिष्पो विक्रेतुः, तत्‌- ` सहितं परमसौ STH | यथाऽऽ नारदः "विक्रीय un) gaa यः केतुम प्रयच्छति | स्थावरस्य चयं दाप्यो ara क्रियाफलम्‌"--इति | चयश्रष्देन गतभोग उक्रः। यद्यपि तस्य दानमण्क्ध, तथापि तदसुगुणद्र्ं देयम्‌ शङ्कमानं ठु त्कमेनिमितं मूष दाणः। war wet क्रेता देर त्य्छयदणयेमागतसदा तत्पमादाच Sart किक्ौतस्य थो लाभस्तेन सहितं पणं विक्रेता WF दाप-

२९० प्रशशरमाधव।।

नोयः ) विष्णुस्तु विकरेतुरंष्डमप्या “ata यः पणं Ree zuraerat सोदयं दाणो creat चापि पणशतं दण्डःदइति। यस्तु विक्रौोयानुग्रयवशान्नापेयति, ay क्रौलाऽनुशयवशान्न zerfa, तं प्रत्या कात्यायनः, | Hat प्राप्तं गष्टौयाद्‌ यो दथाददूषितम्‌ | मृत्धादश्रभागन्त्‌ दला खन््रयमा्रुयात्‌ ATM SPAR शेते नेव प्रदापयेत्‌ | एवं धनन दारान परतोऽनुगरयो ठुः--दूति) शरदूषितं, जलादिनेति te: दोद्यवाद्यादिपण्छस्य दोहना- दिमेति ia: दोद्यवाद्यदिपष्छलय दोदनादिकालोऽये्रिया - क्राः तङ्िन्‌ प्राते सति श्रग्रहणे श्रदाने वा हृतो दशमभागं प्रदापयेत्‌ किन्त तमदवेव खन्द्र्यमवाभ्रुयात्‌। एष धरौ - दश्राहात्‌ प्रामेदितवयः। ततः परमनुश्यो are: | विक्रौया- सम्प्रयश्छतोऽपि विक्रौतं पण्यं विक्रेहपाजे fed तस्य यदि देवादिना नाशः स्यान्तद्‌ा क्क्रतुरेव दानिरित्याह याश्वर्क्यः,- ^“देवराजोपधातेन पण्पदेषडपागते | शानिर्विकरेतुरेवाषौ याचितश्याप्रयष्डतः"--इति | धथाचितश्येति विगेषणेन ware विक्रतुर्ानिरित्यर्यादव- मम्यते | नारदोऽपि,

- SEP LEHR ०५०४० ~- कोनो NOY ER CONS NES TTR IS one I ~ 9 oe el =,

(९) रतद्याखयागदश्रनात्‌, worsens छलौ नेव प्रदापयेत्‌ दरति -वचनप्राठः प्रतिभाति। परमादशपुश्तकेष geur पाठ qe fata: | ममतु, HEA अदाने वा इते,-- इदेव पाठ

“>: . प्रतिभाति।

यव दारकारडम्‌ | श६१ .

“gag वा पपं दद्मेतापद्ियेत वा विक्रेतुरेव सोऽनथं विक्रोयासंप्रयच्छतः”--दति | | यथा याचितस्याप्रयच्छतो विक्रतुरहामिः, तथा दौवमानप्छ- मग्टहतः क्रतुरपौत्याह सएव “दौयमानं zerfa क्रोतं पश्च यः क्रयो सएवास्य भवेदोषो विक्रेतु ऽपयच्छतःः- दति यान्ञवष्क्योऽपि, - | स्विक्रीतमपि faa पूवे केतयग्टक्षति, | हानिश्ेत्‌ करटदोषेण क्रेतुरेव हि सा भवेत्‌"-इति | ag fais प्यं enfaar सदोषं विक्रौणते, agree विक्रीय azarae तत्‌ प्रयच्छति, तयोः समानदण्ड इत्याश, ““निदैषं zifaat सदोषं यः प्रयच्छति | मूल्य तद्द्विगुणं दाप्यो विनयं तावदेव अन्यते विक्रीय तथान्ये तत्‌ प्रयच्छति | सोऽपि तद्विगणं दाप्यो विनयं तावदेव चदि एतदुद्धिपूवेकरिषयम्‌ | “grat सदोषं पण्यं यो विक्रौणोतेऽविदच्णः | तदेव दविगुणं grammed विनयं तथा”-दति रस्यतिनोक्षलात्‌ श्रवदधपूवंके तु केतुः अरपरावक्तेनमेष अतएव एवंविधनियमोदन्तमूल्ये कये दर्यः i wea पुम _ rats पाठः सवेष पू्यकेतथेगटक्कति,--एति DAAC पाटन TAHA: | |

Soca antenna Pe Lee

९६२ पराप्ररमाध्चवः।

पे क्ेदविक्रनोः समयादृते प्रकतौ वा कञचिहोषः तथाच नारदः, “दज्नमूष्यष्य wee विधिरेष प्रकौ त्तिः | श्रदत्तेऽन्यच समयान्न विक्रेतुरतिकरमः”-दूति | यत्र पुमवाक्पाचेण mata afefa freed करना यत्कि- fugai दन्तम्‌, तच केतुदौषवेन क्रवासिद्धौ श्राह वयावः, “सत्यंकार श्च." यो दवा यथाकालं दृश्यते, qua निष्टनद्लोयमानमण्डतः- इतिं | श्रव WUHAN: सत्यंकारद्रवयस्योत्छगऽभिमतः। श्रस्िन्नेव विष्ये famactuana क्रयासिद्धौ श्राह याज्ञवस्कयः,- “सव्यंकारहृतं द्रव्यं दिगृणं प्रतिदापयेत्‌"-दति | ग्री वाऽसुश्रयामुत्पस्यथे कतिपयपण्यानां विक्रयानदलमाद मनुः "मान्यदन्येन dee रूपं विक्रयमदति | सावद्य्च न्यूनं दूरे तिरोदितम्‌५- दति | दति क्रयविक्रथानुश्याख्यं विवादपदम्‌ |

का > + 0 भक

चरथ स्वामिपालविवाद्‌पद्विभिः।

aa तु तदभिधानप्रतिन्ना मनुना र्ता,- “ary स्ञामिनासचेव पालानाश्च व्यतिक्रमे | :

Ae CORTE OE के PERRIS “Wem te teats

, 8,

(१) यत्‌ agate करयपरिष्थितये fart समपित, तत्सन्यकारपदा्च- हवि चद्धन्ररीोया aren |

MAULANA | Rea:

, विवादं सम्मरवश्छयामि anager —efa | विवादं विवादापनोदमित्यथः। खामिपालयोः aware नारदः+ "“उपानयेद्ाः गोपालः पुनः प्रत्यपयेन्तया"- दूति | यावन्तः प्रातः समपितासावन्तः सायं प्र्यपंणोया दृ्यर्थः | गवादिपरिपाश्लकस्य खतिपरिमाएमाद नारदः “गवां ware वत्छतरौ धेनुः स्याद्विशतार्‌ शतिः | प्रतिसंवत्सरं गोपे मन्दोहो वाऽष्टमेऽहनि"--दइति ग्रतिसंवत्छर वत्सतरौ दिदायनौ गौः खतिः तके कल्यमौथा, दिशते तु ara गौः, wen दिवसे दोदख भतिलेम कर्यनोय- TU | सन्दोहः सवंदोदहः | “oor tau: Bt लभेतेवाष्टमेऽखिलम्‌”-दति दस्पतिस्मरणत्‌ | wae ufaaum परिभाषितश्चतिवि- गषाभावविषये। परिभाषिते तु wiafane ava देयः। aay प्रकारान्तरेण शतिमाद “nat सौरग्तोयसत दुह्याद्‌ ग्तोवराम्‌ | गोखाभ्यमुमतो अत्यः मा स्यात्पालेऽगते सतिः"-दति | दतो दशदग्धृणां मधे वरासुकष्टं Stee तत्रं बोर- तो wear | चौरशन्यानां तु कौरमूष्तो तिः कम्पमौया यदसौ दव्यानरेण शतः, asa शतिरिव्यधैः। aad परि- कच्तं वेतनं दरद्ौला पम्‌ पालयन्‌ त्यः खदोषेण पन्‌ मार- येत्‌ विनाग्रयति वा, तं Here STEHT

ada पराग्ररमाधवः `

^प्रमादण्टतनटखच प्रदायः शतमेतन्‌ः”--द्ति | प्रमादयदणं पाशकदोषोपलचणा्थेम्‌ | प्रमादश्च मनुना खष्टौ.- हतः. | "नष्टं विनष्टं afaar दंशितं विषमे waz. Sa पुर्षकारेण प्रदात पालएव तू"--दति | प्रसद्य चोरेरपहतो दाः | तथाच सएव, “fafa तु चतं SICA पालो द्‌ातुमरति | ' यदि aie काले खामिनः खस्य शसति"-दति। ग्यामोऽपि,- “पालग्रहे ग्रामघाते तथा tire fags यद्रणष्टं इतं वा ान्न पालेष्वत्र किखिषम्‌'--दति। एनत्पुरुषकार करणे Aga पुरुषकारा्करणे तु भवत्येव किल्विषौ | पुरुषकारस्य खं मारदेन दितम्‌, “हमिरोरव्याप्रभयात्‌ दरोश्वभ्ना्च पाणयेत्‌ | areata: aig खाभिमे तु निबेदयेत्‌"~-इति। यायच्छेत्‌, प्रयतेतेव्ययैः यः AAT म॒ यतते, तं प्रत्याह सएव, “शअद्यायच्छनविक्रो रम्‌ खामिने शानिदेदयन्‌। दातुमरति गोपाम्‌ भिनवेव राजमि"-दूति FATT UATE ATA “पाखदोषविनाशरे तु we वष्डो षिधौथते | शरडनयोद ्रपणाः सखामिमे द्रग्यमेवच"-दइति |

ववड़रङ्ाखम्‌ | ee

अशेषयोदश्रपणाः षादधेदाद गरकाषापणाः। पालदोवमाह AT . “अजाविके तु संदधे TR: पाले लनायति | | et may कोन्यात्पासे तत्किलिषं भवेत्‌" एति 1. अनायति, उपद्रवनिराकरणाय भ्रनागच्छतोत्यथेः | या, अजा- विकजातौचयाम्‌ | एवद्छुगमखलणस्यविषयम्‌ | दुगमखणविषयेतु दोष इत्याद श्णव,- | Carat चेदवरद्धानां चरन्तोनां मिथोवने | यामुपेत्य टकोदन्यान्न WAC किखिषो- इति | शअरवरङ्कामां, पाकेन श्यापितानामित्यथैः | दैवग्तानां धुमः कर्णादिकं दशेनौयम्‌ | तथाच महुः | coal चमं बालां वप्यखिक्ञायुरो दनम्‌ | पष्टखञामिषु दथान्तु तेवङ्गामिदरेनम्‌”- दृति सपत्यन्तरमपिः- न्क चमं वाणां श्ङ्गताख्यख्विरोदनम्‌ | पश्एखाभिषु दधातु तेषय्गानि दगरयेत्‌”-र्ति

गोप्रसरभमिमाहइ AMAT नपराेष्छया गोप्रचारो भूमौराजच्छयाऽपिच"- षति

पामेच्छथा पामाश्पलमरहत्वापेचया TET वा गवां warfe- अचलायै कियानपि भागः शतः परिकष्यनौयः मरवा HATE

दानावनसौकरवयाय प्रामरेजयोरन्तरमाइ एवः "धमः तुं TUTE ASAT MATA |

दशते ais WH ATA चहुःपतम्‌--दति 34

२६१ परराधरस्माधवः 1 `

ामकेभयोरन्तरं धनुः्रतपरिमिवम्‌ ) शवेदेवंविधिगा we कायम्‌ | CASS प्रषुरकष्टकसम्भानस्य यामस्य दं TA wat we, area awnaaeitde चतुःग्रतपरिमिते sat we aratafa aa पष्जिवारणाय टतिरपि कर्यनोयेत्याह काल्यायनः,- “श्रजातेष्वेव wey कुरययादावरणं षदा दुःखेन विनिवायन्ते शम्खादुरा खगाः”-इति | मारदोऽपि- “पथि चेरे ठतिः areal यासुटो नावशोकयेत्‌ लदन्येत्‌ wala भिन्द्यात्‌ यां सूकरः” दति) एवं पष्एभिवारणे हतेऽपि तामतिक्रम्य शस्यादिषिनाशरे सति मनुराह, | "पथि चेतरे परिटते ग्रामान्तोयेऽथवा पुमः | पालः were विपालान्‌ वारयेत्‌ परन्‌" इति | पथि aw परिरते सति तां एतिमतिक्रम्य शस्यघाते पाणः UTR पणश्तदण्डादः। एवं, arava यामसमो पवन्तिमि as परिटते खति तां इन्तिमतिक्रम्य weet पालः तपण दण्डाः | तदमेम, श्रपरिषटते पालस्य दण्डाभावः सूचितः | ary are दण्डं निषेधति,- “तत्रापरिटतं धान्यं afye: पश्वो चदि | तच प्रणयेदष्छं गपतिः TEC ieee एतददोषेकालप्रार विषयम्‌ | heart तु दण्डमरंति।

WA UCT | Rees!

शरतश्वास्पकासप्रथारे दोषाभावमारइ fae: | “पथि प्राममान्ते © दोषोऽच्यकालम्‌”-इति दष्डपरिमाणन्तु पशएविेषेण दितं याज्चवसकयेन,- ॑। “माषानष्टौ तु महिषौ श्रखघातश् कारिणे दष्डनौया ATHY गौखदद्धेमजाविकम्‌ भरूयिवोपविष्टानां चयोक्रदिगुणोदमः | सममेषां विवोतेऽपि ade मरिषौसमम्‌""--इति | परग्रखघातकारिमदिषौखामो प्रतिमहि्य्टौ माषान्‌ दष्ड- नोयः चतुरोमाषान्‌ गोखामो Beara दौ बौ माषौ एषा- मेव पशनां गश््यभ्वणएदारण्य यावच्छयममनिवारितानां खामौ यथोक्षदण्डात्‌ दिगृणं दण्डनोयः | तया, "तयाऽनाविकवत्सामां पादोदष्डः प्रको न्तितः"- इति aan बेदितयम्‌ | साश्वा तातिकपणष विंशति- तमो भागः, <माषौ विग्रतिमो भागः पण परिकोत्तितः"- इति मारदश्मरण्त्‌ | भ्वयिलोपविष्टसवस्सविषयं यथोक्ताथतुगुणो-

दण्डः। तदुक्तं रूत्यन्तरे, Cagqat दिगणएः परोक्त सवश्छानां ware: That |

यत्पनर्नारदेनोक्षम्‌, care at दाप्येहण्डं St माषौ मदिषं तथा | तयाऽजाविकवल्यानां दण्डः स्ादद्धमापिकः"- इति तकहममाचभवणविषयम्‌ WATTERS: गङ्ककिचितौ ।.

९६८ पराश्ररमाधवः।

“राजौ चरणी गौः पञ्च माषान्‌ राजिशुद्ृ्तं माषं दण्डं TACHA श्रातुरपद्पविषये तुन दण्ड इत्याह नारदः+ “array ग्टहोतो वा बञ्चाशनिहतोऽपिवा | श्रपि ate ay दष्टो एकादा पतितो। भषेत्‌ व्याप्रादिभिरदेतो वाऽपि वयाधिभिवाऽणुपद्रुतः। तत्र दोषः पालस्य टदोषोऽसि गोभिनाम्‌"-इति। अरमाठुरेष्यपि केषुचित्‌ TTY दण्डाभावमाह ETT ` "गौः maar cure मशदोखो वाऽपि कुश्चराः) निवार्याः @: प्रयन्नेन तेषां खामो दण्डमाक्‌“-रति | मनुरपि, “"श्रनिदं ग्राहां गां gat ठषान्‌ Sama तथा | सपालान्‌ वा विपाशाम्‌ वा दप्द्याकातुर्रवो त्‌”-दति ठषामरोच्ाः। Waal, टृषोत्धगेविधानेगोत्‌रष्टाः। याज्ञ- व्क्योऽपि,- “महोचोतष्टपश्रवः सतिकाऽऽगन्तुकादयः | पालोयेषां ते मोच्या देवराजपरिषुताः"-ईति ` श्रादिग्रब्देन खतव्ादयो EPR अतएवोग्रना,- ^श्रदण्डा म्टतवत्छा संज्ञा रोगवतो श्रा श्रदण्डयाऽऽगन्तुकौ गौश्च सूतिका चाभिषारिणो ` अदण्ड्या Shed गावः श्राङकाले law ch ¦

विकी) 3 1 "मा रा ` 1 षषी

* प्राइः--ति we | eenzrafrat,— als ate |

नमायी

ग्धवदारकाद्म्‌ | , Red.

" qorefert केवलं anit cette: शपि द्‌ प्रडमपि दापनौथः | तथाच इदस्यतिः- (अ्रद्याज्निवारयेत्‌ गख चोरं टोषदधं भवेत्‌ | सखामौ waza दायः पालस्ताडनमरंति शरदश्च सदमं RT समूले काषभदिते"-इति। अतएव नारदः+ SATS तु तत्खामो TATRA | वधेन गोपोसु्येत दण्डं खामिनि पातयेत्‌"-इति | तत्छामौ wearat | wey षामन्तादिभिः परिकणितो Tea: | तथाच सएव, ""गोमिश्तु afad we यो गरः प्रतिथाचते। सामन्तानुमतं देयं धान्यवम्तच कश्पितम्‌"- ति | aaa शदयाचननिगेधोऽ्यात्‌ शतः,- न्गोभिर्विमाभितं धान्यं यो मरः प्रतियाचते। पितरसस्य नाश्नन्ति माश्नन्ति जिदिवौकः"--दूति गरामादिसमौपस्थामाटतचेभ विषयः | इति खाभिपालाष्यं विवादपदम्‌ |

कक ककु CONES

अथ सौमाविषादनिशेयः। तच ताक्तोमा चहुविधा। जनपदसौोमा orate seater केभसौमा च,-दति सा यथाक्रमं TANGO | तदुक्तं नारदैन,- ‘safe after देव Swett मयव्जिता

२७० पराश्ररमाधवः |

राजश्ासनमौता सोमा पञ्चविधा सता"-दति | ध्वभिनो इचादिलकिता मण्धिनौ जललिङ्गान्विता नेधानौ निषाततुषाङ्घरादिमतौ | भयवर्जिता श्र्थिप्रल्थिपरश्यरविषया- पत्तिभिर्रिता राजशासनमोता जादचिक्राच्चभावे राजेच्छया निर्मिता तथाच वयाषःः- ““यामयोरुभयोः सोन zat यत्र समुन्नताः | समुच्छ्रिता ष्वजाकारा ध्वजिनो सा प्रकौ्तिता॥ Sa WH Aaa aa | प्र्धक्‌ भवार्दिनौ यर सा सोमा मख्िनौ war i तुषाङ्गारकपाेस्त HATTA | सोमाऽच fafa कार्य्या नैधान सा निगधते"-ति। Say AMAT: | तदाद मनुः, ‘agate gala न्यग्रोधा श्वत्यकिंसकान्‌ 9्ास््लो प्रालट्कां शच सीरिण्येव पादपाम्‌^-इति पर्यक्‌ प्रवादिनोत्यनेन वाण्यादोनि परकाश्रचिक्कान्युपलब्यनते। तानि इरस्यतिना दश्तिानि,- | “वापौकूपतडागानि चेत्यारामसुरालयाः | सखलनिष्मनदौश्तोतःरगुष्मनगादयः प्रकाशविक्छान्येतानि Sarat कारयेत्‌ षदा" दति, तुषाङ्गारकपाशेरिति करौषादौनां गृत्रशिङ्गानामण्युपललफम्‌। तानि तेनेव दर्भितानि,- "करोषाख्ितुषाङ्गारप्कराऽभाकपाजिक्षा |

BIVITH WB | ०, ee

सिकतेष्टकगोवालकार्पासाखोनि भसन 4 tt परि कुमेषयेतामि सोमान्तेषु निधापयेत्‌”--इति | तामि ata fag i afactaienrat efaararfa | तथाच हस्य तिः,- “ततः पौगण्डवालानां weet प्रद भेत्‌ | aga शिशूनान्ते saree एवं परम्राज्ञाते सोमाभान्िनं जायते”-दति + एवं freftafas: सोमाविवाद नियं कुर्यादित्याह मनुः- cyafapaad सोमां राजा विवदमानयोः | यदि arava स्याशिङ्गानामपि दने साक्छिप्रत्धयएव खात्‌ सौमावाद विनिष्ये | area तु चतारो ग्रामाः सौमान्तवासिनः सौमाविनिणेयं कु प्रयता राजसज्निधौ-षति | प्रथमं तावदर्धिप्र्यचिलिद्गैः सौमाविवादनिरयः। sar ater विश्वाखस्तदा लिक्गविषयकात्‌ मोमादिषयकादा शाकिप्रत्ययात्‌ निष्यः) यदा साचिनामभावस्तदा सामनेविनिणंयः प्रतयः | "तेषामभावे सामन्ताः” रति कात्यावनेनोक्लात्‌ के पुनः ATA” न्ता इत्यपेडिते सएवाह- SEAT सामन्तासष्छंसक्षासयो राः | samendant: Taare: प्रको ्तिताः"-दति विप्रतिपल्लसोमकशय ara चतद्वु दिख सन्निहितग्रामादि- . भोक्षारः See: | एतएव सामन्त्ब्दाभिधेयाः | यदा पुनरदु्ट-

२०8 पराशररमाधमेः |

“areata समयामाख्चलारौऽष्टौ दथ्रापिवा। cea: सौमां ate: कितिधारिषः"-इति कखम्निएो रक्राम्बरधरा waa refer sat प्रदे Wa बः खैः शपथेः प्रापिताः सन्तः सोमां नयेयुः ! तथाच मनुः, “cra weratay aut रक्रवाससः | qua: शापिताः सेः सख्ेनेयेयुस्ते समश्नसम्‌'-इति नयेयुरिति बङवचनमपि श्रविवकितम्‌ एकस्यापि सोमा- प्रदभेकस्य हस्तिना टर गितलात्‌,- “ates faa सधुरेकोऽप्युभयसंमतः | रक्रमाष्ट्याम्बरधरो weareTa मूद्धंनि॥ सत्यव्रतः सोपवासः सोमानं गयेन्नरः“- दति धन्त नारदेनोक्तम्‌, . aa: ससुक्रयेतसोमां मरः प्रत्ययवामपि | मद्वादस्य काय्यैस्य करियेषा बङ्षु श्थिता?-इति : तदुभथानुमतधमेविद्यतिरिक्रविषयम्‌ खलादि चि्छाभावे- ऽपि साकिषामन्तारौनां सौमाश्चान उपायविग्रेषमाद्ं नारदः+ , “जिन्लमाऽपदतोन्सृष्टनष्ट चिज ग्ड मिषु तप्रदेानुमानाश्च भ्रमाण्णद्भोगदशेनात्‌*--इईति | प्रत्धर्थिखमखमविप्रतिपन्नाया श्रस्मात्तकालोपलकितभुकररवां नि- ्िशुयुरिल्यर्थैः एतेषां साचिखामन्तप्र्डतौनां सो माचह्कमण-

1

| विपी LOLS EO ee

ome ate:

* इत्थमेष wat aaa) मूजाराभितच्ितिखयडः--इति q मवितु युक्षम्‌ |

+ सान्छिसामश्तादिना सीमाच्चागोपाये विषवसाह,--दति wre |

} निन्नगापङ्तोद्छिरचिङक विगत शरमिषुः-- इति wre |

WTVITAW | ei a ae! <

दिनादारण्ब way निपकं यदि राजद विकब्यषनं नोत्पद्यते, तदा तक्रदजैनात्‌ सौमामिषफेयः तथाच काव्यायनःः- | “क्तौमाशद्कमणे AH पादस्य तथेव | जिपकच्चपञ्चयभ्राशं देवराअकमिख्यते"--द्रति | ges निषेधः खत्यन्तरेऽभिहितःः- “वाक्पारु मरोवादे दिव्यानि परिवनेयेत्‌"“- दरति उक्रलचणपुर्षाभावविषय इत्यविरोधः | कथम्द्योच निर्येष- इत्धपेक्िते भारदः.- ‘qa तु ष्य्लातारः सोमायाथ्चापि wewyz | तदा राजा दयोः सौमामुलयेदिषटतः स्यम्‌” द्रति इष्टतः, इच्छातः | याश्चवरक्योऽपि,- "भाते qrafasrat राजा Ste: प्रवर्निता^-दति। ज्ञाण सामन्तादीनां चिक्छानां रलादौमामभावे रजेव Sher प्रवर्तयिता | प्रामद्यमथ्यव्सिनो विवादास्पदौग्ध्तां सुवं अमं भ्विभश्य खभयोर्यामयोः waa ara सौोमाशिक्रानि कारयेत्‌ war तस्दा्धमेथंजेवोपकारातिग्यो gaa, तदा तष्टेव प्रामषडं धका wi SATA | TUTE मनुः “Hararawargat खयं राजेव धर्मवित्‌ t परदिगेद्मिमेकेषां उपकारादिति खितिः-इति अविषद्चा्या, ज्ञाटश्चापकश्यन्यायामित्यवेः णादि निषेयवत्‌ दोमानभिचयो नाभेदनानन्तरमेव कायैः किन्तु varity , चेलादिषरु तदाह बएवः- = oe

Red QUINTET 2

"समां प्रति समुत्यन्ने विवार चामयोरदयोः |

Ses मासे मयेत्छोमां सभकागषु सेतुषु" इति | TATE नगरादेरप्यपलच्फाथेम्‌ | चतएव कात्यायमः,-

“"सौमान्तबा सि" saat: gai खेजादि नियम्‌

प्रामसौमादिष तया तदश्नगरदेशयोः" दति | wat रागलोभादिवभ्रात्‌ समाषाक्िणोनिषेयं wer, तदा

दण्डनोया TATE सएव,

“मह्वनान्तु wetarat सौमानिंयं यदि

कूयेभेयाद्रा लोभादा दाप्याख्छग्मसाहसम्‌-इति | एतत्‌ श्नामनिषयम्‌ श्रन्षानविषये नारदः

“श्रय Raat way: सामन्ताः Shafts

स्वे एयक्‌ श्रयग्दणएडाः WTA मध्यमसाहसम्‌

सामभ्तात्परतो ये Werder watfed |

संसक्रघकसक्रास्तु विनेयाः GaaTwer

मौणटद्धाद यस्छन्ये TS TAT थक्‌ एयक्‌

fata: भरयमेनेव साहसेन व्यवख्थिताः?-टति साकिणां मियोवेमत्यामिधाने दण्डमाडइ काल्धयाथमः-

“mifaa यरि भेदः स्याद णड्याच्छन्तमसाइसम्‌“--द्ति। लोमाचङ्कःमणएकतणमपि दण्डमाह wz,

agin wane set सत्यसाकिषः = ˆ. विषरौतं weeny टाष्योष्डु दिशतं दमम्‌" --इ्ति।

[

* सामनन्तमावे- दति We wre |

श्यवहारकाक्छम्‌ | ue:

अशचानादगलवयने साच्छादरौन्‌ दणष्डयिला पुगर्थि्ारः wet यितव्यः वथाच ATI: | Segre दण्डयित्वा पुनः सोमां विशारथेत्‌ wat इ्टांस्त सामन्ताम्‌ तस्मामूमौलादिभिः समौश्यां कारथेत्तौ मामेवं धमेविदो विदुः"इति ष्टचछेन विषयं भिण्यमाह रखशस्यतिः, CITA GAIA TACHA यदा महौ | मदहामद्याऽयवा Te कथं aw विचारणा RAGS राजदन्ता यच्छ तस्येव खा महौ अन्यथा भवेल्लाभो मराणां राजदेवकः चथोदयौ जौवमञ्च दै वराजवश्राश्रुषाम्‌ | तस्मारशर्वेवु कार्येषु amd विचाशयेत्‌ ग्ामयोरूमयोर्थव मर्य्यादा करिता गदौ कर्ते दामहरणं WIT AAMT yA? एकज Rey श्टमेरन्यच SHA | maT wet तस्य at frereery’—chA wreenrenitfaray चपनशरस्धविषये तु एवाह, C@ene agugy! गडमिच्डिका यदा भवेत्‌ |

* qurmtat,—rfa कार |

+ Se,—efa are |

} sargz,—acfa we | , .तदभुप्त,-- दति wre खव We | wegen, —— इति wre

Ret पाद्रमःथषः।

मदी ख्ोतःप्रवाडेफ, Geral wey ताम्‌-इति 1 तां खश्स्यां मिं परवंखरामो यावदुप्रशस्यफथप्रािस्तावक्षमेते- ` ap) फशप्राप्ेरूद्ध तु पूर्ववचनविषयसमानता राजदन्तविषये ` कंविदपगादमाडइ aya,— “या राज्ञा कोधलोभेन कशन्यायेन वा इता प्रदत्ताऽन्यस्छ तुष्टेन खा सिद्धिमवाभ्रुयात्‌"-इति। एतश्च ॒सख्वष्वदेतुप्रमाणवम्‌ केन विषयम्‌ प्रमाणाभावे तु स्प- वाद “प्रमाण्ठर हितां wie चुश्नतोयस्य या इता | गृणाधिकाय वा दन्ता तस्य तांन विषाशयेत्‌“-दति। ग्ट्ादि विषये भिषयस्तेनेव शितः,- ““निवेशकाशाद्‌ारम्य ग्टदवाय्थापणदिकम्‌। येन aaa ym तस्य तन्न विचालयेत्‌ अर निद्यसुश्वज्य agate बेशयेत्‌**- इति श्रवरकरादिभिख्तुष्ययादिकं रोधयेदित्याह नारदः+ “श्रवस्करस्यशश्चस्नभ्नमस्वन्द निकादिमिः। वइतुष्ययसुरस्थानराजमागांश्न रो घयेत्‌"'-इति | SVT ‘arerarta अना येन पश्रवख्ानिवारिताः। तदुच्यते संसरणं रोद्धव्यन्तु केगचित्‌'*-दति | * gary च, इति काण शार | | ग्टश्चम्बाप फादिकरम्‌,+--दति were |

ag sare warfen करोति, ae Taare सशव,-

“qew संसरे wz दारोपणएमेववा |

कामात्पुरौषङुय्ोचेन्तस्य दण्डस्त माषकः" The | राजमार्गे पुरौोषकन्तुदंष्डमाडइ मनुः

“खमु खजेद्राजमां यस्वमेभ्यमनापदि |

दौ कार्षापणौ दथात्‌ waaay शोधयेत्‌

आपद्गतस्तया sgt गभिंणणो aravay

परिभाषणमदेभ्ति तच्च शोध्यमिति स्थितिः दति। श्रमेष्यादिमा तङ़ागादिषु दोषं क्वेतां दण्डमाह कात्यायनः

“तड़ागोद्यामतौर्यानि योऽमेध्येन विमाश्रयेत्‌ |

say श्नोधयिता तु दण्डयेत्‌ पूर्वेशषसम्‌

दूषयन्‌ सिद्धतोर्यानि स्थापितानि aerate: }

पुष्यानि पावनोयानि प्राप्नुयात्‌ पूवंसाहसम्‌"--एति) मर्य्यादामेदमादौ Geary याज्ञवस्क्यः,-

“"मय्यादायाः प्रभेदे त॒ सौमाऽतिक्रमणे तथा

Sw हरणे दणष्डाश्रधमेन्तममध्यमम्‌”--दति। अनेकरेषव्यवच्छेदिका साधारणी ware aver: wale भेदने, सौमाममतिखद्ु कषैतो, Gwe तथा निन्दितप्रद शेनेम्‌^ WY, यथाक्रमेणाधमोन्तममध्यमसाशसा दण्डा वेदितव्याः | चे्ग्रणं MUTATE UAT | WATT केजादिशरणे Bary,

eps ENT cae ATT A TTA ne ea nT ne ee net # cats पाठः ade मम तु, निन्दिषलप्रददमनेनः-द्रति माढः धतिनाति | ` |

Qgte VETMTATTT |

‘ae तटाक्मारामं Bt ar भौषया हरम्‌ शतानि पञ्च दण्ड्यः खयादश्चानार्‌दिश्तं द्मः"-द्ति। ये ठू बलाद्‌ पट्ियमाणडेना दि श्मयस्तेवां उष्समोदण्डः WATT | ‘TAGS पुराजिर्वाखगाङःकने | तद ङ्ष्छेददत्येको दण्ड उन्तमसारसः?- दति सरणात्‌ यन्त wefafearat सौमाऽतिक्रमणे दण्डाधिक्य- भुक्रम्‌ “सोमाव्यतिक्रमे वष्टसदखम्‌?-इति | तत्छमयसो माऽति- करमरविषयम्‌ | Warten विषये कात्यायनः '"सौमामप्ये तु जातानां garet केचयोदंयोः फलं DY साभान्यं चेचसामिष्‌ निदिं पेत्‌ इति अन्धेन जातद्टचादि विषये षएव,- | “sada तु आतानां शाखा यचान्यसंख्धिता wifey विजानौयात्‌ यस्य Sa तु संस्थिता" इति | wea waa क्रियमाणसेतुकूपादि कं येचस्लामिना निषेदव्यम्‌ तदाद याश्चवख्कधः,- “a निषेध्यो ऽस्पनाधस्तु Bq: कष्धाणंकारकः | परण्डमौ दरम्‌ कूपः SIS बहद्‌ कः" इति | RSM मशोपकारकं खेजादिकष्च भवति, तत्‌ खें wn निषेद्धथम्‌ wore स्वर्पोपकारक च, afergar भवति नारदोऽपि, - “परकेचस्य मध्ये तु सेते प्रतिवध्यते | मदहागृणोऽस्पदोषसेत्‌ इद्धिरिष्टा खये खति- द्रति

व्यवहारकाण्डम्‌ | QU

wag दिविधः तथाच avare— ` “तुस्त दिविधो wa: खेयो बध्यस्तथेवच | तोयप्रवन्तनात्‌ खेयो बध्यः स्यात्तन्निवन्तनात्‌”--इति सेत्वादिसंखकार विषये नारदः, “पूवप्रटरन्तसु च्छिन्नं पा स्नामिनन्त्‌ यः Bai प्रवन्तैयेत्‌ कथि तत्फलभाग्भवेत्‌ aa तु afafa पुनस्तदग्ये वाऽपि मामवे। राजानमामम्त्य ततः कुर्य्यात्‌ सेतुप्रव्॑तनम्‌”- दति ) खेचस्तामिनमनभ्युपगम्य तद्भावे राजानं वा सेला दि प्रवन्तंने याज्ञवख्क्यः,- Carfaa asfataa चेते सेतुं प्रवत्तयेत्‌ | उत्पन्ने खामिनो भोगः तदभावे मद्दोपतेः"- दति प्रायैमयाऽथेदानेन वा लब्धानुज्ञः सन्नेव परकेजे सेतु प्रवन्तये- दित्यस्य नतात्पय्येम्‌ तु aqua पालमादषिनिषेधे तात्पथ्येम्‌। तस्यापरसक्तलात्‌ श्रय वा, दृ्टलाभफलभो कुल निषेधे aay कात्यायनोऽपि ““अद्नाम्यसुमतेनेव संस्कारं कुरूते तु यः ग्टशोद्ानतड़ागानां संस्कन्ता BAT A ठु न्यथं^ wifafa चायाति निवेद्य मपे यदि | अथावेश्च TERS तद्गतं लभते व्ययम्‌'"-इति

~ ~ ~ ~ ~ = = ~ = ere eS ni,

मी

we

* 8d,— fa यन्धान्तर तः पाठ | 36° |

QTR पदाशर्मा्वः।

avenfaua @afacay 'कर्षामोदमङ्गोरुत्य पञ्चाद्योन कर्षति, अन्येन वा कषयति, सं प्रत्धाच याश्चवस्वधः,-- “qrareaafa Si यो gala कारयेत्‌ | प्रदाप्योऽश्टश्दं चेचमन्धेन कारयेत्‌”-ट्ति॥ यद्यपि werd शषफलेन विदारितं सच्यवोजावापाद्, AUTRES फलं MACs सामम्तादि कल्पितं ताक- दसौ afar दापनौोयः) तच्च खजं पूर्वकषेकादौ विधाय तत्का- रयेत्‌ खृदस्पतिरपि,- “aq wet यः afaq a gata कारयेत्‌ | afaa and दाघो Ue दण्डश्च awag’—cfe arfaa कियान्‌ श्दोदेय इत्धपेकिते avare,— ““विरावसन्ने TNA छब्यमाफे तथाऽष्टमम्‌ | सुसस्तेषु षष्ठं स्यात्‌ परिकश्ष्य ययाकिधि"-इति चिरावशन्ने चिरकाशलमश््टे खे क्षामोति सनो रत्थोपेकिते, aay फलमनुपेचिते wad तस्य quae: | सुसंस्ते SF उपेखिते qe भागं दाप्य cays: असक्रप्रेतनषटचेविषये नारदः+ “असक्रमेतमष्टेवु देजिकेषु निवापितः सेचदये दिरूषेत्‌ कञिदगरेति च+ तत्‌फलम्‌ tt weary चेचेषु रेचकः Fats | खिलोपचलार wed दत्वा खेवमवाप्रुयात्‌"-दति

=" ~~ ~~ ~ भक्‌

*afaxqgaits,—xafe ate) कथिदश्रबोत सः--डति aera. इतपाठन्त aaa: |

AIWTTANSA | eR ¥ [१

खिलोपच्ारः श्विखभश््ननायी ययः | तस्देयन्ताऽवधारणाथै वि~. वारं त्या खणएव- | 'संवस्रेषार्धखिसं खिलं स्याडइत्छरेख्िभिः | पञ्चवषेवषस्नम्तु खें स्यादटवौोसमम्‌"'-इति aa पुनः खिन्लोपचारं सामो ददाति, तदाऽप्याहइ कात्यायनः नग्रक्रितो दध्याचेत्‌ खिलायं यः water: | तदष्टभागदौनन्तु कषेकः फलमाप्नुयात्‌ adaat भोक्ता स्वात्‌ परतः खामिने तु तत्‌”-इति।

दूति सौमाविवादनिणेयः ATR: |

अथ दण्डपारुष्यम्‌ |

तव्छष्टपं नारदेनोक्रम्‌,-

"परगाजेवष्वभिद्रोो रस्तपादायुधादिभिः |

भस्मादिभिश्ोपघातेा दण्डपारष्यसुच्यतेः-- इति

परगाजेष स्धावरजङ्गमादेरनेकद्रव्यषु | शस्तपादायचादिभिरि

त्यादियशथाद्ावादिमिः दरोरोर्दिंषनम्‌ तया wate: भस्म रजःपड्कपुरौषादयेः उपघातः SATE मनोदुःखोत्पादनम्‌ arene TOTES | TE नेविध्यमाद TTA

renfa दृष्टं बेविध्यं रौगमध्योन्तमक्रमात्‌

अवमूरथनिःपङ्ूपातमचतद्ेनेः

neg पराश्ररमाधवः-।

रोनमध्योलमानान्तु द्न्याण्ामगतिक्रमात्‌ चोप्येव WINE कण्टकश्ोधनम्‌ः- इति निःशङ्गपातः निःशङ्कप्रडरण्म्‌ Wea area साह awa sweated: दण्डपारव्ये पञ्चप्रकाराविधय- सेनेवोक्राः “fafa: पञ्च विधस्छक्रः एतयोरुभयोरपि | पार्थे सति खरम्भादुत्पन्ने चुन्धयोदथोः मान्यते यः खमते दण्डभाग्योऽतिवन्तेते | परवंमाच्ार येद्यस्छ नियतं स्यात्स दोषभाक्‌ पश्चाद्‌ यस्रीऽप्यसत्कारौ पूर्वेतु विनयो गुरूः इयो रापन्नयोस्वच्यमनुवघ्नाति यो ऽभिकम्‌ तयोदंण्डमाभ्रोति yarar वदि वोत्तरः | पारुब्यदौषाटृतयोः युगपल्सप्रडत्तयोः विशेषेन्न लच्यत विनयः स्यात्‌ समस्तयोः 1 शवपाकषण्डपाषण्डव्यङ्गेषु बधिरेषु च+ रस्तिपत्रात्यदारेषु गुवाचार्य्यान्तिकेषु al . मर्य्यादाऽतिक्रमे सद्यो चातएवातुश्राखमम्‌ यमेव व्यतिरेकेर रेते खन्तं अनं मृष

ieee ee ee mee ees ~न = ere:

* ्पाकपश्चु चरडालवेग्यावधश्रखसिष,- दति यन्यान्तरतः YTS: |

1 दासेषु,--दति यन्यान्तर टतः UTS! |

{ ग्व चार्य्यान्तकेष च.-- द्रति are) गुव्वचार्यातिगेष च-इति ग्रन्थान्तरे |

छलिवत्तरमे,-- दति ग्म्थान्तरछतः षाठः |

व्यवडारकाणम्‌ | षे

ava विनयं gaia तदिनयभाक्‌ मृषः मादयेते Ararat घनमेषां मलात्मकम्‌ | अतस्तान्‌ घातयेद्राजा मायद्ण्डेन दण्डयेत्‌” इति ay पयात्‌ प्रन्स्यापराघाभवोटदस्यतिना दितः च्राहृष्टस्ठु समाक्रो शम्‌ ताडितः प्रतिताड्यम्‌ चत्वाऽपरायिनं* चेव नापराधी भषेशरः"“ इति योऽपि पञ्चात्‌ प्रटत्तस्य दण्डः कात्यायनेन र्वः, "“श्राभौषणेन दण्डेन WELT यस्त॒ मामवः | ua वा पौडितो ana दण्ड्यः परिकोतिंतः--इति ४. सोऽपि प्वैप्रटन्नदण्डादन्पदण्डायंः दण्डपारू्यषंख्याकारण- मा याश्चवष्क्यः,- “श्रसाकिकशते चिङयुक्रिभिखागमेन च। द्रष्टव्यो व्यवहारस्त कूटचिक्शूतोभयात्‌--दति यदा कञथिद्रहस्यनेनाष्ं ताडित इति राशे गिवेदथति। तदा ` fea: तङ्गाजगतश्रमादिभिः, कारणमयोजनपर्म्याशो चनरूपाभियु- किमिः, area जनप्रवादेन, शब्दा हिग्येन च, कूटचिक्करण- सश्मावनाभयात्‌ परीका ATA: | राजधासनंद्रव्यविशेषेण रष्ड- विशेषमाह सणएव,- “Qt पद्धरजःस्छशं TSENG: सरतः |

wen ऽऽवतायिनं,-- द्रति यन्धान्तर ठतः पाठः भख्मपङ्करणः स्येति are |

acd पराश्ररमाधवेः 1

aaa” पाष्डिदेशादि। स्पेने दिगुखसततः समेष्येव wats दगुणः dag ˆ रोनेव्यद्धदमोमोश्मद्‌ादि भिरदण्डनम्‌”-इति अमेध्यशब्देन शेश्रनखकणा दिदूषिकाश्ुक्रो च्छिष्ट दिकं गह्यते पुरौषादिखयशं कात्यायनः, “afequqgerare: पादादौ चतुर्गुणः षज्गृणः कायमध्ये तु aly See: खतः” दति आआदिग्रब्देन वसायक्रन्नानां wear ताडमायं weitena ताडने दण्डमाह सएव, “FETT तु YEE HT दादश्कोदमः। सएव fare: dtm: ताडनेषु खजातिषु"-इति याश्नवल्क्योऽपि,- “उद्रूरण्े wane दश्र्विंश्तिकः क्रमात्‌ | परस्यरन्त॒ सव॑षा शस्ते मध्यमखःरखम्‌"”--इति ea पाटे वा agaragud सति anand दशर्विंश्रतिपण- mt दमौ परस्परमवधाच्यै शस्ते उद्यते सति सर्वेषां वर्णानां मध्य- मसाहसोदण्ड इत्यथैः काष्टादिभिस्ताडने षएव,-- ““प्नोणितिन विभा दुःखं कुवम्‌ काष्ठादिभिन्ञेरः दाजिंशतं पणान्‌ दा्योदिगृणं दशेनेऽदजः"-दइति

* समे च,- इति wre | + दिनिष्टुयतः--इति ate | इदमेव प्राठः way |

. ~ eee ere ee REN EE TT TTA TTS HONS ETSI AN जक कक

MAVICHTS | ददः

लगादिमेरे दष्छमार मनुः ange: श्रतं दण्ड्यो लोहितस्य देकः | atewa शतं निष्कान्‌" प्रवास्यस्वस्थिभेद कः”-ई ति पादाद्याकर्षण्णदौ यान्चवणकयः, "“पादकेश्ादिषु कराकषंणे लू पणम्‌ ZW! पिष्डाकषैश्रदकावेष्टपादाध्यासे wa दमः करपाददन्तभङ्गे STA HATTA: | मष्योदण्डो ब्रणोद्धेदे स्टतकल्यते तथा चेष्टाभोजनवाक्रोधे मेवादिप्रतिभेदने | सौवादिव्रणभङ्गे दण्डोमध्यमसारखः . एकं yat बहनाश्च यथोक्रदिगृणणोद मः”--टति। अवमत्य केशरं weer योड्टित्थाकषैति, असौ दशपणं दण्ड्यः श्यात्‌ यः पुनरश्रुकेनावेश् MISA GEA पादेन अरथति, असौ ग्रतपण्णन्‌ दण्डयः करपाददन्तानां eT कर्थमासिकथोख Sci ग्टतकल्यहते मध्यमसाइसो Ew: | meine मेचप्रतिभेदने रीवा इस्तनरणमङ्गे मध्यम ayes: मिलिवकस्याङ्गभङ्गं gaat बहनां THATS थो दष्डडक्तः, तज aay दिगुणणोदण्डः मल्धेकं वेदितब्ध wey: § ` TATA STA, करौष्ठन्राणपाद्‌ादि जिहानाषाकरस्य |

© मा{खजेरे wa निष्कान्‌+-द्रति wel मासमेन्ता तु वचिव्कन्‌*-- कति TART TA: पाठः |

२८८८

Seq चौक्मोदण्डो भेदने मध्यमो wa: मनुव्याण्णं पश्नाश्चं दुःखाय wea aie | यया यथा भवेहुःखं दण्डं रय्या तथा तथा?-दइति म्रातिश्लोग्येन WUT दण्डा यान्ञवर्क्यः,- 'विप्रपोड़ाकर SYURFAATYCS त्‌ | sq प्रथमोदण्डः wan ठु तद्धेकः'--दति ब्राह्मणौ डाकरमन्राद्यणएश््च चजियादेरब्रः करचरण्णदिकं SUM | ब्राह्मणयषणसयु्तमवणापलचेषणयम्‌ | WATT मनुः, ‘aq केन चिदङ्गेन हिस्याच्च्रेयां समन्यजः छेत्तव्यं तन्तटेवास्य त्मनो रलुशासमम्‌'*- इति aq qurgua warfen प्रथमसाहमोनवेदितव्यः | शद्रः तच्ापि Scaaa Wale: | ACTH मतुः "पाणिमुद्यम्य दण्डं वा पाणिच्छेदनमरदेति-दति | उद्गुरणाथे शरस्तादिसंसपं ्रयमषाहदषादधैदण्डा वेदितव्यः ` भस््मादिस्पगेमे पुनः चखजिथवेशष्छयोः प्रातिखणोम्यापवादेषु दिगु- शोदमः। '-वफानामासुलोग्येन तस्मादधेङ्कदानितः- दति वाक्पार्थो न्यायेन दण्डः कश्यनौयः कात्ययनः, - '"'वाक्पार्ग्ये षयेवोक्रः मतिव्लोमाहणशो मतः तथैव CITES पात्थोदणष्डो ययाकमम्‌”--दति तथापि शुद्रविषये विश्वमा. मनुः, "अवनिटोवतोदपेत्‌ दावो्टौ STAGE:

व्यवहारकाच्छम्‌ |

अवमूचयतोमेदु' Fence ZF केषु गतो wet ऊेदयेदविचारथम्‌ | पादयोदाडिकायाश्च यौवाथां sway सद्ासनमभिमेपुरत्छष्टस्या पश्टजः | arent शताङ्ो निवास्य: स्फिचौ वाऽस्य निरशन्तयेत्‌?-इति। apezarat विगरेषमार काल्धायनः,- “दे डेद्ियविनाग्रे तु यदा दण्ड प्रक्पयेत्‌ तदा afent देवं ससुत्थामश्च पण्डितेः-दति तुष्टिकरं ब्रणलुष्टिकरम्‌ 1 समुत्थानं व्रणरोपणम्‌ | तज्जिनि- तकख व्ययो ब्रणगरूल्वानुसारेण पण्डितिेसेषधाथं व्यथाथे afe- तमानं ब्रणारोपणं देयम्‌ | "समुत्थानं व्ययं चासौ ददादात्रणरोपणम्‌-इति तिनेवोक्रल्वात्‌ | दस्परतिरपि,- “शङ्गा वपौडने चेव STA भेदने तथा | ` खसुत्थामब्धयं दाप्यः कलहापदतश्च यत्‌" स्ति याश्चवस्क्योऽपि.- “'कशषद्ापद्चतं देयं दण्ड्य दिग णस्या | दुःखसुत्पादयेद्यस्ठ ममुत्थामकं व्ययम्‌ दाण्योदणष्डञ्च यो यस्मिन्‌ के समुदादतः'?--दति। ग्राम्यपश्डपौडायां दण्डमाह विष्णुः | “द्याम्यपशएधाते काषोपर्षं Tey: | पष्श्लाभिने a थान्‌“ इनि मृष्छदानषषु तपश्च विषयम्‌ \ अरण्वाभावे तु SARA दात्‌ तचाच

37.

२९० पराश्चरमोा्वः |

qua “ad पुरुषपोडाकराः aged दाप्या WaT पौडाकराञ्च“--इति प्राणिघातभिमिन्तकोदण्डः कचिदशक्यप्रति- कारविषये नास्तोत्याह मनुः “faq नष्टे युगे wa तिक्‌ प्रतिसुखागते | Say यानस्य चक्रभङ्गे तथेव मेदने चैव यन्त्राणां योक्चरश्छयोस्लथेवच आक्रन्दे चाप्यपेरोति दण्डं मनुरग्रवोत्‌"-इति श्रक्यप्रतिकारोपेचकस्य दण्डमाह षएव,- “यचा पवतैते युग्यं वेगृष्ात्‌ प्राजकस्य ठ्‌ aa खामौ भवेदृण्डयो feerat दिशतं दमम्‌”-दइति mma: श्रकटादिनेता aang नाम Fae बेतनलाघवाथं खाम्यनुमतम्‌ aa ममर्थप्राजकदोषेण प्राणिडिसा, तज खाभिनोदण्डः, किन्तु प्राजकस्येत्याह सएव,-- “प्राजकखद्वबेदाप्नः प्राजको दणष्डमेति- दति | QA: समये दत्यथेः | पश्वभिट्रो हे TATE यान्षवश्वधः+-- “eQ ग्ोणितोत्पाते श्राखाऽङ्गेदने तया | दण्डः BIG तु दिपणप्रश्डतिः कमात्‌ लिङ्गस्य केदमे alt मध्यमो Gewese मरापश्यनामेतेषु aay दिगुणणोदमः?-दति | STATA fart दुःखोत्यादने शरोणितोत्पादने | ग्राखाशब्देन शरटङ्गा दिकं went) अङ्गानि करचरण्णदौोनि तेषां St वा यथाक्रमं दिपरमरखतिदंष्डः द्िपणएवतुष्यणवदट्पष्णा-

TAC MB | Ree

पण दष्यादिषूपः। तेषां शिक्गटेदने ग्हल्युकरण्णे वा मध्यमसादषो- दण्डः, मूखदानं महापशुनां गोगजवा जिम्ष्टतोमामेतेषु erag पूथौक्रादण्डार्‌ दिगृएदण्डो वेदितव्य इत्ययः कार्षापण- श्तदण्ड दत्यनुढतौ विष्णुरपि “पश्लां पुंस्ोपघातकारौ तथा गजाश्वोद्रगोधातेष्येऽकपएवायः। मांसविक्रथौो ग्राम्यपश्दलातो कार्षापणम्‌'”-इति कालत्यायनोऽपि,- “faut इ!दश्पणो बधे तु सगप्चिणाम्‌ | सपेमार्जारनश्ुलश्वद्धकरवधे भृणणम्‌”-इति | ममुरपि- ""गोक्घुमारोरेवपश्नचाणं BNI तया | वायन साहसं पूरे प्राप्नुया दुत्तमं बधे मनुग्यमारणे fad चोर वत्किख्िषं भवेत्‌ arg ARES गोगजोद्रदयादिषु axarat wig रिषतो दग्रतोदमः। THN HAT: wag म्टगपद्िषु गदभाजाविकानाश्च दण्डः स्यात्‌ पञ्चमाषकः। माषकस्च wage: श्वद्ूकर निपातने--दति | रान्न दण्डदानवत्छामिनः प्रतिष्पक मृद्धं वा दद्यारित्थाइ कात्याचनःः- ' “प्रमापणे प्राणश्तां दद्याम्सक्रतिषशूपकम्‌ | | Merged gel a दधादित्यत्रवौकनुः”-दति शआावरपाशिपोडाकारिणणां दण्डमाह मचः

RER TETWMCATSA |

Caqeaiat स्वंवासुपभोगो यथया यथा | तथा तथा दमः ara हिंसायामिति भारशईइति। फलमुव्यो पभोगतारतम्यालुरोधेनो त्त ममध्यमादयो दण्डाः कश्प-

Wer: | तथाच दण्ड्य इत्यनुदन्तौ विष्णुः “कणोपयोगद्रुम- च्छेदो उत्तमसाहसम्‌ पुष्यो पयोगद्रु मच्छेदौ मध्यमसाहसम्‌ | वल्लौगल््रलताच्छेदौ कार्षापणश्रतम्‌ दणच्छ्येकम्‌ | स्वं तत्‌- खामिनां agate —<fa फलयुष्योपभो गद्ुमच्छेद कादयः feaxuarfaat agate qa: प्रतिरोपितद्रुमफलादिमो गकाल- qa दाप्या इति we: wa fai@are arsyaea:,—

‘octfentfaat शाखास्कन्धमवे विदारणे |

उपजोव्यद्रुमाणाञ्च विंशरतेदिंगुष्णोदमः॥

सेत्यश्छश्ानसोमाख पुष्धस्थाने सुरालये |

जातद्रुमाणां दिगुणो दण्डो aase विश्रुते

गृल्मगुच्छचुपलताप्रतानोषधिवोरुधाम्‌

MASS: VAY AAA’ ThA

wifenfent वरटादौनां wmerect waweet

यथाक्रमं रविंशतिपग्णदण्डादारणभ्य प्रवेसमात्पूवेष्मादुलर उन्नरो- दण्डोद्िगुणः। विंश्रतिपणचल्वारिशत्पण्णशौ तिपणण इत्येवं Sa: श्रपरोदिग्राखिनामा्रादौनासुपजोव्यद्ुमाणणं . पूर्वोकेषु wag चैत्या दिस्ानेषुत्यश्लानां ठखाणां शाखादिच्छदने, अ्रशत्थपलाशा- aint शाखा दिष्डछेदनेऽपि पूरवीक्रादष्डाद्भिगएः दण्डः) TAT माख- त्यादयः गुच्छः BRATS: | चुधाः करवोरादसः अता-

VACA | REQ

दथाऽविसुक्तारयः eet: काष्डप्ररो दर हिताः | ste: we पाकान्ताः आशितः वोरभोगुडवोप्रश्तयः | एतेषु wey fata पूतरीक्षादण्डादर्घदण्डो afer) कण्डयादिषाते+ डे कष्टकादिपरङेपशे प्व दण्डमा याशन्नवख्क्ध,;-

Safad तथा मेदे षदे ङण्यावपातभे |

पणान्‌ दाप्यः पञ्चदश विंशतिं age तथा

दुःखोत्पादि ze दव्य fara प्राणद्दरन्तया |

घोड्ग्राद्यः पणं दाप्यो दितौयो मध्यसखाहषम्‌'”-इति |

सुद्गरादिमा कद्यस्याभिघाते, विदारणे, देषीकरणे, यथाक्रमं -

पञ्चपणो दशपणो विश्रतिपफ्च दण्डः अवपातने gaat दण्डाः समुचिताः, gga धनमपि देयम्‌ ay कण्टकादि प्रखेपणे षोडश्रपणो दण्डः | विषशषुजङ्गा दिग्रशेपणे मध्यमसाहसो-

दण्ड इत्ययः | इति दण्डपार्व्यम्‌।

अथ वाक्पारष्यम्‌ |

` त्य शचं नारदेनोक्रम्‌,- "देशजा तिद्खलादौ नामाक्रो गन्यङ्संयुतम्‌ | eam: प्रतिक्रूशाथे बाक्पारय्य तदुच्यते"--इति | awefier गौडा इति देशाक्रोग्रः। अरतिलोषुपा ब्रह्मणा इति a ere re ee * gaifirara,-—afa का |

Red ULIWCATTS |

जात्धाक्रो्ः। क्ररचिन्ता वेश्वामिजा इति कुशाक्रो्ः | आक्रोश SHUT, EAI, तदुभययुक्तं धदुद्धेगजननाथे वाक्यं, तद्वाक्‌- eaters: ae चैविष्यमाह सएव.- “निष्टराक्षोखतोत्रलात्तदपि जिविधं सतम्‌ | wad fret Tangle न्यङ्कसंयुतम्‌ UAT ay RI NN TBAT षिण" That काल्यायनोऽपि.- eadfaace: परस्याकिपति कचित्‌ | श्रमूलेवांऽय मूरेवां freq वाक्‌ खता बुधेः न्यग्भावकरणं वाचा करोधात्त्‌ कुरते यदा | SHSUBATA वाऽणन्नौला सा बुधैः War महापातकयोक्री रागदेषकरो या। जानिभंशकरौ वाऽय तौत्रा सा प्रथिता तु वाक्‌ः-इति॥ प्रथममध्यमोन्तममेदेन चेविध्यमार weafa:,— ““देश्रयामद्ुलादौनां शेपः पापेन योजनम्‌ | we विना तु प्रथमं वाकार्यं तदुच्यते भगिनोमादसम्नन्धसुपपात कशंखमेम्‌ wee मध्यमं प्रोक्तं वाकिकं शास्वबेदिभिः॥ अभच्छापेयकथयनं महापातकदू षणम्‌ | Tegra At ate मरमाभिघटहनम्‌"- दति

पीर 1

- कियो कि. ७, अअ

* धशदोये,--इति wre |

VTECH | Ren,

जिष्ट्राक्रो्े दण्डमाह GHA, “खत्यासत्थान्ययास्तोजे्दूगाङ्गेन्ियरो गिष्णम्‌ | खेपङ्करोति चेदण्डयः पणामद्धंबयोद “दति | सत्येनासत्येनान्यथास्तोजे) न्युनाङ्गादौनां तजेनोतजेनं थः करोति, श्रषावर्ाधिकद्ाद शपणं दण्डनौयः एतत्छमवणेगु विष- aq तथाच इषस्यतिः- "“खमजातिगुण्णनान्तु वाक्पारुष्ये WITH | विनथोऽभिहितः शास्ते पणानद्धंचयोदश- दति | यत्त॒ मनुवचनम्‌» Care वाऽप्ययवा ean वाऽपि तथाविधम्‌ तथ्येनापि yay दाप्यो दण्डः काषापणावरम्‌”-दति तदपि दुरत्तविषयम्‌ | माचादयाकेपकं प्रत्याह मनुः, “मातरं पितरं जायां arat Bt गरम्‌ | श्र्ारयज्कतं दाप्यः पन्धामं वाऽददहुरोःदइति | एतच्वापराधिषु माचादिषु जाधायां वा जिरपराधायां बेदि- तव्यम्‌ SaTgrad दण्डमाह wraa:,— “fara स्वखादिकं दद्यात्‌ पश्चाग्रत्यणिक दमम्‌”-द्ति। प्रातिशोम्याललोम्याभ्यामाक्रोगे दण्डमाह मनुः, “si ब्राह्मणएमाक्रुश्य चजियो दण्डमरति |

[प णि क्कच कक = Oe mamee te SRST NAS AE SRONGSITERY GASPED —W- OOP SAPIPL SS OB Sr

(९) ean यथा twa नेकगून्यस्छमसौति। असत्येन यथा; Awaaz प्रति नेभशशून्यश्लमसौति | GUE a यथया, अन्धं प्रति wey- श्रनतिश्रयेनासौति |

२९९ ULTRA: |

वैभ्योऽष्यद्धंशतं देयः WAG बधमरेति पञ्चाशत्‌ ब्रा्ण्णो रण्डः शंजियस्याभिशंखने, वश्ये स्याद द्धंपञ्चाशन्‌ UA डादश्कोदमः॥ श्वे दिगणं aw शास्तविद्विरुदाइतम्‌ | वैश्यमाकलारयञ्द्रो दाप्यः स्याप्मयमं दमम्‌ ` चनियं मध्यम्चैव विप्रसुत्तमसा खम्‌” --दति | माङादिङेदननिष्टराभिभाष्णठे यान्चवस्कयः,-- "बा ङ्रौवानेचसकििविनागरे वाचिके Za: | TAR: पादनासाकणकरादिषु sug वद शेवं दण्डनोयः पणम्‌ दश ¦ तया शक्षः प्रतिखुवं दायः Sara तस्य तु-इति | बाह्णादौनां विना तव are दिगद्नौत्येवं वाचा प्रतिपादिते प्रयेकं शतपरिभितो दण्डः पादनासादिषु ठू वाचिके तदधिका ` पश्चाग्रत्पणाधिको दण्डः। wea वदन्‌ दग्र पष्णम्‌ दण्डनोयः। wm: पुमः Soni एवं वदम्‌ WATT दण्डं दला AT Gara प्रतिभुवं दद्यादित्यर्थः | अक्ञौशभाषणे दण्डमाह सएव, Cofanmtsta भगिनौ मातरं वा तबेति च। श्रतं प्रदापयेद्राजा पञ्चविंशतिकं दमम्‌-इति। TART दण्डमाह षएव,- “"पतमौये हते चेपे दण्डो AMAIA: | उपपातकयक्रे दाप्यः प्रथमसाहसम्‌” दति |

* ewie wafer: इत दति wre |

ग्वार काण्डम्‌ | Ree

aacta.— ^ पापोपपापवक्रारो मदहापातकग्रसकाः | आद्यमध्यो न्तमान्दण्डान्‌ eA यथाक्रमम्‌(**-दति | चे वियाद्यभिखेपे यान्नवष्क्यः,- “जेविद्यनपदेवानां दण्ड उन्तमसादसः | मध्यमो जातिप्ूगानां प्रयमो्ामदेश्योः'दति) जातयः ब्राह्मणादयः पूगाः art | शूद्रमधिरुत्याइतुमे- नुनारदौ,- | “gaatfafamtd तु वाचा दारुणया च्िपन्‌ faster: प्राभ्रुयान्छेदं जघन्यप्रभवो दि सः मध्यमयो जातिभ्रगानां प्रथमो यामरेश्योः। मामजातियशश्चेषामभिद्रोदेण कुवतः निखेयोऽयोमयः शदुज्येलनाग्धे दशाङ्गुलः" इति | शशस्य तिर पि- ‘uma धरण विप्राणामस्य Baa: | त्तमा सेश्चयेन्नेलं वत्ते MWA पाथिंवः--दति। कचित्‌ वाक्पारुग्यदषड़ापवाद्‌ माड सएव. “खच्छुदरस्यायमुदिष्टो विनयोऽनपराधिसः | , गुणदोनस्य पारुष्ये ब्राह्यष्णे मापरान्रुयात्‌”--दइति दूति वाक्पारुष्यम्‌ |

„~~ ~ a जन नि = गा

ककन ~> me

(९) पापञुपपाष्रास्‌ aaa विर्वा्तितम्‌ | पापवक्ता Igawa cay e-

WY स्पूषपापयक्षा मध्यमसादइसं, TUTTI तमसादसमिखयेः। $8

Res WEIWCATUS: |

अय स्तेयम्‌ AUSUATE मनुः, a “स्यात्छा हसं FATIH THAT | निरन्वयं भवेत्‌ स्तेयं शलाऽपन्ययते दि” इति ` BAe: | दव्धरचकराजाध्यच्वादिसमचं बलावष्टम्भेन यत्‌ पर- द्नयापषाराटिकं क्रियते, तत्छाश्सं; स्तेयं पुनरसमखं वञ्चयता यत्पपर द्रव्यग्रहणं, तदिति यत्त॒ राजाध्यचादिकमादत्य मयेद म- पहतमिति भयानि्भुते, तदपि सेयं भवति wavs नारदः “उपायेर्विं विधैरेषां कलयित्वाऽपकषेणम्‌ | सुक्रमन्तप्रमन्तेभ्यो द्रवयाणामपश्ारतः॥ खद्वाण्डाखनखद्राऽस्थितन्तु चमेदण्णदि यत्‌ WA श्तान्नश्च BX द्रव्यसुदाइतम्‌ वासः कौ गरेयवजेन्तु गोवजं पशवस्तथा दिरण्यवजं लो दश्च मद्यत्रौ हियवादिकम्‌ हिर ण्यर लकौ गेयस्तोपुंसगजव?जिनः देवव्राद्यणराश्चां विक्नेयं द्रव्यसुन्तमम्‌?--दइति। नसकरन्ञानो पायमाह यान्ञवख्क्यः,-- “Qrenaya चोरो शोम्रेणय पदेन वा). घ्ूवेकर्मापराधौ तथा चाद्रद्धवासकः अन्येऽपि auger wer जातिमामादि गिवे | धृतस्त्रोपानसक्राख शएष्कमिन्लञ्ु खराः NUM HART गृढ्चारिएः |

MATCH UA | २९९

facrat wary विनष्टद्रव्यविक्रयाः'"” दति WER राजपुरुषेलीनेणा पद्तभाजनादिना Wawa, नष्ट- | द्र्यदेशादारभ्य चोरपादानुसारेण वा चौरायदौतव्याः | पूर्वकम परासौ WT WENA: | अण्द्धवारुकः श्रप्रन्नातस्धानवासौ | जातिनिद्कवो are शद्ध इति। wafasat are fre इति। श्रादियदणा्‌ सदे ग्या मकुन्ता युपलच्छते | नष्टद्रयविक्रयाः freq भाजनजोणैवस््ाद्यनिरज्ातसखामिकविक्रयकारिणः एवंदिष्रलिङ्घेः पुरुषान्‌ wear चोराभवन्ति वा ईति aaa Trea, मतु तावता ससेनं निखिनुयात्‌ तदाद नारदः+ ““चन्यद्स्तात्परिश्रष्टमकामादुःत्थितं भुवि Rue परिचितं wa यन्नात्परौचयेत्‌ सत्याः सत्यसङ्क शाः सत्याश्चासत्यसल्िभाः | gun विविधाभावाः aaa परौ चणम्‌”-इति तस्करोऽपि दिषिधधः। तदाद खदस्यतिः,- नप्रकाग्राञ्चाप्रकाश्ाख तथ्करादिविधाः शताः | प्रक्ञासामथमायामिः प्रभिनलाम्ते ower जेगमा व्रेश्चकितवाः सभ्योत्को चकवश्चकाः | देवोत्पातविद्योभद्राः भिन्नाः प्रतिशूपकाः अक्रियाकारिणयैव मध्यस्थाः कूटमा चिणः | प्रकाश्तस्छराद्येते तथा कुदकजो विमः”दति | प्रतिष्छपकाः प्रतिशूपकारा Cae: तथाच भमारदः+- “श्रकाश्रवश्चकाः तज कूटमानतुलाऽऽभजिनलाः |

Ree पररा्ररमाधवः।

उत्को चकाः सो पथिकाः कितवाः पण्ययोषितः a भ्रतिरूपकराशचेव मङ्गलादे ्रटन्तयः | दृत्थेवमाद्‌ योश्चेयाः प्रकाशास्सस्करा भुवि” इति) श्रप्रका शतस्कराणणं Weary दस्य तिः.- ` “afatee: पाञ्चमुखो* दिचत्व्यदहारिणः। उत्‌ चेपकाः WB ज्ञेयाः प्रष्छन्तस्कराः- दति | व्यासोऽपि-- "“साघनाङ्गाश्विताराजौ विचरभ्यविभाविताः | अविन्ञातमिवामाश्च ज्ञेयाः प्रच्छन्नतस्कराः equa: खन्धिभेन्ता पान्यजद्भन्थिकाद यः | स्त्नोपुंसयोः waa चोरा नवविधाः सताः" दति | squat घनिनार्मनवधानमवधायै तद्धनमुत्कत्य area | सन्पिमेत्ता weet: wait fear तचत्यभित्तिभेन्ता यः कान्ता- रादौ पथिकानौं प्रस्यापहारकः परीधानादिग्रयितं धनं at agit मोचयति, उद्नन्धिकः। प्रकाश्तस्कराणां नैगमानां दण्डमाद इरस्यतिः- | “anifegetg fawtat राजपूरेः | प्रदाप्यापद्तं दण्ड्यादमेः wreanetfea: wey दोषं व्यामिश्चं पुमः dey विक्रयो | ay afgae दाप्यो वणिग्दण्डयख तत्छमम्‌

शाका SL: A nC TO ay

NAS ३०७ 9 अनम -

* प्रन्तसुषो,+- द्रति म्रन्थान्तरे uta: |

ष्यवषारकाग्डम्‌ | ROR

अश्नातोषधिमम्लस्त यख arecanfaz | रो गिणोऽथं समादन्ते द्‌ण्ड्यञ्ोरवद्विषक्‌ कूटाचदे विनः चुद्रा राजभार्याहराच ये। गणका agaraa दण्ड्यास्ते कितवः ear: श्रन्यायवाददिनः सभ्यास्तयेवोत्को चज विनः | faquagaraa निर्वास्याः aaua ते ञ्यो तिरज्ञानं तथोत्पातमविदिवा ठु यो णाम्‌ | भावयन्यर्यलोमेन विनेयास्ते प्रयन्नतः दण्डाजिना दिभिय॒क्तमात्मानं asia fea a | fear: छद्मना रुणं TaN राजपूरुषैः wae तु सक्त्य नयन्ति बह्मून्यताम्‌ स्तोबालकान्‌ वञ्चयन्ति दण्ड्यास्तेऽर्थानुमारतः हेमरल्रप्रबालाद्यान्‌ aa कुवते तु ये। केतुम प्रदाष्यास्ते cist afgad दमम्‌ मध्यस्था वश्च यत्येकः स्तेदम्नोभादिना यदा | साचचिणद्चान्यथा न्युः eared दिगुणं दमम्‌”--इनि। श्रप्रकागश्तस्कराणणं सन्धिच्छिदारीनां दण्डमाह मएव,- “सन्धिष्छेदकनो जाला शसमायादयेन्‌ प्रभुः | तथा पान्थुषो क्ते गलम्बध्वोऽवलम्बयेत्‌ मनुग्यदारिणणे राका quar कटाचिना | गोदतूर्नासिकां छिन्यात्‌ बध्वा वाऽम्भसि मच्जयेत्‌ उलृखेपकस्त सन्दंगर्भ॑त्व्यो राजपूरुषैः |

०२ पराशर माधवः

धान्यदर्ता Taw दाप्यः afew दमम्‌" इति | गरन्धिभेदकस्य दण्डमाह HA:,—

‘apa गन्थिभेदस्य केदयेत्‌ प्रथमे यदे

ANA शस्तचरणणौ ana बधमरेति”- रति | अङ्कुलो तजंन्यङ्ग्टौ श्रतएव नारदः -

“qua ग्रन्यिभेदानामङ्कुल्यङ्गुष्टयो नधः -

fama चेव wed तोये बधमरहेति” दति | वन्दिग्रदादौनां ware याश्चवसक्यः,-- | “वन्दियदान्‌ तथा arfagacrut हारिणः,

प्रसद्य Maar श्एत्लानाःरोपयेश्नरान्‌""--द ति श्रयमङ्गलिेदनादिप्राणन्तिको दण्ड उत्तमसादसप्रा्तियोग्ध-

दरव्यविषयः |

“वधः; सष्वेसखदरणं पुराज्निर्वासनाङइने |

ACHAT TM: दण्ड उन्तमसादसे"-दटति ATAU | चुद्रमध्यमो्तमद्रगयेषु ्रथममध्यमोत्तमसाशस-

खूपदण्डनियमो नारदेन दितः

“साहसेषु यएवास्ते जिघ्र दण्डोमनोषिभिः

एव दण्डः waste say जिष्वरुक्रमात्‌"-दति। जत्थादिभेदेन सारतम्यमाह मसुः+-

“अष्टगुणं तु WE स्तेये भवति किल्विषम्‌

asta तु fae दाचित्‌ उजियस्य

ब्राह्यणस्य चतुःषष्टिः परश्चापि शतं भवेत्‌ |

व्यवडार काण्डम्‌ |

farer वा चतुःषषटिसतदामगु णवेदि्मिः धान्यं दशभ्यः Barat ₹इरतोऽभ्यधिक वधः गरेषेऽप्येकादश्गणं दाप्यस्तस्य तद्धनम्‌

` ऋ्मुवणरजतादरौनासुत्षमानाश्च वाससाम्‌ | carat चेव सर्वेषां शताद्प्यधिकं बधः पञ्चा शरतस््भ्यधिके ₹स्तश्चेद्‌ नमिग्यते | ओषेष्वेकादग्रगुणं GUase प्रकल्पयेत्‌ पुरुषाणं कुलौनानां नारौणाञ्च fave: | रन्नानाञ्चेव मुख्यानां दरे बघधमरति"-दति

afqqrert योदण्ड उक्तः, शुद्रकटठेकेऽष्टगुफः, वेश्यकटके दोड्ग्रगणः, चजियकलठेके aifangm, ब्राद्यणएकतके चतु षठिगणटः शतमणो वा श्रष्टाविंश्रत्यत्तरग्रतगण्णे ati Way सखच्पमृद्छवु | मृष्यादे काद श्गणं दण्डं कल्पयत्‌ चुद्रदरव्यार्ना AANA न्यनमृष्या्ना

HAT AAA दण्डः | तथाच नारद. Cereareurarat श्डन्मयानां तथेवच वेणवेणवभाण्डानां तथा सराय्वस्थिष्वमेण्णम्‌ श्राकानामाद्रेमृलानां हरणे फलमूखलयोः | गोरसेच विकाराणां तथा SAMA: qararat शतान्ञानां मष्यानामामिषस्य सर्देषामेव मूलानां मृच्यात्पञ्चगण्णे दमः-दति

यत्पुननेरुनोक्षम्‌,- Squaratafaarat गोमयस्य Wa

ढे og QIIATATYT: |

दध्रः sce तक्र पानोयस्य TS | वेणवेणएवभाण्डानां लवणामां तथैवच | ग्टन्मयानाश्च हरणे ग्टटोभस्मनएवस अजानां ufaurga awe इतस्य मांसस्य aay यच्चान्यत्‌ aM अन्येषां चेवमादौनां मद्यानामोदनस्य | पक्षान्नानाश्च सर्वेषां तन्ूल्याद्विगुणो दमः दइति | तदल्यप्रयोजनविषयम्‌ | खल्यप्रयोजनद्रयापदारादौमां दण्ड- इत्याह मनुः. “दिजोऽध्वगः etwafa: दाविच दे मूलके श्राददानः परखेचान्न दियं दातुमरडि चणएकन्रो दिगोधूमयवामां सुद्गमाषयोः | अनिषिद्धेयैदोतव्या सुष्टिरेका पयि fea: तथेव सक्तमे भक्ते भक्तानि षडनश्नता | श्रश्यस्तन विधानेन wae होनक्मणणा?- दति | महापराघेऽपि बाद्मएस्य बधदण्ड इत्याह यान्नवल्क्यः,-- “aaa ब्राह्मणं wer स्वराद्वाद्धिप्रवासयेत्‌ | महापराधिममपि ब्राह्मणं नेव घातयेत्‌ इति | रपि तु ward fee wet खरे ग्ाज्लिर्वामयेत्‌ तथाच मनुः, “TRA भगः कायः सुरापाने सुराध्वजः | स्तेये श्वपदं कायं ब्रहम्रस्याशिराः पुमाम्‌" दति . Weenie प्रायञिन्तमङ्वेतां दण्डोग्तरकाखं, तु प्राय-

स्यार कागडम्‌। ary

खिन्तं विकिषेताम्‌ तथाच मनुः,

“प्राथञ्धिन्तमष्ठर्बाणः स्वं aul ययोदितम्‌ !

अया UMN ललाटे तु दापाशथोत्तमक्षादशम्‌"-टइति। भक्रावकाश्रादिदानेन चोरोपकारिणं wary याश्चवस्क्यःः-

“भक्रावकाश्ाम्नयुदकशस्तोपकरणव्ययान्‌ |

Niza ददतो wd ज्ञानतोद मुत्तमम्‌" द्रति | कात्यायनोऽपि,

“लो राणाम्भक्तदा ये स्यम्तयाप्युद कद्‌ायकाः |

मन्ता तन्नेव भाण्डानां प्रतिग्रदएणएवष्व |

समदण्डाः Wal Ga ये प्रच्छादयन्ति ताम्‌ दरति चचोरोपेखिणं प्रत्याह नारदः+

“naTg ये उपेचन्ते तेऽपि तदहोषभागिमः 1

उत्को शरतां जनानान्तु द्भियमाणे धने तथा

खुत्वा ये नाभिधावन्ति तेऽपि तरोषभागिनः'-दति। ACA द्रव्यपराघ्युपायमाद यान्नवस्क्धः,

"धा तितेऽपदते दोषो यामभतरनिगेते |

विकोतभर्तैस्ठ पयि चोरोद्धतरवोतके

watfa दथाद्वामस्ठ पदं वा यच गच्छति |

पश्चयामो बुडहिःकोशात्‌ श्र्ाम्ययवा पुनः" इति अयमथः | यदा ग्राममप्येऽपि बधो RATT वा जायते, तदा

ग्रामपतेरेव चोरोपेशादोषस्तत्परिष्ाराथं प्रामपतिरेव चोर

weet Ue समर्पयेत्‌ तदशक्रौ धनिने “इतं दद्यात्‌ यदि 39

१०९ ` पराशरमाधवः |

खग्रामाश्चोरपदं निर्गतं gat दशने ठु तत्पदं यज प्रविश्यति, तदिषयाचिपतिरेव चोर धनं चार्पयेत्‌ तयाच नारदः,

“गोचरे यस्य gaa तेन चोरः प्रयन्नतः |

ग्राह्यो दाग्योऽयवा द्रव्यं पदं यदि निगंतम्‌

fata मुनरेतव्ान्न चेदन्यत्र चाति तत्‌

सामन्तास्मागपार्लांञ्च दिक्पाला चैव दापयेत्‌”-दति

विवौते त्वपहारे विकौतस्ामिनएव दोषः ger ल्वध्वन्येव

तत्‌ इतं भवति श्रविवौतके वा विवौतादन्यच्र 89, तदा चोरो- इ्तेर्मागेपालस्य दिक्पालस्य चापराधः। यदा पुनर्यामादरिः- खो मान्तपय्यन्ते 8s दौषोजायते, तदा तद्वामवासिनएव दयुर्यदि Meat वददिश्ोरपदः निर्गतम्‌ निर्गते पुनर्यन तत्मविश्रति, सएव प्रामञ्चोरापष्णदिकं gui यदा व्वनेकयाममे कोशमाचा- afenen दोषादिकं जायते deg जनसंमर्दा्भप्म, act पश्चयामो दश्यामौ वा cea) विकन्पस्त॒ प्रत्यासश्याद्यपेचया व्यवसख्ितः। वदा दापयितुमश्क्रोराजा, तद्‌ खयं दद्यात्‌ | तथाच गौतमः “चोरइतमवजित्य quent गमयेत्‌ सखकोशादा द्त्‌"दटति eae निणेयोपायमाह ठद्धमनुःः-

“afe तस्मिन्‌ दाप्यमाने atte तु संग्रयः।

सुषितः wae दाप्यो बन्धमिर्वाऽपि साधयेत्‌*-द्रति |

चोरबधमप्रकार विगेषमाड मारदः+ः-

* दाप्रयेत्‌,--दइति Byres पाठः |

व्यवहारकाण्डम्‌ | gee

"वदयस्तज चोरान्‌ ग्टको यान्ताज्विताद्यामिवध्य च॑ 1 wane सर्वच दन्यािजबधेन तु"--दति। दूति स्तेयप्रकरणम्‌ |

अथ सादसम्‌ |

qed नारदेनोक्रम्‌,- Corea क्रियते कम यत्किञ्िद्रलद पतेः | स्छादसमिति प्रोक्त षरोवलमिदोच्यते"- इति wa ered चौयैवाण्दण्डपारव्यस्तोसंग्ररफेभ्यो व्यतिरिच्यते, ` तेषां तदवान्सर विशेषत्वात्‌ तथाच ररहस्पतिः,- "मसुव्यमारणश्चौ ये परदाराभिमश्रनम्‌ पारव्यसुभयद्चैव सारम तु चतुविधम्‌”- दति तत्कथं प्रयगस्य व्यवदहारपद ता | सत्यम्‌! तयापि बशदर्पावष्ट- खपासितसतेभ्यो भिद्यते दति द्‌ण्डातिरेकाथं एयगभिधानम्‌ | मनुख्यमारणदूपस्य सारस्य तेभ्योऽतिरेकात्तदथं वा एयगभिधानम्‌ | ae चेविष्यमार नारदः “तस्थुनस्लिविधं स्तेयं प्रथमं मध्यमं तया sunaf शास्लेषु तस्योक्तं WaT एयक werent SATIS भङ्गाखेपावमदचेः प्रथमं सासं सतम्‌ गासोपश्चसपानानां ग्दद्दोपकरणशस्ध

Rok Weracaryd: f

एतेनैव प्रकारेण मध्यमं साहसं Bae

व्यापारो farmed: परदाराभिमशेनम्‌

प्राणपरोधि यद्धान्यदुक्रसुत्तमसादसम्‌?- दति ! चिविधऽपि wee दण्डमाह सएव,

‘rg ang: fearte: प्रयमस्य श्रतावरः |

AIAG तु शास्तज्ञेदृ्टः TYWATAT:

TAN साहसे दण्डः सरस्त्रावर Tard |

वधः सरवेखश्रणं पुरािर्वासमाङ्ने

तदङ्गेद TAM दण्ड उन्तमसाहसे"--दति | परद्रव्यापररणखपे ACY दण्डमाच याश्चवस्क्यःः-

“तक्छल्याद्िगुणं दण्डं निक्रवे तु चहुगणम्‌ |

यः सारसं कारयति दाप्यो दिगण दमम्‌

यञेवमुक्ताऽरं दाता कारयेत्‌ षचतुगुणम्‌"-दति साहस विषेषु दण्डाश्च याश्चवस्क्यः,--

“eat शा तिक्रमहत्‌ भ्राठभायांऽपहारकः |

अन्दिष्टस्याप्रदाता ससुद्धग्रदभेदश्त्‌

सामन्तासिकादौनां- AUF हार कः*

यञ्चाग्त्पणएकोदण्ड एषामिति विनिश्चयः

स्लष्ठन्दविधवागामौ निहृष्टेनाजिधायकः

अकारणे विक्रोः चण्डालख्ोन्तमान्‌ स्पृशन्‌ ¢

>

were मयय

पा मामक =

= प्मृप्रकारस्य कर्कः; दति याच्चबष्वधसदितायां पाठः।

व्यवहारकाण्डम्‌ | Ree

uz: प्रत्रजितानाश्च देवे faa dina: | अरयुक्रं TT कुवेन्नयोग्योयोग्यकर्मंशत्‌ ठषचुद्रपरनाश्च Gera प्रतिघातकृत्‌ | साधारणस्सापलापो टासौगभविनाश्रशत्‌ पिदपुक्लसखखभ्ाददम्पत्याचार्यच्छलिजाम्‌ | एषामपतितान्योन्यत्थागौ श्रतदण्डभाक्‌ शस्त्रावपाते गभेस्य पातने चोत्तमो दमः। अन्तमो वाऽघमो वाऽपि पुरुषस्ोप्रमा पणे विप्रदुष्टां feuds पुरुषप्तौ मगभिंण्णम्‌ | तुभेद करौश्चाप्य frat war प्रवेशयेत्‌ विषाभ्भिदन्पतिग्‌रुनिजापत्यभमापण्णोम्‌ | विकणेकरमासोष्ठोः war गोभिः प्रमापयेत्‌ च्ेचवेश्यवनयामनिवेशन विदा दकाः" | राजपल्यभिगामोौ 4 दग्धव्यास्तु कटाभिना?श्ति। अविन्नातकटठेसारसिके सादसिक्रल्ानोपायमादई शस्पतिः- “sa: संदुश्ते यच waaay दूश्यते पूरववेरानुमानेन Wa मरोभुजा प्रतिबेष्यानुबेग्यौ तस्य भिच्ारिबान्धवाः | प्रष्टव्या tegen: सामादि भिर्पक्रमेः विश्चेयोऽसाधुखंबगांचिङदाढेन मानवः |

Sak comes) his it a Se ea et

[0 ee eee ee a

e विवोवखणदादकाः+- दति या्वववक्धसं दिता्थां ata: |

Ree पराशर माधव)

एषोदिता घातकानां तसकराणश्च भाव्नाः-दति | याश्चवर्क्योऽपि,- “श्रविन्ञात्तस्यापि कल सुतबान्धवाः | year योषितश्चास्य परपुसि रताः way स्स द्रव्यषटन्तिकामो वा केन वाऽयं गतः सद सत्यु समासन्नं प्रच्छेद्‌ाऽपि जनं एनेः?--टति | छक्रन्ञानोपायासम्मवे तु कात्धयायनःः- “fat fama यत्काथं area: सम्प्रवर्तते | aya: fants: enaaarad विधिः””-इति | साहसिकवधे fatiware व्यासः,-- “Tat तु घातकं सम्यक्‌ PAWS सबान्धवम्‌ | हन्या िचवबधोपायेरदेजमकरेनेपः- दति ङरस्पतिरपिः- | “TRINA ये तु तयाचोर्पांश्ड घातकाः | शाला aan इत्वा हन्तव्या विविधेवेधेः"- ईति | एतत्‌ब्रहयत्रनियादिविषयम्‌ | तदाह बौधायनः “चचिया- दौनां ब्राद्यणएबधे बधः सवैर शश्च तेषामेव तुल्यापर्ष्टबघे यथा TATE दण्डं पभ्रकण्ययेत्‌"- इति बहमाभेकधाताथं प्रृत्तानां दोषाचुरूपदण्डाभिधानाचेमाह कात्यायनः, - “URGE WY: संरब्धाः TEE AT: | ममेधातो तु यस्तेषां घातक इति रतः इति | Ut मर्मधातकः सएव बधानुरूपदणष्डभाग्मवतोत्यथैः |

PICA | RLY

तथा, “aay: Wadia भक्रदाता विकर्मणाम्‌ | agiuanaga तदना शप्रवत्तंकः उपेकाकारकश्चेव देषवक्ताऽनुमोदकः | अनिषेद्धा चमो यः स्यात्‌ सवं तत्कायकारिणः॥ यथाशक्षमनुरूपन्त्‌ दण्ड तेषां प्रक्पयेत्‌” - इतिं अनुरूपं दोषानुरूपम्‌) ममेदन्त्दौषभा गिलं दयो देशेयति सएव, - “श्रारम्मश्त्द्दायशथ दोषभाजौ तदङ्धेतः“-दति। एवं मार्गातुदेशकानां कालान्तरेऽपि दोषलाघवमृद्यम्‌ | साच- ससद शापराधेऽपि दण्डमाह याज्ञवरक्धः*- “वसानस्त्ोन्‌ पणान्‌ दण्ड्यो नेजकस्त॒ परांग्ुकम्‌ | विक्रयावक्रयाधानयावितेषु पणान्‌ द्‌श'दति एतावत्कराल्लभ्ुपभो गाथं aa दास्यामि लं मद्यमेतावद्धमं SHIA समयं war war Anau नियमा तिक्रमे दण्डप्राघ्यथेम्‌ | नियममाह मनुः, “rea फलके wad निज्धादामां सि मेजकः | नच वासांसि वासोभि्निंररेकन्न वासयेत्‌'"--दति प्रमादान्नाशने भारदः,- "“खाध्याष्टभागोदौयेत सद्धौ तस्य वाखसः | दितौयां स्लितौयां गखत्थो ्रोऽङ्खएवच अद्धंखयाश्ुपरमः पादां प्राप्यः कमात्‌ | यावत्तु Seas तात््याज्नियतच्यः'"- दति i

३१२ पराशरमाधवः।

श्रष्टपणक्रोतस्य तेन सद्धोतस्य वस्तस्य नाश्रमे एकपरेन न्यमं

ye देवम्‌ दिघौतस्य queda, चिधौतस्य feos, ead तस्य पणचतुष्टयम्‌ | ततः पर्‌ मरति निर्जनमवश्िष्ठं मृत्यं पादपा- दापचयेन. यावष्नौ णं देयम्‌ The नाशने लिच्छातो मूल्यदान- aaa: | पितापुत्रविरोपे साच्छयादौनां दण्डमाह सएव,--

पितषएुल्विरोधे तु afaat चिपण्णे द्मः

wate तयोचेः स्ान्तस्यायष्टगणो दमः" दूति

frarqaat: कखे यः माच्छमङ्गोकरोति पुनः Hee वार-

चात, पणचव दण्ड्यः | यञ्च तपो: aaa विवादे पणदटाने प्रति- waa कंद वा agafa,.a तु चिपणणदष्टगणं चतुविगश्रतिपणं sway cay: अन्येष्वपि तत्सद्‌ शापराधेषु दण्डमाह मएव,--

ˆ तुलाश्नासनमानानां कूरशृश्ना णकस्य |

vig wawal यः सद्‌ा्योद्‌मसुत्तमम्‌

WHF कूटकं qa HF यथ्ाष्यकरुटकम्‌ |

नाणकपरौकतौ तु दाप्य उत्तमसाहसम्‌

भिषडमिश्या चरन्‌ दाप्यस्िय्येच प्रथमं दमम्‌ |

मानुषे मध्यमं राजमातुषेषुत्तमं दमम्‌

श्वभ्य यञ्च वध्राति बध्यं यश्च प्रसुञ्चति।

श्रप्राप्तव्यवहारश्च दाप्योदममुन्तमम्‌

मानेन तुलया वाऽपि योऽ ्रमष्टमकं चरेत्‌

, दण्डं दाप्योदिश्रतं द्धौ शानौ कर्तम्‌ भेषजेहलवणगन्धधान्यगङ़ादिषु |

BTW काण्डम्‌ | ३१६

wee प्रकिपन्‌ रोगं पणान्‌ दण्डयस्ठ षोड़श eR णिदकायःकाष्टवल्कल्वामसाम्‌ |

श्रजातौ जातिकरणे विक्रयाष्टगुणो दमः ` समुद्र परिवन्तश्च सारभाण्डञ्च शजिमम्‌ | शआ्रधानं विक्रयश्चापि नयतो दण्डकल्पना चमे पणे तु पञ्चाशत्‌ पणे तु शतमुच्यते | दिप fawat दण्डो मूल्यदद्धौ तु द्धिमान्‌॥ wy a arad ward कार्शिख्पिनाम्‌ अर्धस्य pra इद्धि वा जानतां दम उन्तमः॥ age वणिजां प्यममर्चंणोपरन्धताम्‌ | विक्रीणताश्च विहितो दण्ड उक्तमसाषषः राजनि सश्याप्यते* योऽ: nae तेन विक्रयः | कयो वा निख्वस्तस्मादर्‌ वणिजां are सतः स्वदेशपण्ये तु शतं वणिग्‌ awa पञ्चकम्‌ | दशकं परदेशे तु यः सद्यः क्रयविक्रयौ पण्यस्यो परि aera वयय पश्यसमुद्धवम्‌ | अघौऽनुग्रदरत्काय्यः केतु विक्रेतुरेवच-दति

तुला सोशनदण्डः। प्रस्थादि परिमाणम्‌ नाणक सुद्धा चिकित xafrenrfe 1 एतेषां कूरशदे्मरसिद्धपरिमाष्णदन्यथा ; नयूनलमाधिक्यं वा, द्रमपादेरव्यावहारिकसुद्धितलं वा, तान्नादिगभलं वा, करोति; थश्च भपुसोसादिरूपेसेव्यैवहरति, ताबुभौ प्रत्येक

१11 ATED

* ऋाष्यते,-- दकि are | 40

६९४ पराशरमाधवः |

मु्तलसा हसं दष्डनोयौ | थः पुनर्नाणकयरौशकः सम्यगेव कूटमिति qt, श्रसम्यग्‌ वा सम्यगिति, सोऽपयत्तमखाहसं दण्डनौयः। यः gaa: श्रायुवंदानमिश्नएव जवना चिकित्छाभोऽदमिति तिय्यै- भ्मनुव्राजपुरुषेषु विकित्छां करोति, यथाक्रमं प्रयममध्यमो- समसारसं दण्डनोयः। योऽपि वणिग्‌ हिकार्पाषारेः पण्छस्याष्ट- ait क्रटमानेन कूटहुलया वाऽपहरति, wet पणानां दिशतं quate: अप्ियमाणद्रग्यस्य पुनरद्धौ हानौ दण्डस्यापि खद्धिदनौ कस्यनौये मेषजमोषधटद्रव्य, सेदोषटतादि, गन्धद्रवय- gmufe | एतेष्बसारद्रव्य विक्रयाय मिश्रयतः षोड्श्पणं दण्डः) विद्यते asqen जा तिचंस्मिम्‌ weaifes, तदजाति तस्मिन्‌ जातिकरणे विक्रयाय गन्धवणंरसाम्तरसश्चारणेन बड्मूष्यजातोय- सादृ ष्यसन्पादने, विक्रयस्यापादितसादुग्यस्य want: पण्यस्याष्ट- ATT. समुद्र कस्य, करण्डकादेः परिवर्तनं wars: योऽन्य- देव सुक्रानां पणं करण्डकं दग्ैयिला अन्यदेव स्फरटिकानां पू शस्तलाघवात्‌ समपेयति, यश्च सारभाण्डं कर्लरिकादिकं शजिमं wer विक्रयमाधिं वा नयति, aaa cesar) रजिमकसरि- STRAT पणे न्मे, न्यूनपणमूषे इति यायत्‌ तस्िम्‌ तिने विक्रोते पश्चाश्त्पफोदण्डः qaqa तु wa, दिपणमूख्ये दिशतो- दण्डः एवं मृल्यटद्धौ दष्डडद्धिरन्नेया ) राजमिरूपितार्धस्य छ्रां ate वाऽपि जानन्तो वणिजः कारशिख्पिभां-कारणां रजकादोभां भिख्षिनां चिषकारादौनां पौडाकरः rated लाभलोभात्‌ gee: पसं दण्डनौोयाः ये पुनद परान्तरादागतं Tel Thea

UTICA BA | ६९४.

प्राययमामा उपरन्धन्ति aya वा विक्रौणौते, Farqwaarqet दण्डः राजनि सन्निहितेऽपि सति, यस्तेमा ची निरण्यते, anda क्रयो वा विक्रयो वा काय्येः। faaa: भिगेतखवः अवशेषः t तस्माद्राअनिशूपितादर्घत्‌ योनिखवः, ava वणिजां era, पुमः खच्छन्दपरि कलिता दर्घात्‌ श्रघेकरणे विगेषमाह ` मनुः,

""पश्चराजे सक्तराजे Ta मासे, तया गते |

gaia Sat मव्यक्मरधेसंम्धापनं नृपः दति |

सखदेश्पश्ये WPS पञ्चकं लामा ग्ट्ञोयात्‌, We तू दशपणं लाभं गरक्षोयात्‌; यस्य पण्यग्रहणदिवखएव विक्रयः | यः पूनः कालान्तरे विक्रीणीते, तस्य RTA: RA: | दे शान्तरादागते पण्ये देशन्तरगमनप्रत्यागमनभाण्डग्हणग्रररकादि- स्थानेषु प्रयुक्कमथें परिगणय्य पण्छमूख्धेन षद Fete, यथा श्रतपणमृष्ये पण्ये दश्रपण्णोलाभः सम्पद्यते, तया क्रहविक्रेबोरलु- UMHS VITA: | दति शाहसप्रकरणम्‌ |

अथ स्लौसङ्गहणम्‌। ae जेविष्यमाद weafe:— “quae awe जिप्रकार निबोधत बशोपाधिङते & तु ठतौयमनुरागनम्‌

नम we

* पञ्चराभे qwure Te US ,--एति सुडितमदुखंडितायां ast 1.

6० जि कमृ पति कानि IS UN +

aed QITATCATR™: |

अभिच्छया awa मन्ोश्मन्लतहतं तथा | मलये यन्तु Tele Terence ठु तत्‌ | BUN ग्टदमानोय Tar वा मदकारणम्‌ | `. संयोगः क्रियते यन्तु तदुपाधिष्छतं विदुः अ्न्योन्यमसुरागेण दूतसस्रषणेन वा | शतं रूपायलोभेन शेयं तदनुरागजम्‌”-इति पुमरपि faery सएव,-- लत्पुमस्तिषिध प्रकरं प्रथमं मध्यमोन्तमम्‌ | SUPRA हास्यं दुतसम्मेषणं तया wang भषणं स्तौ णां प्रथमं wee: खतः | प्रेषणं गन्धमाष्यानां धृपश्धषणवासखस्ाम्‌ सम्भाषणं रहसि मध्यमं ape fae: | एकश्रय्याऽऽसनं ater चुम्बना लिङ्गनं तया एतच्छङ्गहण प्रोक्रमुन्तमं शास्त्रवेदिभिः" दति | यो षिन्सङ्गन्दणज्नानो पायमार arqaer:,— “धुमान्‌ PEI ग्राह्यः केशाकेशि पर स्तिया | सद्यो वा कामजेचिद्केः प्रतिपन्तिरदयोस्तयोः गो वोस्तनप्रावरफसक्िकेश्रा वमर्षफम्‌ | अदे ग्रकालसम्भाषा सभैकस्यानभेवच"--दति | सलोपुंखयोिधुनौभावः awe | तच प्रत्तः, परभार्या ame gay ; सद्य अमिमवेः कामजः करर ग्रमादिदतत्रण- fag: (भोः स्मतिपत्या वा, ay: 1 योऽपि परदारपरिधाभ-

BACT Ri We | BUS

ग्रन्बिप्रदे ग्-ङुषप्रावरए-जधन-्िरोरहादिष्यंनं सामिशाष इव करोति; निजेगदे शे अना कौरणऽयन्धकाराङ्ुले, श्रकाले संलाप रोति, were easy मश्चकादौ तिष्ठति, खोऽपि aw: | मनतुरपि,- | “fed Qian यः wet वा मषेयेन्तथा | परस्परस्सामुमते सवै सद्न्दणं WaT पादा यदि वा मोदात्‌ लाघवाद्वा खयं वदेत्‌ | पूवे wad yafa ae aged सतम्‌”-दति तज दण्डमाह याश्वरषयः,- | “AMAT दण्डः श्रानुलोग्येषु मध्यमः | भ्रातिलोग्ये वधः पुंसो weir: कर्णादिकनननम्‌ः- दति | अतूर्णामपि वर्णानां बलात्कारेण सजातोयगप्रपरभार्य्यागमने साशोतिपणसदहसं दण्डः यदा तलातुलोम्येन हौमवणंगृन्नपरमार्य्या- गमम, तदा मध्यमखाहसोदण्डः यदा पुनः सवणांमगृप्तामानुलो- न्येन गुप्तां वा ब्रजति, तदा मनुना विगेष उक्रः,- “awe ब्राह्मणोदण्डयो ant fant बलाद्रजन्‌ warfa पञ्च दण्डः स्यादिष्छन्या ae aya: खहस्त ब्राह्मणो दण्डं दाप्यो WH तु ते त्रजन्‌। शृद्धायां चचियविणोः away भवेदमः'-इति एतहुरुखखिभाय्यादिग्यतिरि क्र विषयम्‌ ay दण्डानरविधा- नात्‌ तदाह नारदः,- “भाता मादग्नसा शभरूभतिलानो flare |

are पसाश्ररमाधवः।

पिदग्यसखिभिग्यसत्ो भगिनौ vest कृषा दुदिताऽऽचाय्येभाय्यां eater शरणागता cra प्रत्रजिता धातौ साध्यौ वर्णीस्षमा शच या। श्राषामन्यतमां गच्छन्‌ AEA उच्यते शिश्नष्योत्कन्तनं, aa नान्योदण्डो विधौयते"-ईति। प्रतिलोम्येन उत्छष्टस्तो गमने चजिथादेबेधः एतहुप्ना विष- यम्‌ BVA धमद्ण्डः | तथाच मनुः “उभावपि fe तावेव ब्राह्मणा गुप्तया ay विज्जुतौ शुद्रवदण्ड्यो दग्धव्यौ ar कटाग्निमा ब्राह्मण Var सेवेतान्यः पुमान्‌ यदि ) वेश्यं पञ्च शतं gaiq afer सहस्लिणएम्‌“-इति | शदरस्यागृ ्ोत्कष्टस्त्ो गमने TAP Ray, गुघ्तगमने ठु TUTTI | तथाच सएव, “शद्रोगु्तमगुप्तं वा देजातं वणेमावसन्‌ | श्गत्रैकाङ्गसवखौ AA Van रौयते"-दइति। अतेव विषये weafacta,— “सहसा कामयेर्यस्त॒ धमं तस्याखिलं हरेत्‌ | say लिङ्गद्टषण्णौ भामयेद्धदंमेन तु" दति | Uae गौतमः “आर्यस्ियाऽभिगमने लिङ्गोद्धारः सवंसतरर एम्‌--ट ति ` नार्याः पुनर्ो मव्णगमने नासादिकर्तनम्‌ |

1.1

. * भिजस्योतकनगात्‌,--इति मज्यान्तस्तः gia: |

व्यवहारकावहम्‌ | Bre

अथं बधाथुपदेभो राज्ञः, तस्येव पालनाधिकारात्‌. दिजातिमा- अस्य “ब्राह्मणः परोलायेमयपि शस्तं नाददीत" इति wT निषेधात्‌ यदा तु राश्रोनिवेदनेन कालातिपातश्नङ्का, तदा fanfrarwerfa बधाधिकरौऽस्लयेव, “na दविजा तिभिर््राद्यं घौ यजो परुध्यते | माततायिवबधे दोषो ₹इन्त॒भवति कंचन प्रकाशं वाऽप्रकाशं वा मन्युस्तं मन्युग्ट च्छति" ति शरस्तग्रषणाभ्यनुक्ञा मात्‌ | चजिधवेश्वयोरन्योन्यसत्यभिगममे यथा- क्रमं सरसखपन्च शरतपणात्मकौ दण्डौ 1 तदाद मतुः. “Qua चचियां wat वेश्यां वा afset ni यो ब्राह्मण्यामगुप्नायां तावुभौ दण्डमरेतः-- दति | साधारणस्त्रौगममे दण्डमाह यान्ञव्क्यः,-- “maagra दासोषु yfrarg तयेवच | गम्याखपि पुमान्‌ are: पश्चाश्त्पणकं दमम्‌'-इ्ति। उक्रणक्तए्णा वपौस्तियो दास्यः ताएव खामिना शएमूषाहानि- gare गटहएव स्थालयमित्येवं पुरषान्तरभोगतो निरुडा- श्रवर्द्धाः | नियतपुरषपरिग्रदाभुजिव्याः यदा दास्योऽवर्द्धा- भुजिखा वा भनेयुः, लाघ ATE! चशब्दात्‌ वेश्ास्बेरिणौनामपि साधारणस्तीणां भुजिव्यानां ग्रहणम्‌ तासु सवेपुरुषसाधारणतया गम्याखपि गच्छन्‌ cerned दण्डनौयः ae तासा परदारदुष्त्वान्‌ एतेठेवामिपरेव्य नारदोऽपि,- “@fiwargeal Jar दासौ मिष्कासिनौ ar |

8९० परान्नरमाधवः |

गम्याः स्युरानुलोम्येन frat प्रतिलोमतः maa तु भुजिय्धासु दोषः सख्धात्परदारवत्‌ | गम्याखपि fe नो पेथाद्यतस्ताः सपरि यरश्ाः"--दति | निष्कासिनौ खाम्यमवर्ङ्का दासो अनवर्द्दास्याथ्चमिगमने यान्चवरक्यः,- "प्रसद्य दास्यभिगमे दण्डोदशपणः रतः ` बहनां यद्यकामाऽसौ चतुविंग्रतिकः प्रयक्‌"- दति पुरुषसम्भो गजौ विकाखु दासौषु खेरिष्थादिषु शटस्कदान- मन्तरेण बलात्कारेशाभिगच्छतो शपणोदण्डः श्रनिष्छन्तो- मेकां गच्छतां बहनां प्रत्येकं चतुविंग्रतिपणत्मकोदण्डः | कन्या- रणे दण्डमाह याश्नवख्क्यः,- “श्रलङ्कुतां रन्‌ कन्यामुत्तमं लन्यथाऽधमम्‌ दण्डं zorqauig प्रातिलोम्ये बधः खतः | सकामास्वनुलोमासु दोषस्वन्यथा दमः" दति। श्रलङ्कतां विवाहाभिसुखों कन्यां श्रपहरम्‌ sw दण्ड- नोयः azafaqey सवण श्रपष्रम्‌ प्रथममादइसं दण्डनौोयः | उन्तमवणंजां केन्यामपदरतः चचियादेबंघधणएव | श्रालुखोम्येन war मापहारे तु दण्डो भवति | श्रकामामपषरम्‌ परथमसादसं दण्ड- नौयः | कन्यादूषणे तु दण्डमाह सएव,- “दूषणे तु करच्छेद उनलमायां बधः खतः | श्रतं स््ोदूषणे curgaferarsfirsie? | पषम्‌ गच्छन्‌ शतं दाप्यो रोगस स्लो मध्यमम्‌ "--दति।

व्यव HIER Tas | | देवेष ae

यटा कन्यां बलात्कारेण नखच्चतादिना दूषयति, तदा तस कर च्छेदः | यदा पुनस्तामेव श्र ङ्गलो प्ररेपेण alfred gay दूष- यति, तदा बिग्रेषमाद मनुः ““शअभिषद्य ६६ र: कन्यां कुर्य्यादर्पेण मानवः AVI कल्यं wat दण्डश्चादेति षट्‌ ग्रतम्‌ सकामां दूषयंस्हल्यो ना क्कुलं) च्छद मरति | fand a दमं दाप्यः मसङ्गविनिरन्तये कन्येव कन्यां या कुर्य्यात्तस्याः स्वाद्िशतोदमः | wen fare ददात्‌ शिफाश्चेवाग्रुयादग | यातु कन्यां vga स्तौ सा षयो मौण्ट्यमरंति श्र्गुल्योरेव ee खरेणो ददनं तथा" इति | यद्‌ पुनरूक्छष्टजातोयां कन्यां सानुरागामकामां* गच्छति, तदा तस्य क्षचियादेगधः यदा वणां सकामां श्रभिगच्छति, तदा गोमिथुनं sen त्यि दद्यात्‌ | श्रनिख्छति पितरि दण्डरूपेण UH दशात्‌ | सवर्णामकामां तु गच्छतो बधणएव तदाह मनुः Cgaat सेवमानस्त॒ जघन्यो बधमरेति | Wwe दद्यात्सेवमानः समा सिच्छत्यिता यदि योऽकामां दूषयेत्कन्यां vet aaa | सकामां दूषयस्तद्यो वधं प्रष्रुयान्नरः”-दति चण्डाश्यादिगमने दण्डमाद aval,—

= ene 4 ~ att A PLR. = एण ममि

* सामुरागामकामां वाति पटो भवितु sar | सर्व््वादभ्ंप्ल्लक्ष्विव्यमेव प्राठः way अन्त्याभिगमने, दत्या- fequned याश्चवस्त्धरसंहितायां प्यते | 41

RRR ` पररयरमाधवः 1.

““श्ण्याऽभिगमने ME श्ुबन्धेन प्रवासयेत्‌ | श्यद्रम्सयाऽ्चएव स्छादमधस्यार्य्यागमे बधः श्रयोनौ गच्छतो योषां पुरषं वाऽपि Rea:* | aqfanfaat दण्डः तथा प्रत्रजिताखु च-इति | sai चण्डालोम्‌ तां गच्छन्तं Safua प्रायञ्िन्तानभिसुखं, “aya तचनयजस्नियम्‌"--दति मनुवचनानुसारेण awe दण्ड fan क्रुल्छितवम्धेन भगाकारेणाङ्कयिला पुरालिर्वासयेत्‌ शद्धः पुनः चण्डालो गच्छन्नद्धुएव ww इति पाठे चण्डालएव भवति चण्डालस्य द्त्छष्टजातिस्तिया भिगमने qua) योषां मुखादाव- भिगच्छतः पुरुषं वा सुखे Fea: प्रव्रजितां गच्छतः चतुविश्रति- पणोदण्डः | वञ्चनया WisyS द॑ण्डमाद हस्तिः, . विकादादि विधिः wiui aa gat कौच्येते | सगे पुंमयो गस॑न्ञन्तदिवाद्‌ पद सुच्यते-इ ति | स््ोरचणमाड मसुः+- “mara faa: कार्य्याः पुरुषैः सेदिंवानिश्रम्‌ | विषये सष्नमानाञ्च sear दात्मनो aw

* पुरुषं वाईिमेडतः+--डति पाठः समीचीनः प्रतिभाति।

oy कियान्‌ ayia: खादशपएरकेषु ufeas इत्यनुमीयते यतः समन्तसो तव चनं waaay लच्तणपरमेव, नतु वखखनया संग्रदये दण्डविधायकम्‌। भवितव्यन्वच, वश्वमया Maa? दण्डविधायकेम प्रमाणेन | वन्तु म्‌ दश्यते खतः कारणात्‌ कियान्‌ सनग्याशः प्रलोनद्त्वमम्यते | समगम्तरोडधतं fearerfefater: स्त्रोखामित्यादिबचनं नारदस्येति क्रत्वा मिताच्तसादावडतमस्ि |

~+ =-= ~^ ~~ ~ न~~ ~~~ ~~~ ~ ~~ ~~~ ~~ ~ ~ ~~~ ~~~" ~= ee cee == ma,

TYLA | RRR

qanatsfa प्रसङ्गेभ्यः स्तियोरच्छा fanaa: |

aatrey कुशयोः शोकमावद्ेयुररकिताः

इमं हि श्वेवर्णानां पष्टन्तो घमेसुत्तमम्‌ |

यतन्ते रिद भाय्यां भर्तारो दूबेला afin `

wi vafrg वित्तश्च* कुलमात्मानमेव |

way wi प्रयन्नेनां जायां र्भ्‌ हि रति

कश्िर्‌योषितः शक्तः प्रसद्य परिर चितम्‌ |

एतेरुपाययोगेम्तु शक्यास्ताः परिर चितुम्‌

aie aye Sat व्यये त्तेन नियोजयेत्‌

We wiswwrg पारिष्णय्यस्य चणे"- दति |

खे: gee: भकठैभिः सर्वदा weaver: कार्य्याः विषये गौता-

दावासक्तास्ततो व्यावन्तेमौयाः) अरचितास्तु दुञ्चरितेम भटेपिद- कुलयोः vital gas) तस्मात्‌ gases रच्छास्ताः यद्यपि प्रसद्य रचितमशक्यास्तयाप्य्थमङ्क हारौ नियोजनेम पुरुषाम्तर- विन्तनावसरस्याप्रदानेन रखेदित्शयेः | खहस्पतिरपि,-

“इुक्छेभ्योऽपि प्रसङ्गेभ्यो faarat स्तो स्वबन्धुभिः |

शभरादिभिः गृर्स्ती भिः पालनोया दिवानिश्रम्‌”--दइति |

दोषरहितस्तौपरित्यागिनं प्रत्याह नारदः ` “श्नुक्रूलामदृष्टां वा cat सध्यों प्रजावतीम्‌ | व्यजन भार्य्यामवस्ाप्यो रान्ना दण्डेन शयसा?-इति |

नन ~~ ~ [ग 1 1 1 | णी ~~ ~ = भक => ~" ~ ~~ +~

# प्रख्ूतिं चरिचद्च,-द्रत्यन्यत्र पाठः| T aatqa,—axfa ate |

ARB परसशर माधवः |

दण्डेन श्वापयितुमश्ष्ये are याश्जवस्वयः,-- “श्राश्चासम्पादौनों zat ace प्रियवादिनम्‌ | त्यजम्‌ ae: दतो्यां श्रमद्रव्यो ace स्तियाः-द ति बृष्वा fad व्यजेदिव्याद नारदः ‘gata त्यजतो WH स्यादन्योन्यविषण्द्धये | स््ोपुंसयोः चोढ़ाया व्यभिष्वाराद्ते स्तियाः'-इति) | विवादसंस्काररदहितयोरव्यन्तजातौ eral gaat विंरोधेनान्योन्य- wat दोषोनास्ति। विवादसंस्कतायास्छ व्भिचारादेव त्यागो- विरोधमानेए ) एतच्च सखस्थस्वच्छन्दव्यभिचारिणणे विषयम्‌, 'ख्च्छन्द्रमा तु या मारौ aurea विधौयते”--दति यमसमरणात्‌ | चिव्यगाद्या श्रपि सन्धाच्याः | तयाव वसिष्ठः Carag परित्याज्याः भिग्यगा गृरूगा तथा पतिन्नौ विशेषेण अङ्गितोपगता तथा"दति। हारौतोऽपि | “aR अ्रधमवणेशिय्यसुतगामिनों पानव्यसना- सक्तां धमधान्यविक्रयकरौं विवजेयेत्‌?-दइति fast व्यव- हारपरिव्यामः। तया वसिष्ठः+ | , “'व्यवायतौ्ेगमनधर्मभ्यख भिवन्तेते"- दति | व्यवायः सम्भोगः | तौ्थगमनशब्देन area शच्छते, धम्म शब्देन श्रौतम्‌ चशब्देन सम्ाषणादिकम्‌ व्याधितादौनान्त सम्भोगमानस्य त्याग tary देवलः, “व्याधितां स्लीपरजां बन्ध्यामुगम्तां विगतान्तवाम्‌ | अदुष्टां लभते wR Arete लेव कष्येएः“- इति |

व्थदद्कारकायटम्‌ | RV

तौर्यात्छम्मोगात्‌,-इत्यर्थः तथाच नारदः+ “बन्ध्यां स्लोजननो निन्द्यां प्र्तिकूलाञ्च सवेदा | कामतो नाभिमन्देत gaat न्‌, दोषभाक्‌ वादिनीं पर्वाश्नो wat निर्वासयेत्‌ ग्टहात्‌ | स्तो weasel गभ॑ विष्वं सिनी तथा i wag धनमिच्छन्तों fad मिर्वासयेदग हात्‌”-्ति बौधायनोऽपि,- ‘an: प्रतिनिषेधेन या भार्य्यां सकन्दयेदृ तुम्‌ | at याममध्ये विख्याप्य qual तु नयेत्‌ Zerg श्रटभरूषाकरों नारो बन्धकीं परिदिंसकाम्‌ | व्यजन्ति पुरूषाः प्राज्ञाः चिप्रमपियवादिमोम्‌-द्ति। त्याग अनिधनेन काय्यैः। तयाच यमः+ ` "“खच्छन्दव्यभिचारिष्ाः विवस्ांस्यागमव्रकोत्‌ | aay ay aay वधं wiut विवजेधेत्‌ चेव wad garda चेवाङ्गविकन्तेनम्‌”“--दति सीणां ay कुवन्‌ तासां विवजेनं कुच्यद्ध्ता, कणेनासादि- कन्तनमित्य्थः। weg स्तोपुधम्मे आचाराध्याये प्रपञ्चित दति नाच RA |

दति aay: |

१९१ पराशरमाचधवः।

अथ दायभागासख्यं व्यवहारपदं कथ्यते |

तच नारदः, : | न्विभागोऽधस्य पिव्यस्य पुनर्यत्र प्रक शपते | दायभाग दति प्रोक्तं व्यवदारपदं बुधे" दति दायोनाम; यद्धनं स्वामिखम्बन्धादेषान्यस्य ayaa”, तदुच्यते | दिविभधः श्रप्रतिबन्धः सम्रतिबन्धश्चेति। यपिदधमं पितामदघनं वा प्रतिबन्धो दायः। पुजादिधनं तु पिज्रादोनां सप्रतिबन्ो cre: | तस्य॒ विभागोदायविभाग इत्युच्यते अतएव rama पिद दाराऽऽगतं माहद्वाराऽऽगतं दइ्व्यमेवोच्यते दति | संयदकारख,- “पिदद्वाराऽऽगतं द्रव्यं माढदाराऽऽगतश्च यत्‌ कथितं दायश्रब्देन तस्य भागोऽधुनो च्यते” दूति | विभागकालमाद मनुः+- “are पितुख मात समेत्य भातरः सद भजेरन्‌ Wa we wie दि जौोवतोःः- दति wed पितुरिति पिदधनविभागकालः | aaedfafa माद-

PAD तन नन ee we

ee tee ee

(९) etfaa: waerfan amar खामिसम्बन्धः | zat Unite एचत्वादिरूपरव ure aq wees: | तेम खा. मिनः सकाशात्‌ क्रतं धमं दायः,

(२) सवस्याभमेवावस्यायां feenfeat पादिलमते इति aa प्रति- बन्धाभावात्‌ तदप्रतिबन्ोरायद्वुच्यते पवादिधनन्तु fae: सप्रतिनन्धोदाथः। vagal faa तङधगस्य प्िजादेर्लब्यम- waa सप्रतिनन््त्वात्‌ |

व्यवद्ारकारडम्‌ | RRS

धनविभागकालः | ततखैतदुक्ं wafer) पितुरूष्प मातरि जौोवन्धा- मपि पिटधमविभागः काय्येः तया मातुरूष्य पितरि जौ वितेऽपि मादटघमविभागः arava) श्न्यतरधमविभाभे उभयोरः्वकाण- प्रतौीचणानुपयोगादिति तदुक्तं संग्रदकारेण,--

""पिटद्रव्यविभागस्य जोवन्धामपि मातरि :

Maa sara यष्पमाग्मातुः पतिं विना

माटद्धन्यविभागोऽपि तथा पितरि जवति)

सत्सपत्येषु यस्मान्न स्त्रोधनस्य प्रतिः पतिःः-दति।

श्रयमयेः पतिमरणे पिदभार्य्यायाः पन्युपर माद स्ातन्त्येषा

स्वामिलं, यस्माच्चापत्येषु विद्यमानेषु भार्य्याधनस्य भार्ययामरणे- ऽपि पतिनै eral, तस्मान्योरन्यतर स्मिन्‌ जौवत्यष्यन्यतरघन- विभागोयक्रः-दूति एतेन जोवतोस्तन्तत्‌द्रव्यविभागेषु qarat सखातन््यमित्यर्थादुक्रं भवति तया ag: “म जवति पितरि ga रिक्थ भजेरन्‌ | यद्यपि स्यात्‌ पशथादयिगतं, ते saytua पुत्राः weet: श्रखातन्व्यात्‌"- दति 1 ware} यद्यपि अन्प्ानन्तरमेव ga: पिदधननिमित्तं परतिपनल्लाः, तथापि पितरि जौवति तद्धनं a विभजेरन्‌ यतौ धर्मार्थयोरसखातनग्त्यादिभीाग- करणेन: ¦ श्र्याखातग्व्यं नाम, तदादानप्रदागयोरखातभ््यम्‌- ti तथाच wets “जोवति पितरि garat श्र्थादाम- विसर्गाशेपेव्वस्ातनग्च्यम्‌"?- इति श्र्थादाममधौ पमोगः 1 विषशी- व्ययः | waders: शिचा्मधिक्पादिः। wirararal, एय- गिष्ठादलोदावमदंन्िः यन्त॒ देवलेनोक्म्‌,-

४९९ परारमास्ंवः |

“पितदेपरते ay विभ॑जेरम्‌ पितूर्धनम्‌ | ware हि भवेत्तेषां भिदौषे पितरि सिसे दूति | तदष्यस््ात्त्य्रतिपादमपर | पिदधे पुत्राणां sear खाम्यस

शोकसिद्धतवात्‌ | मतु शास्तेकसमयिगम्यस्य खल्व स्य कथ "लो क- सिद्धता। शास्तसिद्धलश्च, “erat खक्यक्यसं विभागपरियहाधि- गमेषु नराद्यमणस्याधिकं लब्धं चचियस्य विजितं निर्विषं वर्य शद्रयोः"“ इति गौतमवचनाद्वगम्बते श्रप्रतिबन्धोदायो सप्रतिबन्धोदायः। संविभागः सप्रतिवन्भोदायः। अनन्यपूर्व जलदणएका्टादेः BATT: परिग्रहः निध्यादिप्रान्निरधिगमः। एतेषु निमित्तेषु wg erat भवति ब्राह्मणस्य म्रतिग्रदादिना aaa, तद धिकमखाधारणम्‌ चनियस्य विजयदण्डादिलबधं यत्तद- साधारणम्‌ वेश्वस्य कृषिगोरक्ादिलब्धं निर्वि, तदमाधा- रणम्‌ शएद्रस्य feats शतिरूपेण यक्लग्ध, तदसाधा- रणम्‌ | एवमनुलो मप्रतिलोमजामःं स्तस्तरविहिताश्वसारणथ्यादिना waa तर धिकमित्यथेः ata संयदकारेन्यायमादह,-

“वन्तेते यस्य यद्धस्ते तस्य सामो सएव न“ दूति

्रन्यस्लस्यान्यदस्ते स्थितस्य दशनेन तस्येव arf tars: | श्रत

श्ास्तेकसमधिगम्यं खलम्‌ किञ्च, यदि यस्यान्तिके यद्धनं दुष्ट तस सएव सामो, तद्यस्य खमनेनापदतमिति त्रयात्‌ | यस्ये वान्तिके दृष्टं तस्येव afar | खलस्य सौ किकले,

“योऽदत्तादायिगोहस्ताक्षिष्ठेत ब्राह्मणो धनम्‌ |

याजनाध्यापनेनापि यथा स्तेनस्तथेव सः*--दूति

VITA | Bre

qeamnfen semaifean: वकाच्ाद्रव्यमनेयतो रण्डविधा- TACT स्तात्‌ तस्माच्छाश्तेकसमधिगम्यं Gaz |

नेवम्‌ शौकिकमेव सलं लौकिकायक्रियासाधनलात्‌ | त्रोद्यादिवत्‌ areata ेदिकादौनामपि लौकिकपाका- दिसाधनत्वमस्तोत्यनेकाग्तिकोडहेत्‌ः-ट्ति चेत्‌। म। fe तैषा- माहवनौयादिशूपेण पाकादिसाधनत्वं, किं तरिं शौ किकाग्धादि- खूपेणत्य स्ति वषम्यम्‌.“ fag, पामराणमपि खलत्वव्यवदारद श्रमात्‌ ane रौ किकलत्वमवगम्यते^२)

यत्तु गौतमवचनम्‌ ¦ “antl waned विभागेवु""-दत्याद्च- नुपपन्नमित्यक्तम्‌ तन्न प्रतिपरदा्ुपावष्टाष्य शौ किकले स्थिते ग्रहमणदौर्मां मतिग्हाद्युपायनियमार्लात्‌ शास्रस््य(२) | यदप्युक्तं, अन्यस्य खमन्येनापशतम्‌- इति ब्रथादिति। तदसत्‌ | खव््ेतु-

णमी

(९) संचार विद्येवसंस्क तेाद्यमिराङ वनो षडच्यते अस्ति aay eq- इयमा इवनोयत्वम धित्व | तच्रालौ किकडमसाधगत्वमलो किकेगा- watz waa लौ किकपाका दिसाधनमत्वन्त्‌ सो जिक्खंगाभितवेनेव witafa ara: |

(१) wera श्ास्त्ैकसमधिगम्यते तु श्रास्त्रामभिन्लानां पामराणां खत्व- ष्यवदारर्व सम्भवति) fe गास्त्रमदिश्षाय वदेकसमधथिगम्यो- su wera wrafafa ara: |

(श) ufearetemag खत्वं लोकिकमेवेति fart तेषां ofrwren- यागामनियनेन saat way प्राप्तो सत्यां ब्राह्मस्याधिकं जन्धमि- atfetanqata जाद ण्येव ufaae: ates विनव दवादि- fant wqerdaat san नियम्यन्ते | तन्नि यमातिक्षमाव्‌ एववब

meats ergy गायते रुवति नावः | 7 `

RRS WINTRY: |

तक्रथादिषन्देहात्‌ खलसन्देदोपपक्तेः | चद पि चोक्त, “योाऽदन्ता- दाचिनः“-इति अदन्षादायिगः सकाशात्‌ याजनादिना zay- मजेचितुदंष्डविधानमगु पपन्नमिति | तदप्यसत्‌ मरतिग्डादिनिय- तोपायकस्येव खलस्य लौ किकलात्‌ नियमा तिक्रमेण उ्रव्यमजेयतो- दण्डविधानसुपपद्यते | एवं, “तस्योत्सर्गेण दएष्यन्ति"- दति माय- शित्तविधानमपि एवं खलस्य लौ किकले श्रसत््रतियहादिलब्धं wi तत्पचादोनां araaa खमिति विभाज्यम्‌'९)। तेषां दोष- सभ्बन्धख(र) | “ae विन्तागमा धर्म्या दायोलाभः क्रयोजयः | प्रयोगः कमेयो गख सत्मतिगरदएवचः"- दूति मनुस्मरणात्‌ | cane चिनम्तनौयम्‌। विभागात्‌ खं खस्य वा विभागः--दति। waa gave: 1 विभागात्‌ खं, saa सवि SUBAATAS TIA खं घाधारफमिति द्रग्यसास्थेव्वाधानादिषु पितुरधिकार- विधिने स्यात्‌ fare,

पीपी 1 me, "-----~~-~--------~--- ~ mie ners cope a

~~ ^~ ^~ AT CE eae ee cee,

Q) खल्वस्य weineaferas छसत्‌प्रतियद्टादिना wae खत्वमेव स्यात्‌ तस्योत्छगंषिधागात्‌ खत्वस्य लौकिके त्वसतृप्रतिग्रहादि- सन्धेव्वपि खत्वं भवत्येव तस्मोत्सगेय शअध्यन्तोति प्रायश्वित्तन्तु werfagta ततृ चादोगाम्‌ रु खल्वव्लियिता autel प्राय- चित्तमकुव्वन्‌ warrant मवति, तस्य aerate भवति | सन्‌ एजादोगान्तु दावरूपमेव तञ्जनभिति तेषां warare: | तेषां away धर्ग्यत्वा दिन्धाशयः |

(2) साधारकधमस्येकेग विनियोमासम्भवादित्ति भावः|

SIT | eat

“भजा प्रोतेन यदत्तं fae afeenaste सत्‌ शा यथाकाममश्रौयाद्द्यादया श्यावरादृतेः--दति ओतिदागवलममप्यनुपपन्न स्वात्‌ चदपि,- "'मणिञ्ुक्ाप्रबालानां wea पिता प्रभुः स्धावरष्य लु wae पिता पितामहः॥ पिद्प्रसादात्‌ गुण्यन्ते वस्त्रा्धाभरणानि च॑। स्थावरं तु yaa प्रसादे सति पेदके"-दइति। तत्पितामहोपात्तस्थावर विषयम्‌" | तक्मात्‌, सामिनाण्ाडि- AANA स्त्वं HHA | Trererg i sata ad लोके प्रसिद्धम्‌ विभागशब्दश्च बस्तामिकधनविषये सोके प्रसिद्धो नान्यङौयधनमविषयो प्रहोणए- विषथः^र) | किञ्च “samara खामिलाक्षमेतेत्याचाव्याः"--दति गौतमवचनाव्जकमनेव WATT | यदुक्रम्‌, मरिसुकाप्रवालानाम्‌,--दत्यादिवचनं पितामहोपाश्त- खावरदिषथमिति तद यक्षम्‌ पिता पितामह इति वचनात्‌ पितामदष्य fe arate धनं पुजपौ योः सतोरदेयमिति THT स्वत्वङ्गमयतोति | यद्प्यकम्‌ श्र्थसाप्येव्वाधानादिषु पितुरनधिकार दति) ACI | वच्नादेवाधिकारावगमात्‌ | यदपि चोक्षं, sents

(जिका PRICED AON A Serra: A

(९) wee we स्थावरस्य vacate पसक्तिरेव मास्तौति an प्रति- faa | तस्मादिभागादिना खत्वं गन्भनेति भावः | (x) aWiafawat निन्िव इत्धथेः।

(९५३ पलश्रमाच्चवः।

सले भक्तां रतेन aenfaanfe विष्णवचनं गोपपदयते,- दति | तदप्ययुक्तम्‌ साधारण्छेऽपि द्रव्यस्य वचनादेव Aer frac भिकारोपपन्तेः स्ावरादौ तु खाजिंतेऽपि पुजादिपारतग्व्यजेव | “erat दिपदश्चैव यद्यपि सरथमजितम्‌ | अरसन्भय GAM सर्वान्न दानं विक्रयः॥ ये जाता येऽप्यजाताख्च ये गरं वयवस्थिताः | ठनिश्च तेऽमिकाञ्घुन्ति दानं विक्रयः इत्यादि वचनात्‌ | श्रापदारौ तु खातग्त्यमस्ेव | “एकोऽपि erat कर््यादानाधममविक्रयम्‌ | श्रापत्काले HoT धर्मर्यिधु विगरेषतः- दति ` सणरात्‌ तस्मात्‌, BER जग््रनेव खलमिति प्रशतमनुखरामः | अपरमपि faraway arqaeg:,— “विभा गश्चेत्पिता gaffer विभखेक्छुताम्‌। we वा भरेष्ठभागेन स्ववा स्यः समांशिनः"-इति | यदा पिता विभागं कतुमिष्छति, तदा पुचानात्मनः सकाशा- दिच्छया विभजेत्‌ इच्छया विभागप्रकारः, ae वा शरेष्ठमागेनेति | चरेष्ठभागः सोद्धार विभागः। द्धारप्रकारः BAT दर्तः, “eee fia उद्धारः सव॑द्रव्याच्च दरम्‌ | ate मध्यमस्य wad तु यकोयसः”-श्ति | Wear) सवे व्येष्टादयः gar: समां ्रभाजः(\)। weg विवमोभागः

(९) श्दश्च सन्ये वा स्युः समांश्ििन इनस्य व्यास्थानम्‌ | (२) भयश्चेति सेाारविभागसरू्यद्वचेः। |

"णि

TCT H TATA | wee

enfanxefara: | क्रमागते तु स्वामपि wate: खात्‌। पितु- रिष्या विषमविभागस्यायुक्रलात्‌ | नारदोऽपि कालान्तरमाह, ‘gy we पितुः पचा विभजेयधनं समम्‌ | मातुभिंडन्ते रजसि प्र्तासु भगिनौषु च॥ निदटक्ते वाऽपि रमणे पितयुपरतस्यदे"-दति शञ्खनेऽपि “sata पितरि खक्यविभागो zg विपरोते चेतसि दौर्रोगिणि चःः-दति। श्रस्ायेः। श्रकामे विभागम- मिच्छति पितरि ्रतिरद्धे विपरोतेऽप्रशृतिखे दौधेरोगिणि sf किव्छरोगमग्रस्ते पुचाणामिच्छयेव विभागो vrata: दौषे- रोगग्रहणएमतिङ्पितारेरूपरखणम्‌ | अतएव नारदः "व्याधितः कुपितेव विषयासक्रमानखः | श्रययाश्रास्लकारः विभागे पिता प्रभुःः-इति। पिच्रा समविभागकरणे विग्रेषमाड याश्चवश्क्यः,-- | “afe छर्यात्समानंग्रान्‌ पल्य: कार्याः समांशिकाः | . दन्तं स्त्ौधनं यासां wat वा ate वा-इति अदि सखेख्छया पिता पुरान्‌ समभागिनः करोति, तदा अद- water: पल्थोऽपि पुचसमां भाजः कार्याः दन्ते तु Ie, "दन्ते ag प्रक्पयेत्‌-दति yaimeginenet भवन्ति। पितु- eu ध्म विद्ययं विभागः aie इत्याद प्रजापतिः “qi wy वसेध्वां wat धर्मकाम्यया | एयग्विवर्धते wawargel wafqar’— दति weafach,— -

are TEMERTYT! |

“qaaray weal पिदरेवदिनाग्वेनम्‌ - एकं भवेदिभक्रानां तदेव erg गदे we char पिभोरूष्यं विभागे प्रकारनियममाईइ aner:,— “विभजेयुः um: पिजोरूष्येन्टक्यग्द्ं way’ इति | नतु पिभोरूष्ये विभागेऽपि विषमविभागो agar दशितः | erg ferry मातुञेत्युपकम्यः- ‘ae wa तु zeta foxy धनमशेषतः | ओेषास्तञ्ुपजोबेयुथेयेव पितरं तथा eee विग्र उद्धारः सवंद्रव्या्च यद्वरम्‌ | ततोऽधै मध्यमस्य स्यान्तरोयन्त॒ यवोयसः'” तथा, "उद्धारेऽनुद्ूते तेषामियं स्यादंश्कनचना | ` एकाधिकं दरेव्जेयष्टः gated ततोऽनुजः sda यवोयांस इति घ्ाग्यवस्ितः" इति | गौतमोऽपि | “विंग्रतिभागो ज्येष्टस्य मियनमुभयतोदयुको- रथो Waa: काणः खोडः कूटः वष्डोमध्यमस्यानेकसेत्‌ श्रवि- धान्यायसौ ग्टहमनोयुकं चतुष्पदां Yaa यवौयषः समं चेतरतः स्वेम्‌ः- इति sane | aaa पिदढधनाद्धिश्तितमोभागो- See मिथुनं गोमिथुनं प्रसिद्धम्‌ उभयतो दग्सोऽश्वाश्चतरगदेभाः, तेषां यथासम्भवं अन्यतराभ्यां ante: ¦ etyteg: | कूटः wy- fare: वष्डो विशो पितबाशधिः। अविशेषितलात्‌ गवाश्वादीनां

ee TEI ATTN cE LA EPS cE A A DICT ETI SELLA LOLI LAOS ILI SCL, IC CTS CS TTD

(६) नेग चनेन खखासाधारणथनेन एयकएयक्‌ पिणाद्य्यगात्‌ विमागी

whafafate द्वम्‌

STG ITH Taz | ane

यथाशमवं WAIT ZT: ANTE wlwwy, ural Hrerfe, wat etext अनोयक्रं शकटयुक्रम्‌। चतुष्यदां गवाङषै- नामेङेकं VIR WTAE यवौोयस उद्धारः | Teefacty,— “अन्ध विद्यागृणओष्टो sj erargarqary”—tfa | काल्यायनोऽपि,- “ear यथया farted या गा्थतामियाव्‌ | तया तथा विधातं विद द्विर्भागगौ रवम्‌**५-इति | जौवदधिभागेऽपि विषम विभागो मारदेनोक्रः+- “fata वा स्वयं qaqa विभजेदयसि fea: | ae ओष्ठ विभागेम यथा वाऽस्य मतिभेवेत्‌ fata तु विभक्ता ये समन्यूनाधिकेषेमेः | aut सएव we: श्यात्‌ सर्वस्य हि, पिता my: avant प्रतिपद्येत विभजन्नात्मनः पिता--दति। दइहस्यतिर पि,- “समन्युनाधिका भागाः frat येषां प्रकश्पिताः | aaa ते wena विनेयासे ख्यरन्यथाः-दति तस्माश्जौवद्धिभागेन चः विषमविभागोऽस्तौति कथं ger:

=+ ewe ~ ~ PATO ret RON को नयः i

* aslg,—xfa कार | इत्थमेव पाठः Saag Gea | परमयं पाटः समोचौनः। जोवद्धिमारऽणौवदिभागे च,- इति wise समौ चोगः प्रतिभाति |

A A का 99 ES = शन "न = =

(१९) नेन धनस्य यागायेत्वं यथा भवति, तया भागाधिक्धं HMA ahs qian विद्यादिगुणवतां मा गाधिक्यं चापितम्‌ | तदोपधनगस्योत्धगते- Qaida खम्भाव्यमानत्वारित्मिप्रायः | !

Rad पराद्ररमाद्वः।

सममेव विभजेरन्निति नियम्यते मैवम्‌ सत्यं wremt fava विभागोऽस्ति, तयापि शोकविद्धिष्टलादसुबश्ध्या दिवत्‌ waste? | SWE PERT, “यया नियोगधमौऽयं नाजुबन्ध्यावधोऽपि वा तयोद्धार विभागोऽपि नेव सम्मति वन्त॑तेः- दति श्रापस्तम्बोऽपि “Hata पुचेभ्यो दायं विभजेत्‌ समम्‌“ दति खलमतसुपन्यष्य “शन्येष्ठोदा या द्व्येके"-इत्येकौ यममेन छत्छ्रधनग्रणं च्ेष्ठस्यो पन्यस्य, दे ग्रधिगरेषे, “gad war गावः aw भौमं ave रथः पितुः परिभाण्डश्च, ग्टहोऽलङ्ारो भाग्याया श्ञातिधमं Gara” -श््येकौयमतेनेवोद्धार विभागं ग्रेयिवा “तच्छाखपरतिषिद्धम्‌"- दति भिरारुतवान्‌। तञ्च wants खयमेव chiara, “ae: Gat दायं व्यभजदित्यविगेषेण श्रूयते”-दति तस्मादिषम- विभागः शास्लसिद्धोऽपि शोकविरोधाच्छतिविरोधाञ नातषेयः,- tf सममेव विभजेरन्निति नियमा घटते स्वयं द्रव्याष्ननसमयतया पिढद्रव्यमनिच्छतोऽपि यत्किञ्धिद्त्वा दायविभागः aaa तत्पुबादौनां दायग्रहणेच्छा गिदस्य भित्था याश्चवस्क्धः,- “शक्रस्यानोदमानस्य किशिद्ष्वा एयक्‌ करिया"~-दइति | Gat माटधनविभागो दुहिभभावे द्रष्टव्यः तथाच सएव, “मातुर इतरः शेषन्डणान्नाभ्य चतेऽन्वयः"?- इति | माढहतर्णापाकर णाव शिष्टं माद्धनं दुहितरो विभजेरभ्‌। weg Wawa wi माक्धनं ` दुचिदशां बद्धावेऽपि gare

व्यवहार काकम्‌ | |

विभजेरन्‌,-द्ग्यर्थादवगम्यते९) श्र गौतमेन विगरेवोदशितः | “स्लोधनं दुडिदषण्णामप्र्ानामप्रतिषठितानां च-इति | OIE दुदिढबमवाये माठटधनमनृढ़ानामेव९) | agrafa सधननिधेन- दुहिखमवाये निर्धनानमेवेव्ययेः(२) पेतामहे पौजाणां विभागे विशेवमाह याश्नवख्क्यः,- “श्रनेकपिहकाणान्तु पिहतो दायकल्यना”--इति | यदा fren: अविभक्ता भ्रातरः पु्रानुत्पाश स्टताः, तत्रैकस्य द्यौ gw, अन्यस्य जयः, अपरस्य चत्वारः तज पौनाणं पैतामहे zz यद्यपि जगकनैव सत्वं qacfafae, तथापि पिश्यंं arta wet- SSR चलारोऽप्येकं लभन्ते cays: एतदेवाभिप्रेत्य शरश्मतिः,- “तत्पुजा विषमषमाः पिहटभागङराः खूताः--दति | ततूपुजाः प्रमौतपिटकाणामेकंकस्य पुजाः, ane: न्युना- धिकषद्काः, खं @ faa भागमेव लभन्ते इत्ययः यदा खद्त- योर विभक्षयोमेध्ये कथित्‌ भराता टतः agers पितामहादष्यप्राप्तां्ः पितामद्ाऽपि नासौत्‌, तदा लाह कात्यायनः ““चअविभक्रेऽसुजे प्रेते aga wert | gata जौवनं येन शमं नैव पितामहात्‌ शभे्ताशं @ पिशं तु fazarae वा gary!

णी | FP जक 1D कोक मअ

(९) तथाच विभनेरन्‌ सताः पिच रूडम्टक्यम्टणं सममिति माढधने प्रजा- फामधिज्ञारः wafeqaxta मावः। (२) इदमग्रत्तागामिनस्य ष्थास्यानम्‌। (श) तथाच व्वपर्तापदमनूढृापरम्‌,प्रतिशितापदच्च निधंगापरमिति शादय 48

gee WEELATUR |

सवां शस्त वेषां भाहण्णां न्याश्नतो ` wag # कमेत तत्छुलो वाऽपि frei: परतो भवेत्‌--दज्नि |

MAA तत्सुतो TAS GaAs: | तद्यपि विभाग्धभनष्छा- मिपौग्रह् सतोऽपि पितुरभावे agri लमेत, तत्र ऊषरं ततृरन्रतौ खद्धमपितामहधनविभागकरणनिदत्तिः,--इति laury देवक्लः,-

“'शअतिभक्रविभक्रानां कुलानां वसतां सद | शये दाप्यविभागः स्यादा चतूर्थादिति fafa: | तावत्‌ Ger: सपिण्डाः |: पिष्डभेद स्ततः परम्‌"--दति।

जोत्रत्पिद्धकश् ga: fra ae कथं पितामदइधयविभाग-

दत्याङाङ्गाचामाइ इङडस्पतिःः- . “xa पित्रामशोप्राक्ते जङ्गमे स्थावरेऽपि ar | समरसं शिलमाश्यातं fra: qae चेव हि“ इवि। प्राश्चक्च्धोऽपि,- गम्मा पितासदहोप्रा्ना fart द्रव्यमेव वा। तच श्यात्‌ दृशं are पितुः पुचस्य चोभयोः" दति |

az: शालशिच््ादिक्रा। fager; एकष्य wince cafe पर्णानि, AI RERUTS इयम्ति MEANT TENET: | दरव्यं qatcente ) aq fraraya प्रतिग्रविजयादिणशब्धम्‌, तज पितुः पुरस्य खाम्य शोकप्रसिद्धमिति विभागोऽस्ति 1 च्छि यस्मात्‌ सदृशं समानं साम्यं, तसमात्‌ पितुरिच्छयेव विभागो- नापि पितुर्भागदयम्‌ any, पिव्रतो arama war- 4s वादनिकम्‌ खतः,

` व्रकौम्‌ are

“ert afadtia विभेजभाक्तेनः पिता इत्येवमादिका यंगान्तरे विषंमविमोगप्रतिषेदिनपरतथा आीपि- तम्‌ आषा जिंतद्रैव्यविषयं ari पेतामहघमविषये ठै नं कार्विं विषमविभागः.--ई-ति तथा, श्रविभक्ेन पित्रा Garis xa री- यमाने विक्रीयमार्ते वा पौरस्य निषेधेऽप्यधिकारोऽस्तिं* m0 चेतामक्षोपाष्तेऽपि। कचित्‌ पितुरिश्छयेव स्ला्जितवदिभागो- भवतीत्याह मतुः “Gea ठु पिताद्रव्यमनवा्तं यदाश्रुयोात्‌ म॑ तत्पुतेरभेजेत्धाधमकामः खयमर्जितम्‌'- इतिं 1 यत्वितामरा्जिंतं केनाप्यपदतं यदि पिसोद्धरति, तदा arf तमिकं ga: लाद्धेमकामतः खयं विभजेत्‌,-द्ति। एवं च॑ सति, पितामहोपाजिंते स्ञेच्छया विभाग tam भवतिं wewfcra.— “Varad wi frat quer यदु पाजितम्‌ | faeniterfen oi aa ara पितुः संवम्‌-इ्ति। कात्यायनोऽपि, “द्ग ्या ऽपदतं द्रव्य खयमाप्तश्च यद्भवेत्‌ | एतत्धवै पिता पुचचैविभागं नेव दाष्यते"-षति। watered marred स्तेनो इतं, यन्न कमायातं, यच्च विथा- शौर््यादिभा खयनेवाजितं, aed पिता विभागं gad दाष्यङ्वचैः। क्मिगोग्तरेकाशोत्थननस्य भागकन्धनाप्रकारमाशद याश्चषश्वधः,--

ee ee eee a भना

# निभि प्यास धोऽस्तीति,-- दति wre | tanta ara: सेभ्वैन | famnetaresfa,—nxfa atene tad

Rt ECCS wt we

` १8० Bos ccm

“विभक्रेषु geitena: सवर्णायां विभागभाक्‌-इति। wear: | विभक्तेषु gy सवर्णायां भार्य्यायां जातः पुचः पिजरोर्भागं भजते दति विभागभाक्‌-दइति मादभःग्चाशत्थां दुहितरि, ane खतेऽन्वयः-इल्युक्तलात्‌ श्रवर्णायां जातच खा धमेव पिश्यालभते, aaa तु wa) अतएव मनुः,-- "ऊध्वं विभागाष्नातस्त॒ पि्यमेव दरेडनम्‌”- दति | पिजोरिदं पिश्चम्‌, “mtn: पूर्वजाः fast: arent विभकजाः? दूति सरणात्‌ मातापिजोर्भागे विभागाव्पूवेसुत्पश्नो ent पित्रा ay पूवं विभेक्वात्‌ fm भातुर्धने Waza: विभागोत्षरकालं पिजा खयमजितमपि विभागोलर कालमुत्पन्न- स्येव तथाच भनुः, Te: ay fea faa यत्‌ स्यमजिनम्‌ | विभक्रजस्य तस्सवंमनौ शाः पूर्वजाः सताः" -दूति ये विभक्ताः पुमः frat स्टृष्टास्तेषां विभागोन्तरकाणल- सुत्पनेन we विभागोऽसोत्था मनुः, ख्ष्टास्तेम वाये खर्विंभजेत ah: सहः दूति अजोवद्दिभागोक्षरकालं जातस्य THE भागकच्यभामाइ याश्च व्कधः,-- Carat तदिभागः स्यादायग्ययविश्ोधितात्‌“दति | पितरि ऋते भादविभागसमयेऽसखष्टगर्भायां मातरि भाटवि- भागोष्रकाणशसुत्यलस्य विभागः, इग्सार्भादमिग्टशौतात्‌ चायब्थ

. व्थवङारकाखम्‌| ER

fautfar उपचयापचयानग्वां शोधिताद्धनात्‌ fafeqquer खां शसमोदातष्येः च्यादितव्यथंः। एतश्च ग्टतभ्वादभाय्यायामपि बिभागसमये श्रयष्टगभधां विभागादृष्वेसुत्पन्ञस्यापि वेदितव्यम्‌ स्यष्टगर्भायां तु प्रसवं प्रतौ- waa विभागः ater) “श्रय भ्रादणां दायविभागो याञ्चान- पतथाः स्वियस्तासामा पुजलाभात्‌-दति वशिष्ठश्मरणणत्‌ विभ- करेभ्यः पिदभ्यामयेद्‌ाने विभक्रजस्य cae गिषेधाधिकासेगास्ति, ad तेन मः प्रत्यारतव्यमित्याद्‌ याश्चवशक्यः,- “flat यस्य age anda धनं -भवेत्‌”--दूति | अजोवदिभागे मातुर शकल्पनामाद UTWaeW:,— “पितुरूष्वै विभजतां aaa समं eta —cfa एतश्च wae श्रप्रदामे बेदितव्यम्‌ ce aaa, “at त्धाश्डारिणौ?- दति स्मरणात्‌ | अतएव सत्यमरम्‌,- "“जमन्यपधना पुजेर्विभागेऽ'्ं घमं इरेत्‌'--दति | अरपधना भ्रातिखिकस्लोघधमश्यून्या जननो पुचेविंभागे fread पुशां शसममंशं इरेदित्ययेः जननो यहं सापन्यारेरुपलशचण्णार्थैम्‌ | तथाच व्याषः,- | “meat पितुः पल्यः समानांशाः प्रकौर्तिताः। ftaragy सर्वास्ता माटतुद्याः प्रको न्तिताः*--इति | मु. कंखिदुक, माताऽ समं ₹दरेदिति नौवनोपयकलेव धनं माता खोकरोतोति तज्ञ अंशसमश्रब्टयोरागयेवधप्रषङ्गात्‌ |

eee: vm eee 1 or 1 erene. ~ "~ ~~

* क्तं Qan,—xfa are

esx , ` पशशश्भाधवः |

अथो चयेत, गोडधने जोकनो प्यकं werfe सास्पधने gwar: मिति। तदपि म। विध्िविषन्यप्रधङ्गमत्‌(र। firqarenret सवान weg विभागप्रकारमाडइ व्याषः,- | “खमानगजातिसद्या ये जातास्छेक्ेन सगवः | विंमिन्नमादकासेषां मादरभागः परशरखते^९ इति | रदश्यतिरपि,- “WRIT बरवः समानाजातिसञ्या | quae aaa माठभागेन धर्मतः इति | fare विभागं avare— “खवणंलिङ्गसश्या ये* विभागस्तेषु wet’ दति | जिंक्ननातोनां qerat विभागमाह aryaeq:,— “शतुसिद्मकभागाः wadat ब्राह्मणत्मजाः | कजा खिदश्रोकभागा विड्जास्तु द्योकमा गिनः" दूति | TUN TAT EUAN, जराह्मणदिवणस्तौषु(र aretaiarar- गराह्रूमूधांवसिक्षाम्बह निकादाः५) यथाक्रमम्‌ प्रत्येकं चतुखट्धक-

गीय pT पि

* euaPferqegy ये,-- इति wre |

ee ree cores,

(१) वाक्धमेदप्रसक्ादित्धर्थः |

(२) रकस्थां ferat यावन्तः get जाताः खंपरस्यामपि तावन्तरव Pena तदा मातुरेवाप्यं वि माग इति wat saaqafaaraa: |

(१) तथाच्च वङ्रइत्य् ames ब्राह्मयादिवयाः सिय उश्थन्ते | तस्मा्वाधिकरवकारके Seyret wae yaa: | , (*) oredr arqergent area, चचियायां autateret, Saravere:, जायां निनादः | अनयैव Stat उत्तरयन्भोयास्येयः |

Le TS SE CEES TO ककि = ~ ~ ~ == ~ ~ ~^ सा cee me See ee

व्वङ्ारकाखन्‌ | Ree

भागा Haq: | रुजियादिवकच्छौषु whrdetme: wienrfier atafagaaen, fe वेग्ायाडुत्वौ teencet द्वोकभा- गिमौ | मरुरचि,- ‘aTgrargau wey यदि fae: | amet wae जाते विभागेऽयं विधिः खलः aa वा क्यजातन्तु श्रधा प्रविभव्य तु | wel चिभागं gala विधिनाऽनेन afar earn ₹हरेदधिप्रः shina afweran: वेष्यापुजो etzg एकं शद्राखतो weyy’—cfe एतत्‌ भवनिशधदप्रात्रश्म्यतिरि विषयम्‌ sava इष्य तिः,ख७र “a भरतिदषगरदया चजियादिखताय वे। awaut पिता carga विप्रासुतो शरेत्‌"-इतिं | मरनिदयश्विन्नेषणएसामर्ष्णात्‌ क्रयादिलमा ग; wfrarfagar- नासि waa) शूद्रापुजस्य विशेषप्रतिषेधाञ्च(र | “net दिना तिमि्जातो गमेर्मागमदहंति, इति WY REI “gryuafwatant शुद्रापुजो खक्द्मभाक्‌ | चयदेवाद्ध पिला दद्याश्लदेवास्छ Wi भवेत्‌ दूति | तंष्जिदरग्सधनशद्भाबविषयं दत्य विदम्‌ | भलरोग्येन नात-

A eee ee शा 1 7 17 व] me we emer om

(९) टि fw maferan भूमिः चचिगादिष्टत्राणामपि भवेद्‌, कदा भूग्नस्छः विद्धे्प्रतिविधो गोपप्यते | zw वि देषव्िद्धेक- सी wtearfegarat तजाधिका सोऽखोति मदः |

ass परासरमाधवः।

VARA खक्थग्टहणप्रकार माह देवलः, Caraga wag पितुः सर्वखभाग्मवेत्‌”- इति | एतच्च मिषादव्य ति रिक्रविषथम्‌ अतएवोक्तं तेनेव, - “निषाद एकपुषस्तु विप्रस्य रतोयभाक्‌ | at सपिण्डः eget वा खधादाता तु संदरेत्‌”--इति। यन्तु मनुवचनम्‌, “यद्चपि era सत्यु्ो यद्यपुजोऽपि वा भवेत्‌ | नाधिकं दशमादयाच्छुद्रापुजाय wee: The | तदश्रश्रूषुशद्रापुच विषयम्‌ ) छजियेण ay वा शुद्रायामुत्पन्लः एकः GH श्रद्धंमेव हरेत्‌, fara दतैयमंशम्‌ तथा इरदिष्णः | “दिजातौनां शूद्रस्छेकः पुजोऽद्हरेाऽपुजस्य wee था गतिः सा भागाधेष्यः-दति प्रव्यासन्सपिष्डस्यान्यद्धं भव- Awe: श्रजोवत्‌ विभागे केषुचित्‌ भराटव्वखंछ्रतेवु भगिगौषु वा ऽसख््कता तत्हस्कारः पू्वैसंच्कतेशाट मिः wee इत्याह ब्याषः,- “agar ये तज पेटकादेव ते धनात्‌ | संस्कार्या आभिः sath कन्यकाख यथाविधि" इति | भगिमोसंस्कारे a विशेषमाह याशवक्वयः,- magne संस्कार्या भाटमिः पू्वैसद्तेः | Fama Fane area AH THT” बति | THEA तमभस, SK, AN deen: | wfiergrdgen: निनादं प्राद्यव्नातौथा कन्यका तष्नातोयपुजभागात्‌ atte wl भागं दना wegen:

WITTER | >+

अनेन fared दुहितरोऽप्ंग्रभागिन्य दति मम्बते। अतएव मनुः, “तेग्योऽगरेभ्बस्तु कन्याभ्यः खं ayant: wry! सनात्‌ साद शाच्चतुभागं पतिताः स्युरदिश्वः?--इति | ब्राह्मणादयो तरः ब्राह्ण्छादिभ्यो भगिगोग्बो दिजाति- farsa” खात्‌ खादं्रादात्मोचाह्वागाश्चतूथभागं दधुः | एतदुक्रं भवति यदि कखचिद्राद्मण्येव oat पुषद्चैकः कन्या चेका, तच fay ze ser विभज्य asa भागं चतुर्धां fase acai कन्याये दला शेषं Get क्ञोयात्‌ we दौ get कन्या चेका, तदा पिदधनं Fur faq asa भागं चतुर्धां विभव्य Sati कन्यायै zat रेष द्रौ gat विभ्य ग्टक्नोतः। अण एकाः qu: दे कन्ये, तदा faa धनं निधा विभज्य ada भागं चतुर्धां fare द्धौ भागौ द्वाभ्यां कन्याभ्यां दलाऽवश्िष्टं aa gat ररक्षाति। एवं समानजातोयेषु समविषमेषु wareg भगिनोषु समविषमासु योजनोयम्‌ | यदातु ब्राह्मणौपुज् एकः चजिया कन्या चैका, तज पिशं zai ana fara खजियपुचभामाम्‌ चोम्‌ चतुधा fiery तुरौ- धारं खबियकन्यायै दत्वा रषं बाह्मणोपुभो ग्ाति। wer a at ब्राहणोपुजौ चजिया कन्यका, तज पिन्व धनमेकाद्‌ शधा विम्य ` चोन भागान चतुधा fey wed wena’ शवा oy सर्वं गुण्य पदै तव, TRIER

~~~ ~~ -~ = ~~ ~ ~~ or ser areca

a araeenh nr some went =

stat quret खनति ‘oe awistents तच्छन्देन TTT a! -असान्ण्धन्ते "ङ्द्धन्ते | afezqM, faartatafe rats wath

aes | WITWCATSR 7

तुथो ग्दराः, श्रपि ठु orareerenata शंभन्ते cape: ।" यन्त विष्णमोक्रम्‌, “RITA कानौोनगदोत्पन्नसहोडजाः पौ मर्भवद् ते मैव पिण्डच्छक्यां ्रभागिगः* इति | तद्टौरसे सति चतुथों ग्र निषेधमपरसेव( यश्च मनुनोक्रम्‌,- “एकएवौरखः ga: fase यद्नः प्रसुः शेषाणामानशस्याथं प्रदद्यान्तत्मजोवनम्‌+*- इति तदौरसप्रशंसापरमेव चतुरधौंश्भागनिषेधपरम्‌ श्रन्यया चतुर्थां श्रभागम्रतिपाद कवशिष्टकात्थायनवचनयोरानयेक्यप्रङ्गात्‌ यदपि तेनेवोक्रम्‌, षष्ठं तु खेचजस्यांशं प्रदथाव्चेढकाद्कमात्‌ | श्रौ रमो विभजनम्‌ दायं fast पश्चममेव्-दूति | ate व्यवस्था wap चतुर्थो शभागिल्व, प्रतिक्रूलल- fread: षष्ठं ्रभागिलव, प्रतिकूलत्वमाजे निरएलमातचे पश्च aberfiafafa® ) यदपि हारौतेनोक्रम्‌ 1 “विभजिव्यमाण एकविंशा कानोनाय दद्यात्‌, fast पौनभवाय, एकोनविंशं?

षि कक

[कयत

, # weave प्रनोवनम्‌+-दइति ate | 1 wafiwa,—sfa wre | { fawa,—xfa are | $ warafawq,—exfa wre |

owen

(६) तु सासाण्छादमनिघेधपरमिति ara: |

(२) तथाच घतिङ्गणत्वनिमूंखत्वे भिचिते बर्ांधप्रयोजिके, प्र्ेकन्तु पद्चमा प्रथो शिके इति ara: |

श्यवङारकाखम्‌ | | १९४५.

द्माच्ुायणाय, अष्टाद्‌ शंग्र Saez, सप्तदशे Ware", इत रदौरखाय पुराय दथात्‌"-दति एतद सवफेनिगै णपु जविषथम्‌ | ey मनुना, | “ote: केचश्चैव दत्तः रृचिमएवच | गृढ़ोत्पन्नोऽपविद्धेख दायदाबान्धेवाख षट्‌ कानौनख सदोट्ञ्च क्रीतः पौनर्भवस्तथा | सखयंदत्तथ शौद्रश्च षडदायादबान्धवाः" दति षड्कदयमभिधाय yaege दायाद्‌ बान्धवत्वं उन्तरषहूस्या- दायाद बान्धवल्वसुक्र, तत्‌ पुनः समानगोचवेन सपिष्डमिन वषा उदकप्रदानादिकायेकरत्यं षड्कदयस्यापि सममेवेति व्याख्येयम्‌ पिद्धनग्रदणं तु परवेस्याभावे ware | “aq भरातरो पितरः gar ऋक्यरराः पितुः" ष्ति रौर सव्यतिरिक्रानां पुचप्रतिनिधोनां! eat "्छक्यशारित्वख्य मतुनेव प्रतिपादितलात्‌'° | द्यामसुग्यायणम्॒ जनयितुरपि छक्यं भजते तथाच याश्ञवस्क्यःः- |

* इत्थमेव पाठः सव्वं | परन्वसभौचीगोऽयं पाठः| कस्या पश्र विप्रे षस्य wa faen उचितो पुचमाच्स्य | t एचप्रतिनिधौनामपि+--दति पाठो भवितुमुचितः।

िणीिरििभाममम ््म EE an ONE ee SERRE “AE UONREN UREA om:

(९) aat war xfs बड्वचमो पादानात्‌ प्रतिनिधौ श्रुत श्रग्दप्र योगस सिडधान्भसिडधतया पथप्रतिनिधिव्वपमि प्रषरणब्दप्रयोगतेपपन्ते सर्म्ेवामेव qari ऋक्यदरत्वं प्रतिपादितमिति ara |

२५ | पराश्रमाधवः |

‘gaan परकेने नियोगोत्पादितः सुतः उभयोरप्यसो क्यो पिण्डदाता धश्मेतः?-इति | यदा गुर्वादिना fram देवरादिः खयमष्यपुजः षल्पुजस्य

aa aug vant यं जनयति, दिपिलको srgenaut- इयोरपि wut पिण्डदख। यदा खयं पुचवाम्‌ परपुचार्थमेव ads युजमुत्पादयति, aque: चेजिणएव gut भवति वौ जिनः यथोक्तं मनुना, `

“क्रियाऽभ्यपगमादेव TAY Baas |

aay भागिनौ दृष्टौ TSN चखेचिकण्वच

फलं त्वनभिसन्धाय खेजिणं बौ जिनं तथा |

प्रत्येकं चेजरिणाम्था बौोजाद्‌यो निर्बलौ यसो"--इति |

Bare: | श्रवोत्यन्मपष्यसुभयोरपि भवतु, इति संविदं शला

यत्‌ चनं स्वामिना बौजावापा्थं बौजिने दौयते, तस्मिन्‌ देते उत्पन्लस्यापत्यस्य बोजिचेचिणौ स्वामिनो यदा तु तनोत्पश्नमप- त्यमावयोर स्लिति aaa पर खेचे बौ जिना यद पत्धमुत्पाद्यते, aqua चेचिणएव बौ जिनः यतो बौजार्यो निबेलो यसौ | गवाश्वादिषु दृष्टलादिषव्ययेः गर्वादिनियो गोऽपि वाग्दन्ताविषय- एव अन्यस्य नियोगस्य मनुना निषिद्धत्वात्‌ |

“देवराद्या सपिण्डाद्वा स्या सद्धिः frame

बोजेरिताऽधिगग्नन्या ware परिचये

fawarat frome रताक्रो वाग्‌यतो निभि

एकञुत्पाद येत्पुचं faite कथञ्चन

व्व हारकागहम्‌ | Rus

ge नियोगादूत्न्ने ययावदिधवैव सा

मान्यस्मिज्विधवा नारौ fatwa दिजलातिभिः

अन्यस्मिन्‌ fe नियुश्नाना wa we: सनातनम्‌ |

मोदा रिकेमु weg नियोगः कौत्येते कचित्‌

विवारविधौ यक्तं विधवावेदनं युनः। `

श्रयं दिजेदिं विदद्धिः wow विगरितः॥

मनुवयाणणमपि stat Fad राश्यं प्रशाखति |

मरोमख्िलां yn राजषिम्रवरः पुरा

वर्णानां सङःरं चक्र कामोपहतचेतनः |

तदा प्रति यो मोहातप्रमौतपतिकां fer ti

fanaa तं विगदेन्ति साघधवः---दति। wea विकन्पोऽस्त्‌, विधिप्रतिषेधयोरभयोद॑श्ेनात्‌ wit-

विनियोगस्य वाग्दन्तादि विषयलमनुपपन्नमिति Si म। मनुमे नियोगस्य तददिषषयत्प्रतिपादनात्‌ |

‘Crea चियेत कन्याया वाचा सत्ये शते पतिः |

लामनेन विधानेन निजो विन्देत देवरः

ययाविध्यभिगम्येतां एएक्रवस्ां शुचित्रताम्‌ |

मियो भजेता प्रसवात्सकशत्शटदृ ताटृतौ'"- इति | दन्तकादौनां बौोजिच्छक्यभाक्तम्‌। तयाच मनुः,

siya जमयिदुने भजेदन्तिमः सतः |

गोजष्डक्यारुमः पिष्डोव्यपेति ददतः खधा"“-दति।

Ruz UCICATRT: |

हचिमयषणं atrreardg* दन्तब्धतिरिक्रानां गौ णपुचाणां ऋक्यभाद्वमतिपादकानि वाक्यानि युगान्तरविषथाणि, कलौ युगे तेषां qaaa परियदणस्य wat निषिद्धत्वात्‌ | “द त्तौरसेतरेषान्तु gaaa परियः | देवरेण सुतोत्पत्तिः वानप्रस्याश्मयद्ः कलौ युगे लिमान्‌ धर्मान्‌ वरव्याना्र्मनो षिण" दूति | शद्रधनविभागे विग्रेषमाह यान्ञवस्क्यः,- जातोऽपि दास्यां शद्रे कामतोऽ गरो भवेत्‌ | za पितरि gard भरातर स्वधैभा गिनम्‌ श्रभ्राटको दरेत्सवे gfeeut सुतादृतेः- द्रति | कामतः पितुरिच्छया भागं लभते we यितरि यदि परि- णोतापुज्राभातरः सन्ति, तदा ते दासोपुचं सखभागादर्धभा गिनं इषुः श्रय परिणोतापुचा दुहितरो वा ततपुचा वा न्ति तदा तद्धन द्‌ासोपुचो लभते | तख्द्नावे श्रद्धमेव fanaa दास्यासुत्पन्नस्त पित्रि च्छया लभते WU जातोऽपि दास्यां ugufa विगरेषण्णत्‌ PaaS लभते इत्यभिप्रायः श्रपुचदाययरणक्रममार्‌ याश्नवख्क्धः, “पन्नो दुहितरञ्चेव पितरो aracere TSA गोचजो बन्धुः fra: सन्रह्मवारिएः

विक oe = ~~~ चय

#* इत्थमेव पाठः aia) मम तु, र्जिमय्श्यं चो पलच्त णार्थम्‌, बः दति पाठः पतिभाति | तथाच दचिमादयः एवा ममयितुरगोचिक्रक्ये भनेरन्‌,--इति परथेवसितोवचमगा्ं इति भावः | |

एषामभावे पूर्व्य WATT ALT: | ware ware सर्ववर्णव्वयं विधिः“ इति | श्रौरसादयो eanfaugar यस्य सनधघावसु्रः | Te शल धनं पल्यादौनां we पूरवस्याभावे उम्तरोसरोगशाति we दायग्रहणक्रमः सवेषु मू द्वावसिक्रादिष्वलुलोमजेषु ada ब्राद्य- णादिषु वेदितव्य इत्ययः wat विवाषहादिसंछ्ता नारौ सा प्रथमं wae ग्टश्षाति तदाह ewafa:,— लेषु विद्यमानेषु पिदभरादसनामिषु श्रसुतस्य प्रमोतस्य wat तद्धनशारिणौ"-इति। अभ विशेषमाड रद्धममुः- * “Maat weet Ha: पालयन्तौ त्रते fear: पन्येव दद्यात्तत्‌ पिण्डं wad लमेत च-इति | वद्यं अरपुषदायग्रदणक्रमः। दाद शविधपुषशून्यस्य wT धनं wat क्षति! तदभावे दुहिता तदभावे दौङहिजः। तदभावे माता | azarae पिता | तदभावे भ्राता तदभावे anya: तदभावे feast तदभावे aga पितामरशोग्टशाति तत्पुजा- सतत्पुजाखच पितामरवन्तानाभावे प्रपितामशः तत्पुाखन्पुभाञ्ेति सप्रमपय्यैनं गोजणा धमं wefan) सपिष्डानामभावे खमागोदका- धनं wef समागोद्‌काञ्च सपिष्डानासुपरि ay पुरषाः, sy नामन्चानपर््येन्ता वा ATH टरग्मल॒ना,- “ofr तु पुरुषे ana विभिवक्तंते | खमागोद कभावस्ठ निव्तेताचलतुदंश्रात्‌ |

46

ays | पलघ्चरमाकवै cures: 1.4

अण्ममामस्यतेरेके तत्परं गोषमुच्यते”--इ ति | मोषजानामभावे बान्धवा धनं wwf) बान्धवाश्च जिविधा- कौधायनेन दभिताः,- : “mafaeag: Gar आ्आक्ममादष्वखुः gat: | श्रात्ममातुलपुजाञ्च विज्ञेया श्रात्मबान्धवाः पितुः faery: gat: पितूर्मादष्वसुः सुताः | पितुर्मातुलपुत्राख्च विज्ञेयाः पिदबान्धवाः मातुः पिदष्वसुः wat: मातुर्मादव्वसुः सुताः | मातुर्मातुलपुजाश्च fasar माटबान्धवाः”--द्ति। बन्धुष्वपि यस्ाशन्नतरः सएव पूवे werfa) श्रतएव इदस्यतिःः- “बहवो ज्ञातयो यत्र WRT बान्धवास्तथा | यस्त्ासन्नतर स्तेषां सोऽनपत्यघनं हरेत्‌"- इति | TAPAS BATA: श्राचार्य्याभावे fare | तदार मनुः “यो यो want: पिण्डात्‌* तस्य तस्य घनं भवेत्‌ | श्रत ऊध्वं age: स्यादाचाय्यैः fre एवचः- दति | श्रापस्सम्बोऽपि “मपिष्डाभावे राधायैः श्राचार्व्याभावे श्रन्ते- वासो-इति। गिव्याभाते सब्रह्माचारो, तस्याभावे यः कथित्‌ ओजियो wzerfa तदाह satan) ““खओओजिया ब्राह्मएस्यानपत्यस्य "क्य भजेरन्‌" -- दति | तदभावे ब्राह्मणः ATE मनुः+- “सर्वेषामप्यभावे तु ब्राह्मण चक्यभागिनः |

रिष यो 8

न~ = = ~+ "~~ = = "न ता नुकि [कि

* यो छयासन्रतरः पिण्डः,--इति wre |

ACTH | ` दधः

Saar: ्रचथोदाग्भासया धी रोयते,- इति | न्राह्यणधनं कटादिदपि राजगामि। शजिधारिधनं लर स्रद्यवारिपय्नतानामभावे राजगामि | तदुक्तं मुना, “mETal ब्राह्मणद्रव्यं राशा नित्यमिति fea: इतरेषां ठु वर्णानां सर्वाभावे ररेश्नपः-इति नारदेनापि, “न्राह्मणायेसख्य THT दायादसेश्न कखन | ब्राह्मणायेव दानव्यमेगखो Weitere” - इति | संयकारेणणपि,- "पितय्येविद्चमानेऽपि धनं तत्‌ पिदसन्नतेः | तस्यामविश्चमाना्यां तत्पितामदसमततेः श्रसत्यामपि तस्यान्तु प्रपितामशसग्भतेः | एवमेवोपपन्तौमां* सपिण्डा खक्यमा गिनः तदभावे सपिष्डाः। wera: firey एववा | angel afar: पूवाभावे परः परः शद्रदयेकोद काभावे राजा धनमवाभुयात्‌ आचारयश्यायभावे तु तथा afaed meet: इति गन्वनपत्यस्य धमं WHA Tal ग्टातौव्येतदं नुपपन्नम्‌ | TH सद्भावेऽपि भादणां wrewe satay वा भरणमाजच्य नारदे- गोक्रलात्‌,- 7 यवमेषोपपातोगा,-इति का mre | पाठदयमप्यसमोकनोनं धलिमाति | ` 1 अज, सङुक्धाः+-- ति पाठो मवितुसुचिवः।

4 भजत REY दो

aud WEINER ER!

“भादणामप्रलाः रेयात्‌ कञ्चिच्षेत्‌ Mer वा* | विभनेरम्‌ धनं we Tera het विना भरणं Te कुर्वीरन्‌ स्लोणामाजौवनचचात्‌ ¦ Taf wat भन्तुखेदादिश्युरितरा तत्‌-दनि | न्न, नसं्ष्टानां तु योभागस्तेषास्ेव cae दूति wae भ्राढएणमप्रजाः मेयादित्यादिव्वनस्य परितलेन सद्टष्टभ्राठभार्य्याणामनपत्यानां WUT संख्ष्टभ्नाद्णणं धन- रणम्‌! | “TERIA यो मागस्तेषामेव सख Lea | अनपत्यां परभागो fe निर्बोजिखितराभिवात्‌”- rata पौनरुक्चग्रसङ्गात्‌ अरय वा ्रविभक्रविषयलमस्त, awe तु विभक्रस्छासंद्ुष्टिगो avi! पन्ये प्रथमं aera aa मित्यविरोधः | यन्तु मलुगोक्रम्‌,- ` "पिता ₹इरेदपुषस्य शक्यं मातर एववा" इति | यदपि कात्यायनेगोक्षम्‌,- “विभक्त संख्िते दग्धं पुषाभावे पिता इरेत्‌ भ्राता वा जननौ वाऽय माता वा तत्पितुः कमात्‌??-दति। _ Gat तावत्‌ कमपमतिपादनपरम्‌, एव वेति fern * पव्रजेत्रसःः--इति wo | ` ` खज कियानपि यन्धः प्रलोम इति प्रतिभाति।

इत्थमेव पाठः सन्ये | भकुधंमिति तु समौचोगः पाठः प्रतिभाति | $ अज, -तच्र,- इति भवितुसुचिवम्‌ |

वजारकाष्धम्‌ .. देः

अवशात्‌ ware तु पल्धां afrerftet freer धमय्माडित्वप्रतिपादनपरम्‌ | | “भन्तुधेनचरौ wat या स्यादव्यभिचारिषौ | अप्र क्रियायक्रा fren वाऽयनाशचिका | वमिलाररता या षसो धनंसाम चारेतिः'-इति तेनैवोक्षलात्‌ धनं जौवनायोपक्षपं Swit नारंतोत्यषेः ` धारेखरस्तु, waa पन्नौ ग्ट्टातोत्येवमादिववमवश्जातश्य प्रका ure विषयन्यवस्यामादड | नियोगायिनो पन्नो wwe fare aga ग्टक्षाति* तयाच मनुः "धमं यो विष्छयान्चातुः are feats वा सोऽपत्यं WANTS दद्यात्तश्यैव तद्धनम्‌ कमौयाम्‌ च्येष्ठभार्य्यायां पुबसुत्पादयेद्‌ यदि | waa विभागः स्यादिति धर्मा व्यवश्ितःः--दति। विमक्रधने श्नातरि wa श्रपत्यद्वारेणेव पल्धाधमसम्बन्धः, मान्यथा अविक्रधनेऽपि तचेबेत्यभिप्रायः गौतमोऽपि “पिष्ड- गोजर्विंखम्बन्धा we भजेरन्‌ स्तौ वा wae बोजं का ferg- त“--दति संग्डकारोऽपि,- “भादषु प्रविभक्रेषु भटटेननप्यसन्छु वा गवदेशनियोगख्छा wat धममवाघ्नुषात्‌**- इति | तदनुपपन्नं, wal दुहितर इत्यत्र नियोभाश्रवणात्‌ अश्रुतोऽपि

~ ~~~ == ~~ I ति me ORD RT OME भिक

A ROTOR! Gar we By ene me ~

* wag wis war तदुगह्ावि इति तु मविनुदुत्कतिम्‌।

sys पराशर aT ey! |

नियोगो sitrarfgrerrerenena इति यक्तमिति चेत्‌ गौतमादि वचनानामर्यानरपरत्वात्‌ तथा हि। तज -यङ्ैतमवचमः, “खपिण्डसम्बन्धा खषिसम्बन्धा wer wary) स्तौ वा श्रनपत्थस्य Ti fada’—cfa) तस्य गायम्थैः, यदि Hei लिप्येत लदा wat श्रमपत्यधनं गक्ातोति। चपि तद्यनपत्यस्य घमं पिच्डगोचर्धि- सम्बन्धारटष्ोयुः | जाया AT SY बोजं वा शिष्येत संयता वा भवेदि ति वाशब्दस्य पच्चान्तर वचनत्वेन यद्यं प्रयोगाभावात्‌ | यद्यपि ui a विश्यादित्यादि मनुवचनं, तदपि खेचभअस्येव धनसम्बन्धं afm पन्या दति। ngawafa संयताया एव धनेसम्बन्धं at, तु देवरादिनियुक्रायाः | अन्यया,

“श्रपुचा weet भन्तुः पालयन्तौ तरते खिता

पल्येव दद्यान्तत्पिण्ड हत्छमंशं waa च-इति |

तथा,

“SOA ग्रयनं भक्तेः पालयक्ो तरते fear |

भृ्नोतामरणात्‌ चान्ता दायादा उष्वंमाभ्ुयुः"- षति मनुकात्यायनवचमविरोधप्रसङ्गात्‌। aera विभक्र- स्यासङ्ष्टिनो are धनं पन्नो ग्टाति इत्येव mae Tae | यन्तु wet धनसम्नन्धाभावप्रतिपादकवचनम्‌,-

“earl zag तजाभधिशूताश्च ये .

TERRI’ स्वे यासाष्छदनभाजनाः

०-०००

TS LC CTE tne a ee ee, I

* keds पाठः सेच मम नु, खककधभाजसते--इति पाठः भतिमाति।

खवरारकाक्म्‌ | UR:

, चश्चाथं विदितं fat aarufefireteraz erty खेषु say स्तोमूखं विधभिंषु"-इति | aquaria सन्पादितधनविषयम्‌ यदपि कात्थाथनेनोक्रम्‌,-~ “अदायिकं राजगामि योषिर्टस्यौष्वेदेहिकम्‌ | sare ओओकियद्रव्यं ओओ जियेभ्यस्तदपेयेत्‌""-ष्ति | अपेणमश्रनाच्छादनोपयुक्तंः धनिनः आद्धादयुपयुकश्च gat शरदायिकधनं राजगामि भवति | ओजियद्रन्यं तु योषिद्ढष्थौष्यै- देडहिकमपास्य ओचियस्येव we दव्ययेः यदपि भाररै- नो क्रम्‌,- “अन्यज्‌ ब्राह्मणात्किशिद्राजा धमपरायणः | तत्‌स््लौणां stat दधथादेष दायविधिः खतः" इति। तदुभयमप्यवरद्धस्त्रो विषयं, पन्नौग्रब्दश्रवणणत्‌/९%। यदपि हा- रोतेगोक्रम्‌,- “fawar यौ वनस्था चेत्‌ wat भवति कर्कशा श्रायुषो रक्षणाय तु दातं जोवनं तदा”-दति। तदपि श्रद्धितव्यमिचारस्तो विषयम्‌ | यद्‌ पि प्रजापतिक्वनम्‌,- “OSH भन्तुदोनायाः दद्यादामरणान्तिकम्‌। दति

वो यमज ee aon RE = Ne eee et

* अथययाम शनाच्छादनोपयक्तः--दति We | पाठदयमप्यसमोचोनं प्रलि- भाति। + दद्यादा रमणात्‌ स्रियाः द्रति कार |

--~~ = ~~ ~~~ Le ~ eee vane Leman

Aha TATED EO > POET et

(x) धनौ दुश्डितरः इन्यादि घनाधिकारगेाधकवचनेभ्विति देषः |

qo पराशर माच्वः।

यदपि खरत्यन्सरे,- “अन्नाय तण्डुलप्रस्यमपराङे तु सेन्धनम्‌"”- दति | तदेतदयनदयं हारौ तवचनेन समानाम्‌ याच af: | ‘oa स्तियोनिरिष्डिया श्रदाशधादाः”-दति। सा पान्नौवतयद्े५ amen अं्ोनास्तौत्येवन्परा | इण्डियश्रब्दस्य “feed वे खोम- पयः” इति सोमे प्रयोगदगेनात्‌ . यन्त॒ पल्याः ्छावरग्रहण- निषेधकं द्स्पतिवश्नम्‌,-- ''यदिभक्रे धनं किञ्चिदाध्याटिविधिसस्तम्‌ | तष्नाया सथावर Fal सभेत गतभटेकाः-द्ति। तदितरदायादानुमतिमन्तरेण स्थावरविक्रयनिषेधपरम्‌ | अन्यया, “जङ्गम सावर हेम CY धान्यरसाम्बरम्‌ | रदाय दापयेत्‌ Bs मासखंवत्छरादिकम्‌ पिदव्यगुरुदौ हिचान्‌ भन्तुः खखौयमातुलाम्‌ | पूजयेत्‌ कव्यपूतग्ां टद्धानायातियौँ ख्या दरति may विरोधप्रषङ्गात्‌ | षंडष्टिविभागप्रकारमाइ मनुः, “विभक्ताः we ant विभजेरन्‌ घुमवेदि समस्तजविभागः wee तज विद्यते"-इति खमविभागविधानादेव विषमविभागवजिराकरणसिद्धेः श्ये तच ने विद्यते इति पुमविंषमविमामभिराकरणं विषमधनेन

1

a ey ne ~= न> भामा ०> =

(९) अत्ति पालोवतो्हः। तेन. पाच्विद्येमेण warts eta पयते | AM SA प्रलया GAT गास्तौत्धथंः।

च्वश्ारकाखम्‌ ३९१.

संष्टा्ा ` अनासुधारेण विषमविभागप्राछ्यथम्‌ संवगः केरित्य- चेखिते eeafa:,— "विभक्तो यः पुनः पिना भाजा चेकज sien: | पिहव्येणायवा slat ages: उच्थतेः?--इईति | थः पूर पिजादिना विभक्तः warfe: ge mer तेन ay waram:, dee उच्यते येम केनापि सहवाखमापश्न इतथरः | काचित्श्टष्टिनां विषमविभागमाड eeuta:,— “deurara यः कित्‌ वि्ाशौव्यादिनाऽधिकम्‌ | प्राप्रोति तज दानव्योद्ांश्रः शेषाः समां जिमः'-इति। विद्ादिना aa wie धने श्रंश्रदयं दातव्यं श्वसिति एतत्घ्ष्टद्रवथानुपरोधेनाभितेऽपि farang” श्पुज्व संख्ष्टिमः शक्या दिं दशयति याशवरुक्यः,- “sefsag dest सोदरश्य तु मोदरः। दथाशापररेांशं जातस्य aaa च''--दति। sua: defeat savin विभागका अ्रविन्नातगर्भायां vratat qergrawa पुजस्य TAU: Heel दात्‌, Ty aqqarayty ; पल्यादि walang feat भरण- माम्‌ ACTH नारदः,

(१) साधारयधमोपचातेनाष्नवितुर्भागादयस्य सामान्धतरबं प्राफल्वात्‌ संदङतिषये विधेषवचनारम्भस्याचव्वाय arg पदालाण्निदधे$षि संखङ्धयने qeing wast UMass ददति wena दति are: |

46

ae teers

Bqz परा्र माधव, |

"भरणं qa कुवोरन्‌ सोणामाजौवनकयात्‌ ` रच्छन्ति शय्यां भकखेदाच्छिन्युरितरास तत्‌ यदा दुहितरस्तस्याः* पिश्योऽ' शो भरणे मतः | सस्काराद्धरेद्धाग" परतो विश्यात्‌ पतिः“-इति। सोदरस्य तु सशोद्र पषति, सोदर dafea: तस्याश सोदरः Veet पश्चादुत्यन्नस्य GIN Tq तदभावे सखयमेवापशरेत्‌, भिश्लोदरः। संण्ट्टौति प्रवौक्स्यायवाद्‌ः। defeat भिख्ोदरस्य सोद्रख्याशद्टष्टिनिः agrt उभयोरपि far धनप्दणमित्थाह aya,— “neg eet AaRTaATIA चरेत्‌ | शरसरुष्यपि वाऽऽदद्याल्छोदरो नान्यमाटजः'--दति | सापल्यभ्नाता Test wateaut ety a लसं्ष्टौ श्रसं- ख्ष्चपि सोदरः सोदरस्य घनमाददीत। पुनरन्योदय्यैः ह्येव श्रतएव मतुः, ‘aut ste: कनिष्ठो वा होयेतांग्प्रदानतः | धिषेतान्यतरो बाऽपि तस्य भागो wart सोद्ग्थां विभजेयुरं समेत्य afer: समम्‌ | भातरो ये dwar भगिन्यश्च सनाभयः"-इति |

~ 0-०-49

= न्म ~ = = “^ “~ = न~ ^ (भ त्‌ = था NR Oe सका ~~~ eee

+ यदातु दुहिता तख्याः--दति काण | _ ` भाष्ययमंशः का ° gar | # op ~ nna ee

(१) wratse भरणरूपः

VIVA | aay

“weaad: येषां defeat fratecret भदश sg थः कौऽपि ee: कनिष्ठो मध्यमो वा विभागकाले दे्ाग्तरगमभारिभां watery waa, तस भागो शष्यते-एवगृड्धरषौयः। रु शिनएव ete: | किमु तसुद्धतं भागमसंङष्टिमः सोदराः defe- मख भिन्नोदराः सनाभयो भगिन्यश्च देशाग्तरगता wf wanna eye न्यूनाधिकभावमन्तरेण विभजेयुः | न्ये मन्यन्ते

“श्रस्श्यपि वा दद्यात्‌ सर्ष्टो भान्यमाएजः*- दत्धस्यायमथेः | यच daar भिश्नोदराः श्रसंङ्ष्टाद्च सोदराः, तजास्द्टृष्टा श्रपि सोदरा एव धनं awa: मतु भिश्नोदराः weer अपोति। यक्त, येषां व्येष्ठदत्यादि मजुवचनं संख्ष्टानां भिन्नोदराणामसष्टष्टामामेकोदराणां सर्वेषां भनग्रहणप्रतिपाद- कम्‌ तत्‌ शअङ्गम्धावराह्मिकोभयद्रव्यसद्भावे विषयम्‌ WITT प्रजापतिः “omen eRe HET तद्धवेत्‌ मिं we लसंङृष्टाः प्रगद्णोयु येयाऽ ्रतः"--दति saa: | deer भिशोदरभ्नादणामनीधेनं गृदृधनं xa वा MPA यथाऽ शतो भवेत्‌ atetraadevrt we खेषादिकं सछावररूपं यथाऽ'रतो भवेत्‌,-दति५। CT MTS HTT yee जङ्गमश्यावरयोरन्यतर खट्वाव विषयमिति | AY यद्युक्रं तद्प्राद्यम्‌ | यटा तु शंङ्षटमिन्लोद राभावः, तदा पिता पिदटव्योवा थः day

(९) तथाच भूनिग्टयोः एग पादानात्‌ द्रव्यपदं wane तेन शख्याबरमसंखूश्छपि सोदरखव REN IVA संङ्टिगोनित्रो कटाः quefga: सोदरा frases WHT: |

eee | QUAM

बएव water) तथाच tae न्वंशषिनि प्रेते संषषटो- खवथमाक्‌-इति यदा पिता पिद््यो वा deat विद्यते, तदा तरस्ष्टमिन्नोदरो भ्नाता weary तदभावे लधंश्ष्टैपिता, तदभावै माता, तदभावे WHT तदाह शङ्ख “खयातस wWa- awe wana xq तदभावे पितरौ wterat तदभावे ser at—cfa | set संयता, तु पूर्वादा संङ्ष्टभरादपुजाणं पन्याश्च षमवाये धनग्रदणप्रकारमाइ नारदः+ “aa पतौ तु arate खभ्नादरपिटमादकाः | श्वे सपिण्डाः खधनं विभजेयुयेयाऽ ग्रतः?”--दूति | पन्नौभारपिहमोदभावविशिष्टा ्रभाहपिहकाभाय्थाः सवं सपिष्डा भाष्पुजादटयः | तजन arequut afisna: wratat wine: sesuae विभाग इत्ययः पन्नौनामभावे संख्ष्टापुर्वांश् तद्धगिनो warfa तथाच इशस्पतिः,- “या तच्छ भगिनो at तु ततोऽ शभुमरेति | अनपत्यस्य धष्ीऽयमभार्ग्यापिदरकश्य च-इति | amet भारमादभावसञुच्चयायः केचिषु, “ar तद्य ` बुहिता"-द्ति पटिला पनौनामभावे दुहिता गहौतेत्धाः | दुडहिदभगिन्योरभावे, “mT: सपिण्डार्यस्तष्य तश्च धनं भवेत्‌” गतयु्पत्याखजिक्रमेण सवं सपिणष्डादथो धनं गग्डौधुः प्रति- we दोषा शामभावात्‌ अतएव इदव्यतिः,- “गदतो ऽनपत्योऽभाय्येखेदभादपिदमाढकः |

ry | कि ¢ .

` शयं aftrerragra विभणेवुरचथाऽ way -इलि |. बागप्रसखथतिनेहिकनह्यधारिणां धनं को वा रशातौत्यपेखिति आड GTI, . “arareatangarftat शक्मा गिनः | MAUI AS RTT IRA IH! TH aw प्रातिलोम्यक्रमेण Aafeangqefrut wa wre zetia, पिजादिः। sagaivaa धनं पिभादयणएव ayfer) यतेश्च धनमध्याद्मश्ास्लेश्रवणधारणतदनष्टागचमः सख्िष्यो ग्ट काति | Jaws भागानरेलात्‌ वानप्रखधनं wipe erie) wien समानाचाय्यकः। RATT एकाश्रमो | ध्मथाता सासावेकतौर्थो धर्मभराजेकतोथौं अथवा वानप्र्यतिनह्मलारिणां घनममावाग्यसच्ियधर्म- aranaifaa: mata गटषन्ति। प्वपूर्वाभावे उन्तरोन्रोग्डातो- we) यन्तु वसिषठनोक्रम्‌। श्रनंशास्लाश्रमाम्तरगताः"-दति | तदन्याश्रमिणामन्याअमिधनग्रहणनिषैधपरम्‌। तु खमानाज्रभिणं परस्पर खवथग्रहण निषेधपरम्‌ | मन्येतेषां धमसम्नन्धएव मासि grater: | प्रतिग्रशरै- धनाजगोपायद्छ निषिद्धलात्‌। “त्रनये निचयो भिचुः"-दइति गौतम- CITE | तज, 'अङ्कोमाघस्य aut वा तया सवद्छरश्य | atte निचयं gat ear त्यजेत्‌”

~ ^~ ~ ~~~ ˆ --~ me ~ कमअम

* WATCHES, दति wre |

ad¢ प्रथमाय |

इति aravera धनसंयोमोऽस्ति “को पोनाच्छादनाथें तु वाखोऽपि विश्याङ्‌ थतिः। योगसम्मारमेदांख wet पादुके तथा”-- दति वचनाद्यतेरपि वस््पुखकादिकं fares) नेटिक्वापि श्रलोरयाचायं वस््परि यहोऽख्येबेति तदिभागो चटतणएव दाया- मद्रानाह मनुः Coan ज्ञोबपतितौ जात्यन्धबधिरौ तथा | उन्धक्षजडम्‌ काञ्च ये केचिभ्िरिदधियाःः-दति | जिरिण्ियाः arf विकलेदधिथाः। नारदोऽपि. “पिदद्धिर्‌ पतितः षण्डो ay खादौोपपातिकः। sizer श्रपि मेतेऽश्ं waive Quer: कुतः” -दति | वशिष्ठोऽपि “श्रनश्रास्लाश्रमान्तर गताः” दति | याश्चवसर्कषयः,- “क्तो बोऽथ पनितसतष्णः ङ्ुसन्मन्तको जडः | अन्भोऽचिकिद्धरोगाद्याः" भतेव्याः च्यनिरश्रकाः“-दति | aes: पतितोत्पन्नः ्रादिशब्देन मूकादयो गद्यन्ते। एते निर्रकाः खक्यभाजो भवन्ति केवलमशनाच्छादनेन मन्तव्याः

` , पोष्याः श्रभरणे तु प्रत्यवायमाह मतुः,

“स्वेषामपि तदायं दाहं wer afer: | ग्रासाच्छादममत्यन्तं पतितो छददद्षेत्‌”-इति।

me cent कज ~ = = ~ ~ == =-= नन om ee

ययो अकक

* शन्धाऽचिकिद्धसेमार्ता,- दति ate |

इत्ममेव पाठः चखाद श्रएरूकेष , apyre,—xfs तु पाठः aad प्रतिभाति

च्यवहारकाखम्‌ | (1 कि

अत्यन्तं थावस्जौवभमित्यथैः 1 Ufare भतेष्यलादि नास्तीत्याह दिवशः,- | | “तेषां पतितवञभ्यो भकं वस्तं प्रदोयतेः,- दति | पतितश्रष्देन तष्नातोऽणुपलच्छते aac श्रपि ति मन्तव्याः | श्रतएव वगिष्टः। “शरनंशरास्लाश्रमाग्तरगताः क्ौगो- खकलपतितख्मरणं alterna ज्रंशानर्ाणां ger AMUN: | तरा देवलः, “तत्पुत्राः farzrain लभेरम्‌ दोषवजिताः”-इति | भिरं्रकानां gat श्रौरषाः Garg क्रगयादिदोषव्जिता- भागङहारिणो SARITA: | अतएव यान्नवष्कयः परिशंचषटे- ““श्रौरसाः केदजाम्तेषां मिद्धौषा भागहारिणः"--इति | facwarat दुहितरो यावत्‌ विवाहं aver: deren, way घाधदत्तयो यावन्नोवं we तथाच षएव- “सुताञचैषां भर्तव्या art wearer: | waar योषितद्चेषां wie: साधृषक्षथः निर्वाष्याव्यभिरारिश्यः प्रतिकूला सयेवचः"-इति | अन्यानपि भागानद्ान्‌ दगेयति वाज्वर्क्यःः- “अक्रेढ़ासुतस्चेव सगोजाद्यश्च आयते

== ~ ----न~ ~ “~~~ ~~~ ~~ ~= = -- ~ = ^ भजन = नन शा मियय

(ernpeneemnrene eeemnsttnte ng Aaa 1 ene Ee REN ee mR

(९) सौबोन्भत्तागामाश्रमान्तरगतामामपि कोनोनमत्तसर्णमेव | अर्थाव्‌ ` ओगोग्भत्तागां सन्धा यदुखते भरणादिकं, आन्नमान्तरगतानामपि तें तदेव मवतोति भावः।

a¢s UCINECATAT |

srerrcafaraa weeny erate —vfer | मतुरपि, afranrgraa पुजिष्डाऽऽख्च देवरात्‌ | उभौ तौ नार्तो भागं जारजातककामजौ? दति | स्लोधनविभागमारईइ arwaea:,— “पिन्तं भादमाददन्तमष्यम्धपागतम्‌ | आधिवेदनिकाद्यश्च ated परिकौन्तितम्‌ बन्धुदन्तं तया ए्एरकमन्वापेयकमेवच शरप्रजायामतोतार्या बान्धवास्तदवा्रय्‌ः"- दति augur विवाशकालेऽप्निसज्निधौ मातुखादिभिदेक्तम्‌ तथाच काल्यायमः,- "विवाहकाले यत्‌ wat दौयते wreefeet | तदध्यग्निषतं षद्विः ated परिकीर्तितम्‌" इति | आधिवेदभिकमधिषेदननिमिश्तमधि विन्नख्ियै era | श्राय may श्रध्यावारहनिकष्छक्यक्रयाटिप्राप्तम्‌ | तथाच मनुः, “चअध्यन्यध्यावाहनिकं zee प्रौतिकनेणि | भ्राढमाटपिद्रप्राप्तं बद्धिधं स्ोधनं खतम्‌”-दूति षद्धिधमितिं AACR ATTA | भाधिकसह्याग्यवच्छटाय | श्रथ्यावाइनिकप्रौतिदक्योः Sed कात्यायनेनोक्रम्‌,- यत्पुमशेभते मारौ नौयमाना पितु्ेहात्‌ |

९) शकद्धां खयां विद्चमागायां went किथसुदइति, rer rat nga अधिविद्नेबग्यते |

व्यवद्धारश्राम्‌ | ate

. अभ्यावादनिक माम aha तदुदाइतम्‌ Rant aay यत्किञिदन्येन श्रष्एरेण वा | ` श्राधिवेदनिकचचेव भोतिदभ्तं तदुच्यते" षति बन्धुद सं कन्यामाद्रपिढबन्पुभिरं त्म्‌ | Wei, य्‌ ग्टहौला कन्धा दधते अ्न्वाधेयकं परिणएयनादल्‌ पद्चादन्तम्‌। तदुक्तं कात्यायनेन, “ब्रहोपरकरवाद्यानां दोद्याभरणकर्मिंषणम्‌ | 7a warn यत्कि्ित्‌ ww तत्‌ परिकीर्तितम्‌ विवाहात्परतो यत्तु लं भक्तैः कुलात्‌ स्तिया अर्वाधेयं तु Aa लयं पिदङ्लात्‌ तयाः-इति। पिभादिभिः @hat घनदाने fatiqare काल्यायनः,- “पिद्मादपतिभादल्ञातिभिः स्तौधनं fae | aurea fares दातं स्थावरादृते-इति | यथाशक्ति स्थावरव्यतिरिक्रं धनं दिषदखकार्षापणएपय्धन्तं दातव्य frat: sary नियमः प्र्यब्ददाने वेदितन्यः। श्रनेकाग्दे amas सषदेव दाने नायमवधिनियमः। नापि श्यावरपय- दाखः। तथाच इदस्यतिः,- “दद्याद्धनश्च पर्य्याप्तं data वा थदिष्छति“-इति | qua सौदायिके श्छावरेऽपि ययेष्टविनियोगारेवसुक्तमोनेव,- “eget कन्यया वाऽपि ae: पिषश्छदेऽपि वा भातुः warm पिचोवां wai सौदायिकं स्रतम्‌

a a सज जा ४०७७ +

ee eT

ae (९) प्रष्ददानखव ख्यावरपुराखः वूपजोवनाथ' दाने दति are | ` 7

३७० पराशर माधवः ¦ -

सौदायिकं धनं प्राय खौं खातश्व्यभिन्यते + यसमात्तदानुपंस्याथं तदेतदुपजोवनम्‌+ | विक्रये चैव दाने BTS ष्यावरेष्वपि"--दति। परतिदन्तश्थावरेऽपि विगरेषमाह नारदः,-- “भरवां परीतेन यदत्तं fad तस्िश्मुतेऽपि च। सा धयाकाममन्नोयात्‌ दद्यात्‌ वा खावरादृते--ईति | पिश्रादिभिरुपाध्यादिना दन्तं सोधनं भवतोत्याङ कात्या at “aq atte aed ay योगवशेन ar | faar waraiswat wat तत्‌ स्तौधनमिव्यते""--द्ति। BHU धारणे दन्तमलङ्भारादिकं सोपाधिदन्तम्‌। Gata वचनादिनेव्यथंः। शिल्यादिप्राप्रमपि aie waaay सएव, “sa frag यदत्त Hen चेव यदन्यः we: खाग्यं तदा तच ओेषं तु wet रतम्‌*--इति | waa: खादित इति ara) 1 तदेतत्‌ ai दुदिटदौ- हिचपुच्ररहितायां स्ियामतौतायां बान्धवा भर्ादयो wwf: a क्रमः। मातरि उन्तायां प्रथमं दुहिता राति श्रतएवोकग aia, |

* तेदत्ततत्‌ परजोवनम्‌,-- डति यन्धाग्रश्टतः पाठः। 1 यदित्त,--दइति यरन्यान्तरछ्त, पाठः { मचेत,+--दति प्रम्यान्तरटतः पाठः, |

re ne TAT +~ = ee A eee mR eo open पोषण CD Tat eNGO a aR

(१) surfers y

व्यवहार काग | Bay

“मातुदुंडितरः गेषण्टणत्ताभ्वः खतिऽन्वथः--दति गौतमोऽपि “abet cfeeut श्रपरन्तानां अरपरतिटितानां च--दति। दुदिद्धणमभावे दौदि्यो wef ददु िदढणणं vam चेदिति याश्चवरक्यसमरणणत्‌ भिन्नमादकाणं दौ हिजाष्णं विषमाणां समवाये मादतो भागकर्पना तथाच्च गौतमः “पिढमाटश्व्वगं भागविगरेषः"-द्ति दुदिरदौहिकरणा समवाये मनुः, | “स्तासां स्यदुदितरस्तासामपि aersea: | मातामद्याधनात्‌ किञ्चित्‌ प्रदेयं मोनिपूवेकम्‌"”-- दति ` दौहिजौणणमप्भावे दौ दितराधनद्ारिणः तथाच नारदः “aragfeatiana eferut तदन्वयः-्ति। efeecfequrana तदन्वयो दौहिचौ writer: दौ दिबाणामभावे, “विभजेरन्‌ gar fred wat समम्‌ द्त्थादियाश्चवस्क्येवदनतः मादछणापाकरणतोऽवशिष्टं माढधमं war wef यत्तु मनुनोक्रम्‌,- "जनन्यां संस्थितायान्त्‌ ममं सवं सहोदराः | भजेरन्‌ मादक wee भगिन्य सनाभयः" दूति | एतत्‌ पुर्णा दुददणां yay Hawa kart नं भवति; किन्तु तेषां wana प्राते, समविभागप्राघ्यथे, षमशरव्ट- अवात्‌ यदपि शङ्खुःलिखिताभ्यासुक्तम्‌ “ad स्वे षदोद्रा- माकं watt कुमाय्य॑ञ्चः-इति। तदपि मनुकसनेनं स्मा-

RoR ULTIMA! |

aig) श्रय वा, एतदवनद्यं wy कुणलम्धसत्ो धम विषयम्‌ | अख्थिन्रेवं विषये इदस्पतिः- “aut तद पत्यानां दुहिता तदंशिनो | श्रप्रत्ता चेत्छमूढा तु लभते सा माहटकम्‌“-इति। श्रपत्यानां पुमपत्यानाम्‌* | यत्तु पारसकरेणोक्रम्‌,- Sprang दुहितुः ated परिकी्तितम्‌ | gay नेव लभते saat तु समां शभाक्‌”-इति | तद्प्रतिष्ठितो षण्डदुदिटविषयम्‌। श्रतएव मनुः,- “may यौतकं चन्‌ खात्‌ कुमारौभागरएव सः"--दति | daa equa श्रनपत्यरो नजातिस्वौधनं उन्तमजाति- सपन्नोदु दिता ग्लाति, तदभावे तदपत्यम्‌ तदुक्तं मनुना, “feurg agafan fear दत्तं कथञ्चन | न्ाद्मणे तद्ध रेत्कन्या तदपत्यस्य वा waq’—<fa | ब्राह्मणौ जात्यघमजान्युपलचणयैम्‌) पुज्राणमभावे पौत्रा ग्टलन्ति पौवाणामपि पितामद्यणापाकर णम्‌ | पुच्नपौनाणं देयमिति श्रधि-

= = te att ee et मा 17 1 ष्णा oS ae mer tere mary me aan ~

* मान्यानाम्‌,-- द्रति ate |

इत्यमेव पाठः सम्नेष्वाद श्पुक्तकेषु मम तु, ्प्रतिष्ितादक्तदुदिटढट- विषवम्‌+--द्रति पाठः प्रतिभाति।

} ब्राज्मणो जादयत्तमजाद्यपकच्तकायम्‌+- दति are | पाठदयमप्यसनी

चोनं परतिभाति ब्राह्मणोपदसुत्तमजाग्यपलच्चयार्धम्‌,--दति तु पाठः -समोच्वौनो भवति |

व्यवहार काण्डम्‌ | 9 + 3

कारश्रवणात्‌ | WY ऋणापाकरणेऽधिकारः | WRT तदति चेत्‌ तन्न “waar: शणं nfage:—cfa गौतमवरनेनः ` खवथभाजामेव खणापाकरणाधिकारश्रवणणत्‌ पौ जाणामप्यभाषे भर्जादयोऽपि waa) waa रिवारमेदेन विभेषमाह aa,— “ब्राह्यरैवार्षगान्धवेप्राजापल्येषु यद्धनम्‌ | श्रप्रभायामतोताचां भक्तेरेव तदिग्यते यन्नस्ये स्याद्धनं दन्तं विवगद्ेष्वासुरादिष अतोतायामप्रजायां मातापिचोस्सदिव्यते-दति | ब्राद्मदेवषेगान्धवप्राजापत्य विवादेषु dear भार्याया यद्धनं तदु रिजादिपौ वान्ततद्भनदा रि सन्ततेरभावे खति भठेगामि, ga माजादौनामित्ययैः। श्रासुरराकस्पेशाचविवारमल्लतायाः भाय्धाया- धन मातापिन्नोभेवतोत्यय; यत्त कात्यायनेमो क्म्‌, -- “बन्धुदन्तन्तु बन्धृनामभावे wemfa तत्‌*-दइति | तद्‌ासुरादिविवारसंख्गतस्त्ौ विषयम्‌ | श्रतएवोक्रं तेनेव, “श्रासुरादिष aaa} स््लौधनं deat स्रियाः | अभावे तद्‌ पत्यानां मातापित्रोः तदि खते--ए्ति। भर्वादिभिदेत्तमपि ene wud सोद्रणएव eri) तथाच waa) “afatne dzalma” मातुः?-दइति। खोदर्व्थाशामभावे मातुरभवतोत्ययैः यत्युमेनैवोक्रम्‌ “ay WR वोदृाऽहेति”-दति तच्छम्कायदपगनन्तरः संस्कारात्‌ HT Sara दृष्टव्यम्‌ अतएव याशवल्वयः, | “ब्हतायां दन्तमादथात्‌ परि णोध्योभयय्थयम्‌”-दति |

३७8 पराशर माचध्वबः।

[

यक कन्याये मातामहादिभिदश्त गषणदि, तदपि सोदरा- एव weld: तथाच बौधायनः, कं BATA WS: कन्यायाः सोदराः शमम्‌ | तदभावे भवेन्मातुस्तद्भावे पितुभेवेत्‌”-दति | अरनपत्यपुचिकाधनमपि सोदरो गक्ञाति। तथाच पेटोनशिः+- “श्रेतायां युचिकायान्त्‌ wat दायमरेति | श्रपु्ायां कुमार्याश्च भात्रा तद्याद्यमिव्यपि-दति | पुभिकायां पितुः पश्चादौरससद्धावे सएव zeta भर्ता यत्त मनुवचनम्‌» श्रपुचायांः छतायां तु पुजिकायां कथञ्चन | धनं तु पुचिकाभन्तां हरेचेवाविचारयन्‌"--टूति | तत्पश्चादुत्पन्नभ्नाचभाषे Alera यन्तु कचिदनपत्यं स्वौ धनं खखौोयादोनां wana इरश्पतिना,- “aaa मातुलान पिदटव्यस्त्ौ पिदष्वसा | wy vara wrayer प्रकौन्तिता यदाऽऽसामौरसो स्यात्‌ सतौ दौ हिन एवच तद्छुतो वा धनं तासां खस्ोयाद्याः समाप्नुयः"दति | अस्यायमयः। ब्राद्यादि विवादेषु भत्तुरभावे, श्रासुरादिषु माता- पिजोरभावे, माटव्वखादोनां धनं यथाक्रमं माटव्नसोयाद्या- mate: कचिष्लोवन्धाः सप्रजायाः श्रपि पन्याधनं भर्ता गटक्ञो- यादित्यार याश्चवषवधः,-- “दुभि uvaral anit संप्रतिरोधके |

DAHL TT | (3,

ग्रहोतं लो धनं भत्ता सिये दातुमरति"-द्ति। संप्रतिरोधके वन्दिग्रशादौ खकयद्रव्याभाते स्त्रीधनं witer | GIGS दद्यात्‌ प्रकारान्तरेण weld पुमदंद्ारैव तथाच कात्यायमः+- “a wat नेव सुतो पिता भरातरौ ae) श्रदमे वा विगँ वा स्तौधने प्रभविष्णवः यदि चेकतरोऽयेषां Put wedge | सष्टद्धिकं प्रदाप्यः स्यादुण्डञचैव षमाभ्रुयात्‌ तदेव यद्यनुज्ञाप्य भक्यतौ तिपरवैकम्‌ | मूलमेव द्यः साद्‌ यद्यसौ धनवाम्‌ भवेत्‌”-इति | देवशोऽपि,- “इत्तिराभरणं एर लाभ wud भवेत्‌ | भोक्रौ तत्‌ सयमेवेद्‌ पनिमादेत्यनापदि oat ate भोगे fad दद्यात्‌ षटटद्धिकम्‌”-एति | विभान्यद्रव्यमाह कात्यायनः,- “पैतामदञ्च fay यान्यत्खवमजितम्‌ | दायादानमां विभागे तु सवमेव विभज्यतेः-दति | 'पिदद्भग्योपजोवनेन सखयमजितं यत्तद्विभजेत्‌ तदमुपजोवने- नाच्ितच्याविभाव्यलात्‌ एतसतितयमपि wurafine विभजेत्‌ तथाच सएव, “ae परो तिप्रदानश्च दत्वा Te विभाजयेत्‌-इति। wurde’ धनाभावे fiewuafa विभजेत्‌ we we

Rod पराशर माधवः।

सममिति वचनात्‌ ऋक्यं णमिति वचनारिंनिष्व्यये whe मिद्याह* सएव,- “णमेव विधं aby विभागे बन्धुभिः बदा WRIST दोद्याभरणएक्मिंणः दृष्छमाना विभच्छन्ते att गृदेऽत्रवोत्‌ wa: ThA aq कोग्रग्रहणमितर दिव्यप्रतिषेधायेम्‌ | तथाच सएव, “शंका विश्वाससन्धाने विभागे कऋक्थिनां सदा | करियासम्‌रकदेतमे को शरमेवं प्रदापयेत्‌--दति ) श्रविभाज्यद्रयमार AAA, "पिष्द्रव्या विरोधेन यदन्यत्‌ खयमजिंतम्‌ मेचमौदादिकश्चैव दायादानां 4 agaq क्रमादभ्यागतं द्रव्यं इतमभ्धृद्धरेत्त्‌ यः | दायादेभ्यो 4 agar विद्यया लबन्धमेवच'--दति | पिष्टद्रग्याविरोधेन यत्‌ खयं कव्यादिना surfed, ae विद्या- दिना लम, faarerg awe, तद्भ्नाषादौनां भवेत्‌ यत्पि- चा दिक्रमायातं चोरादिभिरपदतमन्येर लुं Ta पुराणं मध्ये यः कश्िदितराभ्यनुश्नयोद्धर ति, तन्तस्येव भवति चेच तु तरो- याश्रमेवोद्धन्ता ग्लाति गेषं तु सवेषां सममेव तया शङ्खः, “पूवगष्टान्त्‌ यो मिं यः कञ्िदुद्धरेत्‌ अमात्‌ | यथाभागं लभन्तेऽन्ये दलाऽग्रन्तु तुरौयकम्‌"-इति

[ककड कणा A ERS" ae

* इत्यमेव yrs: aaq| परमयमसमौच्चौनः yrs: |

व्यवहार कारम्‌ | ~ भक.

Ta Perens’ लम्मपि खच्वेव भवतिः fre दरश्याविदोधेनेति सवे गेषः श्रतएव मनुः, ‘maar पिदद्रव्यं रमेण चदु पाजेयेत्‌ ` दायादेभ्यो azar विद्यया सब्धमे वख" जिः mae water पिदरग्रदणमविभक्रोपलच्णार्थम्‌। श्ासोऽपि,- ` “विद्याप्राप्नं meet ag सौदायिकं भवेत्‌ विभागकाले तत्तस्य नान्वेष्टव्यं 'विथभिः"--दति | विभाख्यविध्याघधनस्य सच्णमाडइ काव्यायनः,- ““परभक्रोपयोगन orat विद्याऽन्यतस्तु या तद्या प्राप्न घनं यत्त fae तदुच्यते ॥. उषन्यस्तेषु ony विध्या 1 पणपूवेकम्‌ | विद्याधनं तु तदिद्यान्‌ विभागे a नियोञ्धते॥ शिष्यादालिन्यतः प्रभान्‌ सन्दिग्धप्रञ्मनिणंयात्‌ | BAMA लब्धं प्राघाम्यतख् यत्‌ ` at निरस्य यश्रभं विधात TAA Hy ' विद्याधनं तु तदिद्यान्‌ a विमाण्यं ङश्स्यतविः afafas fe was खस्थाद्‌ यद्चाधिकम्भषेत्‌।। -विश्चाबलशतश्चेव यान्यन्तच्छिग्यतस्तया¢

1 ntetintieimammatianeal

* विद्यया खध्यापनादिना,--द्रति ate |

रय. हति का० |

i च्छिकिग्बवि fe धम्माऽयं मूल्यादुयाधिकं भवेत्‌,~धतिःपन्वीन्त दयः पाठः

Sere: िष्यतखथा,-- इति कार |

(र

५१ +^

gee पटाध्रभाच्चयेः | `

एतदिधाधनं MTB: Vw wearseant’—efe | अतौ विद्याचधनादन्ययाशतममिभकपिषा दिद्रग्योपथोगप्राप्तं वद्‌ विभक्तानां सामन्यं साधारणमिति यावत्‌ कचिद्िद्याप्राप्तमपि धनं विभाश्यमित्या नारदः, “कुटुम्बं ferry धातुधी विद्यामधिगच्छतः | भागं विथाधनाजस्मात्‌ जभेताश्ुलोऽपि खन्‌+”-ति। कात्यायनेनापि,- “sa विनोतविद्याभां भरादष्ण पिहतोऽपि बा nad तु यदित्तं fared तत्‌ erat’ —cfa | अविभक्र्य ga fazera: fawatsfa ar wrafaerat aga शोर्ययादिना ord विद्ययैव ord, afsered विभाष्यमिति | पिदद्रग्याजिंतेनाजिते धने भागदयमेकष्या वसिष्ठः “aa चेषां यदुपाजितं ष्माद्द्ं्मेव लमेत-इति यन्तः “सामान्यायेसभुत्थाने विभागस्तु समः खतःः--इति | तदिदयेतरकबयाद्युपाजितधन विषयम्‌ | अ्रविभाश्यविश्चाधने अर्ने- waa mary . गोतमः “@uafsid चेव Beat षैः कामं दथात्‌?'-ईइति। दच्छाभावे लाह नारदः "वेद्यो वैद्याय माकामो Teresa Gat धमात्‌ पिदद्रवयं समाशित्थ चेन्तद्धनमादतम्‌“- इति

* भागं विच्याडनात्तस्मात्ततृद्धतोऽपि लमेव्‌ समम्‌;ः--दति ae | + ww विद्यानां यड्नं,--दति wre |

VTVTCWT A | ` कू,

stare. waeeits zur तदाद कायाथ,

भावचानान्तु वेधेन देयं ent whey

खमविद्याधिकानान्त्‌ देवं Fie तद्धनम्‌“ इति 7: विद्चाप्राप्तधमवत्‌ गौरय्यादिप्राक्षमपि भनमविभाश्यमित्थाह

सएव, |

“श्रौ प्तं fazer स्तौधनं चेव ay शप्तम्‌

ured विभागे तु विभाञ्ं नेव खविथिमिः 1

ष्वजाइतम्मवेद्‌ यत्त विभाज्यं नेव तत्‌ सतम्‌"-दति WATTS way तेनेवोक्रम्‌,-

“सग्रामादाइतं an faxra दिषतां waa)

खाम्यथं जो वितं aa तद्ष्वणाइतमुश्यते- ईति | हदष्यतिरपि,-

“पितामहपिद्टग्यां च" दन्तं माणा Uga7

We तन्ञापरन्तवयं शौ ययेभा्याधनं सया-दति | शरीष्यपराप्नचनसषूपं काल्यायनेम दितम्‌,

May संशयं यज प्रसभं कमे कुर्वते |

afer कमणि तुष्टेम रसादः खामिना शतः

लज wal तु यत्किञ्चित्‌ धनं wide agaq’—cfh पिजारिद्रयोपशोवनेन faa श्रौ स्वप्ाह्तधनेऽप्यजेकष्य

भागदयमाइ व्यासः, “साधारणं varia यत्किञ्धिदाहनायुधम्‌ |

जम oa

* taaraefazarat,—xfa we |

-- आओौच्यादिगाऽऽोतिः वणते सिणः it: तस्य WAS SH रेषा TH Hehe अन्यदग्यविभाष्यमाइ HS ; ‘qe पजमणङ्ारं wrest: सिय क. योगक्तेमप्रचारञ्च विभाश्यं प्रषदते-इति | वस्तं एतं वसम्‌ | fraud वसं विषुष्ष्यैः विभागे आद्धभोक्ते दातम्‌ तथाच इस्तिः „` ˆ ` ^१४^ ~ ` “वस््रालङधार प््याटि पितुय्यद्ारनादिकम्‌--) THATS: URI Agile Ava ah श्रन्यानि तु. वस्लाणि विभाञ्यान्येव ¡ oe are; पज qa ्िविकादिवाश्नम्‌। तदपि यद्‌ येनारूढ़ ` waar wes तु सवे विभाव्यम्‌। श्रलङ्ारोऽपि यो येन टतः, - wey: शर्त: साधारणो विभाच्य एव, 4 पत्यौ जवति यत्‌ सोभिरणद्धारोः तो भकेत्‌ भजेरन्‌ दायादाः भजमानाः ` पसि Ae Ry तेनेव टत दति विगरेषेणोपादामात्‌ :`शलाजनं 'तष्डुलमोद- नादि तदपि यथासम्भवं stra विभान्यम्‌ } उदकं तदा- धारः ate: | tse विषमः पर्यायेरोप्रभो क्रथो मृखखदा- रेण विभ्यः ferry दास्योविषंमाः- पर्याये "कमम -करयि- तव्याः तयाच इदस्य तिः,- एकां खौ कारयेत्‌ कक -यथाऽपन अरेः ग्द WE: स्मांश्तो देया cera Ay ef

ASTHMA S पूते We -सच्छतेः। तदु भके foarte धा ्ितमथ्यनिभरच्वंम्‌ | vent -लौगा शिफा, “मं प्रशँ यागमिटभिन्धाङष्तषवद सिनः} ¦ ¢} अधिभाच्येः ते भोकते शथनाखभमेवच^" दति, | Wea FMT SINT ETT ATTA दमा दिभग्रतथ छश्च eRe ey - परवेग्रनिगममागेः सोऽ्यविभाक्चः 4 wy. qHee Pay vara विभाज्यलसुक्तम्‌, | OF FER aT घगोजाणमासरहखकुलादपि वाप्य" Say Wy हतान्नसुदकं faa: —eftt..1: | os दहनतनियङ्क्थचेणं चनिया सुतेन wg. आद्यलो तेन. अमि भाञ्यमिग्येवं परम्‌ | ` :` . “न उतिश्रहगदेया . चचिथादिसुताथ 9 CeCe. अन्ये मन्यमी।. वस्तादयोऽपि. fare एव : विता कदलि. | “बस्छस्टथोऽविभव्यायेदक तेते विचारितम्‌ \ Wagar. वस्ता जङ्कारखंद्धितम्‌ .॥ ,-.;# Bharani art तः ` कश्य, wat ५; + काकतुलविनिजनो य, ATAU भवेन्‌; #

* ब्छ--दति aT ष्तः UIs? |

gece WUTHLATET: |

विक्रीय वस्छाभरणग्दएकुद्राद्य शेखितम्‌ .. शतानन वा ware परिवल्ये fart दधत्य कूपवाप्यम्भख्छसुखारेण wy | | एकां GY कारयेत्‌. कषम यथाऽगरन रे रहे ag: समां शतो देया द्‌ाखामामष्यय विधिः योगकेमवतो लाभः शमलेष विभञ्छते a प्रचारख यथाऽ'गेन away खक्थिभिः सष दति तेन बस््लादोनामदिभन्यलप्रतिपादकं मनुवचममुश्चमोवचनं दा- नाद्रणणोयम्‌ | तदनुपपन्नम्‌ | विरोधं fe wert faraer- SUA युकं, चान्यथाकरणम्‌ इरस्सतिवचनानान्तु अष्टेत- वस्त्रादि विषयलम्‌, मन्वारिवयनस्स तु शतबस््रादि विष्रयतवम्‌ पूर्व- मेदोक्रमिति विषचब्यवस्या चटते इति विभागकाले केनचिद्ितं पञ्चादुद्गाभितं चेत्‌, aed समं विभजेयुः तथाच्च याश्चवख्क्यः,- | | “श्रन्योन्यापदडतं द्रव्यं fk TH दृष्यते | तत्पुमसते सभेरओेः विभणेरजिति खितिः"-इति | समग्रब्दो विषमविभागजिरासाथेः। विभलेरजिति aerate येन इष्टं तेनेव यदयमिति दधेयति। मसुरपि,- “णे धने wafer प्रविभक्ते धया बिधि प्चाश्डृष्छेत यत्किथित्‌ तशवे खमतां नयेत्‌”~दति अरपदतद्र यवच्छाश्लो क्रामतिक्रमेण fram विभक्रमपि

[पीपी जी 1

# पिषमभागयता,-दति नाखि are get |

व्यवद्ारकाण्डम्‌ | ase

अमता wey?) तयाच कात्यायनः, “न्योन्याप्तं वय दुविभक्रश्च थद्धषेत्‌ पञ्चापपराप्तं विभच्येतं समभागेन तद्‌शगुः”-इति एवं सति वञचितद्र्स्य पाद्‌ इृषटसैव विभागविधामात्‌ qi fame पुगर्विंमागोनासतोत्यवगम्यति | यन्स॒भनुगोक्रम्‌,- “विभागे तु कते किचित्‌ सामान्यं यच दृश्यते नासौ विभागो fava: कर्तव्यः पुनरेव दि--दति | तदिभकद्रव्याजेनययकर णादर्वामनेदितश्यम्‌ | ।श्रन्धोन्यापश्चतमि- त्यादिविचवना्ां निविषयतापत्तेः श्रचान्योन्यवशचने दोषौऽयसि तथाच शरुतिः “et वे भागिनं amet चयते Oa यदि वेगं चयतेऽय पुजमय पौ चयते”-दति। TEN: | चो भागिभं भागां भागाशुदते भागादपाकरोति भागं aa प्रयच्छत ति यावत्‌ } ` अथ TE: एनमपद्ारकं चयते नाश्रथति पापिभं करोतौति चावत्‌ यदितं नाश्रयति, तदा तल ae wiv वा गोश्थतोति | यत्तु मनुनोक्तम्‌,- “थो eet विनिङुवंत लोभात्‌ भादन्‌ atten: | ` " eee: स्यादभागख नियग्नग्यख राजभिः दति। तत्छलन्तस्वापि व्येषटस्य समुदायद्रवयापशारे दोषोऽ किसु

a

Te men 9 Set meee meee 7 भक्‌

° eats पाठः wert | परमयमसमो चमः पाठः | खव कियानपि पाटो बनश्ोऽन्धथा नातोषे्नुमोयते | अश्र, अन्धथा,- इति भवितुमुचितम्‌ |

४८७ TETCATAE: | | |

ताखतम््ाणं adtrarfeain freee "7: भ्‌ च्यते दौषपरतिपादनपरम्‌ | अन्याः खत्या Bar eTaR: विभ- MTT HUMANS नारद्‌; ` ` ५.८४ यद्येकजाता बहवः एथग्धर्माः भयककिधाः एयक्षमेगणोपेता चेत्‌ ATA SAT | , खभागान्‌ यदि quad किक्रौणणेयुरथापि वा कुसूर्ययेष्टं AAMT खधनस्य च-इति I एकस्माव्लाता विभक्ता्रातरः पर्यरानुमतिमन्तरेण धभसा- येष्टापू्ता दिधश्नकारिणो मवेयुः। तथा, धमसा्यषटव्यादिकम्मेकारि" at भवेयुः तथां, विभिन्नोलृष्वलसुखलादिकश् पसजैन्रव्योपेताः Sei तथाच sag भरातरो यदि सम्मताः, AT लाभनादृत्य कासं Bal तया, विभक्ता भ्वातरः खभागान्‌ यदि ददुविक्रौ- नोय्वा, दर्वा, qed aes इयुः sere विभक्ताः waa am: area: खामिन cau: | ay ष्टस्य तिवचनम्‌,-- नविभिक्ता वाऽविभक्ता वा दायादाः शावरे समाः एको दमनो शः सर्वच दानाधमन विक्रये”-द्ति 1 तदेवं यास्येयम्‌ | श्रविभक्तषु Zaye साधारणलारेकस्यनोश्वरलात्‌ सर्वरमुज्ञाऽवश्यं कार्य्या विभक्ते दवन्तरकालं Padre सन- सौकर्याय wher) पुमरेकस्यानौशखरतवेन wat विभक्रानु- मतिब्यतिरेकेणापि ग्यवद्धरः सिध्यत्येवेति | यन्तु खत्यकरम्‌,-~ “खगरामन्नातिसामन्तेदाथाद्‌ाशुमतेम िरप्योदकदानेम धस्‌ farting fe afear—cfa

चयवद्दारकाणडम्‌ |

qereatyure: | तच ग्रामातुमतिः, ~: "ग्लहः मकाश्रः wr स्दावरष्य Pe” इदि रणात्‌ व्वहारप्रकाग्रनायमेवाचेष्छते groan सनिमनारेण saya सिद्यतोति सामनम्तासुमतिरपि सौमा- विप्रतिपल्तिनिरासायम्‌ | एवं तद्नुमतिरपिर विभक्रल्रवच्यरासेन्‌ वयवद्ारपौ काथं यमेव | दिरण्योदकदाममपि विक्रये कर्तव्ये खद्दिरंश्चो- दकं दश्वा दानङ्ूपेण स्थावर विक्रयं छुय्या दित्येवमर्थम्‌ * “erat विक्रयो नास्ति कुय्यादाधिमनुश्वया- दति शाबर बिक्रयस्य निषिद्धलात्‌ | “ऋमिं यः प्रतिगक्ाति यञ्च भमि प्रयच्छति | “anal पुष्वकर्प्ाणौ fred खर्मयामिगो--दइति | दानप्रतिपयोः urea) विभागापलापे fadqarcaare याशचवश्वधः,- . ` विभागनिङ्कवे? ज्ञा तिषन्धषाचिविलेखनेः। | (विभागभावना Ba गश्देचेख यौ तफेः"- दति |

[1 1 eee ee AEs NR 9 भम = NY OTN TH TAD CURRENT enter et ty

“sae san पाटः। दाथादानुमतिर्पि,-- एति पाठो मम

प्रतिभाति | |

छिरण्योदकं दत्त्वा दानरूपेण स्थावरधिकयं कुगादियेवमर्धः--- . ` डति का०।

ana? विक्रयं कुय्योन्न दाममगनुनच्वया+- दति ute |

$-निशये,- द्रति are |

| -शाद्विशेखितेः,--इति arte |

rr |

‘end चर 1 ` ` श्ातथः पिटवन्भवः'. daly -भातलारयः+ सेव्यं विभाग पषम्‌ एभिः विभागनिर्णथो शत्यः] यौतक्तः weg aydtal अन्यदपि विभागशिङ्गमादइ नारदः, | <विभागधर्कसन्डेडे zrarerat faferde: | शातिमिर्भागलेष्येन इयक्षाय्येमवर्कनात्‌ भ्यादशामविभक्रानामेको We: भवकति | विभागे खति धर्मोऽपि भवेन्तेषां एक्‌ gern बाखल प्रातिभावयश्च दाभग्रहणमेव | विभक्ता भातरः ष्युः वाविभक्षाः परस्यरम्‌ दानपरदएपश्वजञग्टदष्टेमतियाः | विभक्रानां एयक्‌ शचा दा्माभि्यष्वयागमाः 0 येषामेताः क्रिया सोके meena -कच्किथिवु विभक्रानवगच्छेयुलेख्यमप्यन्तरेण लान्‌” ` श्दस्यतिरपि,- “एय गायन्ययधमाः कुयौर श्च WITH | वशिक्पयश्च ये हयुविंभाकास्ते संभयः-इति ।. छसौदवारिव्थादिभिशिद्र्विभागनिर्षयः segrent वेदि-

aq | तया अप्व,

जिन ae rere भय "> ७, ७००००४७

ऋतयः -पिषनान्यवामगदट्रबाग्धगाच्,--- दति Wie सर | 1 एथक्पश्चमहायद्ेः अाजादिभिष्व zeae, वि RTS | पाक, दति गरन्धान्तसेवः पाठः See: |.

ered recent मान्विमोगच्‌ अत्थि) eqn विज्ञेयं weedy सादिणः।*--- दति. wrearfeerenfeyraty सएवाह, | Suara साहपषाधनम्‌ ` ष्य भोगः ware विभागद्य enna इति + | weave: पूवेपुरुपेरनुबन्धः ! ere: wether: दपङ्तद्रश्यदच्यते | दशनं anaarititat wet एवम्‌- परदव्रादिर्विभागशिङ्गतवमविभकरेषु निषिद्धवेनावगनाग्यम्‌। तथा चं याद्वः Teron coat: पितुः gwe चैव fy | भातिमायब्धफं साच्छमविभक्ते तु waa’ —cie | wiftitensfintifidearna, ‘gikaaeaety प्रपचेरेगम्चेत्‌"- दति ae Tee निषेधति ठडधयाशकश्वप SR बन्धसाच्छमिलेखितः विभागभावना कार्यां भवेहविकौ किया-इति |

WE ae. निरेय दत्याकाङ्ययामाहइ मरु न+ ~ ~+ भा कानसौ

- ^ ऋषिं न्धाः, दति प्रन्थान्तरोयः पाठः अथस पाठः स्वे परग्वसमौचोनः | श्यातां awe feat

“fe aayradieqises aaidte: |

५६ (जं ््‌ . gee पद्गाः ` + ef | |

fat चच eee: दाषादानां धरल्यरम्‌ 1 ` पुनर्विभागः कर्थः यक्‌ श्यानस्धितिरपि""- दति ` थत्र सन्देशो थक्तिभिरपि maf, तज पुनविभागः Rae ca: ay तेनेवोक्म्‌,- “qasnt निपतति awenat प्रदौयते | aux ददातौति Teena eer wary —<fa | तद्यक्षादिभिर्भिंरत्‌ wat eat गेदितव्यम्‌ खयं शत्या न्द्ध्य पुनः प्रवन्तंको THT THAT इत्याद VEGI, “Sesrenfaurnt थः पुनरेव विवदेत्‌ | राश्चाऽे ` खमे GTA शासनोयोऽनुबन्नतः-इति ) ` चरशुबन्धा भिन्नम्‌ now इति दायविभागः ५०१

अथ यूतसमा यायः विवादपदं निरूप्येत तयोः खरूपमाईइ मनुः, "“श्रप्राणिभिर्यत्ि्मते . ame YS eal t मणिभिः क्रियते axe: CRIN अदिः" surfer जरखबन्धग्रलाकाङदिमिः पआ्रधिभिः इटिः. 1 तचा AIT, | ““श्रचवस्धश्रशाकाेेवम जिद्धाकारितम्‌* | पणक्रोडा -वथोभिख् पदं धुतस्भाकयम्‌^-इति \

[ष्वणि mete MONTE een eyed eee nies | [कक 9

* शकारस्य. - इति-णशा*।

ee VACA ayay ०४ oa Riayat `.

अका पकाः | Taree fen शाका eee eM: VRS MaMa कपिंकादथो ya Re यरेवभं Tet कियते तरशतं, वयोभिः पिभिः 1८ बकला” उन्मत्मेषादिभिख्च प्राणिभिथां gayi feet सा समाङ्य cad: शहसतिरपि ~ .. परिग्णडोताश्चान्योन्यं पकचिभेरष॑टृषारयः | भरन्ते शतपणस्तं वदन्ति समाशयम्‌"*--इ ति | wrens सभिकेनाधिहितं काय्यैमित्याइ सएव - | “afvanfafeat कार्य्या TAC UI Vay’ —¢ fy. ऋक 'पथानरमार्‌ नारदः+ | 2; “शरचवा कितवो aR इला भागं चयो दितम्‌ | | मका श्देवनं कयरय दोषोः विश्रतेःः- इति | धूतखभाऽधिकारिणणो सिनत बावः, ` SRR UPPERS सभिकः we शतम्‌. 4 PTA दत कितवा दितरादईपकं शरतम्‌"-इति -परखरमोत्था पितवरिक्ख्पितपषठी we) ae तदाशवा ` शके्िकपरिभिता तदधिकिपरिमाणा वा उद्धिष्टो शतिकः : ञः x. | चात्‌ कितवान्‌ पञ्चकं शतं सभिकः sree म्न

Me se 3 सोम wy ००७

^ roti oo a a ty

* ervara, —xfaz Rte | ममतु, AUN, ——gfs ara: ote ~ ` भात्ति। |

PR Che, इति wre | (9

ae —afe कार |

\ ९४ ` 1 2 ५५ stg ` ` ae: PO TRF - "क, «4 , a gh wees [1

eg पं्चपणाजथो* अद्धिन्‌ भरते तक्‌ ` शतं पद्चकमं | नित- शद्ध) विश्रतितमं भागं यंद्नोयादिति यावत्‌ कितवनिकला्े ज्ञा er, तजाधिहितः संनिकः सभापति कश्पिलाश्लदि- निखिशक्रौडो पकर तदुपचितद्रग्यो पलोवो | CATH TTIONATg: fanaera fraarea TAA भाग zawrarfeera: | एवं खापि- सभिकस्य शत्यमांह सशव, “ख सम्यक्‌ पारितो SURI भागं TUBA | जितसुद्वादयेत्‌ जेजे दद्यात्‌ खतं वचः मौः-दति। uw: gra fagarfianrtt ret धूकोकितवेन्वो रच्धितः ae ययाप्रतिपन्नमंग्ं दात्‌ जित ऋय परपजितघकाण्षदा- केधारिना खद्ू्य जे दद्यात्‌ तथा चमौ war धूलकारिष्णं faqrard शत्यं वचो उश्यात्‌ | TRS तिर

परालितकितवानां aerate, प्श पप्र

गेव खदौयं पं जेते यथाभागं टचा दिषेः कद चं TTT: “Balak xe सित une ferent |

ar सभिकेनेव fever गे eee? -E Tt

wer afaar जेजे जितं दर्यं दाप्रयि्तु चै अकः AT रर्जा

दाप्रथेदित्याद याञ्चवष्षकधः,-

1 ipeemiaatinam > ow: कः t NN T

इत्यमेव Fay पाठः

ee emeatetd 1 | [वाका ALE

(x) रश्तेलंश्तिप्पवु श्चा समात्‌ TETAS म्द SM ईति मकम्‌ |

2

गकि चुभतितो भगे प्रशिद्ध शुतम्छलेः जितं क्चमिके खाने द्‌ापयेदन्यया ofr | ` ऋन्धया WE समिकर दिते शअतौतराजभामे९) दूते tat we जेजे ने दापथेदित्यथंः। we शयपराजयविप्रतिपगै {निके कारणमा सएव, दष्टारो यवहारार्णा afwuy तएव डि | TSAI दरष्टारष्ठ ava हि” षति | कितव एव wm नियोक्रव्यः, तु saree द्यु wees: दिणख तएव yaar एव विष्णरपि,-- - शकितवेष्येव तिष्टेरम्‌ कितवाः संशयं प्रतिभ | अणव तच दरष्टारसएवेषाग्तु. सा किणः--दति | | शाकिणां परल्यर त्रिरोधे राजाः विचारयेदित्यार रस्यति, . “उभयोरपि afveadt कितवाः शुः परोधकाः यदा विदधेविरुखे तु तदा राणा frei —efe - -श्टधूतकरारिणो दण्डमाह orqaew:, | ` “cra afed faster: कूटाचोपाभिदेविनः-दति } ` रटेरडादिभिरुपाभ्रिभिमेणिमन्तादौनामिति वनेन वे दि- aia ताभ्‌ शअप्देनाङयिता खराग्राजिरवाखये दित्यः | नि्वाबनेः विगरेषमा् नारदः,

* Carn wa तिष्ेरनू कितवागां wa प्रति,-- उति ute | इर्थमेब प्राठः water

{t) अतोको arent wart, stefan; ||

द्द ` MAURER MR -

““कूटाखदे विनः पाफाम्‌ राजा राद्रादिवासयेत्‌ | कण्डेऽलमालामांसज्धं दोषां विनथः सतः" इति | दण्डने विशेषमाह विष्णुः “qa क्रटाच्दे विमां करच्छेदः. उपाधिदि विनां wine: “--दइतिः। , अनियुक्दूतका रिणो दण्डमाह नारदः+ “श्निरदिंट्त यो राना धूतं कुवत मानवः | श्रतं प्राभरुयात्कामं विनयश्चेव सोऽदेति-इति | wa fafed कमंजातं समाङ्ये श्रतिदिश्रति यान्नवसकयः,- “एष एव विधिर्यः mfewt समाह्ये- इति , भभिकट्तिकन्पनादि छचणो wa: समाङ्ृयेऽपि fae इत्यर्थः | मारते पराभिनां जयपराजघ्नौ तत्छामिनो रित्यार रष्यतिः,- ““इन्दयुद्धेन यः कश्चिदवसादमवाश्रुयात्‌ | तत्छामिना पणेदेयो यत्तन्न परिकल्पितः” इति | पणपरि कल्यनमपि qaqa aang नारदः, “परि दासं यश्च यश्वाष्यद्विदितं शपे तचापि anger काम्यसथत्रौऽलुमतं तथोः" इति काम्यः कामः पणः | यन्तु Bat, “gi सभाहयञ्चेव यः कथातकारयेत वा तन्‌ सर्वाम्‌ घातयेद्राजा unig दिजशिङ्गिमिः॥

SRO ERE ets ree oo ate Se ye LP ELATED AEE नह CRETE पोना, SPE TR च+

* द्यूति क्रुटाचषदेवोनां करष्छेदः प्रशस्यते - डपाधिदेविनां दण्डः करच्छेद इति GT, इति we | { कव्यं विदितं त्रया, द्रति. प्रन `

"Hays He १५५६ १५ at a ^ 4१ ५५५) Ci, iho

तका + ay aid nie a x we

Mw ATE

(1 (शरी POSH vant ५2 „~

तद्यो भिलयं

{५

कतकम्‌ क्गोखवान्‌ कौशाभ्‌ creepy शौ ण्ठिकांशच fest नो

me «

~~ Fk

५५1 = ^ 6 क. aa a 402",

wf कः ४१, ry aa . ay oe av as ay Pe - tee 4 ye, , "स्‌ ioe a 4 "८41 “+ ८* १४ Sehr ye) = + =

4

111 शै

~ * , "+

४९११५. ति 1 4

९१५ aie vi 1

हदस्पतिभां > ९४१५ + विषाद्‌ . ५०४ x ; पदेभशिधौयति 4 » ; यवि a om ar as - 1 a tf :

4

ee 2 1 4 4 on

aves

--------- Mpa A os oo pe iat

६५ fon , ५। (न, Hi jeg

qu: मरभायदमोरेः weet तरेव $ `, ` पाषष्डनिगमेणौ गणधमेविपयेयाः पितापुजविवादश्च भायसिलत्थतिकरमः परतियरविलोपद्च शोप आभअमिशामपि | वपसङ्करदोषखच तहन्तिनिथमश्तथा दृष्टं we gay वै maar मकौणेकम्‌"' इति पकौणेके विवादे घे विवादा राणाश्चोहदन-तराश्ञाकरण- arma aU दिषिषयास्सै नपस्षमवाचिनणएव aw सत्याचारग्यपेते मागें वर्तमानानां प्रतिकूलतामाश्चाय erected aqua क्यात्‌* ! एवं agar यो garrett व्यवहारस्त्रकौ णेमित्यु्षं भवति ¦ तत्र याजान्नाभरतिचार्ता विभेषदष्छसा argqaee:,— “a stoafen वाऽपि feaet राभेशाङभम्‌ | पाररारिकचोर वा बुश्चतो gee owe! ईति 4 राजदन्लश्डमे निबन्धनख वा afar धिकं जी प्रका- शयद्वाजग्राखनं यो विलिखति, wy पारदारिकशोरो वा wear रा्ेऽगिवेय सश्चति, तादुभावु्तमषा हषं दनी + शाधोऽपि, “aaa र्टरौलाऽथे अधर्म्य . चिकिकयम्‌ करोव्यु्तरकार्य्याणि Tree sare. खत्को चणो विभो eerste wer are” इति। ` तत्कष्मकरएे ष्छभार VWI

* विषभास्तायुपरमो दपो वा कुर्व्‌ ~ इवि were 4.4 परमापद श्विष्राग | `

[प्‌

1 : a att, ote: का

Gr ^ इतिः rf

¢ मध्मभाशदःः # ^. ei “t

9 0.6

८१५ \

राजक्रौडासु ये सक्ता craves विभः wfhwagre यो वेका गणं तेषां WHY” इति | TWH कोश्राप्रणादौ दण्डमाह aq CARTE: abraetg. प्रतिकलेषु स्थिताम्‌ | wurde विविधेदं णडदरेतछवसखभे बच” दति | Serta यद्यस्य लोवनोपक्षरपं त्स्य भापररतग्य- सि्याहइ नारदः, ` “आयुधान्यायुधौयानां बौणानि छषिलोविनाम्‌ | , बेष्यासलोणामलङ्धारान्‌ वाद्यावाद्यानि तरिदाम्‌ wg यस्योपक्रशं थेन tater कारकाः | VISTAS राजा Woe” इति META erent मोप्य्यमादइ मनुः, `, “जआह्मणद्य मधे dhe} पुराजिब्रायनादने , werd चामिप्रशाद्क ware गदंमेन तू" इति ! कीपात्परस्परमेदनादौ Taare areae “दिनेजमभेदिगो wa इदिष्टादेग्रहतशया |

wy ents fatter,

grad मादयचिष्गपोरणे BANE | WAY मतुः, Cog बाध्यमाचन्तु काभोहिवरवे्म्‌ न्याचिकेषधोपायेस्तसुदेणकरीनर्ध दति | शद्धाणं पवबव्यादौ दण्डमाह कायैः न्य्त्रष्यावासिमं शद्धः अपरोमपरं AUT ata wadq पापं दण्ड्यो षा दिशं दमम्‌” cia | एवं शशो क्रमाम माड यभः,-- | ‘eq WANTS राध्रोदष्डधरस्य 1 aisha प्रयति लोके खमे वाषस्तयाऽचथः" ch | मनुरपि, "एवं सर्वानिमाचाजा यवहाराम्‌ समापयन्‌ पि व्यपो किलिषं सवै प्रप्नोति परमाक्रतिम्‌” इति. ` tia श्रौमदाराजातसिरानपरजेश्वस्ते fee HATTA TWINS SYCATR मधवामात्धस्य wat परा श्रखूति- Bal व्वदार माधवः समार्षः

HATA At वयवदारशाणडम्‌ समाप्ता चेयं Grace तिष्याखा गरभमष्ड BTA #

a {०५५ emi ae ath

यि AAR ANI ema a tne ka NA 1 are

- ॐ; ~रः > -------- ~ निप : नि sors

(९) परलोको" मखा cree wala ae